वीडियो : प्रधानमंत्री जी...आपकी फसल बीमा योजना के रास्ते में किसानों के लिए ब्रेकर बहुत हैं 

Arvind ShukklaArvind Shukkla   25 July 2017 2:22 PM GMT

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वीडियो : प्रधानमंत्री जी...आपकी फसल बीमा योजना के रास्ते में किसानों के लिए ब्रेकर बहुत हैं फसल बीमा की कागजी कार्रवाई इतनी ज्यादा है कि किसान परेशान है। फाटो साभार- पुरुषोत्तम ठाकुर

लखनऊ। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को लेकर सरकार अब तक किसानों में उत्साह पैदा नहीं कर पाई है और जो किसान इस योजना को फायदा उठाना चाहते हैं, उनके सामने कई अड़ंगे हैं। खरीफ के सीजन में बीमा कराने की आखिरी तरीख 31 जुलाई है, जबकि इसके लिए जरूरी बुवाई प्रमाण पत्र 11 अगस्त से मिलना शुरू होगा।

फसल बीमा कराने के लिए बैंक से केसीसी के तहत फसली ऋण लेने वाले किसानों का बीमा तो हाथ के साथ हो जाता है, लेकिन बिना लोन लिए खेती करने वालों के सामने मुसीबत है। बीमा कराने के लिए किसान के पास आधार कार्ड, बैंक की पासबुक, खतौनी और बुवाई प्रमाण पत्र होना चाहिए। बुवाई प्रमाण पत्र राजस्व विभाग पैमाइश के बाद देता है, जो अगले महीने अगस्त में मिलना शुरू होगा। बिना बुवाई प्रमाण पत्र बीमा कंपनियां हाथ खड़े कर देती हैं।

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फैजाबाद के सोहावल ब्लॉक के रामनगर धौरहरा में रहने वाले किसान विवेक सिंह (31 वर्ष) जैविक खेती करते हैं। उन्होंने इस बार पांच एकड़ धान लगाए हैं, वह अपनी फसल का बीमा कराना चाहते हैं। विवेक बताते हैं, “31 जुलाई को आखिरी तरीख है तो मैं बीमा कंपनी (रिलायंस जनरल इंश्योरेंस) गया था, उन्होंने मुझसे बुवाई प्रमाण पत्र मांगा, वह लेने जब मैं लेखपाल के पास गया तो पता चला राजस्व विभाग खरीफ सीजन में फसल का आंकलन 1 अगस्त से शुरू करेगा और प्रमाणपत्र 11 अगस्त के बाद मिलेगा, क्योंकि यही प्रावधान चला आ रहा है।”

फोटो- शुभम कौल

इस बारे में बात करने पर स्थानीय लेखपाल राम अजर वर्मा ने बताया, “विभागीय नियमावली के अनुसार 1 अगस्त से 10 अगस्त तक हम लोग आंकड़ा लेते हैं, फिर 11 के बाद पड़ताल कर खसरे की नकल देते हैं। इससे पहले की लिखा पढ़ी मान्य नहीं होगी। इसी खसरे की नकल पर लिखा होता है कि किस गाटा संख्या (खेत का अधिकृत नंबर) में किसान ने क्या बोया है।” राजस्व विभाग और बीमा कंपनियों की इस तारीखबाजी के चक्कर में किसान परेशान हैं।

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गांव कनेक्शन ने जब इस मुद्दे को उत्तर प्रदेश में राजस्व विभाग के अध्यक्ष प्रवीर कुमार के सामने उठाया तो उन्होंने कहा, “हम (राजस्व विभाग) बुवाई प्रमाणपत्र तभी देते हैं, जब फसल बो दी जाती है। अगस्त में इसके आंकलन की प्रक्रिया बहुत पुरानी है। अब यह समस्या आई है। हम देखते हैं विभाग क्या कर सकता है।”

हालांकि यहां सवाल उठेगा, अगर राजस्व विभाग बुआई देखने के बाद प्रमाण पत्र देता है तो फिर किसान क्रेडिट कार्ड के तहत फसली ऋण लेने वाले किसानों से पहले ही प्रीमियम किस आधार पर काटा जाता है? किसान लगातार सवाल उठाते रहे हैं कि बैंक उनके खाते से प्रीमियम अनिवार्य के तौर पर काट रहे हैं।

वीडियो से समझिए पूरा मामला

राजस्व विभाग से बुवाई प्रमाण पत्र न मिलने पर परेशान विवेक कृषि विभाग के पास पहुंचे, जहां पता चला कि कृषि विकास अधिकारी प्रमाण पत्र दे सकता है, लेकिन जब किसान ने बीज वहां से खरीदा हो तब। विवेक बताते हैं, “बीमा योजना में इतनी तकनीकी शर्ते हैं कि किसान समझ ही न पाए, मुझे पता चला है कि बीमा कंपनी वाले कृषि विभाग के प्रमाणपत्र को नहीं मानेंगे, क्योंकि वो खेत पर न जाकर सिर्फ बीज का प्रमाण देते हैं। इन्हीं कानूनी पेंचीदगी के चलते पिछले वर्ष हजारों किसान बीमा नहीं करा पाए थे।”

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फैजाबाद के विवेक एमबीए हैं। वह प्रगतिशील किसान हैं और तकनीकी रूप से सक्षम भी हैं, लेकिन आम किसानों के लिए इतनी भागदौड़ और पूछताछ मुश्किल भरी होगी। बाराबंकी जिले में पल्हरी गांव के जयशंकर (45 वर्ष) योजना से अपनी बेरुखी की वजह बताते हैं, “इसमें बड़ी दौड़भाग है, पहले कराने में दौड़ो फिर फसल खराब हो तो बैंक और बीमा कंपनी के चक्कर लगाओ.. एजेंट दमदार हो तो ठीक, वर्ना दौड़ते रहो।“”

