विकास दुबे कांड: छोटे शहर का माफिया, थाना-पुलिस की लापरवाही, सियासी सांठगांठ और एक उजड़ा सा गांव

ग्रामीणों के मुताबिक अपराधी विकास था, हो सकता है गांव के लोग उससे साथ मिले हों, लेकिन ज्यादातर लोग उससे परेशान ही थे, बस डर के मारे कुछ बोलते नहीं थे। अब पुलिस अपनी पुरानी गलतियों को छिपाने के लिए पूरे इलाके को परेशान कर रही है।

Neetu SinghNeetu Singh   10 July 2020 4:33 PM GMT

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कुख्यात अपराधी विकास दुबे के आतंक का अंत हो चुका है। मुठभेड़ में विकास के कई साथी भी ढेर हो चुके हैं, जिन पर 2 जुलाई की रात को 8 पुलिसकर्मियों की हत्या का आरोप था। विकास दुबे, उत्तर प्रदेश में कानपुर नगर जिले के बिकरू गांव का रहने वाला था। 3 जुलाई के बाद से ये गांव लगातार सुर्खियों में है। बिकरू और उसके आसपास के कई गांवों में इन दिनों से सन्नाटा पसरा है।

कानपुर जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर चौबेपुर ब्लॉक का बिकरू गांव कई दिनों से छावनी बना हुआ है। तीन जुलाई की सुबह-सुबह आसपास के जिन-जिन घरों में लोग मिले पुलिस उन्हें अपने साथ पूछताछ के लिए ले गयी। इनमें से कई अभी वो कहाँ हैं? किस परिस्थिति में हैं परिजनों को इसकी कोई जानकारी नहीं है।

"इस समय हमारा कुसूर सिर्फ इतना है कि हम बिकरू गाँव के रहने वाले हैं।" गांव की एक युवती प्रीति ने गांव कनेक्शन से कहा। युवती के मुताबिक तीन जुलाई की सुबह पुलिस उसके भाई को घर से बनियान और गमछे में ले गई थी। इसी श्यामू को 8 जुलाई को पुलिस ने मुठभेड में गिरफ्तार दिखाया। श्यामू की मां रामलक्ष्मी कहती हैं, "गेहूं के साथ घुन पिसा है और कुछ नहीं।"

ये हैं श्यामू बाजपेयी की माँ रामलक्ष्मी.

ग्रामीणों के मुताबिक अपराधी विकास था, हो सकता है गांव के लोग उससे साथ मिले हों, लेकिन ज्यादातर लोग उससे परेशान ही थे, बस डर के मारे कुछ बोलते नहीं थे। अब पुलिस अपनी पुरानी गलतियों को छिपाने के लिए पूरे इलाके को परेशान कर रही है। पुलिस पूछताछ के लिए गाँव के दर्जनों लोगों को उठाकर ले गयी है, ग्रामीण इस बात से चिंतित हैं कि पुलिस बदले में उनके परिजनों के साथ कुछ न करे।

दो जुलाई की रात बिकरू गाँव में हुए घटनाक्रम से लेकर विकास दुबे की गिरफ्तारी, और उसकी मौत तक के घटनाक्रम पर सोशल मीडिया पर पुलिस सवालों के घेरे में है। पुलिस से जुड़े कई वरिष्ठ अधिकारी, राजनीतिक पार्टियां और विकास दुबे के गाँव के लोग पुलिस की कार्रवाई को न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन मान रहे हैं तो कुछ लोग इसे सही ठहरा रहे हैं।

विकास केस में चौबेपुर थाना की पुलिस सवालों के घेरे में रही है। विकास से साठगांठ और मुखबिरी के आरोपों में चौबेपुर के तत्कालीन थानाध्यक्ष विनय तिवारी सस्पेंड हो चुके हैं, एक उपनिरीक्षक गिरफ्तार हो चुका है। जबकि थाने के बाकी सभी 122 पुलिसकर्मी लाइन हाजिर किए जा चुके हैं।

विकास दुबे का हवेलीनुमा घर इस समय खंडहर बन गया है.

