मांग बढ़ने से घरेलू बाजार में रूई (कॉटन) की कीमतों में तेजी

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मांग बढ़ने से घरेलू बाजार में रूई (कॉटन) की कीमतों में तेजीखेत में कॉटन।

घरेलू बाजार में रूई (कॉटन) में करीब एक महीने बाद फिर तेजी देखी जा रही है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारी शॉर्ट कवरिंग के कारण आई तेजी से स्थानीय वायदा बाजार में बुधवार को लगातार दूसरे दिन रूई के भाव में तेजी दर्ज की गई, जिससे प्रेरित हाजिर बाजार में भी रूई के दाम में जोरदार उछाल आया।

चीन में इस हफ्ते नववर्ष की छुट्टियां समाप्त होने के बाद बाजार खुलेगा, जिससे रूई व धागों की मांग बढ़ सकती है, क्योंकि दुनिया में सबसे ज्यादा रूई व धागों की खपत चीन में होती है और अपनी खपत की पूर्ति के लिए बड़ी मात्रा में रूई व धागों का आयात करता है। हालांकि चीन में सरकार के पास सुरक्षित भंडार से अगले महीने मार्च में रूई की नीलामी शुरू होने वाली है, जिससे उसकी आयात मांग नरम रह सकती है।

बाजार के जानकारों के मुताबिक, चीनी मुद्रा में जिस तरह अधिमूल्यन का दौर पिछले दिनों रहा है, उसके बाद से डॉलर के मुकाबले चीनी युआन के इस साल के अंत तक तीन फीसदी से ज्यादा मजबूत होने की उम्मीद की जा रही है। युआन की मजबूती से आयात सस्ता होगा। ऐसे में देखना होगा कि वह अमेरिका से कितनी मात्रा में रूई खरीदता है।

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वर्धमान टेक्सटाइल के इंद्रजीत धूरिया के मुताबिक, "रूई आयात का कोटा निर्धारित होने से चीन रूई के बजाय धागे (यार्न) के आयात को प्राथमिकता दे सकता है। ऐसे में भारत से यार्न का निर्यात बढ़ सकता है। यार्न की निर्यात मांग बढ़ने से जाहिर है कि रूई की कीमतों में तेजी को सहारा मिलेगा।"

गौरतलब है कि चीन ने 2017 में अपनी जरूरत का 20 फीसदी यार्न भारत से आयात किया था। जबकि 34 फीसदी की खरीद उसने वियतनाम से की, जो यार्न निर्यात में भारत का प्रतिस्पर्धी है। लेकिन वह भारत से रूई का आयात करता है। भारत इस समय प्रमुख रूप से बांग्लादेश, वियतनाम, इंडोनेशिया और पाकिस्तान को रूई निर्यात करता है। चीन पाकिस्तान से भी सूत खरीदता है। ऐसे में भारत से सूत का निर्यात बढ़ने की संभावना बनी हुई।

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इधर, भारतीय मुद्रा रुपया डॉलर के मुकाबले कमजोर हो रहा है, जिससे धागों व अन्य उत्पादों का आयात महंगा हो जाएगा, जो घरेलू उत्पाद की मांग बढ़ने का संकेत है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में रूई का भाव कम होने से भारतीय रूई और अमेरिकी रूई के बीच भाव का अंतर काफी घट गया था। हालांकि मंगलवार को विदेशी बाजार में रूई के दाम में करीब ढाई फीसदी का इजाफा हुआ, जबकि पिछले सप्ताह के मुकाबले भाव 3.81 फीसदी उछला। लेकिन गत एक महीने में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में रूई की कीमतें 5.23 फीसदी नरम रही हैं। हालांकि पिछले एक साल में 0.76 फीसदी की तेजी आई है, लेकिन तीन साल में रूई के भाव में 22.26 फीसदी का इजाफा हुआ है।

