कोरोना से बचने के लिए लोगों ने जमकर खाया च्यवनप्राश, गिलोय, खूब पिया काढ़ा, 49 फीसदी ने इम्युनिटी बूस्टर पर खर्च किए ज्यादा पैसे

कोरोना महामारी में लोगों के खाने के तरीकों में भी बदलाव आए हैं, लोग अब च्यवनप्राश, काढ़ा जैसे इम्युनिटी बूस्टर पर ज्यादा खर्च करने लगे हैं। पिज्जा, बर्गर, चाट, समोसे, चाउमीन की जगह जगह हरी सब्जियां और फल ज्यादा खाने लगे हैं। एक बड़ी आबादी ने बाहर के खाने से भी तौबा कर ली है.. पढ़िए कोरोना और खाने से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियां

Divendra SinghDivendra Singh   24 Dec 2020 10:30 AM GMT

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gaon connection, gaon connection survey, gaon survey on covid vaccineकोरोना के कारण लोगों के खानपान में काफी बदलाव आया है। (ग्राफिक्स- गांव कनेक्शन)

कोरोना की बीमारी (कोविड-19) से बचने के लिए आप ने क्या किया? फिटनेस पर ध्यान दिया, बाहर मास्क लगाकर निकले, भीड़ में नहीं गए या इसके अलावा भी कोई उपाय किया है? तो जवाब होगा हां। एक बड़ी आबादी ने कोरोना वायरस से बचने के लिए खूब च्वनप्राश और गिलोय खाया तो कुछ लोगों ने अश्वगंधा, अदरक, तुलसी, दालचीनी, लेमनग्रास का काढ़ा भी पिया। एक बड़ी आबादी ने विटामिन्स की गोलियों का भी खूब इस्तेमाल किया है। गांव कनेक्शन के सर्वे में निकलकर आया है कि 49 फीसदी यानि हर दूसरे व्यक्ति ने इम्युनिटी बूस्टर यानि रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने पर ज्यादा पैसे खर्च किए हैं। कोरोना ने लोगों की खाने की आदतें बदल दी हैं।

रोहित सिंह और उनके परिवार के पांच सदस्य सितम्बर महीने में कोरोना पॉजिटिव हो गए थे, इस दौरान उनके परिवार में च्यवनप्राश, काढ़ा जैसे उत्पादों का खर्च बढ़ गया। रोहित सिंह उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के भिखनापुर गाँव के रहने वाले हैं। रोहित सिंह बताते हैं, "कोरोना पॉजिटिव होने से पहले से ही चाय की जगह काढ़ा पीने लगे थे, कोरोना से ठीक होने के बाद भी अभी भी पूरा परिवार काढ़ा, च्यवनप्राश जैसे इम्युनिटी बढ़ाने वाली खाने-पीने की चीजें ही ज्यादा खा-पी रहा है।"

रोहित सिंह की तरह देश के करोड़ों लोग कोरोना से बचने और या फिर कोरोना की चपेट में आने (कोविड पॉजिटिव) के बाद 49.1 फीसदी लोग च्यवनप्राश, गिलोय, काढ़ा, विटमिन्स की गोलियों पर ज्यादा पैसे खर्च कर रहे हैं। ये आंकड़े देश के 16 राज्यों और एक केंद्र शाषित राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में 6,000 से ज्यादा लोगों के बीच कराए गए सर्वे में निकल कर आए हैं।

दिल्ली में मेडिकल स्टोर चलाने वाले आदर्श जायसवाल बताते हैं, "हमारे यहां सबसे ज्यादा इम्युनिटी बढ़ाने वाले ही उत्पाद बिक रहे हैं। मार्च के बाद से च्यवनप्राश, शहद जैसे उत्पादों की मांग बढ़ी है, फिर उसके बाद बहुत सारी कंपनियों के काढ़े भी आ गए हैं और गिलोय टैबलेट भी आ गई है। मानकर चलिए की पहले हर दिन जहां दस च्यवनप्राश बिकते थे, इस समय तीस से ज्यादा बिक जाते हैं। सर्दियां आते ही और ज्यादा मांग बढ़ गई है। पहले लोग इन सब चीजों को इतना जरूरी नहीं समझते थे, लेकिन आप किसी के भी यहां जाएंगे आपको काढ़ा और च्यवनप्राश मिल ही जाएगा।"

