न पीने का पानी, न ही शौचालय की व्यवस्था- पश्चिम बंगाल के झारग्राम में स्कूलों में गंदगी का अंबार

लगभग दो वर्षों तक बंद रहने के बाद झारग्राम जिले के प्राथमिक विद्यालय 16 फरवरी को फिर से खुल गए। हालांकि, बेलपहाड़ी सर्कल के 69 ग्रामीण स्कूलों की स्थिति दयनीय है क्योंकि कई में न तो पीने का पानी है और न ही ढ़ंग के शौचालय। मिड डे मील का भोजन पकाने के लिए बड़ी दूर से पानी लाना पड़ता है। शिक्षकों का कहना है कि इस बारे में काफी शिकायतें की गईं हैं लेकिन इन्हें सुनने वाला कोई नहीं है। एक ग्राउंड रिपोर्ट

Gurvinder SinghGurvinder Singh   3 March 2022 8:56 AM GMT

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झारग्राम (पश्चिम बंगाल)। हरी-भरी वादियां, पेड़ों से ढकी पहाड़ियां और 5,000 साल पुरानी गुफाएं। इसी खूबसूरत सी जगह पर बना है पश्चिम बंगाल के झारग्राम जिले का तुलसीबोनी गांव का प्राथमिक स्कूल। राज्य की राजधानी कोलकाता से लगभग 200 किलोमीटर पश्चिम में स्थित सुंदर झारग्राम पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है।

कोविड की वजह से लंबे समय तक बंद रहने के बाद, जब कुछ दिनों पहले तुलसीबोनी प्राइमरी स्कूल को खोला गया तो यहां परेशानियों का अंबार लगा नजर आया। स्कूल में 41 छात्र नामांकित हैं और उन सभी के लिए दो शिक्षक हैं।

इस स्कूल ने हाल ही में उस समय सुर्खियां बटोरीं, जब बच्चों को पास के एक गंदे नाले में अपने मिड डे मील के बर्तन धोते हुए एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था। देश के कई अखबारों में इसे लेकर खबरें छपी थीं। लेकिन, स्कूल के शिक्षकों के मुताबिक एक भी सरकारी अधिकारी ने यह पता लगाने की कोशिश नहीं की कि आखिर बात क्या है या किस बात को लेकर इतना हंगामा मचाया जा रहा है।

23 फरवरी को गांव कनेक्शन ने इस प्राथमिक विद्यालय का दौरा किया और पाया कि स्कूल में न तो पीने का पानी है और न ही बर्तन धोने के लिए। गंदे पानी में बर्तन धुले जाते हैं।


स्कूल से करीब आधा किलोमीटर की दूरी पर बने टैंक से हर दिन पानी भरकर लाया जाता है। "हमें मिड डे मील बनाने के लिए कम से कम चार चक्कर लगाने पड़ते हैं। उस पानी को छाना नहीं किया जाता है, "स्कूल मिड-डे मील रसोइया पूर्णिमा सिंह ने गांव कनेक्शन से शिकायत की। "यहां तक कि जिस कमरे में हम खाना बनाते हैं, उसमें भी वेंटीलेशन की सुविधा नहीं है। वहां कुछ मिनटों से ज्यादा खड़ा रहना असंभव है, "उसने कहा।

तुलसीबोनी स्कूल तो समस्याओं का एक छोटा सा हिस्सा है। बेलपहाड़ी सर्कल मुख्य रूप से आदिवासी क्षेत्र है और यहां लगभग 69 प्राथमिक स्कूल हैं। अधिकांश के पास बताने के लिए एक जैसी कहानी है।

तुलसीबोनी से दो किलोमीटर दूर गोहलबेरिया प्राइमरी स्कूल है। स्कूल के परिसर में एक ट्यूबवेल है, जिससे गंदा और बदबूदार पानी आता है। इस पानी को पंप करके शौचालय में ले जाया जाता है और इसी पानी से छात्रों के लिए दोपहर का भोजन बनाया जाता है।

