प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना : किसानों के सुरक्षा कवच में कई छेद

फसल बीमा योजना के बारे में किसानों की आम राय ये बनती जा रही है कि किसानों और सरकार का पैसा बीमा कंपनियां हड़प रही हैं। न तो समय पर भुगतान करती हैं और न किसानों को बीमा करने के लिए प्रेरित करती हैं।

Arvind ShuklaArvind Shukla   4 Aug 2018 1:32 PM GMT

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प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना : किसानों के सुरक्षा कवच में कई छेद

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का क्या किसानों का पूरा लाभ मिल पा रहा है? क्या किसानों के दावों का समय पर भुगतान हो पा रहा है ? क्यों २०१७-१८ के दौरान किसानों की संख्या घटी थी, गांव कनेक्शन ने इन सभी सवालों का जवाब जानने की कोशिश की है। साथ ही उन बिंदुओं पर भी चर्चा है जिससे किसानो को फायदा हो सकता है।

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में सीतापुर जिले के दासापुर गाँव के ऊदन सिंह (45 वर्ष) का करीब 2 एकड़ गन्ना बर्बाद हो गया था, दूसरी फसलों में नुकसान से बचने के लिए वो फसल बीमा कराना चाहते थे। बैंक से किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) बनवाने पर फसल बीमा खुद हो जाता है, लेकिन कई चक्कर लगाने के बाद वो केसीसी नहीं बनवा सके। जबकि जन सूचना केंद्र (सीएसई) और ऑनलाइन पोर्टल के बारे में उन्हें जानकारी नहीं थी।

फसल बीमा योजना की आखिरी तारीख ३१ जुलाई थी और ऊदन सिंह जैसे हजारों किसान इस बार खरीफ सीजन में फसल बीमा का सुरक्षा कवच नहीं पहन पाए, क्योंकि जागरूकता के अभाव, बीमा कंपनियों और सरकारी मशीनरी की उदासीतना के चलते किसानों को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। किसानों में फसल बीमा योजना में देर से भुगतान मिलने की वजह इस योजना में रुचि कम कर रही है।

योजना में किसानों का नामांकन घटा

आईआईएम अहमदाबाद के सेंटर ऑफ मैनेजमेंट इन एग्रीकल्चर (सीएमए) की रिपोर्ट 'प्रधानमंत्री मंत्री फसल बीमा योजना का प्रदर्शन और मूल्यांकन'के अनुसार वर्ष 2017-18 में कुल 5.01 करोड़ किसानों ने नामांकन कराया था, ये संख्या 2016-17 के मुकाबले 10 फीसदी कम थी। सबसे ज्यादा गिरावट, गोवा, केरल, राजस्थान और उत्तर प्रदेश से हुई। दूसरी ओर, वर्ष 2017-18 में 4.89 करोड़ हेक्टेयर को बीमा के क्षेत्र में लाया गया, ये क्षेत्र 2016-17 के मुकाबले 13.27 फीसदी कम था।

नियमों के मुताबिक, क्लेम की रिपोर्ट होने के बाद 2 महीने में किसान को भुगतान होना चाहिए, लेकिन किसानों को इसके लिए छह महीने से लेकर एक साल तक का इंतजार करना पड़ता है। बीमा भुगतानों में देरी की समस्या को सरकार ने संसद में भी माना है।

बीमा कंपनियों पर केंद्रीय कृषि मंत्री ने कसी नकेल

मानसून सत्र में प्रश्नकाल के दौरान केंद्रीय किसान एवं कल्याण मंत्री राधामोहन सिंह ने लोकसभा में कहा, "फसल बीमा योजना किसानों के लिए कवच है। लेकिन कई बार देखने में आया है कि राज्य सरकारों और बीमा कंपनियां विलंब से भुगतान करती हैं, इसलिए योजना में सुधार करने जा रहा हूं, अब अगर अब बीमा कंपनी 2 महीने से ज्यादा देर करती हैं तो उन्हें 12 फीसदी ब्याज के साथ किसान को भुगतान करना होगा। राज्य सरकार पर भी यह नियम लागू होगा।" केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने सदन में कहा कि अब तक 10 करोड़ किसान योजना के दायरे में लाए जा चुके हैं, जिनमे से 5 करोड़ ने बीमा का लाभ उठाया है।

उपज पर आधारित प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को वर्ष 2016 में लागू किया गया था, इस दौरान ये कहा गया था कि ये अपनी सभी पूर्व की फसल बीमा योजनाओं से बेहतर है। योजना के तहत खरीफ की सभी फसलों पर किसानों को 2 फीसदी, जबकि रबी के दौरान 1.5 फीसदी का प्रीमियम किसानों को दिया जाता है, बाकि का प्रीमियम केंद्र और राज्य सरकारें 50-50 फीसदी वहन करती हैं।

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आईआईएम अहमदाबाद के कृषि प्रबंधन संस्थान ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना पर किया है सर्वे।

