जम्मू-कश्मीर: पंचायत चुनाव से घाटी के गांवों में विकास का पहिया घूमने की जगी उम्मीद

जम्मू-कश्मीर में शांतिपूर्ण तरीके से पंचायत चुनाव का पूरा होना अपने आप में एक ऐतिहासिक है। इसके लिए चुनाव आयोग और सुरक्षा बलों के साथ साथ राज्य की जनता भी धन्यवाद की पात्र है, जिसने तमाम तरह की धमकियों के बावजूद इस चुनाव में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया है। ये अवामी भागीदारी इस बात का सबूत है कि जम्मू-कश्मीर की जनता विकास चाहती है।

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जम्मू-कश्मीर: पंचायत चुनाव से घाटी के गांवों में विकास का पहिया घूमने की जगी उम्मीद

जम्मू-कश्मीर में शांतिपूर्ण तरीके से पंचायत चुनाव का पूरा होना अपने आप में एक ऐतिहासिक है। इसके लिए चुनाव आयोग और सुरक्षा बलों के साथ साथ राज्य की जनता भी धन्यवाद की पात्र है, जिसने तमाम तरह की धमकियों के बावजूद इस चुनाव में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया है। ये अवामी भागीदारी इस बात का सबूत है कि जम्मू-कश्मीर की जनता विकास चाहती है। लोगों को उम्मीद है कि पंचायत और वार्ड चुनाव के बाद पिछले 13 वर्षों से उनके गांव और क्षेत्र में विकास का जो पहिया रुका हुआ है, वह एक बार फिर से चल पड़ेगा, क्योंकि स्थानीय स्तर पर सरकार के गठन के बाद जनवितरण प्रणाली, बिजली, सड़क, पानी, साफ़-सफाई, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति इसी संस्था से होती है।

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भारत के लोकतांत्रिक शासन में जनता को वोट के माध्यम से सरकार चुनने का अधिकार है। ऐसी सरकार जो विकास को प्राथमिकता देती हो। स्थानीय स्तर पर लोगों की प्राथमिक आवश्यकताओं को पूरा करती हो। लेकिन आज़ादी के 70 साल बाद भी जम्मू-कश्मीर के दूर-दराज़ विशेषकर सीमा से लगे ऐसे कई इलाक़े हैं जहां आज भी लोगों को सड़कें जैसी सुविधाएं तक मयस्सर नहीं है। एक ओर जहां केंद्र सरकार इस प्रयास में लगी है कि देश को डिजिटल बनाया जाये तो वहीँ दूसरी तरफ हकीकत यह है कि आज भी इस देश में सैंकड़ों बच्चे भूख से दम तोड़ रहे हैं, हज़ारों परिवार फुटपाथ और फ्लाईओवर के नीचे जीवन बसर करने को मजबूर हैं, करोड़ों युवा उच्च शिक्षा प्राप्त करके भी बेरोज़गार घूम रहे हैं। वास्तव में विकास ज़मीन पर क्रियान्वयन से अधिक केवल भाषणों और कागज़ों तक सिमट कर रह गया है।

साभार: इंटरनेट

जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती ज़िला पुंछ के ग्रामीण क्षेत्रों का भी कुछ ऐसा ही हाल है। देश भर में पक्की सड़कों का जाल बिछने के बावजूद यहां के निवासी पथरीली ज़मीन पर आज भी घंटों पैदल सफर करके अपनी ज़रूरत का सामान लेने के लिए शहर आने जाने पर मजबूर हैं। पुंछ ज़िला हेडक्वार्टर से करीब 33 किमी दूर मंडी तहसील के कई गांव 21वीं सदी के इस दौर में भी बिजली, पानी और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं से कोसों दूर हैं।

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मिसाल के तौर पर बायला गांव, जो मंडी तहसील से मात्र चार किमी दूरी पर स्थित है, वर्षों से हुकूमत की नज़रोकरम की बाट जोह रहा है। स्थानीय निवासियों के अनुसार "चुनाव के दौरान सभी पार्टियों के उमीदवार क्षेत्र की कायापलट के बड़े बड़े वादे करते हैं, लेकिन चुनाव के बाद फिर यहां पलट कर नहीं आते हैं।

गांव के एक बुज़ुर्ग अब्दुल अज़ीज़ कहते हैं कि "देश बदल रहा है, लेकिन हमारे गांव की समस्या जस की तस है, शहर से खरीदारी करके सामान को कंधे पर उठाकर गांव तक लाना पड़ता है।"

