एक साल में लगभग 100 फीसदी महंगा हुआ आलू, सस्ते आलू के लिए अभी करना होगा और इंतजार

पिछले एक साल में आलू की कीमत लगभग दो गुनी हो गई है। प्याज के साथ आलू ने किचन का बजट ही बिगाड़ ही दिया। आलू की कीमत क्यों बढ़ी? कीमत नीचे आने के आसार कब तक हैं?

Mithilesh DharMithilesh Dhar   12 Nov 2020 7:30 AM GMT

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potato price, why potato price highदिसंबर के पहले सप्ताह से आलू की कीमतों में गिरावट आ सकती है। (सभी तस्वीरें- गांव कनेक्शन)

पिछले एक साल में आलू की खुदरा कीमतों में लगभग 100 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। जो आलू आज 45 रुपए किलो बिक रहा है पिछले साल वो इन्हीं दिनों में 23 रुपए किलो था। उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय की रिपोर्ट देखें तो 10 नवंबर 2020 को देश के प्रमुख शहरों राजधानी दिल्ली, आर्थिक राजधानी मुंबई, चंडीगढ़, लखनऊ, और अहमदाबाद में आलू की खुदरा कीमत क्रमश: 45, 48, 45, 40 और 50 रुपए प्रति किलो रही, मतलब औसतन 45 रुपए किलो।

जबकि पिछले साल इससे एक दिन पहले यानी 9 नवंबर 2019 को इन शहरों में आलू की कीमत क्रमश: 25, 28, 25, 20 और 16 रुपए प्रति किलो थी। मतलब औसतन लगभग 23 रुपए किलो। कोरोनाकाल में आलू की बढ़ी कीमतों ने महंगाई दर बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभाई है।

"मेरे जीवन में तो कभी आलू की कीमत इतनी नहीं हुई थी। प्याज तो हर साल ही महंगा होता है। हम लोग तो हर साल इस समय नया आलू ही खाते थे। बाजार में जहां नया आलू है तो उसकी कीमत तो 50-55 रुपए किलो चल रही है। पुराना आलू 40 रुपए किलो से कम आ ही नहीं रहा है।" उत्तर प्रदेश के वाराणसी के रहने वाले 55 वर्षीय मधुकर उपाध्याय कहते हैं। वे नाराज होते हुए यह भी कहते हैं कि आलू के बिना कोई सब्जी खा भी तो नहीं सकते।

यह हाल बस वाराणसी में ही नहीं है। प्याज के साथ आलू की कीमतों ने किचन का पूरा बजट बिगाड़ दिया है। अक्टूबर 2020 में खुदरा महंगाई दर 7.61 पर पहुंच गयी जो पिछले छह साल में सबसे ज्यादा है।

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक अक्टूबर में कंज्यूमर फूड प्राइस इंडेक्स (CFPI) पर आधारित महंगाई दर बढ़कर 7.61 फीसदी हो गयी जो इससे पहले सितंबर महीने में 7.27 फीसदी था। खाद्य पदार्थों की कीमतों में भारी इजाफे के कारण अक्टूबर में खुदरा महंगाई दर बढ़ी है, और इसमें आलू, टमाटर और प्याज का योगदान सबसे ज्यादा है। अक्टूबर में खाद्य महंगाई दर 11 फीसदी पर पहुंच गई है। खाद्य वस्तुओं की महंगाई दर सितंबर में 10.68 फीसदी थी जो अगस्त में 9.05 फीसदी के स्तर पर थी। अक्टूबर 2020 में सालाना आधार पर सब्जियों की कीमत 22.51 प्रतिशत तक बढ़ी है।

सितंबर 2020 में ही आलू की कीमतें ज्यादातर शहरों में थोक के भाव में 30 रुपए प्रति किलो या उससे ऊपर पहुंच गयी थीं। 15 अक्टूबर आते-आते यही कीमत कई शहरों में 50 रुपए प्रति किलो के आगे चली गई।

आलू की कीमत क्यों बढ़ी और इसके कम होने के आसार कब तक हैं? पहले यह समझते हैं कि आलू की कीमत इतनी बढ़ी क्यों?

क्यों महंगा हुआ आलू?

