आयुष्मान भारत: योजना की राह में चुनौतियां भी कम नहीं

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आयुष्मान भारत: योजना की राह में चुनौतियां भी कम नहीं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज झारखंड में केंद्र सरकार के आयुष्मान भारत बीमा योजना का शुभारंभ करेंगे। इस योजना के तहत सरकार का देश के 10 करोड़ से अधिक गरीब परिवारों को हर साल पांच लाख रुपए प्रति परिवार स्वास्थ्य बीमा सुरक्षा मुहैया कराने का लक्ष्य है। हालांकि केंद्र सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना के रास्ते में रोड़े भी कम नहीं हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 15 अगस्त को लालकिला की प्राचीर से अपने संबोधन में कहा था कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती के अवसर पर 25 सितंबर को सरकार 'आयुष्मान भारत' योजना की शुरूआत की जायेगी। सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना के मुताबिक ग्रामीण इलाके के 8.03 करोड़ और शहरी इलाके के 2.33 करोड़ गरीब परिवारों को इससे लाभ देना का लक्ष्य है जबकि लगभग 50 करोड़ लोगों को इस योजना के दायरे में लाने का टारगेट केंद्र सरकार का है।

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लेकिन क्या ये इतना आसान होगा जितना बताया जा रहा है। 2016-17 के बजट में भी वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस तरह की योजना लाने और लोगों को एक लाख रुपए का बीमा देने का ऐलान किया था जिसका असर कुछ खास नहीं रहा था। ठीक इसी तरह हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर को पिछले बजट में पेश किया था जिस पर काम ही नहीं हो सका।

योजना पर एक नजर

स्वास्थ्य केंद्र विकसित करने की योजना के तहत देश में लगभग 1.5 लाख हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर विकसित किए जाएंगे। इससे स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बढ़ार्इ जा सकेगी।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना को दुनिया में इस तरह की सबसे बड़ी योजना बताया जा रहा है। इसके अंतर्गत देश के 10 करोड़ गरीब परिवारों को 5 लाख रुपए तक के इलाज के लिए मुफ्त बीमा उपलब्ध किया जाएगा।

अनुमान है कि इससे देश के 40 फीसदी यानी 50 करोड़ लोग लाभान्वित होंगे। इस योजना के लिए अनुमानित सालाना प्रीमियम 2,000 रुपए प्रति परिवार होगा। इसमें केंद्र और राज्य सरकारें क्रमशः 60 फीसदी और 40 फीसदी का वहन करेंगी।

हर परिवार के लिए बीमा की राशि 5 लाख रुपए होगी, जो छोटी बड़ी 1,350 बीमारियों को कवर करेगी।

बीमा कवर के लिए उम्र की भी बाध्यता नहीं रहेगी।

आयुष्मान भारत योजना का लाभ देश भर में दस करोड़ परिवारों को लोगों को मिलेगा। साथ ही इस योजना के लाभार्थी देश भर में सरकारी या प्राइवेट अस्पतालों में कैशलेस इलाज करा सकेंगे। इतना ही नहीं सभी राज्यों के सरकारी अस्पतालों को इस स्कीम में शामिल माना जाएगा।इसके साथ ही प्राइवेट आैर र्इएसआर्इ अस्पताल में भी शामिल रहेंगे। यहां मरीज को भर्ती कराने से लेकर उनका इंश्योरेंस कंपनी से भुगतान कराने का सारा काम आयुष्मान मित्र संभालेंगे।

चुनौतियों की भरमार

योजना के लिए केंद्र सरकार, राज्यों के साथ खर्च का बंटवारा चाहती है। लेकिन अब तक सब राज्यों के साथ यह करार नहीं हो पाया है। अलग-अलग राज्यों के पास अपनी बीमा योजनायें हैं और बंगाल जैसे राज्य (राजनीतिक वजहों से भी) इसमें कतई केंद्र के साथ नहीं आना चाहते।