उत्तर प्रदेश पुलिस के पूर्व पुलिस महानिदेशक बृजलाल ने गाँव कनेक्शन को फोन पर बताया, "विकास दुबे एक पागल क्रिमिनल था। उसके साथ जो हुआ वो बिलकुल सही हुआ इसे मैं जस्टिफाई करता हूँ। हमने आतंकवादियों और माओवादियों को देखा था कि वे पुलिस पर गोली चला दें पर किसी अपराधी को पहली बार ऐसा देखा जिसने इतनी बड़ी संख्या में पुलिस के जवानों को शहीद किया। पुलिस की इतनी निर्मम तरीके से हत्या करने वाला ये दुर्दांत अपराधी कुछ भी कर सकता था।"

लेकिन कई लोग पुलिस की भूमिका पर सवाल उठा रहे हैं? इस पर ब्रजलाल बोले, "हर एनकाउंटर के बाद सवाल उठते ही हैं। हर एनकाउंटर के बाद एक मजिस्ट्रियल जांच होती है, इसमें भी होगी, पता चल जाएगा सब कैसे क्या हुआ। अगर ऐसे लोग जेल में रहते तो पार्टियाँ इन्हें टिकट दे देतीं। कई पार्टियों ने ऐसे अपराधियों को पाला है, उन्हें टिकट दिए हैं, बकायदा उन्हें जिताया है। अभी इस पर भी कार्रवाई होनी चाहिए कि विकास का जाल कहाँ तक फैला है? कानपुर घड़ी फैक्ट्री में विकास के 1,000 से ज्यादा आदमी काम करते हैं, खुद मुरली बाबू प्रोटेक्शन मनी देते थे। इस केस में कई ऐसे बड़े लोगों की कलई खुलेगी।"

विकास के एनकाउंटर पर विकास के जानने वाले एक करीबी कहते हैं, "मैं मानता हूं कि वो ठीक आदमी नहीं था, उसे सजा मिलनी चाहिए थी, लेकिन अब तक जो हुआ वो बदले की नियति से हुआ।"

वो आगे कहते हैं, विकास मर गया लेकिन उससे जुड़े नेता, मंत्री, बड़े अधिकारियों को कौन सजा देगा? वो मीडिया और कोर्ट तक पहुंचता तो पता चलता कि उसकी कमाई का हिस्सेदार कौन था, 60-60 मुकदमे होने के बावजूद वो बाहर कैसे घूम रहा था?" ऐसे सवाल तमाम लोग सोशल मीडिया पर भी उठा रहे हैं।

बिकरू गाँव में विकास दुबे के घर में टूटा बिखरा पड़ा सामान.

कानपुर की पूर्व सांसद, मानवाधिकार कार्यकर्ता और ट्रेड यूनियन लीडर सुभाषिनी अली ने गाँव कनेक्शन को फोन पर बताया, "इस पूरे घटनाक्रम को लेकर सवाल ही सवाल हैं। पर अभी सबसे बड़ा सवाल यह है कि एक बार पुलिस ने उसे पकड़ लिया तो फिर मार क्यों दिया? इस घटना के बाद से ऐसा लगता है कि उसके पास बहुत सारी जानकारियां थीं, उसके साथ बहुत लोगों के नाम जुड़े थे, उन सारे सवालों को हमेशा के लिए दबा देने के लिए ऐसा किया गया। जो सीओ इस घटनाक्रम में मारे गये वो तत्कालीन थानाध्यक्ष विनय तिवारी की शिकायत कर चुके थे पर उसपर किसी का ध्यान क्यों नहीं गया?"