घरेलू वायदा बाजार एमसीएक्स पर अपराह्न् 2.35 बजे रूई का मार्च वायदा 130 रुपये की बढ़त के साथ 20,300 रुपये प्रति गांठ (170 प्रति किलोग्राम) पर कारोबार कर रहा था, जबकि इससे पहले सौदे में 20,350 रुपये तक का उछाल देखा गया। बीते सत्र में रूई का बेंचमार्क मार्च सौदा 550 रुपये या 2.79 फीसदी की बढ़त के साथ 20,250 रुपये प्रति गांठ पर बंद हुआ। हाजिर में बेंचमार्क गुजरात शंकर-6 (29 एमएम) में 300 रुपये की तेजी के साथ 39,700-41,300 रुपये प्रति कैंडी (356 किलोग्राम) पर कारोबार हुआ। देशभर में रूई के भाव ऊंचे चल रहे थे। इस सीजन में शंकर-6 का भाव ऊपर में 43,000 रुपये और नीचे में 37,200 रुपये प्रति कैंडी रहा है।

गुजरात के कड़ी स्थित राजा इंडस्ट्रीज के प्रमुख व कॉटन निर्यातक, दिलीप पटेल का कहना है कि मई में चीन की मांग निकलेगी, जिसके बाद और तेजी आ सकती है। कमोडिटी विशेषज्ञों के मुताबिक, सीसीआई और निजी कारोबार के बीच रूई खरीद को लेकर स्पर्धा रहेगी।

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इधर, महाराष्ट्र और तेलंगाना में कपास की फसल खराब होने से व्यापारिक उत्पादन अनुमान में समानता नहीं है। हालांकि रूई एसोएिशन ऑफ इंडिया (सीएआई) ने चालू रूई उत्पादन व विपणन वर्ष 2017-18 (अक्टूबर-सितंबर) में 367 लाख गांठ का अनुमान लगाया है, लेकिन कुछ व्यापारी मानते हैं कि इसमें फिर संशोधन हो सकता है, क्योंकि उत्पादन अनुमान घट सकता है।

धूरिया ने बताया कि 65 फीसदी फसल बाजार में आ चुकी है और आवक नियमित रूप से हो रही है, जो इस बात की तस्दीक करती है कि किसानों के पास भी स्टॉक रखने की क्षमता है, जो ऊंचे भाव पर बेचने की बाट जोहते हैं। उन्होंने कहा कि घरेलू बाजार में रूई में वर्तमान कीमत स्तर तकरीबन निचले स्तर के आसपास है और इससे नीचे बहुत ज्यादा गिरावट की संभावना कम है।

उधर, मौसम विज्ञानी आगे बारिश की स्थिति और मौसमी दशाओं के खेती के प्रतिकूल रहने की आशंका जता चुके हैं, जिससे विभिन्न फसलों के साथ-साथ कपास का भी रकबा घट सकता है। ऐसे में इसकी कीमतों में तेजी को सहारा मिलेगा।

एक और बात जो देसी रूई में तेजी के पक्ष में जाता है, वह यह है कि पिछले फसल सीएआई के मुताबिक 345 लाख गांठ की थी, आवक फरवरी के दूसरे पखबाड़े में करीब 1.65-1.70 लाख गांठ के आसपास थी, जोकि इस साल 1.50 लाख गांठ से नीचे है। यह इस बात को साबित करती है कि किसान या व्यापारी और तेजी की आस लगाए हुए हैं या फिर उत्पादन कम है।

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पिछले साल भारत ने सबसे ज्यादा कपास निर्यात बांग्लादेश को किया था, जोकि कुल निर्यात का 38.55 फीसदी था, दूसरे नंबर पर चीन को 17.87 फीसदी, पाकिस्तान को 15.39 फीसदी और वियतनाम को 11.97 फीसदी कपास निर्यात किया था।

वहीं धागा निर्यात के मामले में भारत ने अपने कुल निर्यात का 37.82 फीसदी पिछले साल चीन को निर्यात किया था। इसके बाद बांग्लादेश को 16.01 फीसदी, पाकिस्तान को 5.5 फीसदी, मिस्र को 3.8 और पुर्तगाल को 3.77 फीसदी धागा निर्यात किया था। हांलाकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि कपास एक ऐसी कमोडिटी है, जिसकी कीमतों में उतार-चढ़ाव विदेशी बाजार के संकेतों से तय होता है, जिसमें इस हफ्ते मजबूती दिख रही है।

  

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