दूसरी बड़ी वजह जो पहली वजह से जुड़ी है वह है बीमे का प्रीमियम। सरकार ने जब 2008 में राष्ट्रीय स्वास्थ बीमा योजना शुरू की तो 30 हज़ार रुपए की कवरेज के लिए 700 रुपए प्रीमियम था। इस बीमा योजना में भी सभी गरीबों को अब तक लाभ नहीं मिल पाया है। 2016 में मोदी सरकार ने 1 लाख रुपए के कवरेज की बात की जो कभी लागू नहीं की गई और अब सरकार 5 लाख रुपए के बीमे की बात कर रही है।

सवाल यह भी है कि अगर सरकार 30 हज़ार कवरेज की योजना सभी गरीबों तक नहीं पहुंचा पाई और 1 लाख रुपए कवरेज की योजना कभी शुरू ही नहीं हुई तो 5 लाख का बीमा कैसे गरीबों को मिलेगा। इस योजना में हर परिवार को स्वास्थ्य बीमे का प्रीमियम व्यवहारिक रूप से कितना होगा इसका अंदाज़ा लगाया जा सकता है।

1.5 लाख स्वास्थ्य केंद्र विकसित करने के लिए बजट में सिर्फ 1,200 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। इससे केवल 10,000 यानी लक्ष्य के 7 फीसदी स्वास्थ्य केंद्र विकसित किए जा सकते हैं। दूसरी ओर स्वास्थ्य सुरक्षा योजना में 10 करोड़ परिवारों के लिए मात्र 2000 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। यह अपने आप में हास्यास्पद है।

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देश की 80 फीसदी जनता किसी भी स्वास्थ्य बीमा योजना का हिस्सा नहीं है। एक अध्ययन के अनुसार, शत-प्रतिशत बीमा कवरेज के लिए देश के कुल जीडीपी का 3.7-4.5 फीसदी स्वास्थ्य के क्षेत्र में आवंटित किए जाने की जरूरत है। जबकि अभी केवल 1.4 फीसदी आवंटित किया जाता है।


इसके अलावा इस योजना के क्रियान्वयन के बाद स्वास्थ्य सुविधाओं की मांग काफी ज्यादा बढ़ने के आसार हैं। इसके लिए 9 लाख अतिरिक्त ग्रेजुएट डॉक्टर्स तथा 1.2 लाख विशेषज्ञ डॉक्टर्स की आवश्यकता होगी। इनकी उपलब्धता में कुछ वक्त लग सकता है।

इस स्कीम के सीईओ इंदु भूषण कह चुके हैं, "पहले चरण में अधिकतम 100 ज़िलों को ही कवर किया जा रहा है और योजना सरकारी अस्पतालों से शुरू होगी।" लेकिन थर्ड वर्ल्ड नेटवर्क की मालनी आइसोला कहती हैं, "हम शुरू से कहते रहे हैं कि बेहतर स्वास्थ सेवा के लिये सरकारी अस्पतालों और सरकारी ढांचे को मज़बूत करने की ज़रूरत है लेकिन जब सरकार बीमा आधारित योजना को सरकारी अस्पतालों से शुरु करने की बात कहती है तो ये सवाल उठना स्वाभाविक है कि सरकारी अस्पतालों में बीमे की कितनी और क्यों ज़रूरत है क्योंकि वह तो मुफ्त इलाज मुहैया कराते हैं। क्या ऐसा तो नहीं कि सरकार प्राइवेट अस्पतालों और बीमा कंपनियों को साथ लेने में नाकाम रही?"

स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम कर रहे अर्थशास्त्री इंद्रनील मुख्रर्जी कहते हैं, "देश में 50 प्रतिशत अच्छे बड़े सरकारी और प्राइवेट अस्पताल कुछ मेट्रो शहरों में ही हैं। ऐसे में सरकारी अस्पतालों को बेहतर किये बिना सिर्फ बीमा योजना के आधार पर हालात नहीं सुधारे जा सकते। देश की करीब 75 प्रतिशत बेहतर स्वास्थ्य सुविधायें कुछ शहरों तक सीमित हैं जहां देश की 40 प्रतिशत से भी कम आबादी है। यानी जहां अपेक्षाकृत गरीब या बहुत गरीब हैं उनके लिये अच्छे अस्पताल और डॉक्टर मयस्सर नहीं है। इलाज में 70 प्रतिशत से अधिक खर्च आम आदमी की जेब से हो रहा है। ये हालात सरकारी अस्पतालों की बेहतरी की मांग करते हैं।"


      

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