सुभाषिनी अली ने वर्तमान न्यायिक प्रक्रिया पर भी सवाल उठाया, "इस घटना ने सभी न्यायिक प्रक्रियाओं को ताक पर रख दिया। अभी की कार्रवाही से अजीब तरह की भावना दिखाई देती है, जिन लोगों को न्यायिक प्रक्रिया को मजबूत करना चाहिए उन्हीं का उनपर विश्वास नहीं बचा है। इतने आरोपों के बावजूद वह छुट्टा घूम रहा था। इसका मतलब इस आदमी के तार चारो तरफ से जुड़े हुए थे।"

छावनी बना विकास दुबे का घर.

गांव कनेक्शन की टीम जब चौबेपुर थाने पहुंची थी तब तक पुलिस ने श्यामू की गिरफ्तारी नहीं दिखाई थी। श्यामू की माँ रामलक्ष्मी (60 वर्ष) बार-बार हाथ जोड़कर यही कह रही थीं, "मेरा बेटा कहां है हमें सिर्फ इतना पता चल जाए। हम चौबेपुर थाने गये वहां से भी भगा दिया। कोई खबर नहीं है उसके बारे में। उसकी पत्नी सात महीने की गर्भवती है, घटना वाली रात वो घर के अंदर सो रहा था। सुबह (तीन जुलाई) पांच छह पुलिस वाले आये, वह सैंडो बनियान और गमझा लपेटे था ऐसे ही उसे पकड़कर ले गये।"

"गेहूं के साथ घुन पिसा है और कुछ नहीं। हमारे पूत को जिंदा दिखा दो बस, " रामलक्ष्मी लगातार हाथ जोड़कर रोए जा रही थीं।

आपके भाई विकास के यहाँ आते-जाते थे? गांव कनेक्शन के इस सवाल के जवाब में प्रीती ने कहा, "नहीं, घटना वाले दिन मेरा भाई घर पर सोया था। जब गोलियां चल रही थीं तब सब अपने-अपने घरों के अंदर थे किसी को नहीं पता था कि बाहर क्या हो रहा है? अगली सुबह आसपास के कई घरों में पुलिस ने जाकर कई लोगों को पकड़कर विकास दुबे के दरवाजे पर बिठाया था। मेरे पापा और भाई दोनों को पकड़ा था पर पापा को छोड़ दिया और भाई को अपने साथ ले गयी। इसके बाद हमें कोई जानकारी नहीं।"

बिकरू गाँव में वो जगह जहाँ सीओ देवेंद्र मिश्रा की नृंशस हत्या हुई थी.

श्यामू बाजपेई का नाम विकास दुबे से जुड़े 18 मुख्य आरोपियों में सबसे पहले लिखा है जिस पर अब 50,000 रुपए की ईनामी राशि भी थी। पुलिस ने इसे आठ जुलाई की सुबह वाहन चेकिंग के दौरान गिरफ्तार दिखाया है।

इस तरह कल्लू उर्फ दयाशंकर अग्निहोत्री के घर वालों के मुताबिक भी पुलिस उसे तीन जुलाई को ही पूछताछ के लिए ले गई थी। बाद में तीन दिन बाद कल्याणपुर से उसके गिरफ्तार होने का दावा किया गया।

गांव की एक महिला ने बताया, "कल्लू का कोई नहीं है, छोटे से ही विकास ने उसे अपने घर पर रखा और उसकी शादी करा दी। कल्लू पढ़ा-लिखा नहीं है, उसे गोली चलाना तो दूर बंदूक पकड़ना भी नहीं आता। वह विकास के घर में काम करने के लिए रहता जरूर था पर गोली चलाना नहीं जानता।"

विकास दुबे के एनकाउंटर से पहले उसके पांच गुर्गे एनकाउंटर में मारे गये। जिसमें विकास का चचेरा भाई अतुल दुबे, दूर के रिश्ते में मामा प्रेमशंकर पंडित, अमर दुबे, प्रभात मिश्रा, बउवन शुक्ला हैं, कई अपराधी गिरफ्तार भी किये गये हैं।

दाहिने तरफ बैठी अर्चना इन दिनों मायके आयी थीं, पुलिस इनके भी पति को पूछताछ के लिए पकड़कर ले गयी है.