आलू की कीमत बढ़ेगी, इसका अंदाजा वर्ष 2019 के आखिरी दिनों से ही लगाया जाने लगा था। भारत में आलू ठंड के महीनों में लगाया जाता है। वर्ष 2019 के नवंबर-दिसंबर से 2020 मार्च के बीच देश के कई हिस्सों में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि हुई। इस बारिश ने आलू की फसल को बहुत नुकसान पहुंचाया।

फरवरी 2020 तक जिन किसानों की आलू पक गयी थी, उन किसानों को आलू की जो कीमत मिली थी, उसकी उम्मीद उन्हें भी नहीं थी।


ऐसे ही एक किसान हैं उत्तर प्रदेश के जिला बाराबंकी के रामचंद्र वर्मा। उन्होंने 12 एकड़ में आलू बोया था। वे कहते हैं, "लगभग 10 साल बाद खुदाई के समय फरवरी में आलू 900 से 1,000 रुपए प्रति कुंतल में बिका था। इससे पहले कई वर्षों में यही कीमत इस वक्त 400 से 500 रुपए प्रति कुंतल होती थी।"

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ये अच्छी कीमत किसानों को क्यों मिली, इसके दूसरे पहलू पर प्रकाश डालते हैं आलू बेल्ट फर्रुखाबाद के अहमदपुर देवरिया के किसान विनोद कटियार। वे कहते हैं, "ये सही है कि फरवरी 2020 में आलू की कीमत किसानों को 1,000-1,200 रुपए कुंतल तक मिली, लेकिन इसकी वजह कम उत्पादन था। इससे पिछले साल में जहां एक एकड़ में 300 कट्टा (50 किलो प्रति कट्टा) आलू निकला था, इस साल तो 200 कट्टे से भी कम आलू हुआ था।"

पिछले सीजन (वर्ष 2019-2020) में किसानों ने ने जिस वक्त आलू की बुवाई शुरू की, बारिश शुरू हो गई। सर्दियों में कई बार भीषण बारिश हुई, जिससे आलू के पौधे की बढ़वार रुक गई। यहां तक की फरवरी 2020 और मार्च के शुरूआती हफ्ते में भी बारिश हुई। ज्यादातर राज्यों में जनवरी से अगैती आलू की खुदाई शुरू हो जाती है और पिछौती मार्च तक खुदता है, लेकिन इन दिनों भी बारिश हुई।

31 जनवरी 2020 तक ही आलू का उत्पादन देश के बड़े उत्पादन राज्य उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार, गुजरात और मध्य प्रदेश में घट गया था। व्यापारी और किसानों ने बताया कि 2019-20 के सीजन में खराब मौसम के कारण आलू का रकबा 8 से 10 फीसदी कम हुआ, यही कारण है कि आलू की कीमतें इस समय रिकॉर्ड स्तर पर हैं।

रकबा कम होने के कारण आलू का उत्पान भी घटा। राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2019-20 के सीजन में अप्रैल 2020 तक आलू का उत्पादन उत्तर प्रदेश में 140 लाख टन ही हुआ जबकि इसके पिछले साल 2018-19 में यही उत्पादन 150 लाख टन से ज्यादा हुआ था। वर्ष 2018-19 में देश में आलू उत्पादन में उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी 30 फीसदी थी, जबकि 2019-20 में यह घटकर 27 फीसदी पर पहुंच गयी।

आलू उत्पादन की स्थिति। रिपोर्ट- राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड

इससे पहले जब जनवरी 2020 में आई रिपोर्ट में बताया गया था कि आलू उत्पादन में उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी पिछले वर्षों की ही तरह 30 फीसदी से ज्यादा रहेगी, लेकिन लगातार बारिश और ओलावृष्टि ने आलू उत्पादन को कम कर दिया।

पश्चिम बंगाल को छोड़कर (लगभग 4% की बढ़ोतरी) ज्यादातर राज्यों में आलू उत्पादन में कमी आई। बिहार और गुजरात में भी आलू उत्पादन में कमी आई। यही कारण था पिछले साल मार्च तक बाजार में आलू की आवक बहुत कम हुई और कीमतें बढ़ती चली गयीं।

जनवरी 2020 में देशभर के बाजार में आलू की आवक लगभग 10 लाख टन थी, जबकि 2019 के इसी महीने में आलू की आवक लगभग 13 लाख टन थी। मार्च 2020 में आलू की आवक मंडियों में 7 लाख टन से ज्यादा थी, जबकि इसी समय 2019 में आलू की कुल आवक लगभग 12 लाख टन से थोड़ी अधिक थी।


राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा था 2020 के शुरुआती महीनों में हुई बारिश और ओलावृष्टि के के कारण आलू की बुवाई प्रभावित हुई थी।

हालांकि उत्तर प्रदेश के कोल्ड स्टोरेज एसोसिएशन के अध्यक्ष अरविंद अग्रवाल आलू की बढ़ी कीमत के लिए कई और कारणों का जिक्र करते हैं। वे गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "वर्ष 2019 के आखिरी और 2020 के शुरुवाती महीनों में हुई बारिश ओलावृष्टि के कारण आलू की फसलें बर्बाद हुईं, आलू महंगा होने का यह भी एक कारण है।"

"इससे पिछले के वर्षों में आलू की कीमत इतनी कम हो गई थी कि किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा। इस कारण किसानों ने आलू की खेती से से मुंह मोड़ना शुरू कर दिया। इससे भी रकबा घटा, उससे उत्पादन घटा और बाजार में खपत के हिसाब से आपूर्ति कम हो गयी।" अरविंद कहते हैं।

वे आगे बताते हैं, "रही सही कसर लॉकडाउन ने पूरी कर दी। जब आलू तैयार हो गया तो लॉकडाउन की वजह से वह कोल्ड स्टोरेज तक नहीं पहुंच पाया। अगर मैं उत्तर प्रदेश की ही बात करूं यहां के आलू कोल्ड स्टोरेज 50 से 60 फीसदी खाली रह गये। लॉकडाउन में दूसरी सब्जियां मिलीं नहीं आलू की खपत बढ़ गयी। लोगों ने कोल्ड स्टोरोज में जो आलू बीज के लिए रखे थे उसे भी निकालकर खाने लगे। अब जब बाजार में आलू होगा ही नहीं तो कीमत तो बढ़ेगी ही।"

बाजार में आलू सप्लाई की चैन टूटने की वजह से ही इस सीजन में आलू बीज की कीमतें भी आसमान छूने लगीं। आलू का जो बीज पिछले साल 400 से 500 रुपए कुंतल में था, इस साल उसकी कीमत 1,400 से 1,500 रुपए कुंतल तक पहुंच गयी। ज्यादा तापमान की वजह से भी आलू की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है।

नई फसल की आवक दिसंबर से बढ़गी। उसके बाद ही कीमत नीचे आने की उम्मीद है

आलू की अगेती खेती सितंबर महीने में शुरू हो जाती थी और नवंबर मध्य तक बाजार में नई आलू की बड़ी खेप पहुंच जाती थी, लेकिन इस साल सितम्बर के आखिरी सप्ताह और अक्टूबर के पहले सप्ताह में दिन का अधिकतम तापमान 33 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम तापमान 26 डिग्री सेल्सियस रहा जबकि रात का तापमान अधिकतम 24 और न्यूनतम 22 डिग्री सेल्सियस रहा, जबकि सितम्बर के आखिरी सप्ताह और अक्टूबर के पहले सप्ताह में दिन का अधिकतम 38 और न्यूनतम 29 डिग्री सेल्सियस रहा जबकि रात का तापमान 27 और 23 डिग्री सेल्सियस रहा।


केंद्रीय आलू अनुंसधान संस्थान, मोदीपुरम के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. विजय कुमार गुप्ता ने गांव कनेक्शन को बताया, "अगेती आलू की खेती के लिए दिन का तापमान 34 और रात का तापमान 24 होना चाहिए, तो ये मानिए कि आप बुवाई कर सकते हैं। क्योंकि एक महीने बाद आलू बनना शुरू होता है तब रात का तापमान 20 के नीचे आने लगता है। लेकिन इस बार क्या हुआ कि अधिकतम तापमान जल्दी नीचे नहीं आए हैं, जबकि न्यूनतम तापमान नीचे आने लग गया। ये भी जलवायू परिवर्तन की ही असर है।"

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उत्तर प्रदेश में आगरा, फिरोजाबाद, हाथरस, कन्नौज, फर्रूखाबाद, अलीगढ़, बदायूं, मैनपुरी, इटावा, मथुरा, कानपुर नगर, बाराबंकी, हरदोई, फतेहपुर, उन्नाव और गाजीपुर आलू के प्रमुख उत्पादक जिले हैं। जहां पर एक बड़े क्षेत्रफल में आलू की खेती होती है।

