जापान की उन्नत तकनीक की मदद से भारत में बढ़ेगा बागवानी फसलों का उत्पादन

केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान एक इनक्यूबेटर केंद्र की तरह काम कर सकता है, जहां जापान द्वारा विकसित प्रौद्योगिकी का उपयोग करके प्रशिक्षु उसे व्यापक स्तर पर व्यवसाय के रूप में तकनीक को आजमा सकते हैं और प्रशिक्षण ले सकते हैं।

Divendra SinghDivendra Singh   31 Jan 2019 8:17 AM GMT

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जापान की उन्नत तकनीक की मदद से भारत में बढ़ेगा बागवानी फसलों का उत्पादन

लखनऊ। जल्द ही भारत में दूषित जल को भी सिंचाई के काम में लाया जा सकेगा, ऐसा हो सकेगा जापान की उन्नत तकनीक के इस्तेमाल से। जापान की ऐसी ही कई तकनीक के इस्तेमाल से बागवानी फसलों का उत्पादन तो बढ़ेगा ही साथ ही साथ ही फलों व सब्जियों की गुणवत्ता को भी सुधारा जा सकता है।

केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, रहमानखेड़ा, लखनऊ में चार सदस्यीय जापानी प्रतिनिमंडल ने भारत और जापान के बीच उद्यमिता विकास को लेकर चर्चा की। इनका मुख्य उद्देश्य जापान और भारत के बीच में स्थापित तकनीक सहयोग संबंधों को और मजबूत करना है।

संस्थान के निदेशक डॉ. शैलेंद्र राजन बताते हैं, "प्रतिनिधि मंडल ने जापान में उपलब्ध कई तरह की नई कृषि प्रौद्योगिकी के बारे में चर्चा की और यह जानना चाहा की इनका भारतीय कृषि इनका क्या महत्व और उपयोग की संभावना है।"

जापान में प्रयोग होने वाली आईमैक तकनीक में पौधों को एक विशेष फिल्म द्वारा पोषक तत्व उपलब्ध कराया जाता है। इस तकनीक द्वारा दूषित जल को भी कृषि उपयोग में लाया जा सकता है। इस पर्यावरण अनुकूल तकनीकी के उपयोग से सीमित खेती योग्य भूमि पर फसलों का उत्पादन किया जा सकता है।

सिंचाई में सेंसर का उपयोग के लिए जापान में कई विकल्प है। कुछ साल पहले तक भारत में ड्रिप सिंचाई तकनीक आम नहीं थी, लेकिन अब दूसरे देशों के सहयोग से देश में अच्छा काम कर रही हैं। जापानी कंपनियां सीआईएसएच की मदद से प्रौद्योगिकियों के प्रदर्शन के लिए समझौता करना चाहती हैं। इससे आने वाले वर्षों में भारत में बागवानी के आधुनिकीकरण में सफलता मिलेगी। इस समझौता करार का मुख्य उद्देश्य युवाओं और स्टार्टअप शुरू करने वालों के संस्थान में तकनीक का सजीव प्रदर्शन करके भारतीय दशाओं में अधिक से अधिक जानकारी प्रदान करना है।


वो आगे कहते हैं, "उन्होंने मृदा रहित खेती की तकनीकी 'आईमैक' के बारे में वैज्ञानिकों को अवगत कराया जिसके उपयोग से कम लागत और बिना खेती योग्य जमीन के पौष्टिक सब्जियों की अधिक उपज ली जा सकती है।

आईमैक तकनीक में पौधों को एक विशेष फिल्म द्वारा पोषक तत्व उपलब्ध कराया जाता है। इस तकनीक द्वारा दूषित जल को भी कृषि उपयोग में लाया जा सकता है। इस पर्यावरण अनुकूल तकनीकी के उपयोग से सीमित खेती योग्य भूमि पर फसलों का उत्पादन किया जा सकता है।

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जापानी प्रतिनिधिमंडल ने माना कि स्टार्टअप के जरिए कई तकनीकी भारत में उपयोगी सिद्ध हो सकती है। इन प्रौद्योगिकियों के उपयोग की सम्भावनाओं बारे में सही निर्णय आपस में विचार विमर्श करके ही लिया जा सकता है। इस प्रयास का मुख्य उद्देश्य भारतीय दशाओं में कम लागत में अधिक सफलता प्राप्त करना है। इसके लिए केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान एक इनक्यूबेटर केंद्र की तरह काम कर सकता है, जहां जापान द्वारा विकसित प्रौद्योगिकी का उपयोग करके प्रशिक्षु उसे व्यापक स्तर पर व्यवसाय के रूप में अपनाने पूर्व तकनीक को आजमा सकते हैं और प्रशिक्षण ले सकते हैं।

इसके साथ ही फलों और सब्जियों में कोल्ड स्टोरेज के प्रयोग कर सकते हैं, इस के लिए जापानी प्रौद्योगिकियों का उपयोग सफलतापूर्वक किया जा सकता है।

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