घटना के बाद से जिस शिवली कस्बे में विकास के दो दिन छिपने की बात सामने आ रही थी, वहां रहने वाले एक व्यक्ति ने बताया, "कुछ लोगों को तो पुलिस ने सही पकड़ा है पर कुछ का विकास दुबे से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं उन्हें भी पकड़ लिया गया। कम से कम पुलिस इस बात का तो ध्यान रखती कि इनके परिवार की महिलाओं को न पकड़ती उन्हें भी पकड़ ले गयी। जिस अमर दुबे को पुलिस ने एनकाउंटर में मारा है उसकी 29 जून को शादी हुई थी। पुलिस उसकी पत्नी, माँ और पिता सबको गिरफ्तार कर ले गयी।"

पुलिस के एक पूर्व आईपीएस अधिकारी विभूति नारायण राय कहते हैं, "ये पूरा मामला संदिग्ध है इसकी जांच होनी चाहिए ताकि पता चल सके कि वास्तव में हुआ क्या?"

विकास दुबे के घर से कुछ दूरी पर चबूतरे पर बैठी इन दिनों मायके आयी अर्चना राजपूत बताती हैं, "मैं कुछ दिन पहले ही मायके आयी थी मेरे पति (सर्वेश राजपूत) भी आये थे। घटना वाले दिन गोली चलने के बाद कुछ पुलिस वाले हमारे घर आये, हमारे पति को लेकर चले गये। अभी वो कहाँ हैं हमें कुछ पता नहीं।"

वो जगह जहाँ तीन चार पुलिसकर्मियों को कुख्यात अपराधी विकास दुबे द्वारा शहीद कर दिया गया था.

गाँव में गोलियां चलने से पहले क्या गाँव में कोई चर्चा थी कि पुलिस आने वाली है, इस पर अर्चना बोलीं, "नहीं, हम तो इसी गाँव में बड़े हुए हैं, विकास के यहाँ आते जाते हवाई फायरिंग अकसर होती रहती थी। बड़ी-बड़ी गाड़ियों से कई लोग आते-जाते रहते थे। उस दिन हमें यही लगा कि कोई बड़ा आदमी आया होगा तभी फायरिंग हो रही है। जब 10-12 पुलिसवाले दौड़कर भाग रहे थे तब हमें लगा कि कुछ पुलिसवालों के साथ हुआ है।"

अर्चना के पति की तरह पुलिस ने पूछताछ के लिए गाँव में कई लोगों को पकड़ा है, पकड़े गये लोगों का विकास से क्या सम्बन्ध है यह तो जांच का विषय है पर अभी ग्रामीण इस बात से भयभीत है कि कहीं पुलिस बदले की भावना में निर्दोष लोगों को न मार डाले।

बिकरू गाँव में घुसते ही इन दिनों जगह-जगह पुलिसकर्मी बैठे दिख जायेंगे। इस समय मीडिया के अलावा इस गाँव में किसी की कोई आवाजाही नहीं है, जो कुछ एक परिवार बचे हैं वो इस घटना काण्ड के बाद से भयभीत हैं। इस गाँव में लाईट न होने की वजह से लोग अखवारों के माध्यम से इस घटना की जानकारी ले रहे हैं।

विकास दुबे के किचन में गिरे पड़े फ्रिज में एक राजनैतिक पार्टी का लगा पोस्टर.