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कोविड महामारी और कोरोना वैक्सीन को लेकर लोगों की राय जानने के लिए अपनी तरह का ये खास सर्वे देश से सबसे बड़े ग्रामीण मीडिया हाउस गांव कनेक्शन की सर्वे विंग "गांव कनेक्शन इनसाइट्स" के द्वारा 16 राज्यों और 1 केंद्र शाषित प्रदेश के 60 जिलों के 6040 लोगों के पास पहुंच कर फेस टू फेस किया गया है। एक दिसंबर से 10 दिसंबर 2020 के बीच हुए इस सर्वे में क्षेत्रों का चुनाव केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के द्वारा कोविड-19 के असर के आधार पर किया गया।

शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए आयुष मंत्रालय ने भी खाने-पीने के आयुर्वेदिक उपाय सुझाएं थे, जिनमें काढ़ा, च्यवनप्राश जैसे उत्पाद शामिल हैं। आयुष मंत्रालय ने उपाय भी जारी किए थे, जिसके अनुसार, सुबह के समय 10 ग्राम (एक चम्मच) च्यवनप्राश लें। मधुमेह रोगियों को शुगर-फ्री च्यवनप्राश लेना चाहिए। तुलसी, दालचीनी, काली मिर्च की का काढ़ा दिन में एक या दो बार लेना चाहिए। इसके साथ ही हल्दी वाला दूध भी पीने की सलाह दी गई है।

ये सर्वे अमीर, गरीब और मध्यम वर्ग सभी के बीच किया गया ताकि सबकी राय जानी जा सके। सर्वे में शामिल 41 फीसदी लोगों की मासिक आय 5 हजार से कम थी तो 37 फीसदी लोग 5000 से 1000 के बीच कमाई करने वाले थे। सर्वे में लोगों से कोरोना वैक्सीन का टेस्ट, पॉजिटिव होने पर इलाज कहां कराया, किस वैक्सीन पर ज्यादा भरोसा, वैक्सीन लगवाएंग या नहीं, पैसे देकर लगवाएंगे या मुफ्त? कोरोना के चलते जीवन में, खानपान में क्या बदला है, ये समझने के लिए 40 से ज्यादा सवाल किए गए थे। इस सर्वे के सभी नतीजों को आप द रुरल रिपोर्ट-3 नाम से जारी किया है, जिसे आप www.ruraldata.in पर पढ़ सकते हैं।

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अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान के रस शास्त्र व भैषज्य कल्पना विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. एके प्रजापति गाँव कनेक्शन को बताते हैं, "कोविड में आयुर्वेदिक उत्पाद बनाने वाली ही ऐसी कंपनियां हैं जो फायदें में चल रही हैं। आयुर्वेद के डॉक्टर और नुस्खों की तरफ लोगों का विश्वास बढ़ा है। आयुष मंत्रालय लगातार लोगों को शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले उत्पादों जैसे गिलोय, तुलसी, अश्वगंधा के प्रति जागरूक भी कर रहा है। पिछले कुछ महीने में लोग भी इसको समझ रहे हैं, तभी फिजूल के खर्चों के कम करके काम की चीजों पर खर्च कर रहे हैं। हर्बल चीजों की खास बात भी होती है, इनका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता है, बल्कि शरीर के लिए फायदेमंद ही होते हैं।"

आयुर्वेद में च्यवनप्राश जड़ी-बूटियों का एक मिश्रण होता है, जिसमें काली मिर्च, हल्दी, अदरक, अश्वगंधा जैसे तत्व मिले होते हैं। जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं।

