उज्‍ज्‍वला योजना: 'सिलेंडर बहुत महंगा है, पेट पालें या सिलेंडर भरवाएं'

Ranvijay SinghRanvijay Singh   20 Jan 2020 6:04 AM GMT

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'सिलेंडर बहुत महंगा है, हम गरीब लोग कहां से भरा पाएंगे।' इतना कहते हुए सुशीला सूखी टहनियों पर तेज धार वाले हथ‍ियार से वार करने लगती हैं। सुशीला अगले दिन के लिए चूल्‍हा जलाने की खातिर लकड़ियां काट रही हैं। उन्‍हें उज्ज्वला योजना (Ujjwala Yojana) के तहत चार महीने पहले ही गैस सिलेंडर मिला था, जोकि घर के एक कोने में खाली पड़ा है।

उत्‍तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के छेदा गांव की रहने वाली सुशीला घर संभालती हैं और उनके पति मजदूर हैं, जिनकी कमाई दिन के 200 से 250 रुपए तक होती है, वो भी तब जब काम मिल जाए। सुशीला बताती हैं, 'एक आदमी की कमाई पर 6 लोगों का परिवार पल रहा है। अब इस कमाई में या तो पेट पाल लें या सिलेंडर ही भरवा लें।'

यह कहानी केवल सुशीला की नहीं है। सुशीला जैसी बहुत सी गृहण‍ियां जिन्‍हें 'प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना' (PMUY) के तहत सिलेंडर मिले हैं, वो फिर से लकड़ी से चूल्‍हा जला रही हैं। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट के मुताबिक, PMUY के तहत जिन लोगों को एलपीजी गैस कनेक्शन मिले हैं, वे अपने सिलेंडर को नियमित रूप से भरवा नहीं रहे हैं।

रिपोर्ट में बताया गया है कि 31 दिसबंर 2018 तक एक वर्ष या उससे अधिक का समय पूरा कर चुके करीब 56 लाख (17.61 प्रतिशत) लाभार्थी ऐसे हैं जिन्‍होंने दूसरी बार सिलेंडर नहीं भरवाया। सरल शब्‍दों में कहें तो सुशीला की तरह 56 लाख महिलाएं फिर से लकड़ी से चूल्‍हा जला रही हैं।

चूल्‍हा जलाने के लिए लकड़‍ियां काटती सुशीला।

गैस सिलेंडर होने के बाद भी लकड़ी से चूल्‍हा क्‍यों जला रही हैं? इस सवाल पर बाराबंकी के ही छेदा गांव की रहने वाली प्रमिला कहती हैं, ''हमारा 20 लोगों का परिवार है। सिलेंडर 15 दिन भी नहीं चलता। अगर हर महीने सात-आठ सौ रुपए गैस भरवाने में लगाएंगे तो खाएंगे क्‍या? लकड़ी तो आसानी से मिल जाती है तो उसी पर खाना बना रहे हैं।'' प्रमिला घर में रखे सिलेंडर को दिखाते हुए उदास होकर कहती हैं, ''अगर पैसा होता तो इसे जरूर भराती, लकड़ी के धुएं से आंखें जलने लगती हैं।''

प्रमिला जिस धुएं का जिक्र कर रही हैं, महिलाओं को इसी धुएं से निजात दिलाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने उत्तर प्रदेश के बलिया में 1 मई 2016 को 'प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना' (PMUY) की शुरुआत की थी। पीएम मोदी उज्ज्वला योजना की बात करते हुए अक्‍सर धुएं से होने वाली दिक्‍कतों का भी जिक्र करते रहे हैं। एक चुनावी रैली में पीएम मोदी ने कहा था, ''मेरी मां जब चूल्हे में लकड़ियां जलाकर खाना पकाती थी तो पूरा घर धुएं से भर जाता था। खाना पकाते समय लकड़ी के धुएं से 400 सिगरेट जितना धुआं इन माताओं-बहनों के शरीर में जाता है।''

