पौधरोपण कार्यक्रम: बनते रिकॉर्ड और सूखते पौधे

पौधरोपण कार्यक्रम जितने जोर-शोर और हो हल्‍ला के साथ किए जाते हैं, असल में जमीन पर उतने कारगर साबित नहीं हो रहे हैं।

Ranvijay SinghRanvijay Singh   16 Nov 2019 6:45 AM GMT

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पौधरोपण कार्यक्रम: बनते रिकॉर्ड और सूखते पौधे

उत्‍तर प्रदेश में एक दिन में 22 करोड़ पौधे लगाए गए। मध्य प्रदेश सरकार ने नर्मदा नदी के किनारों पर 12 घंटे के अंदर लगभग छह करोड़ पौधे लगवा दिए। यह कुछ ऐसे आंकड़े हैं जो सुनने में बहुत अच्‍छे लगते हैं। इन्‍हें सुनकर लगता है देश में बहुत तेजी से पौधरोपण कार्यक्रम चल रहा है और जल्‍द ही देश में हर तरफ हरियाली ही हरियाली होगी। लेकिन इन लुभावने आंकड़ों के साथ यह सवाल भी उठता है कि जमीन पर आखिर कितने पौधे बचे हैं।

इस सवाल का जवाब आपको दो घटनाओं से देते हैं। पहली घटना है उत्‍तर प्रदेश के बांदा जिले की। इस जिले की ग्राम पंचायत चकरेही में बीते दिनों मंदिर के पीछे करीब 200 की संख्‍या में सूखे पौधे मिले। यह पौधे उत्‍तर प्रदेश में 22 करोड़ पौधे लगाने के कार्यक्रम के दौरान यहां भेजे गए थे।

दूसरी घटना है मध्‍य प्रदेश की। मध्‍य प्रदेश में शिवराज सरकार ने 2 जुलाई 2017 को 6 करोड़ पौधे लगाकर विश्व रिकॉर्ड बनाया गया था। इस पौधरोपण कार्यक्रम को खुद मध्‍य प्रदेश सरकार के नए वन मंत्री उमंग सिंघार ने धांधली करार दिया है। उमंग सिंघारे ने 11 अक्‍टूबर 2019 को एक के बाद एक कई ट्वीट किए। उन्‍होंने लिखा- ''मैंने बैतूल में जांच की थी, जहां 15000 गड्ढे होने थे वहां सिर्फ 9000 के आसपास ही गड्ढे मिले। इस तरह का कागजी पौधरोपण आनन फानन में शिवराज सरकार ने हर जगह 2 जुलाई 2017 को किया। जबकि व्यवहारिक रूप से एक दिन के अंदर पौधा लगाना संभव ही नहीं है।'' वन मंत्री ने इस पौधरोपण कार्यक्रम की जांच आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्लू) को सौंप दी है।

पौधरोपण कार्यक्रम के तहत पेड़ लगाते हुए मध्‍य प्रदेश के पूर्व मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान।

इन घटनाओं से एक बात तो साबित होती है कि पौधरोपण कार्यक्रम जितने जोर-शोर और हो हल्‍ला के साथ किए जाते हैं, असल में जमीन पर उतने कारगर साबित नहीं हो रहे हैं। ऐसा ही एक पौधरोपण कार्यक्रम उत्‍तर प्रदेश के सूखा प्रभावित क्षेत्र बुंदेलखंड में 2008-09 में चलाया गया था। इसके तहत बुदेलखंड के 7 जिलों में 10 करोड़ पौधे लगाने थे।

इस पौधरोपण कार्यक्रम की बात करते हुए आरटीआई एक्‍ट‍िविस्‍ट आशीष सागर कहते हैं, ''इस कार्यक्रम में तो बहुत ही अनियमितता देखने को मिली थी। उस वक्‍त मैं कपार्ट में वाई पी (युवा उद्यमी योजना) के तौर पर काम कर रहा था। हमें शिकायत मिली कि बुंदेलखंड के ललितपुर जिले में जितने पौधे लगाए गए हैं, उतने मौके पर हैं नहीं। इसके बाद मैं और उस वक्‍त के ग्राम विकास अपर आयुक्‍त चन्‍द्रपाल अरुण ललितपुर के विकास खंड ताल बेहट गए। वहां बताया गया था कि एक पहाड़ी पर 33 हजार पौधे लगाए गए हैं। हमने और गांव के कुछ लोगों ने जब इन पौधों की गिनती की तो यह 13 हजार की निकले। ऐसे में साफ था कि करीब 20 हजार पौधे नहीं लगाए गए। गांव वालों ने हमें बताया कि पौधरोपण के वक्‍त अधिकारी आए थे, एक दिन में जितने पौधे लग सके लगवाए गए और बाकी बचे पौधे वहीं तालाब में फिकवा दिए गए।''