भारत विविधताओं वाला देश है, हर राज्य का खान-पान और जरुरतें, आबो हवा जलवायु अलग है। इसलिए गांव कनेक्शन ने जोन (श्रेत्रवार राज्यों के हिसाब) से भी आंकड़े जुटाए हैं कि किस राज्य में लोगों की राय कैसी है।

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सर्वे के नतीजों से पता चलता है कि देश के पूर्व-उत्तर-पूर्व के राज्यों ( सर्वे में शामिल- ओडिशा, आसाम, पश्चिम बंगाल, अरुणाचल प्रदेश) के लगभग 63 फीसदी लोग पैकेज्ड इम्युनिटी बूस्टिंग उत्पादों को खरीदने और उपभोग (खाने) पर अब अधिक पैसा खर्च कर रहे हैं। जबकि पश्चिम के राज्यों (सर्वे में शामिल- महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश) के लगभग 49.7 फीसदी लोगों ज्यादा पैसे खर्च कर रहे हैं तो उत्तरी राज्यों में (सर्वे में शामिल- यूपी, बिहार, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, हरियाणा) 40% फीसदी लोगों ने कहा वो ज्यादा पैसा खर्च कर रहे हैं, जबकि 60% फीसदी लोगों ने न कहा। दक्षिण भारतीय राज्यों में हां और नहीं का प्रतिशत 48.8% और 51.2% है। दक्षिण भारत से केरल, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक को शामिल किया गया था।

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ये तस्वीर लखनऊ के एक शॉप की है। दुकानदार भी बता रहे हैं कि कोविड-19 के बाद च्यवनप्राश की बिक्री में तेजी आई है।

कई देशों में कोरोना की वैक्सीन (टीका) आ गया है तो भारत समेत कई देशों में आने वाले कुछ दिनों में वैक्सीन लॉच हो सकती है। वैक्सीन आई भी तो सबसे पहले फ्रंट लाइव हेल्थ वर्कर (पहली पंक्ति के स्वास्थ्य कर्मचारियों) को लगेगी, आम जनता को थोड़ा और इंतजार करना होगा, ऐसे में कोविड की इस लड़ाई में आम लोग खुद की रक्षा के लिए क्या क्या कर रहे हैं, सर्वे में ये भी जानने की कोशिश की गई।

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गांव कनेक्शन के सर्वे में शामिल ग्रामीण लोगों से जब पूछा गया कि उन्होंने कोरोना काल में क्या उनके खाने की आदतों में कोई बदलाव आया है? इस सवाल के जवाब के आधे अधिक लगभग 56 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उनके खाने की आदतों में बदलाव आ गया है। इन 56 प्रतिशत लोगों में से 70 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्होंने बाहर का खाना बंद कर दिया है, जबकि 30 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वो अब खाने में ज्यादा फल इस्तेमाल करने लगे हैं, 33 फीसदी लोगों का कहना था कि अब हरी सब्जियां ज्यादा खाने लगे हैं, इनमें से 18.8 प्रतिशत ऐसे भी लोग थे, जिन्होंने कहा कि उन्हें इस दौराना भरपेट खाना ही नहीं मिला।


अगर क्षेत्रवार सर्वे की बात करें तो पूर्व-उत्तर-पूर्व राज्यों के लगभग 52.3 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्होंने बाहर का खाना बंद कर दिया है, 19.3 प्रतिशत लोगों ने कहा कि ज्यादा मात्रा में फल खाने लगे हैं, 30.6 प्रतिशत लोगों ने कहा कि सब्जियां ज्यादा खाने लगे हैं, पूर्व उत्तर पर्व के राज्यों ( सर्वे में शामिल- ओडिशा, आसाम, पश्चिम बंगाल, अरुणाचल प्रदेश) में हर 4 में से एक लगभग एक परिवारों (29.5%) को भरपेट भोजन नहीं मिल रहा है।