स्कूल के प्रभारी शिक्षक द्विजदास पोर्या ने गांव कनेक्शन को बताया, "अगर बच्चों को शौचालय जाना है तो उन्हें खुद ही पानी निकालना होगा।" उन्होंने कहा कि पीने के लिए पानी स्कूल से करीब 100 मीटर की दूरी पर लगे ट्यूबवेल से आ रहा है।


इसी सर्किल में ओदलचुआ प्राइमरी स्कूल भी आता है। यहां लड़कों के लिए एक खुला शौचालय है। लेकिन लड़कियों के लिए फिलहाल यहां शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं है। पहले जो शौचालय बना था वो टूटा-फूटा है और उसमें मलबा भरा पड़ा है। शिक्षकों ने इसकी हालत को देखते हुए इसे निर्माण सामग्री को स्टोर करने के लिए उपयोग करना बेहतर समझा। इसलिए वे इसे बंद रखते हैं। और ठीक ऐसी ही हालत ओवरहेड टैंक की हैं जिसमें पानी ही नहीं है।

पश्चिम बंगाल के स्कूलों में नल के पानी की आपूर्ति

भारत सरकार के जल जीवन मिशन के आंकड़ों के अनुसार, देश के 82.58 प्रतिशत स्कूलों में नल के पानी की आपूर्ति है। पश्चिम बंगाल में 72 फीसदी स्कूलों में नल के पानी की आपूर्ति है। तीन जिलों - पश्चिम मेदिनीपुर, नदिया और मुर्शिदाबाद के स्कूलों में 100 प्रतिशत नल के पानी के कनेक्शन हैं। झारघरम जिले, जिसमें 2,393 स्कूल हैं, में केवल 65.36 प्रतिशत नल के पानी की आपूर्ति है।

इस बीच, पश्चिम बंगाल में केवल 40 प्रतिशत आंगनवाड़ियों में नल के पानी की आपूर्ति है। झारग्राम में, केवल 5.92 प्रतिशत आंगनवाड़ी केंद्रों में नल के पानी के कनेक्शन हैं, आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है।

मैप: पश्चिम बंगाल के स्कूलों में जिलेवार नल के पानी की आपूर्ति

'शिकायतों की कोई सुनवाई नहीं'

तुलसीबोनी प्राइमरी स्कूल के छात्र पीने का पानी तो अपने घरों से ले जाते हैं, लेकिन उनके दोपहर के भोजन के बर्तनों को गंदे तालाब से लाए गए पानी में साफ किया जाता है। ग्रामीण तालाब के इस पानी का इस्तेमाल सुबह नहाने-धोने के लिए करते हैं।

शौचालय में पानी की कोई व्यवस्था नहीं है, इसलिए इनका इस्तेमाल नहीं हो पा रहा। शिक्षक छात्रों को शौच के लिए घर भेजना पसंद करते हैं।

तुलसीबोनी प्राइमरी स्कूल के प्रभारी शिक्षक कल्हन मंडल ने शिकायत की, "दो साल के लंबे अंतराल के बाद 16 फरवरी से कक्षाएं फिर से शुरू हो गई हैं। लेकिन स्कूलों की हालत खराब है। " वह पिछले 12 साल से स्कूल के साथ जुड़े हुए हैं।

मंडल ने गांव कनेक्शन को बताया, 'मैंने कई बार संबंधित सरकारी अधिकारियों को पानी की समस्या से अवगत कराया है, लेकिन खोखले वादों के अलावा कभी कुछ नहीं मिला। उन्होंने बताया कि गर्मी के दिनों में ये समस्या और भी बढ़ जाती है।

तुलसीबोनी प्राइमरी स्कूल की कक्षा एक की छात्रा हृषिका देबनाथ ने गांव कनेक्शन को बताया, "अगर मुझे जरूरत महसूस होती है, तो मैं खुद को राहत देने के लिए स्कूल के पीछे की झाड़ियों में जाती हूं।" बच्चों के लिए टॉयलेट जाने के लिए या तो झाड़ियां हैं या फिर इसके लिए उन्हें घर तक की लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। अगर उन्हें हाथ धोने के लिए पानी चाहिये, तो भी पानी खुद से निकालना होता है।