आशीष सागर बुंदेलखंड के पौधरोपण कार्यक्रम में हुई जिस अनियमितता की कहानी बता रहे हैं उसे खुद CAG (भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक) ने भी माना है। CAG की रिपोर्ट में कहा गया है, बुंदेलखंड में 2008-09 में हुए पौधरोपण कार्यक्रम को बिना उचित योजना और जल्‍दबाजी में चलाया गया। इसकी वजह से 40.10 करोड़ रुपए खर्च तो हुए, लेकिन इसमें अनियमितता पाई गई है।

महोबा-कबरई मार्ग पर कराए गए पौधरोपण कार्य का बोर्ड।

आशीष सागर कहते हैं, ''यह तो बानगी भर है। पौधरोपण को लेकर ऐसी कहानियां बहुत मिल जाती हैं। 2016 में बुंदेलखंड के महोबा जिले के महोबा-कबरई मार्ग के दोनों तरफ पौधरोपण कार्यक्रम चलाया गया था। किलोमीटर संख्‍या 185 से 190 के बीच करीब 8030 पौधे लगाए गए थे, लेकिन मौके पर सारे पौधे सूखे मिलते हैं। बहुत का तो अस्‍तित्‍व ही नहीं मिलता। यहां का हाल देख लगता है काम के नाम पर केवल एक बोर्ड खड़ा कर दिया गया है और जमीन पर कुछ नहीं हुआ।''

पौधरोपण को लेकर कुछ ऐसी ही अनियमितता बांदा जिले के चकरेही ग्राम पंचायत में भी देखने को मिली थी। इस गांव के रहने वाले 24 साल के राम जी बताते हैं, ''एक सुबह मैं गांव के मंदिर में पूजा करने गया था। वहां देखा कि मंदिर के पीछे करीब 200 की संख्‍या में पौधे रखे गए थे, जोकि सूख चुके थे। इनके बारे में पता किया तो जानकारी हुई कि प्रदेश में 22 करोड़ पौधे लगाने का कार्यक्रम चला था। इसके तहत ही यह पौधे ग्राम पंचायत में भेजे गए थे, लेकिन जब कहीं नहीं लग सके तो यहां पड़े-पड़े सूख गए।''

जमीन पर पौधरोपण की ऐसी बदहाली को देख यह सवाल उठता है कि आखिर वो कौन से कारण है जिसकी वजह से पौधरोपण पूरी तरह से सफल नहीं हो पाते। इन कारणों पर बात करते हुए ग्रीन यात्रा एनजीओ के संस्‍थापक प्रदीप त्रिपाठी कहते हैं, ''पौधे लगाने में एक सामूहिक पहल होनी चाहिए, जो होते नहीं दिख रही है। कहीं न कहीं पेड़ लगाना एक फैशन बन गया है, पेड़ लगाओ, फोटो खिंचाओ और फिर एक बड़ा सा रिकॉर्ड बनाकर सब भूल जाओ। ज्‍यादातर पौधरोपण कार्यक्रम में यही चल रहा है।'' ग्रीन यात्रा एनजीओ पर्यावरण के क्षेत्र में काम करता है।

प्रदीप त्रिपाठी कहते हैं, ''अब जब रिकॉर्ड बनाने के लिए पौधरोपण कार्यक्रम चलाए जाएंगे तो दिक्‍कत आनी ही है। क्‍योंकि जब आप रिकॉर्ड बनाने के लिए काम कर रहे हैं तो वहां काम कहीं पीछे छूट जाता है। रही बात पौधे लागने की तो यह पूरी प्रक्रिया का सिर्फ 15 से 20 प्रतिशत हिस्‍सा है। बाकी इसके बाद उन पौधों की देखभाल भी बहुत जरूरी है, जहां हम ठीक नहीं कर पा रहे हैं।''

महाराष्‍ट्र में 50 करोड़ पौधे लगाने का कार्यक्रम चला था। फोटो- महाराष्‍ट्र वन विभाग

प्रदीप त्रिपाठी आगे कहते हैं, ''लगाए गए पौधों को बचाए रखने की जिम्‍मेदारी हम सिर्फ विभागों तक सीमित नहीं रख सकते हैं। लोगों को भी इसमें शामिल होना होगा। क्‍योंकि ऑक्‍सीजन की जरूरत सबको है। एक स्‍टडी से यह बात समाने आई है कि एक व्‍यक्‍ति एक दिन में करीब 13 लाख का ऑक्‍सीजन इस्‍तेमाल करता है। इससे अनुमान लगा लीजिए कि पेड़ कितने कीमती हैं।''