पश्चिमी राज्यों में ये आंकड़ा क्रमश: 81.4 प्रतिशत, 21.5 प्रतिशत, 21.1 प्रतिशत और 4.5 प्रतिशत रहा। पश्मियी राज्यों में गांव कनेक्शन के सर्वे में महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश शामिल थे।

उत्तरी राज्यों में 83.9 प्रतिशत, 34.9 प्रतिशत, 36.6 प्रतिशत, 20.01 प्रतिशत रहा। जबकि दक्षिण के प्रदेशों में 57.4 प्रतिशत, 41.6 प्रतिशत, 42.3 प्रतिशत और 15.5 प्रतिशत रहा।

इस तरह पश्चिमी राज्यों में सबसे अधिक लोगों ने बाहर का खाना कम किया (81.1%), दक्षिण के राज्यों में लोग ज्यादा फल (41.6%) और सब्जियां (42.3%) खाने लगे, जबकि पूर्व-उत्तर-पूर्व राज्य के लोगों को भरपेट खाना नहीं मिला (29.5%)।

कोरोना के शुरूआत में देश ही दुनिया भर में ये अफवाह फैलने लगी की चिकन, अंडा और मांस-मछली से कोरोना फैल रहा है। सर्वे में जिन लोगों ने कहा कि वे मांसाहारी हैं, उनसे पूछा गया कि क्या अब भी मांसाहारी भोजन करते हैं, ये कुछ बदलाव आया है।


मांसाहार के सवाल पर 53 प्रतिशत लोगों ने कहा कि पहले की तरह ही खा रहे हैं, 40.03 प्रतिशत लोगों ने कहा कि खा रहे हैं लेकिन कम मात्रा में, 8.6 प्रतिशत लोगों ने कहा कि मांसाहार बिल्कुल छोड़ दिया है, 10.2 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वो सिर्फ अंडा खा रहे हैं, मछली, मांस और चिकन छोड़ दिया है। जबकि 3.8 प्रतिशत लोगों ने कहा कि सिर्फ मांस खा रहे हैं चिकन और अंडा खाना छोड़ दिया है।

कोरोना नॉनवेज खाने से फैलता है, ऐसी अफवाहों के चलते जनवरी फरवरी (जब कोरोना सिर्फ चीन में था) पॉल्ट्री का कारोबार ठप पड़ने लगा था, चीन से आने वाली खबरों के चलते लोगों ने चिकन खाना छोड़ दिया था, हालांकि एक बड़ी आबादी तब भी बकरे का मीट खा रही थी, इसलिए बकरा का गोस्त 700-800 रुपए किलो बिकने लगा था, बाद में मछली खाने वालों ने भी उपयोग कम किया, जिसके बाद बिगड़ते हालातों को देखते हुए केंद्रीय मत्स्य पालन पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने एजवाइजी जारी कर रहा था कि मीट-मुर्गा मछली खाने से कोरोना नहीं फैलता है।

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सर्वे में देश की विविधता को ध्यान में रखते हुए सभी जाति, धर्म, लिंग, आय-वर्ग, समुदाय और क्षेत्र के लोगों को शामिल किया गया। जहां उत्तरी क्षेत्र से जम्मू कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड राज्य शामिल किए गए। वहीं दक्षिणी क्षेत्र से कर्नाटक, केरल और आंध्र प्रदेश शामिल हुए।

पश्चिमी राज्यों में महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश को शामिल किया गया, जबकि पूर्वी व पूर्वोत्तर राज्यों में असम, अरूणाचल प्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल इस राष्ट्रव्यापी सर्वे में शामिल हुए। राज्यों की जनसंख्या और कोविड से प्रभावित सरकारी आंकड़ों के अनुसार अलग-अलग राज्यों से सैंपल का चुनाव किया गया ताकि कोरोना और वैक्सीन को लेकर देश की सही राय को उचित ढंग से जाना जा सके।

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