पश्‍चिमी यूपी के 154 गांव के लोग पी रहे 'जहर', कई लोगों की हो चुकी है कैंसर से मौत

इन 154 गांव के रहने वाले लाखों लोग तीन छोटी नदियों के प्रदूषण से परेशान हैं। यह नदियां हैं- हिंडन, कृष्णा और काली नदी। गांव वालों का कहना है कि इन नदियों में इंडस्‍ट्री का कैमिकल वाला पानी बहाया जाता है, जो कि रिस-रिसकर भूगर्भ जल से मिल गया है।

Ranvijay SinghRanvijay Singh   11 Oct 2019 12:49 PM GMT

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पश्‍चिमी यूपी के 154 गांव के लोग पी रहे जहर, कई लोगों की हो चुकी है कैंसर से मौत

''हमारे गांव में करीब 100 लोगों की मौत कैंसर से हो गई है। अभी 15 लोगों को कैंसर है। कोई ऐसा घर नहीं जहां कोई मरीज न हो। अब तो जन्‍म लेते बच्‍चों को भी कोई न कोई बीमारी होती है। इस जहरीली नदी ने हमें तबाह कर दिया।'' यह बात 46 साल के धमेंद्र राठी कहते हैं।

धमेंद्र राठी पश्‍चिमी उत्‍तर प्रदेश के जिले बागपत के गागनौली गांव के रहने वाले हैं। वो जिस जहरीली नदी की बात कर रहे हैं उसका नाम कृष्‍णा नदी है। इस गांव के 1600 परिवार इस नदी में तैर रहे जहर को पीने के लिए मजबूर हैं, जिसकी वजह से गांव के लोग कमजोर हो रहे हैं, बीमार पड़ रहे हैं और मर भी रहे हैं।

ऐसा नहीं है कि यह कहानी सिर्फ बागपत के गागनौली गांव तक सीमित है। बल्‍कि इस कहानी में पश्‍चिमी यूपी के 6 जिलों (सहारनपुर, शामली, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद) के 154 गांव शामिल हैं। इन 154 गांव के रहने वाले लाखों लोग तीन छोटी नदियों के प्रदूषण से परेशान हैं। यह नदियां हैं- हिंडन, कृष्णा और काली नदी। गांव वालों का कहना है कि इन नदियों में इंडस्‍ट्री का कैमिकल वाला पानी बहाया जाता है, जो कि रिस-रिसकर भूगर्भ जल से मिल गया है। ऐसे में इलाके का भूगर्भ जल पूरी तरह से खराब हो गया है।

हिंडन नदी।

मुजफ्फरनगर जिले के धनसैनी गांव के रहने वाले सन्‍नी चौधरी (29 साल) भी नदी के प्रदूषण से परेशान हैं। वो बताते हैं, हमारे गांव के बगल से हिंडन नदी गुजरती है। इस नदी में तितावी सुगर मिल का कचरा बहाया जाता है। इस तरह नदी में नदी का पानी न होकर जहर बह रहा है। हमारे गांव की आबादी 4500 है। कोई ऐसा घर नहीं जहां चर्म रोग का कोई मरीज न मिल जाए। गांव के सभी लोग इससे परेशान हैं। हमने प्रशासन से लेकर कोर्ट तक में अपील कर दी, लेकिन कहीं से कोई हल नहीं निकल रहा।''

इस मामले पर दोआबा पर्यावरण समिति की ओर से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) में एक केस भी किया गया है। इस केस पर एनजीटी ने इसी साल जुलाई में सुनवाई के बाद उत्‍तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया था कि इन गांवों में तुरंत शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराया जाए। साथ ही यह भी आदेश दिया कि मरीजों का मुफ्त में इलाज भी कराया जाए। इन दोनों ही बातों पर सरकार द्वारा जब गौर नहीं किया गया तो NGT ने 20 सितंबर 2019 की सुनवाई में सरकार को फटकार भी लगाई है।

दोआबा पर्यावरण समिति के चेयरमैन डॉ. चंद्रवीर राणा बताते हैं, ''एनजीटी ने आदेश दिया कि जो लोग इस समस्या से पीड़ित हैं, उन्हे तुरंत शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराया जाए। अब जल निगम की ओर से जो डाटा NGT में सबमिट किया गया है उसके मुताबिक, 148 गांव को पाइप लाइन से पानी देने के लिए चिन्‍ह‍ित किया गया था। इन 148 गांव में से सिर्फ 41 गांव में ही जल निगम पानी की व्‍यवस्‍था कर पाया है। ऐसे में बाकी बचे 107 गांव अब भी जहरीला पानी पीने को मजबूर हैं।''

जलनिगम की ओर से वॉटर सप्‍लाई को लेकर एनजीटी को भेजा गया डाटा।

चंद्रवीर राणा कहते हैं, ''अभी आठ अक्‍टूबर को इसी मामले पर बागपत के दाहा गांव में एक महापंचायत बुलाई गई थी। इस महापंचायत में 6 जिलों से लोग शामिल हुए। यह लोग अपने-अपने गांव से पानी का सैंपल लेकर आए थे। अब इन सैंपल की जांच कराई जा रही है। कई सैंपल की जांच तो आ भी गई है, जो शुद्धता के मानक पर पूरी तरह से फेल हैं। आप बस यह समझ लीजिए कि इन गांव के नल जमीन से जहर उगल रहे हैं और यही जहर लोग पी रहे हैं।''

NGT ने भी अपने आदेश में इस बात का जिक्र किया है कि 'बागपत के गागनौली गांव ही 71 लोगों की मौत कैंसर से हो गई, 'वहीं करीब 47 लोग गंभीर रूप से बीमार हैं। इलाके के करीब 1 हजार से ज्‍यादा लोग विभ‍िन्‍न बीमारियों से प्रभावित हैं। इस प्रदूषण के पीछे जिल इंडस्‍ट्री पर सवाल खड़े हो रहे हैं उनमें चीनी मिल, भट्टियां, पेपर मिल और कत्लखानें शामिल हैं।'

एनजीटी का आदेश।

हिंडन नदी सहारनपुर के सिमलाना गांव से भी होकर गुजरती है। इस गांव के रहने वाले 40 साल के मनोज पुण्‍ड‍िर बताते हैं, ''ऐसा नहीं है कि यह पानी सिर्फ लोगों को नुकसान पहुंचा रहा है। इससे खेती को भी नुकसान हो रहा है। अभी दो साल पहले गांव के ही एक किसान ने गन्‍ने की खेती की थी। इस पानी का इस्‍तेपाल करने के बाद उसकी फसल जल गई थी। इस बात से आप अंदाजा लगा लीजिए कि यह पानी कितना खतरनाक है।''

मनोज पुण्‍ड‍िर बताते हैं, ''गांव में तीन साल पहले वॉटर टैंक लगाने के लिए सर्वे हुआ था। उसके बाद से कुछ हुआ ही नहीं। मजबूरी में लोग नलो से निकलने वाले इसी जहर को पी रहे हैं। कई लोगों गहरे बोर लगा रहे हैं तो अच्‍छा पानी मिल रहा है, लेकिन वो भी कबतक मिलेगा कुछ पता नहीं।''


   

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