इसी तरह 28 मई 2018 को उज्‍ज्‍वला योजना की लाभार्थ‍ियों से बात करते हुए पीएम मोदी ने कहा था, ''उज्ज्वला योजना के तहत हमने तय किया कि जो लकड़ी का चूल्हा जलाते हैं, धुएं की जिंदगी गुजारते हैं, जो माताएं-बहनें मजदूरी भी करती हैं, रोजी रोटी कमाने में मदद करती हैं और फिर लकड़ी ढूंढने जाना, खाना पकाना, इतना कष्ट मां-बहनों को होता था, हम इन्‍हें गैस सिलेंडर देगें। हम इस योजना से उनको इस कष्‍ट से मुक्ति दिलाना चाहते थे।''

PMUY लाभार्थी को गैस कनेक्‍शन देते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। फोटो- @PMUjjwalaYojana

प्रधानमंत्री मोदी के कहे अनुसार ही PMUY के तहत सरकार गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले परिवारों को घरेलू रसोई गैस का कनेक्शन देती है। यानी वो परिवार जो समाज में सबसे आखिरी पायदान पर खड़ा है। लेकिन सिलेंडर मुहैया कराने के बाद अब सरकार के सामने यह चुनौती है कि बहुत से गरीब परिवार सिलेंडर को नियमित रूप से भरवा नहीं रहे हैं। इस बात की तसदीक सरकार की वेबसाइट पर जारी आंकड़े भी करते हैं।

PMUY की वेबसाइट पर जारी आंकड़ों के मुताबिक, उज्ज्वला योजना की शुरुआत होने से लेकर 31 दिसंबर 2018 तक देशभर में करीब 5.92 करोड़ कनेक्‍शन दिए गए हैं। योजना के तहत दिए गए सिलेंडर को दोबारा भरवाने के आंकड़ों को देखें तो 03 जून 2019 तक करीब 4.46 करोड़ लाभार्थ‍ियों ने दोबारा सिलेंडर भरवाए। ऐसे में इस अवधि में करीब 1.45 करोड़ उपभोक्‍ता दोबारा सिलेंडर भरवाने नहीं आए।

आंकड़ों में बताई गई बात का असर जमीन पर भी साफ देखने को मिलता है। इस बात को यूपी के बाराबंकी जिले में इंडेन गैस के फील्‍ड ऑफिसर ईशान अग्‍निहोत्री भी मानते हैं। ईशान बताते हैं, ''बाराबंकी में उज्‍ज्‍वला योजना के करीब 2.55 लाख लाभार्थी हैं। इसमें से करीब 40 प्रतिशत लाभार्थी दोबारा सिलेंडर भरवाने नहीं आए हैं। जब हमने उनसे बात की तो पहली दिक्‍कत पैसों की समझ आई। उन्‍हें सिलेंडर का दाम जोकि अभी 765 रुपए है, वो ज्‍यादा लगता है। दूसरा यह कि गरीब परिवारों में से वही परिवार दोबारा सिलेंडर नहीं भरवा रहे जिनको लकड़ी आसानी से उपलब्‍ध हो जा रही है। इस तरह उन्‍हें लकड़ी के लिए पैसे नहीं खर्च करने पड़ते और उनका काम चल जाता है।''

बात करें गैस सिलेंडर के दाम की तो उज्‍ज्‍वला योजना की शुरुआत से लेकर अब तक घरेलू सिलेंडर के दाम में करीब 30% से ज्‍यादा का इजाफा हुइा है। मई 2016 में नॉन सब्सिडाइज्ड घरेलू सिलेंडर (14.2 किग्रा) का दाम 550 रुपए के करीब था। वहीं, दिसंबर 2019 में घरेलू सिलेंडर का दाम 750 रुपए के करीब था। यानी मई 2016 से लेकर दिसंबर 2019 तक नॉन सब्सिडाइज्ड घरेलू सिलेंडर के दामों में 30.76% की बढ़ोत्तरी हुई है।

बाराबंकी के छेदा गांव की रहने वाली प्रमिला के घर में उज्‍ज्‍वला योजना से मिला सिलेंडर खाली पड़ा है।

