स्वतंत्रता दिवस : गोरखपुर जेल में क्रांतिवीर राम प्रसाद बिस्मिल से अक्सर मिला करते थे बाबा

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स्वतंत्रता दिवस :  गोरखपुर जेल में क्रांतिवीर राम प्रसाद बिस्मिल से अक्सर मिला करते थे बाबा‘आजादी की डगर पे पांव’ यात्रा की शुरुआत हुई

इस स्वतंत्रता दिवस पर गांव कनेक्शन विशेष सीरीज कर रहा है, जिसमें एक अगस्त से लेकर 8 अगस्त तक यूपी महानक्रांतिकारियों के गांव और उनसे जुड़े स्थलों तक पहुंचेगा। सामाजिक कार्यकर्ता शाह आलम के साथ ‘आजादी के डगर पे पांव’ की पहली कड़ी में गोरखपुर

बरहज, चौरी-चौरा वाया गोरखपुर

लखनऊ। 'आजादी की डगर पे पांव' यात्रा का उद्घाटन देवरिया जिला मुख्यालय से 29 किमी दक्षिण में घाघरा तट पर बरहज आश्रम से हुआ। क्रांतिवीर रामप्रसाद बिस्मिल की समाधि पर सलामी दी गई। यह आश्रम साधु भेष में एक क्रांतिकारी का है, जिन्हें हम सब बाबा राघवदास के नाम से जानते हैं। बाबा राघवदास दलितों, दीन-दुखियों, पीड़ितों के पक्ष में हमेशा खड़े दिखे। उनका नारा था कि यह शरीर समाज का है इसका एक-एक क्षण समाज की सेवा में लगा देना है।

शिक्षा से लेकर स्वास्थ तक गाँव गिरांव के मोर्चे पर उनके सफल प्रयोग आज भी शिलालेख की तरह चमकते हैं। अपने दौर में यह आश्रम क्रांतिकारियों का बड़ा केन्द्र था। लिहाजा इसे बिट्रिश हुक्मरानों ने उन दिनों तहस-नहस करने के साथ गैर कानूनी भी घोषित कर दिया था।

बिस्मिल के अंतिम संस्कार के समय मौजूद थे बाबा

गोरखपुर जेल में क्रांतिवीर राम प्रसाद बिस्मिल से बाबा अक्सर मिला करते थे। राप्ती तट पर 19 दिसम्बर 1927 को बिस्मिल के अंतिम संस्कार के समय बाबा भी मौजूद थे। अपनी खद्दर की चद्दर में शहीद की अस्थियों को लाकर 20 दिसंबर 1927 को सुबह साढ़े आठ बजे आश्रम में समाधि बना दी थी। हालांकि देशवासियों को इस धरोहर के बारे में ज्यादा नहीं मालूम होगा। डेढ़ दशक तक भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन पर काम के दौरान जब अवाम का सिनेमा ने आजमगढ़ में अपना एक सप्ताह का फिल्म फेस्टीवल किया था, जिसमें देश-विदेश की शख्सियतें ने हिस्सेदारी की थी। तब इस आयोजन में गोरखपुर जेल में फांसी के तीन दिन पूर्व लिखी बिस्मिल की आत्मकथा अतिथियों को दी गयी थी।

जानिए क्या है सीरीज में- गाँव कनेक्शन विशेष सीरीज : आजादी की डगर पे पांव

यह महज संयोग ही था कि महापंडित राहुल जी के गांव कनैला में आयोजित समारोह में एक प्रति नेशनल पुलिस एकेडमी के डायरेक्टर रहे विकास नारायण राय ने साथी डाक्यूमेंट्री फिल्ममेकर सच्चितानंद मिश्र को गिफ्ट की थी। सच्चितानंद की भाभी बरहज की रहने वाली है उन्होने बरहज आश्रम से ही पढ़ाई की थी। पता चलते ही उसी साल बिस्मिल की समाधि पर अवाम का सिनेमा ने एक मुहिम के तहत फिल्म उत्सव का आयोजन किया था। और आज भी तक इस राष्ट्रीय स्तर के धरोहर को पहचान दिलाने की जद्दोजहद जारी है।

आजादी आंदोलन का प्रमुख प्रतीक चौरीचौरा शहीद स्मारक पर गुलपोशी की गयी दरअसल देश की आजादी का रास्ता चौरी चौरा से होकर ही गुजरा था। चौरी चौरा से ही काकोरी, लाहौर, असेम्बली, चिटगांव, अगस्त क्रांति, नौसेना विद्रोह जैसे तमाम क्रांतिकारी एक्शनों ने जुल्म और दमन की प्रतीक फिरंगी हुकुमत की नींव को हिलाकर रख दिया था। हम आज भी अपने पुरखो की गौरवगाथा से ऊर्जा लेते हैं तब ऐसे दौर मे पुलिस थाने के अन्दर बिट्रिश सिपाहियों की याद में बने स्मारक को देखकर अजीब लगता है। चौरी-चौरा के गरीब गुरबा भूमिहीन किसानों पर गोली चलाने वाले सिपाहियों के समारक पर “जय हिन्द” और शहीद ए वतन अशफाक उल्लाह खां की हस्त लिखित डायरी जो मेरे पास मौजूद है उसके मुताबिक गलत शेर लिखा है। आजादी के 70साल बाद भी बिट्रिश स्मारक को गौरवांवित करना देश के शहीदों का अपमान है। चौरी चौरा दो-दो शहीद स्मारक को लेकर हमेशा भ्रम बना रहता है? इसे लेकर अवाम का सिनेमा के दूसरे चौरी चौरा फिल्म फेस्टीवल के दौरान यह मुद्दा जोर शोर से उठा था। तत्कालीन कमिश्नर वेंकेटश्वर लू से मुलाकात के बाद उन्होंने आश्चर्य जाहिर किया था। लेकिन खेदजनक है कि आज तक हुआ कुछ नही।

गांव कनेक्शन विशेष

            

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