कई किसानों की आलू की फसल को भी नुकसान हुआ है। कृषि विज्ञान केंद्र, कन्नौज के कृषि वैज्ञानिक डॉ. अमर सिंह कहते हैं, "इस बार आलू की अगेती खेती काफी प्रभावित हुई, सितम्बर के आखिरी सप्ताह और अक्टूबर के पहले सप्ताह में जिन किसानों ने आलू की फसल लगाई थी, उनके फसल में अंकुरण ही नहीं हुआ है। जब तापमान ज्यादा रहता है तो किसानों को साबुत आलू लगाने की सलाह दी जाती है, लेकिन कई किसानों बीज को काटकर ही लगाया, वो बीज खेत में सड़ गये।"

कब तक सस्ता होगा आलू?

आलू की कीमतों को नीचे लाने के लिए सरकारों की ओर से भी प्रयास किये जा रहे हैं। केंद्र सरकार ने 31 जनवरी 2021 तक भूटान से बगैर लाइसेंस के आलू आयात की इजाजत दी है। विदेश व्यापार निदेशालय (डीजीएफटी) ने अधिसूचना जारी करके ये अनुमति दी है। आलू का आयात प्रतिबंधित श्रेणी में आता है, इसलिए इसके आयात के लिए लाइसेंस केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत आने वाले डीजीएफटी से आयात करने की आवश्यकता होती है लेकिन सरकार ने आलू आयात के नियमों में ढील देते हुए भूटान से बगैर लाइसेंस के 31 जनवरी 2021 तक आयात करने की इजाजत दी है।

इसके अलावा उत्तर प्रदेश में हर साल कोल्ड स्टोरेज से 30 नवंबर तक आलू निकालने होते थे, लेकिन इस साल उत्तर प्रदेश सरकार ने 31 अक्टूबर तक ही कोल्ड स्टोरेज खाली करा दिये।

उत्तर प्रदेश कोल्ड स्टोरेज संघ के प्रदेश अध्यक्ष अरविंद अग्रवाल इस बारे में कहते हैं, "कीमत को तत्काल कम करने के लिए ये फैसला सही हो सकता है। आलू की कीमतें दो से तीन रुपए (नवंबर महीने में) कम भी हुई हैं, लेकिन जब कोल्ड स्टोरेज का आलू खत्म हो जायेगा तब कुछ दिनों के लिए फिर कीमतें बढ़ सकती हैं।"

उत्तर प्रदेश के कोल्ड स्टोरेज से आलू 31 अक्टूबर तक निकाल लिये गये हैं।

कोल्ड स्टोरेज का आलू 15 से 20 दिनों में खा लिया जायेगा या खत्म हो जायेगा। इसके बाद फिर दिक्कत शुरू होगी क्योंकि मौसम के कारण इस साल बुवाई देर से शुरू हुई है। दिसंबर में जब उत्तर प्रदेश में नये आलू की आवक होगी, कीमतों तभी कम होंगी। अभी एक-दो रुपए का उतार चढ़ाव चलता रहेगा।" अरविंद अग्रवाल आगे कहते हैं।

देश की सबसे बड़ी मंडियों में से एक दिल्ली की आजादपुर मंडी के आलू व्यापारी गजेंद्र यादव गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "इधर कुछ दिनों में मंडी में नयी आलू की आवक थोड़ी बढ़ी है, लेकिन कीमतों में बहुत ज्यादा गिरावट नहीं है। दिसंबर के पहले सप्ताह तक आलू की कीमतें कम होंगी जब उत्तर प्रदेश से आलू आने लगेगा।"

उद्यान एवं प्रसंस्करण विभाग, उत्तर प्रदेश के निदेशक डॉ. एसबी शर्मा गांव कनेक्शन से कहते हैं, "पिछले साल खराब मौसम की वजह से आलू का बहुत नुकसान हुआ था, आलू की पैदावार भी कम हुई थी, इसी वजह से आलू महंगा हुआ। एक महीने में नया आलू आ जाएगा तो आलू का दाम वैसे ही नीचे आ जाएगा।"

  

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