भारत और बांग्लादेश में आपसी विकास के लिए निर्णायक साझेदारी

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भारत और बांग्लादेश में आपसी विकास के लिए निर्णायक साझेदारीभारत और बांग्लादेश के बदलते रिश्ते।

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना का भारत दौरा दोनों देशों का शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व संबंधों की सुदृढ़ ऐतिहासिकता को नई जीवतंता प्रदान करने की दिशा में आगे बढ़ता दिख रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह से प्रोटोकॉल तोड़कर बांग्लोदश की प्रधानमंत्री का हवाई अड्डे पर जाकर स्वागत किया, वह इसी की झलक है।

प्रधानमंत्री की इस पहल ने यह संदेश दिया कि बांग्लादेश भारत का ‘सबसे अहम पड़ोसी’ (जैसा कि प्रधानमंत्री की ढाका यात्रा के समय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने कहा था) है। प्रधानमंत्री ने अपनी ढाका यात्रा के दौरान यह कहकर- ‘जो सपना मैंने भारत के भविष्य के लिए देखा है, वही भविष्य बांग्लादेश के लिए भी चाहता हूं’, बांग्लादेश को जो ‘इमोनेशन थेरेपी’ दी थी, उसे उन्होंने इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर शेख हसीना वाजेद का स्वागत कर और आत्मीय बना दिया।

तब क्या इससे यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि प्रधानमंत्री अपने ‘नेबर्स फर्स्ट’ के सिद्धांत पर कायम है और भारत की समृद्धता एवं खुशहाली के लिए पड़ोसियों की समृद्धता एवं खुशहाली को भी अनिवार्य मानते हैं? ऐसे में एक प्रश्न और उठता है कि क्या शेख हसीना कि इस यात्रा के दौरान बांग्लादेशी अवाम और अपने पड़ोसियों को यह संदेश देने में सफल हो पाएंगी कि भारत जिस तरह की कामना अपने भविष्य को अपने लिए करता है, वैसी ही अपने पड़ोसी देशों के लिए?

अपनी भारत यात्रा को बांग्लादेशी प्रधानमंत्री ने ‘मील का पत्थर’ बताया और उनके विदेश मंत्री ने इसे दोनों देशों के बीच ‘रिश्ते की नई ऊंचाई’ तक पहुंचाने वाला। क्या ये दोनों शब्द-वाक्य औपचारिक हैं, अथवा ये शेख हसीना की भारत यात्रा की केन्द्रीय अभिव्यक्ति? गौर से देखें तो पिछले सात वर्षों के दौरान भारत और बांग्लादेश ने लंबे समय से चले आ रहे मुद्दों को सुलझाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए और नई संभावनाओं को तलाशा है।

अब प्रधानमंत्री शेख हसीना उन संभावनाओं को समझौते को जमीन पर उतारने की उम्मीद से भारत आई हैं। इसलिए इन शब्दों को केवल औपचारिकता नहीं माना जा सकता। ध्यान रहे कि बांग्लादेश भारत से जिन उम्मीदों को धरातल पर उतारने की अपेक्षा रखता है उनमें प्रमुख हैं- पावर प्लांट, सोलर प्लांट, पावर ट्रांसमिशन लाइंस, बंदरगाहों को विकसित करना, नई रेल लाइनें निर्मित करना, विशेष आर्थिक ज़ोन का विकास करना, आधारभूत संरचना से जुड़ी परियोजनाओं को विकसित करना और इसके साथ-साथ कट्टरपंथ/आतंकवाद का मुकाबला करना व रक्षा सौदों को धरातल पर उतारना।

यदि भारत-बांग्लादेश संबंधों से जुड़े कुछ पन्नों पर नजर डालें तो स्पष्ट हो जाएगा कि शेख हसीना वाजेद के नेतृत्व में भारत-बांग्लादेश संबंधों में काफी प्रगति हुई है। पिछले पांच वर्षों में भारत-बांग्लादेश द्विपक्षीय व्यापार में 24.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, बांग्लादेश में भारत की तरफ से किए जाने वाले निवेश में लगातार वृद्धि हो रही है। यही नहीं बांग्लादेश ने भारतीय निवेश को आकर्षित करने के लिए विशेष आर्थिक क्षेत्र की स्थापना की है। व्यापार असंतुलन पर बांग्लादेश की चिंता को दूर करने एवं अतिरिक्त रोजगार सृजन के उद्देश्य से मोदी सरकार को वहां भारतीय सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा देना चाहिए।

