प्याज ने निकाले थे शिवराज के आंसू, क्या मूंगफली बनेगी वसुंधरा के गले की हड्डी?

Arvind ShuklaArvind Shukla   28 Nov 2017 7:11 PM GMT

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प्याज ने निकाले थे शिवराज के आंसू, क्या मूंगफली बनेगी वसुंधरा  के गले की हड्डी?राजस्थान के एक सरकारी खरीद केंद्र में किसानों की मूंगफली से लदी लंबी गाड़ियों की लाइन को दिखाता एक किसान। 

मध्य प्रदेश में प्याज माटी मोल हुआ था तो किसान सड़क पर उतर पड़े थे और मंदसौर कांड हो गया था। ऐसे समय में सड़कों पर पड़े प्याज ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के आंसू निकाल दिए थे। अब राजस्थान में मूंगफली किसान सड़कों पर उतरने की तैयारी में हैं। किसान नेताओं ने 1 दिसंबर से बीकानेर से आंदोलन और धरना प्रदर्शन शुरु करने की धमकी दी है।

एक दिसंबर से पूरे राजस्थान में चक्का जाम का ऐलान

देश में सबसे ज्यादा मूंगफली गुजरात और राजस्थान में होती है। सरकार ने मूंगफली का न्यूनतम समर्थन मूल्य 4450 रुपए तय कर रखा है, लेकिन राजस्थान में किसानों को मूंगफली बेचने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। किसानों का आरोप है कि काफी जद्दोजहद के बाद वसुंधरा राजे सरकार ने मूंगफली खरीद शुरू तो कराई, लेकिन यहां भी सिर्फ 25 क्विंटल की ही खरीद एक बार में हो रही है, जबकि किसानों के पास 100-100 क्विंटल मूंगफली है। ऐसे में किसानों की समस्याओं को लेकर किसान संगठनों ने लड़ाई तेज कर दी है। भारतीय किसान सभा ने 1 दिसंबर से पूरे राजस्थान में धरना-प्रदर्शन, चक्का जाम का ऐलान किया है।

किसानों की समस्या मंगलवार से और बढ़ गई है क्योंकि नई खरीद के लिए सहकारिता विभाग में जो रजिस्ट्रशन कराना होता था वो बंद कर कर दिया गया है। किसान आसूराम गोदारा के मुताबिक ये बहुत खतरनाक कदम है।

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‘सरकार को किसानों की आवाज सुननी ही होगी’

भारतीय किसान सभा के प्रदेश अध्यश्र और पूर्व विधायक प्रेमाराम मेघवाल ‘गाँव कनेक्शन’ को फोन पर बताते हैं, “पूरे राजस्थान में करीब डेढ़ लाख मूंगफली काश्तकार हैं। सरकारी खरीद में कई मुश्किलें हैं, और मार्केट में एमएसपी से 1000 रुपए नीचे तक का भाव मिल रहा है। ऐसे में हर किसान को सालाना डेढ़ से 2 लाख का नुकसान हो रहा है, लेकिन अब ये नहीं चलेगा, सरकार को किसानों की आवाज सुननी ही होगी।” वो आगे बताते हैं, “1 दिसंबर से बीकानेर से हमारी लड़ाई की शुरुआत होगी। चुरू, सीकर समेत बाकी जिलों और पूरे प्रदेश में किसान सड़क पर उतरेगा, हम किसान के लिए कुछ भी करेंगे।“

पूरी खरीद न होने से गुस्से में किसान

मूंगफली का सरकार ने 4450 का न्यूनतम समर्थन मूल्य तो तय किया है, लेकिन साथ में शर्त लगाई है कि एक बार में 25 क्विंटल ही मूंगफली खरीद होगी। पहले से बारिश कम होने से उत्पादन प्रभावित हुआ है, ऐसे में सरकारी केंद्रों पर पूरी खरीद न होने से किसान गुस्से में हैं।

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‘सरकारी खरीद केंद्र पर खड़ी थीं 97 गाड़ियां’