प्रदीप त्रिपाठी जिस स्‍टडी की बात कर रहे हैं उसे पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाले एनजीओ 'दिल्‍ली ग्रीन्‍स' ने किया है। इस रिपोर्ट में एक पेड़ के इकोनॉमिक वैल्‍यू की गणना की गई है। रिपोर्ट में यह बताया गया है कि एक व्‍यस्‍क व्‍यक्‍ति प्रति मिनट 7 से 8 लीटर हवा सांस लेने में इस्‍तेमाल करता है। इसका मतलब है कि एक दिन में लगभग 11,000 लीटर हवा का इस्‍तेमाल किया गया। इस हवा में से करीब 20% ऑक्सीजन है और जिसमें से 5% प्रतिशत का प्रयोग इंसान करता है। ऐसे में एक व्‍यक्‍ति प्रतिदिन लगभग 550 लीटर शुद्ध ऑक्सीजन का उपभोग करता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि एक बाजार सर्वेक्षण के आधार पर 2.75 लीटर पोर्टेबल ऑक्सीजन सिलेंडर की औसत कीमत 6,500 रुपये है। ऐसे में एक व्‍यक्‍ति हर दिन करीब 13 लाख रुपये की ऑक्सीजन की खपत करता है।

इस स्‍टडी को तैयार करने वाले 'दिल्‍ली ग्रीन्‍स' एनजीओ के डायरेक्‍टर डॉ. गोविंद सिंह कहते हैं, ''हमारी स्‍टडी से यह साफ होता है कि एक पेड़ कितना कीमती है, लेकिन इस बात को लोग समझें तो बेहतर होगा।'' डॉ. गोविंद देश में चल रहे पौधरोपण कार्यक्रमों को एक फैशन कार्यक्रम के तौर पर देखते हैं। वो कहते हैं, ''आजकल फैशन के तौर पर पौधों को लगाने का टारगेट रखा जा रहा है। कॉरपोरेट की तरह एक बड़ा सा नंबर रख दिया जाता है और सब लग जाते हैं उसे हासिल करने के लिए, लेकिन नेचर ऐसे काम नहीं करता है।''

उत्‍तर प्रदेश में एक ही द‍िन में 22 करोड़ पौधे लगाए गए थे। फोटो- उत्‍तर प्रदेश वन विभाग

डॉ. गोविंद सिंह कहते हैं, ''ऐसा नहीं है कि आपने पेपर पर प्‍लान बनाया कि इतने पेड़ हम लगाएंगे और लगाकर आ जाएंगे। आप किसी भी एजेंसी का बजट देखेंगे तो उसमें कहीं भी पेड़ों के रखरखाव का बजट नहीं होता है। ऐसे में रखरखाव की ओर किसी का ध्‍यान नहीं होता, सिर्फ नंबर की तरफ ध्‍यान रहता है। फोकस यह नहीं होना चाहिए कि हम कितने ज्‍यादा नंबर में पौधे लगाएंगे, बल्‍कि फोकस यह होना चाहिए कि हम लगे हुए पौधों को कैसे बचा रहे हैं। पौधरोपण एक दिन का काम नहीं होता। यह एक लंबी प्रक्रिया है। फिलहाल पौधरोपण को मार्केटिंग की तरह देखा जा रहा है, जबकि इसे इकोलॉजिकल और साइंटिफिक तरीके से देखने की जरूरत है।''

उत्‍तर प्रदेश में इसी साल 22 करोड़ पौधे लगाने का कार्यक्रम चला था। इस कार्यक्रम के मिशन डायरेक्‍टर और उत्‍तर प्रदेश के मुख्‍य वन संरक्षक विभाष रंजन पौधरोपण कार्यक्रमों के बाद पौधों के रखरखाव को लेकर कहते हैं, ''हमारी कोशिश रहती है कि रोप‍ित पौधों की सफलता रहे। हम लगातार यह देखते हैं कि पौधे सूख तो नहीं रहे हैं, अगर सूख गए हैं तो उन्‍हें बदलने का भी काम होता है। हम यह भी जांच करते हैं कि पौधे क्‍यों सूख रहे हैं। इसमें लोगों की भागीदारी की भी जरूरत है। अकेले विभागीय तौर पर पौधरोपण कार्यक्रम सफल नहीं हो सकते।''


   

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