गाँव की ओर सिनेमा को ले जाने की कोशिश में पवन श्रीवास्तव 

Basant KumarBasant Kumar   16 Jun 2017 7:47 PM GMT

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गाँव की ओर सिनेमा को ले जाने की कोशिश में पवन  श्रीवास्तव पवन श्रीवास्तव

लखनऊ। एक तरफ जहां सिनेमा से गाँव और गाँव के किरदार गायब हो रहे है, वहीं फ़िल्मकार पवन श्रीवास्तव अपनी फिल्म ‘लाइफ ऑफ़ अन आउटकास्ट’ फिल्म को पांच सौ गाँव में ले जाने की तैयारी में हैं।

दलित समस्या पर बनी फिल्म लाइफ ऑफ़ अन आउटकास्ट को पवन श्रीवास्तव 10 भाषाओँ में डब कराकर कम से कम 10 राज्यों के 500 गाँवों में दिखाने वाले हैं। पवन अपनी फिल्म क्राउड फंडिंग के जरिए बना रहे हैं। 50 दिन के लिए शुरू हुए क्राउड फंडिंग कैंपेन में अब 5 दिन और बचे हैं। 45 दिन में अलग-अलग लोग 3 लाख 31 हज़ार रुपए क्राउड फंडिंग के रूप में दे चुके हैं।

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भारतीय सिनेमा कहने भर को भरतीय सिनेमा है। इसकी ज्यादातर फिल्मों में भारत का अधिकांश समाज और उसकी समस्याएं गायब है। मुझे लगता है कि इसे भारतीय सिनेमा कहना ग्रामीणों का मजाक उड़ाना है।
पवन श्रीवास्तव, फिल्ममेकर

पवन कुमार बताते हैं, ‘भारतीय सिनेमा कहने भर को भरतीय सिनेमा है। इसकी ज्यादातर फिल्मों में भारत का अधिकांश समाज और उसकी समस्याएं गायब है। मुझे लगता है कि इसे भारतीय सिनेमा कहना ग्रामीणों का मजाक उड़ाना है। इस सिनेमा को भारतीय शहरी सिनेमा कहा जाना चाहिए। आज जो फ़िल्में बन रही है, उसमें से गाँव की समस्याएं और गाँव के किरदार गायब है।’

पवन आगे बताते हैं, 'हम अपनी फिल्म को देश के 500 गाँवों में दिखाने वाले है। भारत में सिनेमा के इतिहास में पहली बार ऐसा होगा कि फ़िल्मकार अपनी फिल्म को लेकर गाँव जाएगा। दरअसल 1970-80 के बाद जैसे जैसे मल्टीप्लेक्स आए उसके बाद से प्रोडूसर को लगा कि सिंगल स्क्रीन से तो पैसा आने वाला नहीं है। अब बिहार में बहुत कम मल्टीप्लेक्स है। जिसके चलते वहां से बॉलीवुड की कुल आमदनी का सिर्फ एक प्रतिशत रिवेन्यु आता है। अब सिनेमा तो एक व्यवसाय है। व्यवसाय करने वाला व्यक्ति अपना नुकसान तो करेगा नहीं। पैसा मल्टीप्लेक्स से आता है तो फ़िल्में भी मल्टीप्लेक्स में आने वाले लोगों की हिसाब से बनने लगी है। जिसमें से गाँव, गाँव की समस्याएं और ग्रामीण किरदार गायब हो गए।

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लाइफ ऑफ़ अन आउटकास्ट

फ़िल्मकार मनोज कुमार एक इंटरव्यू में बताते हैं, 'आजकल जो लोग फिल्में बना रहे हैं उनमें से ज़्यादातर लोगों ने गाँव की ज़िंदगी देखी ही नहीं हैं। आज भी भारत बसता तो गाँव में ही है और ज़्यादातर लोग उसी तरह की फ़िल्में ही पसंद करते हैं।'

क्या है क्राउड फंडिंग

फिल्म बनाना कठिन और महंगा काम है। आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति जल्दी फिल्म बनाने के बारे में सोच नहीं सकता हैं, लेकिन क्राउड फंडिंग एक ऐसा माध्यम है, जिसके जरिए सामान्य व्यक्ति भी फिल्में बना सकता है। और प्रोड्यूसर-निर्देशक बन सकता है। फ़िल्में भारत में क्राउड फंडिंग बहुत ज्यादा लोकप्रिय नहीं है, लेकिन नए निर्देशक इसके सहयोग से फ़िल्में बना रहे रहे हैं।

निर्देशक पवन श्रीवास्तव क्राउड फंडिंग के जरिए अपनी दूसरी फिल्म ‘लाइफ ऑफ ऐन आउटकास्ट’ बनाने जा रहे हैं। पवन श्रीवास्तव इससे पहले पलायन विषय पर ‘नया पता’ नाम से फिल्म बना चुके हैं। अपनी पहली फिल्म के लिए पवन ने नौ लाख रुपए क्राउड फंडिंग के जरिए जोड़ा था।

       

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