व्यवसायिक फसलों और बागवानी के लिए किसान का प्रीमियम 5 फीसदी हो जाता है। बाढ़, फसल, सूखा, ओलावृष्टि आदि प्राकृतिक आपदाओं के दौरान फसल बर्बाद होने पर योजना के तहत दावों का भुगतान किया जाना चाहिए।

मगर दावों के भुगतान पर ही बात आकर फंस जाती है। मई 2018 तक उपलब्ध आंकड़ों (खरीफ 2017 और रबी 2017-18 के सभी आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं) के आधार और चार राज्यों गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश में किए गए सर्वे के आधार पर आईआईएम अहमदाबाद के कृषि प्रबंधन केंद्र ने अपनी रिपोर्ट तैयार की है। इसके अनुसार साल 2017-18 के दौरान कुल 23,206.18 करोड़ का प्रीमियम कंपनियों ने जमा कराया, ये साल 2016-17 के मुकाबले 16.6 फीसदी ज्यादा है, जबकि इसी अवधि के लिए कंपनियों ने बीमा दावों के एवज में 13,858 करोड़ रुपए का भुगतान किसानों को किया, जो प्रीमियम के अनुपात में 59.75 फीसदी है।

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बिजनेस स्टेंडर्ड में प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2017 के खरीफ सीजन के लिए अब तक करीब 194 अरब रुपये का प्रीमियम संग्रहित किया गया है, जबकि 166 अरब रुपये के दावे स्वीकार किए गए हैं और 110 अरब रुपये के दावे निपटाए जा रहे हैं या निपटाए जा चुके हैं।

फसल बीमा योजना के बारे में किसानों की आम राय ये बनती जा रही है कि किसानों और सरकार का पैसा बीमा कंपनियां हड़प रही हैं। न तो समय पर भुगतान करती हैं और न किसानों को बीमा करने के लिए प्रेरित करती हैं। यही वजह है कि महाराष्ट्र, यूपी, कर्नाटक और मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों में किसान की रुचि कम हुई है।

हालांकि चार अगस्त को अपने ब्लॉग में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह लिखते हैं,"हाल ही में प्राप्त आकड़ों के अनुसार खरीफ 2018 हेतु बीमा करवाने की अंतिम तिथि 31 जुलाई तक जन सूचना केंद्रों (CSC) के माध्यम से 75 लाख से ज्यादा गैर ऋणी किसानों के आवेदन प्राप्त किये गए, जोकि विगत वर्ष में (CSC) द्वारा प्राप्त आवेदनों (10 लाख) की तुलना में 7 गुना ज्यादा है।"

बिहार ने अपने राज्य में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को लागू न करने का फैसला किया है। यहां तक कि 2012-13 में हुए पुरानी बीमा योजना के तहत अपने हिस्से का प्रीमियम भी बिहार ने जमा करने से मना कर दिया है क्योंकि कृषि राज्य सरकार का विषय है।

इस योजना को किसानों को ज्यादा फायदा मिले इसके लिए जरूरी है कि मानसून का पूर्वानुमान आने से पहले टेंडर कराए जाएं। क्रॉप कटिंग सिस्टम को दुरुस्त किया जाए और डाटा बैंक बनाए जाएं। बैंकों पर निर्भरता कम हो, इसके साथ ही राज्य सरकारें भी अपने हिस्से का भुगतान समय पर करें। - डॉ. शिराज हुसैन, इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्ज ऑन इंटरनेशनल इकनॉमिक रिलेशन

पूर्व कृषि सचिव ने दिया सुझाव

कृषि विशेषज्ञों ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लिए दिए कुछ सुझाव। साभार: सेंटर ऑफ मैनेजमेंट इन एग्रीकल्चर, आईआईएम, अहमदाबाद

पूर्व कृषि सचिव और इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्ज ऑन इंटरनेशनल इकनॉमिक रिलेशन (Icrier) से जुड़े डॉ. शिराज हुसैन कहते हैं, "इस योजना को किसानों को ज्यादा फायदा मिले इसके लिए जरूरी है कि मानसून का पूर्वानुमान आने से पहले टेंडर कराए जाएं। क्रॉप कटिंग सिस्टम को दुरुस्त किया जाए और डाटा बैंक बनाए जाएं। बैंकों पर निर्भरता कम हो, इसके साथ ही राज्य सरकारें भी अपने हिस्से का भुगतान समय पर करें।"

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किसानों के दावों में देरी पर बीमा कंपनियों पर आर्थिक जुर्माने के बारे में डॉ. हुसैन कहते हैं, "फसल बीमा भुगतान में देरी एक बड़ी समस्या है, किसानों का नामांकन भी कम है। सरकार कंपनियों पर आर्थिक जुर्माने की बात कर रही है, लेकिन ये टेंडर की शर्तों पर निर्भर करेगा।"

