पंचायती राज दिवस: गांवों तक क्यों नहीं पहुंच सका ‘न्याय’  

Neetu SinghNeetu Singh   24 April 2018 6:34 PM GMT

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पंचायती राज दिवस: गांवों तक क्यों नहीं पहुंच सका ‘न्याय’  बिहार के समस्तीपुर जिला के मनिका गांव में लगी ग्राम कचहरी

देश में ग्रामीण क्षेत्रों तक लोगों को न्याय मिले, इसके लिए आजादी के समय ‘न्याय पंचायत’ का गठन प्रत्येक राज्य में किया जाना था, मगर देश में सिर्फ गिनती के ही ऐसे राज्य हैं, जहां ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी न्याय पंचायत काम कर रही है।

बिहार में न्याय पंचायत के रूप में ‘ग्राम कचहरी’ आज भी प्रभावी है। एक अध्ययन के अनुसार, इस राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में करीब 90 प्रतिशत विवादों को ग्राम कचहरी से समझौते के द्वारा हल किया गया, जबकि 7 प्रतिशत पर जुर्माना लगाया गया। सिर्फ 3 प्रतिशत मामले ऐसे हैं, जो ऊपरी अदालतों में पहुंचे। इन ग्राम कचहरियों में जमीन सम्बन्धी विवाद 58 प्रतिशत और घरेलू विवाद 20 प्रतिशत रहे।

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न्याय पंचायत में गांव के अनुभवी लोग होते हैं शामिल

इस समय देश में 3 करोड़ से अधिक मुकदमे कोर्ट में लम्बित हैं, जिसमें 66 प्रतिशत मुकदमे जमीन व सम्पत्ति से सम्बन्धित हैं। वहीं 10 प्रतिशत मसले पारिवारिक विवाद से जुड़े हुए हैं, इन 76 प्रतिशत विवादों का एक बड़ा हिस्सा गांव से जुड़ा है।

वहीं, देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की बात करें तो वर्ष 1972 में अंतिम बार उत्तर प्रदेश में न्याय पंचायत का गठन हुआ था, इसके बाद यह प्रक्रिया रुक गई।

ग्राम पंचायतों के अधिकारों के लिए देश भर में ‘तीसरी सरकार अभियान’ चला रहे डॉ. चंद्रशेखर प्राण बिहार की ग्राम कचहरी का अनुभव साझा करते हुए बताते हैं, “इस ग्राम कचहरी का उद्देश्य ये भी है कि समाज के अंतिम पायदान पर बैठे लोगों को ये एहसास दिलाना कि सरकार में उनकी भागीदारी की अहम भूमिका है।“

आगे बताया, “दो साल पहले जब हम बिहार दौरे पर गए थे, वहां ग्राम कचहरी को संचालित होते देख मैंने पूर्व मुख्यमंत्री जी को एक पत्र लिखकर ये मांग की थी कि उत्तर प्रदेश में भी इस तरह की ग्राम कचहरी का गठन किया जाए। मगर अब अगर योगी सरकार उत्तर प्रदेश में न्याय पंचायत के गठन पर ध्यान देती है तो गाँव के विकास के लिए एक नया अध्याय शुरू होगा, लोगों को थाने कचहरी के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे, पंचायत स्तर पर ही मामले निपटा लिए जाएंगे।”

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बिहार राज्य में जब ग्राम कचहरी का गठन हुआ था, उस समय पूरे राज्य में 8442 ग्राम कचहरी बनाई गई थी, जिसमें 8392 ग्राम कचहरी सक्रिय रूप से काम कर रही हैं।

बिहार के समस्तीपुर जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में मनिका गांव हैं, जो धर्मपुर ग्राम पंचायत में आता है। मनिका गांव में तीसरी बार लगातार बने सरपंच मनीष कुमार झा (30 वर्ष) गांव कनेक्शन को फ़ोन पर बताते हैं, “गाँव में छोटा-बड़ा कोई भी झगड़ा हो, सब ग्राम कचहरी में ही लेकर आते हैं, सात हजार आबादी वाली धर्मपुर पंचायत में पिछले 10 वर्षों से कोई भी मामला थाने तक नहीं गया है, सभी झगड़े इस ग्राम कचहरी में ही निपटाए गए हैं।”

वो आगे बताते हैं, “ज्यादातर मामलों में दोनों पक्षों में समझौता करा दिया जाता है, ये कचहरी सप्ताह में दो दिन सोमवार और शनिवार को सुबह 10 से चार बजे तक लगती है, जहां सरपंच न्याय देते हैं। ग्राम कचहरियों में 40 तरह की धाराओं के मुकदमे सुलझा दिए जाते हैं।”

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बिहार की ‘ग्राम कचहरी’ देश की ग्राम पंचायतों के लिए है उदाहरण

हालांकि उत्तर प्रदेश के पंचायती राज निदेशक आकाश दीप बताते हैं, “ग्रामीण क्षेत्रों के मसलों को सुलझाने के लिए ग्राम पंचायत और क्षेत्र पंचायत को ही महत्वपूर्ण माना गया है, ऐसे में हमारा प्रयास है कि ग्रामीण मसलों को पंचायत स्तर पर ही बेहतर ढंग से निपटाया जाए। हम इसके लिए निरंतर प्रयास कर रहे हैं।“

पिछले वर्ष उत्तर प्रदेश हाई कोर्ट ने 150वें स्थापना दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री सहित, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस, सीएम योगी आदित्यनाथ सभी मौजूद रहे। इस मौके पर न्याय व्यवस्था पर पीड़ा व्यक्त करते हुए चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने कहा था कि जजों की कमी के चलते भारत की न्याय व्यवस्था विकलांग हो गई है। चीफ जस्टिस की यह पीड़ा थोड़ी कम होती यदि देश के हर राज्य में ग्राम कचहरी की शुरुआत की गई होती।

कोर्ट यह मानती है कि ज्यादातर लंबित मामले जमीन-जायदाद से जुड़े होते हैं। इस लिहाज से ग्राम कचहरियां न्याय व्यवस्था में कुछ हद तक सुधार कर सकती।दूसरी ओर, वर्तमान न्याय व्यवस्था बहुत ही खर्चीली हो गई है और न्याय भी काफी देर से मिलता है। अगर कोई केस 10 साल तक चलता है तो उसमें तीन लाख रुपए खर्च हो जाते हैं।

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