"घटना के बाद से सबके मोबाइल छीन लिए गये हैं, कुछ के सर्विलांस पर लगा दिए गये हैं। घटना वाले दिन से गाँव की बिजली कटी हुई है जिनके पास मोबाइल होंगे भी वो चार्ज नहीं हैं, " गाँव की एक महिला ने नाम न छापने की शर्त पर ये बात बताई।

जब उस महिला से हमने पूछा उस दिन जो हुआ था आप में से कोई कुछ बता क्यों नहीं रहा? इस पर वह बोली, "कौन मुसीबत मोल ले, इस समय बोलने का मतलब पुलिस के हत्थे चढ़ना। जब कुछ बोल नहीं रहे तब तो हर घर से पुलिस किसी न किसी को उठा ही ले गयी है। हम लोग 24 घंटे किसी पर नजर थोड़े रखते हैं कौन आ रहा है कौन जा रहा है? उस दिन जब गोलियों की आवाज़ चली तब लगा कुछ लड़ाई-झगड़ा हो रहा है।"

पुलिस महानिदेशक अमिताभ ठाकुर जो इस समय संयुक्त निदेशक हैं, नागरिक सुरक्षा का कार्यभार सम्भाल रहे हैं। गाँव कनेक्शन को फोन पर बताया, "ये जांच का विषय है कि हमारे विभाग में क्या खामियां हैं या कमियां है ये पता होना चाहिए। इस केस में कई बातें सामने आयी हैं कि कैसे एक थानाध्यक्ष ने सीओ को मारने के लिए सूचना दी, एक ऑफिसर रैंक के अधिकारी डीआईजी का विकास दुबे के उसके खादांची से सम्बन्ध थे, इन मौलिक प्रश्नों पर भी ध्यान देने की जरूरत है। इस केस में एक बात का ख़ास ध्यान रखा जाए कि किसी बेगुनाह के साथ कार्रवाही न हो।"

ये है वो बुलडोजर जिससे पुलिसकर्मियों का रास्ता रोका गया और इसी बुलडोजर से विकास दुबे का पूरा घर गिराया गया.

सबूतों की तलाश और विकास पर दबाव बनाने के लिए उसके हवेली नुमा घर को गिरा दिया गया है। अभी दरवाजे पर तीन चार नीम के बड़े-बड़े पेड़ हैं उसके नीचे दो ट्रैक्टर, दो तीन महंगी गाड़ियाँ पूरी तरह से टूटी पड़ी हैं। घर के अन्दर का पूरा सामान टूटा और बिखरा पड़ा है। किचन में गिरे पड़े फ्रिज के ऊपर एक पार्टी का पोस्टर लगा है जिसमें विकास और उनकी पत्नी रिचा दुबे की तस्वीरें लगी हैं। किचन के एक कोने में एक थाली में चने की दाल बनी हुई पड़ी थी।

विकास के घर के दाहिनी तरफ एक बरामदे में होमगार्ड चारपाई बिछाए बैठे थे। जब उनसे हमने पूछा इस घर के अन्दर से किसी को बुला दीजिये इसपर वो बोले, "ये घर खाली है केवल कुंडी लगी है, पूरा परिवार घटना के बाद से कहीं चला गया है। अब गाँव में ज्यादातर मकान खाली हैं कुछ में ताले पड़े हैं तो कुछ में कुंडी लगी है।"

गांव के ज्यादातर लोगों को 8 पुलिसकर्मियों के शहीद होने का दुख हैं। सुषमा पांडे को चलने में थोड़ी दिक्कत है, वे कहती हैं, उस दिन दो पुलिसवाले हमारे घर के बाहर घायल हालत में छिप रहे थे, वे कह रहे थे कि अम्मा हमें बचा लो हमारे घर में छोटे-छोटे बच्चे हैं, पहले हमारी हिम्मत नहीं पड़ी, फिर किसी तरह हमने हिम्मत जुटाकर दरवाजे तक जाने की कोशिश की तभी आवाज आई देखो साले वहां छिपे हैं, फिर कई तरफ से गोलियां चली, फिर हम घबड़ा गए हमने किवाड़ नहीं खोले.. ये हमारी गलती है।"


   

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