ग्रामीण एरिया में बैंकों की कमी डिजिटल इंडिया की राह में बड़ा रोड़ा, किसानों के लिए सिर दर्द

Ashwani NigamAshwani Nigam   1 July 2017 1:14 PM GMT

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ग्रामीण एरिया में बैंकों की कमी डिजिटल इंडिया की राह में बड़ा रोड़ा, किसानों के लिए सिर दर्दअपनी परेशानियां बताते बुजुर्ग रामआधार। फोटो- शुभम शर्मा

लखनऊ। देश में डिजिटलाइेजशन हो रहा है। सब कुछ ऑनलाइन किया जा रहा है। सरकार की हर तरह की मदद सीधे बैंक खाते में आ रही है। रसोई गैस से लेकर वृद्धावस्था पेंशन और खाद की सब्सिडी तक बैंक में पहुंच रही है। काला धन रोकने के लिए नगदी की सीमा तय कर दी गई है। लेकिन ये सारे नियम गांव के लोगों पर भारी पड़ रहे हैं क्योंकि वहां पर्याप्त संख्या में बैंक ही नहीं हैं।

सीतापुर जिले के चिमलाई गांव में रहने वाले बबलू मिश्रा और उनके परिवार के लोग बहुत जरुरी काम होने पर ही बैंक जाते हैं। क्योंकि बैंक उनके गांव से करीब 10 किलोमीटर रामपुरमथुरा में है। वो बताते हैं, बैंक में एक तो इतनी भीड़ होती है, दूसरे कभी कंप्यूटर खराब तो कभी इंटरनेट की दिक्कत, पूरा दिन उसी में निकल जाता है।’ लखनऊ जिले में कोकोरी के 71 साल के बुजुर्ग रामअधार की वृद्धावस्था की पेंशन बैंक में आती है। उन्होंने बताया '' जिला सहकारी बैंक का महीनों चक्कर लगाना पड़ता है, तब कहीं पैसा मिलता है।''

एक तरफ जहां सरकार अपनी हर योजना में डीबीटी लागू करके बैंकों में डायरेक्ट पैसा भेज रही है, लेकिन बैंकों की संख्या पर्याप्त नहीं होने से एक तरफ जहां बैंक में भार पड़ रहा है। वहीं कर्मचारियों कम संख्या का रोना रोकर बैंक वाले आम लोगों को परेशान भी कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में 15 से लेकर 20 किलोमीटर तक चलकर लोगों को बैंक तक जाना पड़ता है। स्थिति यह है कि देश में ग्रामीण क्षेत्रों की जनसंख्या पर औसत प्रति बैंक संख्या से भी कम उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में बैंक हैं।

गांवों में बैंक की सख्या सबसे कम

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की हालिया रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में जिस संख्या में बैंक की शाखाएं होनी चाहिए थी उतनी नहीं हैं। वर्तमान में यहां 16,583 बैंक शाखाएं हैं, जिनमें 8,176 ग्रामीण शाखाएं हैं। प्रदेश में प्रति बैंक शाखा जनसंख्या का औसत लगभग 12,000 है, जबकि अखिल भारतीय स्तर पर यह औसत लगभग 9,000 है। इसी प्रकार प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति बैंक शाखा जनसंख्या का औसत लगभग 21,000 है, जबकि अखिल भारतीय स्तर पर यह औसत लगभग 17,400 है। इस प्रकार अखिल भारतीय की तुलना में उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में बैंक शाखाएं बहुत कम हैं।

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ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों की संख्या कम होने से गांव के किसान को बैंक से पैसा निकालने और पासबुक अपडेट कराने में हफ्तों लग जाते हैं। मोहनलालगंज के संदीप कुमार ने बताया '' हमारे यहां 10 गावों के बीच में सिर्फ एक बैंक है। सरकारी की तरफ से दी जा रही सब्सिडी का सारा पैसा अब बैंक के जरिए ही आ रहा है, लेकिन यहां पर हम लोगों को पैसा निकालने से लेकर बैंक पासबुक अपडेट कराने के लिए हफ्तों बैंक का चक्कर लगाना पड़ता है।''

पिछले दिनों राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति की बैठक को संबोधित करते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों की कम संख्या पर चिंता जताते हुए गांवों में बैंक शाखाओं को बढ़ाने पर जोर देने का कहा। उन्होंने कहा कि इसके लिए वह केन्द्रीय वित्त मंत्री अरूण जेटली से भी बात करेंगे।

केंद्र व राज्य की योजनाओं पर भी पड़ रहा असर

उत्तर प्रदेश में बैंक शाखाओं की संख्या कम होने से केन्द्र और राज्य सरकार की ओर से चलाई जा रही योजनाओं पर भी असर पड़ रहा है। कौशल विकास और स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के अंतगर्त बैंकों के जरिए उत्तर प्रदेश के लोगों को जितना ऋण मिलना चाहिए, वह भी नहीं मिला। उत्तर प्रदेश के वित्त राज्यमंत्री राजेश अग्रवाल ने बताया '' उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है। इसके बावजूद यहां पर बैकों की जितनी शाखाएं होनी चाहिए नहीं हैं। ऐसे में बैंकों की शाखाओं को बढ़ाने के लिए हमारी सरकार काम करने जा रही है।''

बैंकों की संख्या कम होने का सीधा असर उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा है। प्रदेश की ग्रामीण जनसंख्या के साथ लेनदेन करने में बैंक पीछे रह जा रहे हैं। सरकार की तरफ आम लोगों के लिए जो योजनाएं चलाई जा रहीं और जो सब्सिडी दी जा रही है उसका भी लाभ ग्रामीण क्षेत्र के लेागों को नहीं मिल पा रहा है।

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