राजनीतिक दल से संबंध रखने वाले एक स्थानीय कार्यकर्ता मो. लतीफ़ मदनी क्षेत्र का हाल बयान करते हुए कहते हैं कि "वर्ष 2015 में क्षेत्र के विधायक मो. अकरम ने फंड से 20 लाख रूपए देकर 4 किमी सड़क का निर्माण करवाया था, लेकिन बदकिस्मती से इस सड़क को किसी विकास योजना से नहीं जोड़ा गया, इसलिए निर्माण के बाद इसके रख-रखाव पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।"

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सड़क की वर्तमान हालत बयान करते हुए स्थानीय निवासी जावेद इक़बाल बताते हैं कि "सड़क निकालते समय यह वादा किया गया था कि जिन लोगों की निजी ज़मीनों से सड़क निकाली जा रही है, उन्हें उचित मुआवज़ा दिया जायेगा। साथ ही चट्टानों से ज़मीन को बचाने के लिए डंगे (ज़मीन खिसकने से रोकने के लिए लोहे के तारों और पत्थरों से बुने एक प्रकार के जाल) भी उपलब्ध कराये जायेंगे तथा पानी के उचित निकासी के लिए पक्के नाले भी बनाये जायेंगे। लेकिन ये सब केवल घोषणा ही बन कर रह गईं, परिणामस्वरूप तीन साल के अंदर ही यह सड़क बारिश के कारण पूरी तरह से धंस गई है तथा लगातार ज़मीन खिसकने से सड़क के निचले हिस्सों में बने मकानों में दरारें भी आ गईं हैं।"

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गांव के ऊपरी क्षेत्रों में स्थिती और भी खराब है। यहां सड़कों की हालत इतनी ख़स्ता है कि गाँव तक कोई गाड़ी नही पहुंच पाती है। ऐसे में किसी इमरजेंसी में मरीज को अस्पताल ले जाने या लाने के लिए चारपाई का इस्तेमाल करना पड़ता है। जिसपर मरीज़ को बांध दिया जाता है। सबसे विकट परिस्थिती गर्भवती महिला के साथ होती है। वर्षा और बर्फबारी के दौरान सूरतेहाल कितनी खतरनाक हो जाती है, इसका केवल अंदाज़ा ही लगाया जा सकता है।

खस्ताहाल सड़क से न केवल आम लोगों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है बल्कि बच्चों की शिक्षा व्यवस्था पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है। बायला गांव का गवर्नमेंट हाई स्कूल सड़क से करीब चार किमी दूर स्थित है। इस स्कूल में पढ़ाने वाले तकरीबन सभी शिक्षक शिक्षिकाएं पुंछ शहर या इसके आसपास के क्षेत्रों से आते हैं। जिन्हें यहां तक पहुंचने में ही अपनी सारी ऊर्जा लगा देनी पड़ती है।

स्कूल की विज्ञान की शिक्षिका हरसिमरन सिंह कौर बताती हैं कि "पुंछ से तकरीबन 40 अध्यापक इस गांव के विभिन्न स्कूलों में तैनात हैं। यहां तक पहुंचने के लिए हमें प्रतिदिन 30 से 35 किमी गाड़ी का सफर तय करना पड़ता है। इसके बाद करीब एक घंटा पहाड़ी रास्ते का सफर तय करके हम इस स्कूल तक पहुंच पाते है। इस थका देने वाली चढ़ाई के कारण हमारे शिक्षण कार्यों पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यदि सड़कों की हालत अच्छी होगी तो हम न केवल समय पर स्कूल पहुंच जाएंगे बल्कि अधिक से अधिक बच्चों को शिक्षित करने का प्रयास भी कर सकेंगे।"

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बायला गांव से तकरीबन 10 किमी दूर पहाड़ के ऊपरी सतह को प्रकृति ने अपने अनमोल ख़ज़ाने से सजाया है। इसकी प्राकृतिक सुंदरता कश्मीर के अन्य पर्यटक स्थलों की तरह आकर्षक हैं लेकिन प्रशासनिक उदासीनता और जर्जर सड़कों के कारण यह क्षेत्र पर्यटन स्थल के रूप में विकसित नहीं हो पाया है। यदि सरकार इसपर गंभीरता से विचार करे तो न केवल इस क्षेत्र की सूरत बदल जाएगी बल्कि पर्यटकों के आने से स्थानीय नौजवानों को रोजगार भी मिलेगा।

बहरहाल उम्मीद की जानी चाहिए कि पंचायत चुनाव में निर्वाचित जनप्रतिनिधि राजनीतिक विचारधारा से ऊपर उठाकर सबसे पहले क्षेत्र की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने और विकास के रुके हुए पहिये को तेज़ी से आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान देंगे। जिससे सड़क जैसी लोगों की बुनियादी ज़रूरतें पूरी हो सके, क्योंकि विकास के अहम सूत्रों में पक्की सड़कें भी शामिल हैं।

ख्वाजा युसुफ जमील

(चरखा फीचर्स)

   

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