भारत में 18 बीमा कंपनियां काम कर रही हैं। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों में काम कर रही एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कंपनी इंडिया लिमिटेड के रीजनल मैनेजर (यूपी) तरुण कुमार सिंह फसल बीमा की बुनियादी समस्याओं की तरफ इशारा करते हैं।

बीमा कंपनियों पर जुर्माने से बढ़ेंगी समस्याएं

तरुण कुमार बताते हैं, "कंपनियों पर आर्थिक जुर्माने से नई तरह की समस्याएं बढ़ेंगी। ये एक बहुत अच्छी योजना है। क्रॉप कटिंग एक्सपेरिमेंट (सीसीई) तो ग्राम पंचायत स्तर तक पहुंच गई है, लेकिन बहुत सारी चीजें जमीन पर नहीं उतरी हैं। राज्य सरकारों और बीमा कंपनियों दोनों को आधारभूत ढांचे पर काम करने की जरूरत है।"

बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण के सेक्शन 64 वीबी में प्रावधान है कि जब तक बीमा के प्रीमियम का पूरा भुगतान न हो जाए, दावों का भुगतान नहीं किया जा सकता है। किसान तो अपने हिस्से का प्रीमियम दे देते हैं, लेकिन राज्य का हिस्सा नहीं मिलता, जिससे केंद्र और फिर पूरे क्रम में देरी होती चली जाती है। - तरुण कुमार सिंह, रीजनल मैनेजर, एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कंपनी इंडिया लिमिटेड, यूपी

बीमा के दावों के भुगतान में देरी की बड़ी समस्या के पीछे वो प्रीमियम का न मिलना भी बताते हैं। तरुण बताते हैं, "बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण के सेक्शन 64 वीबी में प्रावधान है कि जब तक बीमा के प्रीमियम का पूरा भुगतान न हो जाए, दावों का भुगतान नहीं किया जा सकता है। किसान तो अपने हिस्से का प्रीमियम दे देते हैं, लेकिन राज्य का हिस्सा नहीं मिलता, जिससे केंद्र और फिर पूरे क्रम में देरी होती चली जाती है।"

भुगतान में देर होने का कारण यह भी

आईआईएम ने भी अपने शोध में माना है कि राज्य सरकारें अपना 50 फीसदी हिस्सा प्रीमियम जब भेजती हैं, तब बीमा कंपनियां उन्हें रिकार्ड भेजती हैं, बीमा कंपनियों को ये डाटा बैंकों से मिलता है जो पहले से काम के बोझ तले दबी हैं। केंद्र सरकार अपना हिस्सा तब देता है जब राज्य सरकारें अपना ट्रांसफर सर्टिफिकेट भेजती हैं। इस तरह देर पर देर होती जाती है।

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बीमा योजना को लाभकारी बनाने के लिए आईआईएम अहमदाबाद के कृषि प्रबंधन संस्थान ने कई सुझाव दिए हैं। इसमें बीमा के लिए सबसे जरूरी तथ्य मैनुअल क्रॉप कटिंग एक्सपेरीमेंट को उन्होंने तकनीकी से जोड़ने ड्रोन, जीपी कोडिंग, रिमोर्ट सेंस को लागू करने, किसान के कागजात को डिजिटलाइस और आधार से जोड़ने के साथ ही बीमा कंपनियों को उत्पादन और आंकलन के दौरान जमीनी सत्यापन को और बेहतर करने का सुझाव दिया है।


प्रीमियम कटने पर मान लेते हैं अदायगी की गारंटी

रिपोर्ट और कृषि जानकारों से बातचीत के बाद ये भी तथ्य सामने आए हैं कि ज्यादातर किसान अपने प्रीमियम कटने को ही दावा अदायगी की गारंटी मान लेते हैं। चाहे वो हकदार हों या नहीं, जो योजना के खिलाफ जाता है। सरकार के लिए ये खतरे की घंटी हो सकता है क्योंकि भारत में ज्यादातर लघु और सीमांत किसान हैं, जिन्हें बीमा में ज्यादा वापसी नहीं दिखती क्योंकि भुगतान में देरी होती है। कई किसानों ने ये भी कहा कि भले ही भुगतान का राशि कम हो लेकिन वो तय समय हो।

भुगतान में क्यों होती है देर?

आईआईएम ने भी अपने शोध में माना है कि राज्य सरकारें अपना 50 फीसदी हिस्सा प्रीमियम जब भेजती हैं, तब बीमा कंपनियां उन्हें रिकार्ड भेजती हैं, बीमा कंपनियों को ये डाटा बैंकों से मिलता है जो पहले से काम के बोझ तले दबी हैं। केंद्र सरकार अपना हिस्सा तब देता है जब राज्य सरकारें अपना ट्रांसफर सर्टिफिकेट भेजती हैं। इस तरह देर पर देर होती जाती है।

नोट- फसल बीमा योजना अब किसान ऑनलाइन करवा सकते हैं। ये सुविधा पीएमएफबीवाई के नए पोर्टल पर उपलब्ध है।

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