सरकार की ओर से घरेलू गैस सिलेंडर पर सब्‍सिडी दी जाती है। दूसरे उपभोक्‍ताओं की तुलना में उज्‍ज्‍वला योजना के उपभोक्‍ताओं को 20 रुपए ज्‍यादा सब्‍सिडी दी जाती है। जैसे दिल्‍ली में नॉन सब्सिडाइज्ड घरेलू सिलेंडर का दाम 714 रुपए है। उज्‍ज्‍वला योजना के उपभोक्‍ताओं को 179 रुपए सब्‍सिडी दी जाती है और दूसरे उपभोक्‍ताओं को 158 रुपए सब्‍सिडी दी जाती है। ऐसे में 14.2 किग्रा के सिलेंडर के लिए उज्‍ज्‍वला योजना के उपभोक्‍ताओं को 535 रुपए और दूसरे उपभोक्‍ताओं को 556 रुपए देने होते हैं।

ईशान फील्‍ड ऑफिसर हैं। ऐसे में वो गांव-गांव जाकर लोगों को सिलेंडर इस्‍तेमाल करने के लिए जागरूक भी कर रहे हैं। वो बताते हैं, ''हमने उज्‍ज्‍वला पंचायतें कराई हैं। हम लोगों को जागरूक कर रहे हैं कि लकड़ी से उन्‍हें स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी दिक्‍कतें हो रही हैं। साथ ही लकड़ी बिनने में समय भी लगता है, उस वक्‍त का वो कहीं और सदुपयोग कर सकती हैं। हमने यह भी सुविधा दी है कि 14 किलो का सिलेंडर अगर महंगा लग रहा है तो उपभोक्‍ता 14 किलो के सिलेंडर को बदलकर 5 किलो का सिलेंडर ले सकते हैं। 5 किलो का सिलेंडर भरवाने में उन्‍हें कम पैसे लगेंगे, यही कोई 250 से 300 रुपए के बीच।''

ईशान का कहना है कि इन सब प्रयासों के बाद भी उज्ज्वला योजना के उपभोक्‍ताओं का सिलेंडर भरवाने का एवरेज काफी कम है। ईशान जिस बात को कह रहे हैं यही बात CAG की रिपोर्ट में भी बताई गई है। रिपोर्ट में कहा गया है, एलपीजी गैस के निरंतर उपयोग को प्रोत्साहित करना एक बड़ी चुनौती है। PMUY के लाभार्थियों की वार्षिक औसत रिफिल खपत में गिरावट आई है।

सोर्स- CAG रिपोर्ट

रिपोर्ट के मुताबिक, योजना के तहत जिन 1.93 करोड़ उपभोक्‍ताओं (31 मार्च 2018 तक जिन्‍होंने एक साल पूरे किए) को गैस कनेक्शन दिया गया था, उनकी वार्षिक औसत रिफिल खपत केवल 3.66 है। वहीं, 31 दिसंबर 2018 तक 3.18 करोड़ उज्ज्वला ग्राहकों के आधार पर देखें तो यह औसत सिर्फ 3.21 एलपीजी सालाना रिफिल तक रह गया। इसका मतलब है कि एक उपभोक्‍ता साल में तीन स‍िलेंडर के आस-पास रिफ‍िल करा रहे हैं।

कुछ ऐसा ही मामला बाराबंकी के छेदा गांव की रहने वाली अनीता के परिवार का भी है। अनीता को उज्‍ज्‍वला योजना के तहत सिलेंडर मिले हुए एक साल हो गए हैं। अनीता ने साल भर में 2 बार सिलेंडर भरवाया है। फिलहाल उनका भी सिलेंडर खाली पड़ा हुआ है। यह पूछने पर कि सिलेंडर आखिरी बार कब भरवाया था? अनीता जवाब देती हैं, ''3 महीने होने को आए हैं। अभी खाली है। जब कुछ पैसा जुटेगा तो फिर भराएंगे। अभी तो मजदूरी ठीक से मिल नहीं रही तो ऐसे ही रखा हुआ है।''

फिलहाल उज्‍ज्‍वला योजना के सिलेंडर को नियमित रूप से भरवाने की चुनौतियों के बीच सरकार इस योजना से जुड़े अपने लक्ष्‍य के काफी नजदीक पहुंच गई है। CAG रिपोर्ट के मुताबिक 31 मार्च 2019 तक ऑयल मार्केटिंग कंपनियों ने 7.19 करोड़ एलपीजी कनेक्शन दिए थे, जो सरकार के मार्च 2020 तक 8 करोड़ कनेक्शन देने के लक्ष्य का लगभग 90 फीसदी है।

रिपोर्ट‍िंग सहयोग - वीरेंद्र सिंह


 

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