स्कूल से करीब आधा किलोमीटर की दूरी पर बने टैंक से हर दिन पानी भरकर लाया जाता है। स्कूल मिड-डे मील रसोइया पूर्णिमा सिंह ने गांव कनेक्शन से शिकायती लहजे में कहा, "हमें दोपहर का भोजन पकाने के लिए पानी लाने के लिए कम से कम चार चक्कर लगाने पड़ते हैं। उस पानी को फिल्टर नहीं किया जाता है। " वह आगे कहती हैं," जिस कमरे में हम खाना बनाते हैं, वो काफी गंदा है और वेंटिलेशन भी नहीं है। वहां ज्यादा देर खड़ा हो पाना असंभव है। "

ओडलचुआ प्राथमिक स्कूल के शिक्षक अनिल कुमार हसदा ने स्कूल की स्थिति पर दुख जताते हुए कहा, "हम पानी की गंभीर समस्या का सामना कर रहे हैं। मिड-डे मील बनाने वाले करीब 200 मीटर की दूरी से पानी लाते हैं। यहां तक ​​कि बच्चों को भी खाना खाने के बाद, पानी पीने और बर्तन धोने के लिए वहां जाना पड़ता है।

हसदा ने गांव कनेक्शन को बताया कि पानी की टंकियां जर्जर अवस्था में हैं। शिक्षकों को भी शौचालय का इस्तेमाल करने के लिए ग्रामीणों की दया पर निर्भर रहना पड़ता था। उन्होंने पूछा, "हम इस हालत में भला कैसे पढ़ा सकते हैं।"

माता-पिता का विरोध

छह साल की हृषिका के पिता बिधान देबनाथ काचा लंका नामक एक रेस्तरां चलाते हैं। उन्होंने ही सोशल मीडिया पर स्कूल की दुर्दशा को उजागर करने में प्रमुख भूमिका निभाई है।

देबनाथ ने गांव कनेक्शन को बताया, "मैं चाहता था कि हृषिका एक गांव के स्कूल में पढ़े ताकि उसे ग्रामीण जीवन के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने का मौका मिले और उसे प्रकृति से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। वह स्कूल जाते हुए रास्ते भर प्रकृति का आनंद लेती है, लेकिन जैसे ही वह स्कूल में कदम रखती है, सब बदल जाता है। मानों एक बुरा सपना उसका इंतजार कर रहा है।"


वह गुस्से में कहते हैं, "मैंने मुख्यमंत्री, गृह सचिव, जिला मजिस्ट्रेट और शिक्षा विभाग के सभी वरिष्ठ अधिकारियों को लिखा है, लेकिन अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है। उन्होंने मेरे पत्र को स्वीकार तक नहीं किया है।" उन्होंने कहा, "क्या मेरे जैसे कामकाजी आदमी के लिए यह संभव है कि जब भी बेटी को नैचर कॉल आए मैं भागकर स्कूल जाऊं और उसकी मदद करूं।"

मामलों को दबाने में लगे सरकारी अधिकारी

सरकारी अधिकारियों ने शौचालय की समस्या को केवल अस्थायी बताते हुए खारिज कर दिया। उनके अनुसार ये समस्या इसलिए हैं क्योंकि स्कूल लंबे समय तक बंद रहने के बाद फिर से खुले हैं।

बेलपहाड़ी में शिक्षा विभाग के शिक्षा बंधु अजय कुमार महता बताते हैं, "यह एक शुष्क क्षेत्र है और भीषण गर्मी में जल स्तर गिर जाता है। यही कारण है कि ट्यूबवेल से गंदा पानी आ रहा है। यहां जलस्तर काफी नीचे हैं।" उन्होंने गांव कनेक्शन को आश्वासन देते हुए कहा, "जब भी शिक्षकों ने सरकारी अधिकारियों से शिकायत की है, उनकी समस्याओं का समाधान किया जाता रहा है। कुछ दिनों में चीजें सुधर जाएंगी। "

हालांकि उनके पास इस बात का कोई जवाब नहीं था कि लॉकडाउन के दौरान इतने लंबे समय तक बंद रहे स्कूलों की मरम्मत क्यों नहीं की गई।

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