फोटो- शुभम कौल

फसल बीमा योजना से बीमा कंपनियों ने मुनाफा की फसल काटी और अनुंबंधित कंपनियों ने 10 हजार करोड़ रुपए कमाए। भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण से मिली जानकारियों के मुताबिक वर्ष 2016-17 में बीमा कंपनियों की प्रीमियम आय 1.27 लाख करोड़ रुपए हो गई, जो पिछले वर्ष 96,376 करोड़ रुपए थी।

विवेक की शिकायत के बाद फैजाबाद में जिला प्रशासन इस समस्या से निपटने के लिए रणनीति बना रहा है। फैजाबाद के मुख्य विकास अधिकारी रवीश गुप्ता बताते हैं, “समस्या तो है, लेकिन हम लोगों ने तय किया है कि सभी एसडीएम को पत्र जारी करेंगे कि जो किसान बुवाई प्रमाण पत्र मांगें, उसे तय तरीख से पहले दिया जाए।” बाराबंकी के कषि उपनिदेशक बताते हैं, “फसल बीमा कराने वाले ज्यादातर किसान केसीसी वाले हैं, ये अच्छी बात है कि बाकी किसान भी बीमित होने चाहते हैं, उसके लिए व्यवस्था की जा रही है।”

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अच्छी बारिश के चलते 20 जुलाई तक पूरे देश में धान बुवाई का रकबा पिछले साल की तुलना में 4.6 प्रतिशत बढ़ा है। इस तरह अब तक कुल धान की बुवाई का आंकड़ा 177.04 लाख हेक्टेयर हो चुका है। यूपी सरकार ने 50 लाख मीट्रिक टन धान खरीद का लक्ष्य रखा है।

फसल बीमा की प्रक्रिया

  1. केसीसी से फसली ऋण लेने वाले किसानों को कोई अलग से कोई कागजात नहीं देने होते, बैंक प्रीमियम काट कर ही किसानों को लोन के बाकी पैसों का भुगतान करते हैं।
  2. जो किसान केसीसी नहीं लेते हैं, उन्हें आधार कार्ड, बैंक पासबुक, खतौनी और बुवाई प्रमाण पत्र देना होता है।

फसल बीमा पर लगातार उठे सवाल

लखनऊ। “फसल बीमा योजना किसानों को नहीं बल्कि बीमा कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए बनाई गई है। इसमें कई पेच हैं। ये एकल नहीं, बल्कि समूह के लिए हैं। अगर पूरे गांव की फसल बर्बाद हुई तो ही मुआवजा मिलेगा, ये गलत है, जबकि हमारे देश में एक टीवी पर वारंटी है, उसका इंश्योरेंस होता है।” यह कहना है पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री सोमपाल शास्त्री का।

यह बयान इसलिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि सोमपाल शास्त्री अटल बिहारी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार में केंद्रीय कृषि मंत्री थे। भाजपा नेता शास्त्री राज्ससभा सांसद रह चुके हैं और अब राजनीति त्याग चुके हैं। फसल बीमा योजना पर सवाल उठने की वजह बीमा कंपनियों का बढ़ता मुनाफा भी है। इसी हफ्ते जारी हुई सेंटर फोर साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) की रिपोर्ट कहती है कि फसल बीमा योजना से बीमा कंपनियों ने मुनाफा की फसल काटी और अनुंबंधित कंपनियों ने 10 हजार करोड़ रुपए कमाए। भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण से मिली जानकारियों के मुताबिक वर्ष 2016-17 में बीमा कंपनियों की प्रीमियम आय 1.27 लाख करोड़ रुपए हो गई, जो पिछले वर्ष 96,376 करोड़ रुपए थी।

फोटो- पुरुषोत्तम ठाकुर

देश के जाने माने कृषि नीति विश्लेषक देविंदर शर्मा कहते हैं, “चाहे मोदी सरकार हो या कांग्रेस की। ये सब सरकारें किसान विरोधी हैं। सरकार जो भी योजना बनाती है, उससे ऐसे लगता है जैसे किसान एग्रीकल्चर छोड़ दें और उसकी जमीन पर इंडस्ट्री ख़डी हो जाए।

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कैग ने मनमोहन-मोदी, दोनों की योजनाओं पर उठाए सवाल

21 जुलाई को संसद सौंपी गई कैग की रिपोर्ट में यूपीए और एनडीए दोनों सरकारों की फसल बीमा योजना के क्रियान्वयन पर सवाल उठाए गए हैं। रिपोर्ट में 2011 से लेकर अगस्त 2016 तक की बीमा योजनाओं की ऑडिट की गई है।

पहले NAIS, MNAIS, WBCIS नाम की फ़सल बीमा याेजनाएं थीं, जिन्हें एकीकृत कर प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना कर दिया गया है। रिपोर्ट कहा गया है 2011 से लेकर 2016 के बीच बीमा कंपनियों 3,622.79 करोड़ की प्रीमियम राशि बिना किसी गाइडलाइन को पूरा किए ही दे दी गई। आडिट के दौरान कुछ किसानों के सर्वे भी किए गए, पाया गया कि 67 फीसदी किसानों को फसल बीमा योजना के बारे में तो पता ही नहीं है। किसानों को तुरंत पैसा मिले, उनकी शिकायतें जल्दी दूर है।

                

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