कुपोषण से मुक्ति दिलाएगा राष्ट्रीय पोषण माह

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के अनुसार, भारत में स्तनपान के मामले में वर्ष 2005 से 2015 के बीच काफी सुधार देखने को मिला। एक घंटे के अंदर नवजात को स्तनपान कराने के आंकड़े 10 वर्षों में दोगुने पाए गए। वर्ष 2005 में जो आंकड़ा 23.1 प्रतिशत था, वही 2015 में 41.5 प्रतिशत हो गया।

Jigyasa MishraJigyasa Mishra   20 Sep 2018 10:28 AM GMT

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कुपोषण से मुक्ति दिलाएगा राष्ट्रीय पोषण माह

लखनऊ। वज़न तौलने की मशीन और रजिस्टर से भरा झोला कंधे पर टांगे हुए तारावती रंजीत खेड़ा गाँव में किरण के नवजात का वज़न तौलने के लिए उसके घर पहुंचती हैं। "तारावती (25 वर्ष) दूसरी बार मां बनी है। बच्चे को जन्म लिए 22 दिन हुए हैं और इसका वजन तीन किलो पचास ग्राम है, मतलब बच्चा स्वस्थ है।" तारावती बताती हैं।

तारावती यादव (46 वर्ष) उत्तर प्रदेश के लखनऊ जिले में मोहनलालगंज के कीर्ति-खेड़ा गाँव की आशा कार्यकर्ता हैं, जो पोषण माह अभियान के अंतर्गत नवजात शिशुओं और उनकी माताओं के स्वास्थ्य और पोषण ग्रहण के सर्वे के लिए गांवों में घर-घर जाकर जानकारियां देती हैं।

भारत सरकार के महिला और बाल विकास मंत्रालय ने भारत की पोषण चुनौतियों को देखते हुए मार्च वर्ष 2018 में स्थापित हुए पोषण अभियान के अंतर्गत हर वर्ष पूरे सितम्बर पोषण माह मनाने की घोषणा की है।

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गर्भवती और नई माओं, किशोरियों, नवजात शिशुओं और बच्चों के लिए शुरू किया गया। पोषण अभियान एक कुपोषण मुक्त, स्वास्थ्य और मजबूत भारत के निर्माण के उद्देश्य से प्रारंभ किया गया है, जिसमें आशा कार्यकर्ताओं, आंगनबाड़ी कार्यकत्री, प्रधान, स्कूल प्रबंधन समिति व सभी सरकारी कार्यकर्ताओं की सहभागिता होगी। छह वर्ष से नीचे के बच्चों को आयरन, कैल्शियम की गोलियां और विटामिन-ए की सिरप देना, गर्भवती महिलाओं को खानपान और स्तनपान की जानकारी देना, किशोरियों को माहवारी से जुड़े अन्य शारीरिक ज़रूरतों व सफाई जैसी महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखा जायेगा जिससे भारत एक स्वस्थ देश बन सके।


महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनिका संजय गांधी ने अपने सभी सहयोगियों को लिखित पत्र के जरिये कहा है कि सितंबर, 2018 के दौरान इस कार्यक्रम को मुख्यधारा में लाने के उद्देश्य से मैं आप सभी से आग्रह करती हूं कि अपने-अपने संसदीय क्षेत्र में संपर्क गतिविधियां चलाएं। इस मिशन में आपकी भागीदारी से कुपोषण को जड़ से मिटाने के उद्देश्य से आम आदमी जुड़ सकेंगे।

"जब हमारा पहला बच्चा हुआ था तब भी आशा दीदी बराबर आती थी। इसका वज़न करने और स्वास्थ्य देखने। इन्होंने ही हमें और हमारे पति को पहली बार निरोध ला कर भी दिया था और परिवार नियोजन करने की सलाह दी थी। हमारा पहला बेटा अब पांच वर्ष का है और दूसरा 22 दिन का जो कि एकदम स्वस्थ है।", "हमें जानकारी है कि छः महीने तक नवजात को स्तनपान करना ही है ताकि यह बीमारियों से बचा रहे।" वो आगे बताती है।

राष्ट्रीय पोषण माह के आठ मुख्य थीम प्रसवपूर्व देखभाल, स्तनपान, पूरक आहार, एनीमिया, विकास की निगरानी, शिक्षा, आहार और लड़कियों की शादि करने की सही उम्र, स्वच्छता एवं सफाई और खाने में शुध्दता हैं। सरकार ने कुपोषण मुक्त भारत के लक्ष्य को हासिल करने के लिए एक यह अभियान चल्या है।

उत्तर प्रदेश परिवार कल्याण विभाग की महानिदेशक, नीना गुप्ता कहती हैं, "कुपोषण किसी एक मात्र समस्या का नतीजा नहीं है। इसमें साक्षरता स्तर, परिवार नियोजन, स्वच्छ पेयजल और स्वच्छता, कम उम्र में शादी और बच्चे, खुले में शौच की वजह से होने वाले संक्रमण आदि भी सम्मिलित होते हैं।"

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के अनुसार, भारत में स्तनपान के मामले में वर्ष 2005 से 2015 के बीच काफी सुधार देखने को मिला। एक घंटे के अंदर नवजात को स्तनपान कराने के आंकड़े 10 वर्षों में दोगुने पाए गए। वर्ष 2005 में जो आंकड़ा 23.1 प्रतिशत था, वही 2015 में 41.5 प्रतिशत हो गया।

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लखनऊ के क्वीन मैरी अस्पताल की अधीक्षक डॉक्टर एसपी जैसवार बताती हैं, "इन सभी समस्याओं के पीछे असाक्षरता और जागरूकता की कमी एक अहम वजह है। कुपोषण, एनीमिया आदि बीमारियां कम उम्र में मां बनने से भी होती है। कई बार बच्चे को जन्म देते ही माता का निधन हो जाता है और कुछ महिलाएं लापरवाही के वजह से भी शिशु को पूरे छह महीने तक स्तनपान नहीं करता, जिसके वजह से उनमें कुपोषण आम बात है।"

भारत की नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे वर्ष 2015-16 की रिपोर्ट के हिसाब से 55 प्रतिशत बच्चों को जन्म के छह महीने तक पर्याप्त रूप से स्तनपान कराया जाता है। यूनिसेफ के अनुसार, पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में मौतों की आधी वजह पोषण की कमी होती है, जिसकी वज़ह से सालाना लगभग तीस लाख बच्चे अपनी जान गवाते हैं। भारत में सिर्फ 40 से 59 प्रतिशत बच्चों को स्तनपान कराया जाता है जबकि शिशुओं को जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान किया जाना चाहिए।

मोहनलालगंज की रहने वाली सुरखा ने 27 अगस्त को शिशु को जन्म दिया और अभी एक किलो वज़न वाले उस नवजात शिशु की हालत नाज़ुक बनी हुई है। सुरखा की उम्र आधार कार्ड के हिसाब से सिर्फ मात्र 19 वर्ष है। यही हाल गोसाईगंज ब्लॉक की रहने वाली राधिका (20 वर्ष) का भी है। इतनी कम उम्र में दो बच्चों को जन्म दे चुकी हैं। "हमारी तो शादी हो गई थी जब हम 17 साल के थे, और निरोध का इस्तेमाल तो हम लोगों ने कभी नहीं किया।" राधिका ने बताया।

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