सुरक्षा सहयोग के क्षेत्र में भी भारत और बांग्लादेश के बीच अद्वितीय संबंध हैं और इन संबंधों को जोड़ने वाले बाण्डों को मजबूत करने में शेख हसीना ने निर्णायक भूमिका निभायी है विशेषकर भारत के खिलाफ आतंकी व अलगाववादी गतिविधियां चलाने वाले कैम्पों के विरुद्ध कार्रवाई करके। यही वजह है कि दोनों देशों की सुरक्षा संस्थाओं के बीच विभिन्न स्तरों पर संतोषजनक संयोजन स्थापित हुआ है। लेकिन चीन लगातार इन संबंधों में सेंध लगाने की कोशिश कर रहा है। दरअसल चीन दक्षिण एशिया में भारत की केन्द्रीय भूमिका को कमजोर करने की दिशा में लगातार काम कर रहा है।

पिछले दिनों बांग्लादेश और चीन के मध्य जो रक्षा सहयोग समझौता हुआ जिसके तहत चीन द्वारा बांग्लादेश को दो सबमरीन बेची गयी, जो भारत के लिए कुछ असहज करने वाला है। भारत को चाहिए था कि वह बांग्लादेश में चीनी हितों को काउंटर करने के लिए कुछ मूलभूत कदम उठाए। चूंकि प्रधानमंत्री मोदी ट्रांस-रीजनल सहयोग, अर्थात बीबीआईएन (बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल) और बिम्सटेक (बहु क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी वाले देशों की पहल) के तहत सार्क को पुनर्जीवित करने की इच्छा रखते हैं। इसलिए भारत से ऐसी अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं।

शेख हसीना की वर्तमान यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच अलग-अलग क्षेत्रों में 22 समझौतों पर हस्ताक्षर भी हुए। इनमें लाइन आफ क्रेडिट को बढ़ाकर 4.5 बिलियन डॉलर करने के अतिरिक्त रक्षा और असैन्य परमाणु सहयोग के विभिन्न सामरिक क्षेत्रों सहित कई विषय शामिल हैं। सैन्य आपूर्ति के लिए 50 करोड़ डॉलर की अतिरिक्त ऋण सुविधा की भी घोषणा की गई है। लेकिन यह चीन के 20 अरब डॉलर की वित्तीय सहायता के मुकाबले बहुत कम है।

यानि बांग्लादेश में हम अभी चीनी हितों को काउंटर करने की स्थिति में नहीं पहुंचे हैं। दोनों देशों के मध्य जो सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा इस समय है, वह है तीस्ता जल बंटवारे का। यह बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति भी प्रभावित करता रहता है। बांग्लादेशी विपक्ष शेख हसीना सरकार की इसलिए आलोचना करता है, क्योंकि वह तीस्ता मामले में बांग्लादेश के अनुकूल किसी तरह का समझौता करा पाने में सफल नहीं हो पा रही हैं। हालांकि 2011 में दोनों देश समझौते के करीब पहुंच गए थे लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के अड़ियल रवैये ने इसे सम्पन्न नहीं होने दिया। अभी भी स्थिति वही है।

फिलहाल बांग्लादेश में 2019 में आम चुनाव हैं और शेख हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग, जो भारत के लिए सहयोगी मानी जाती है, का पुनः सत्ता मे आना भारत के लिए बेहतर होगा। इसके विपरीत यदि बेगम खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनल पार्टी और जमात-ए-इस्लामी जैसी पार्टियां यदि सत्ता में आईं तो उनका झुकाव पाकिस्तान की तरफ रहेगा। ऐसे में जरूरी है कि भारत की तरफ से यह संदेश दिया जाए कि वह बांग्लादेश की राजनीतिक संवेदनशीलता को समझता है और बांग्लादेश की सुरक्षा तथा प्रगति में निर्णायक साझीदार बनने के लिए प्रतिबद्ध है। हालांकि लैंड बाउंड्री एग्रीमेंट, न्यूक्लियर एनर्जी डील, कनेक्टिविटी और सिक्युरिटी के क्षेत्र में भारत ने नेबर्स फर्स्ट नीति को बखूबी निभाया है।

रक्षा और सामरिक सहयोग की दिशा में भारत बांग्लादेश के साथ खड़ा है और वह लगातार यह सिद्ध करने की कोशिश भी कर रहा है लेकिन हमें दक्षिण एशिया में चीनी उभार और बीजिंग-इस्लामाबाद धुरी अथवा बीजिंग-मास्को-इस्लामाबाद त्रिकोण को देखते हुए और सक्रिय होने की आवश्यकता है। उम्मीद है कि भारतीय नेतृत्व इन स्थितियों और चुनौतियों को देखते हुए एक्टिव एवं इण्डिया सेन्ट्रिक डिप्लोमैसी पर काम करेगा।

(लेखक आर्थिक और राजनीतिक विशेषज्ञ हैं)

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