मूंगफली बेल्ट बीकानेर में रामसर गाँव के भरतराम कस्वां (30 वर्ष) के पास 75 क्विंटल मूंगफली थी, वो पिछले महीने 7 तारीख को 25 क्विंटल ही बेच पाए। भरत बताते हैं, “सोमवार को सुबह जब हमारे साथी नोखा के सरकारी खरीद केंद्र पर पहुंचे 97 गाड़ियां खड़ी थीं, किसका नंबर कब आएगा और उसकी ट्राली में कितनी मूंगफली रह जाएगी… यह पता नहीं, क्योंकि अगर किसी की गाड़ी में 26 क्विटंल माल हुआ तो अधिकारी खरीदेंगे और समस्या ये है कि दोबारा नंबर कब आएगा कुछ पता नहीं।“

सरकारी रेट का पूरा फायदा उठाएंगे व्यापारी

किसानों का आरोप है, सरकार किसानों से 25 क्विंटल खरीद रही है, बाकी वो व्यापारियों को बेचेंगे, ये व्यापारी सांठगाठ कर सरकारी रेट का पूरा फायदा उठाएंगे। बीकानेर में अखिल भारतीय किसान सभा के जिलाध्यक्ष गिरधारी सिंह महिया कहते हैं, “किसान बहुत परेशान है, दूसरी फसल बोनी है, घर के दूसरे काम है, फसल तो बेचनी ही होगी। सरकार को शायद ये नहीं पता कि कितनी मेहनत से किसान फसल उगाता है।“

राजस्थान में सहकारिता विभाग की वेबसाइट पर फिलहाल किसानों के रजिस्ट्रेशन, बंद हो गए हैं, जिससे वो मूंगफली भी नहीं बेच पाएंगे। फोटो- साभार आसूराम गोदारा

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‘फिर तैयार फसल की खरीद न हो किसान क्या करे’

बीकानेर के ही आसूराम गोदारा समस्याओं की बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं, “1000-1500 फीट पर पानी है, लाखों रुपए ट्यूबवेल लगवाने में खर्च होते हैं, और खून पसीना लगता है, फिर तैयार फसल की खरीद न हो किसान क्या करे।”

किसान मुक्ति संसद में हुआ फैसला मगर…

ये हालात तब हैं, जब 20-21 नवंबर को ही देशभर के किसान और किसान संगठनों ने दिल्ली की किसान मुक्ति संसद में ये फैसला लिया है कि वो एमएसपी के नीचे फसल नहीं बिकने देंगे। किसान नेता का कहना था कि किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 50 फीसदी लाभ और किसान की उपज की खरीद की पूरी गारंटी चाहिए, लेकिन राजस्थान में हलचल है और उसने मध्य प्रदेश में हुए आंदोलन की यादें ताजा कर दी हैं।

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तब बनाई अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति

जून-जुलाई में मध्य प्रदेश में किसान सड़क पर उतरे थे, जिसमें एक वजह प्याज भी था। यहां आम किसान यूनियन समेत दूसरे संगठनों ने शिवराज सरकार के खिलाफ हल्ला बोल दिया था। मंदसौर में आंदोलन ने हिंसक रूप लिया और कई किसानों की मौत हो गई थी। जिसके बाद बनी देश के कई किसान संगठनों को मिलकर अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) बनाई और किसान मुक्ति यात्रा की शुरुआत की, जिसका समापन 187 किसान संगठनों ने मिलकर दिल्ली में किसान मुक्ति संसद में किया था।

वर्ना किसान कभी सुखी नहीं होगा

मंदसौर कांड के बाद से ही अपने घर न लौटने वाले किसान संघर्ष समिति के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. सुनीलम ने गाँव कनेक्शन से दिल्ली में कहा था, “किसान को उसकी पूरी फसल की लाभकारी मूल्य पर खरीद की गारंटी चाहिए, वर्ना किसान कभी सुखी नहीं होगा। हम इन मुद्दों को लेकर किसानों के बीच जाएंगे और जागरुकता अभियान चलाएंगे।“

तो वसुंधरा सरकार के लिए मुश्किल हो सकती है

किसान मुक्ति यात्रा के अगले चरण की शुरुआत गुजरात से हो चुकी है। राजस्थान जिसने इसी वर्ष सीकर और नीदड़ समेत कई किसान आंदोलन देखे हैं, अगर एक दिसंबर से फिर धरना-प्रदर्शन का दौर शुरू होता है, तो वसुंधरा सरकार के लिए मुश्किल हो सकती है।

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