राशन के लिए रात काली हाथ खाली

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की 'द स्टेट ऑफ फूड सिक्युरिटी एंड न्यूट्रीशन इन द वर्ल्ड' 2018 के रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक भूख सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) में भी भारत का हाल बहुत खराब है। 2018 के रिपोर्ट के अनुसार भारत इस मामले में एक सौ उन्नीस देशों में एक सौ तीन वें नंबर पर है। यह हाल तब है जब भारत में खाद्य उत्पादन सर्वाधिक होता है।

Jigyasa MishraJigyasa Mishra   14 March 2019 6:10 AM GMT

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जिज्ञासा मिश्रा/दया सागर

सतना (मध्य प्रदेश)। रमेश खाना खाकर रात में ही बोरी बिछाकर राशन की दुकान के सामने बैठ गए, ये दुकान अगले दिन सुबह 10 बजे खुलेगी, लेकिन नंबर लगाने के लिए रमेश को रात को ही लाइन में लगना मजबूरी है।

"अब हम रात भर बैठेंगे, जगह मिली तो सो भी जाएंगे। सुबह तक 250 लोग जमा हो जाएंगे। बुजुर्ग और महिलाएं सब लाइन में मिलेंगे," रमेश ने गाँव कनेक्शन को बताया। रमेश की ही तरह उनके दूसरे साथी मध्य प्रदेश के सतना शहर की नई बस्ती में सरकारी राशन की दुकान पर रात को लाइन लगा कर बैठे मिले।

गरीबों को सस्ती दरों पर राशन उपलब्ध कराने के लिए सरकार हर उपाय करती है, लेकिन सार्वजनिक वितरण प्रणाली की खामियों और दुकानदारों की मनमानी से गरीबों ऐसे 12-12 घंटों की लाइन लगानी पड़ती है।

यह हाल तब है जब एमपी के उपभोक्ता, खाद्य व सार्वजनिक वितरण मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य में हर साल करीब 75 लाख टन अनाज सड़ जाता है, जबकि पूरे भारत में यह आंकड़ा बढ़कर नौ करोड़ टन हो जाता है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार खाद्य उत्पादन में भारत विश्व के शीर्ष पांच देशों में एक है।

गाँव कनेक्शन की विशेष सीरीज 'दो दीवाने' के दौरान गाँव कनेक्शन संवाददाता करीब 11.30 बजे सतना की इस सरकारी राशन की दुकान पर पहुंची, तो वहां लोगों की तीन लाइनें पहले से ही लग चुकी थीं। अपनी-अपनी बोरियां, शाल और चादरें रखकर लोगों ने नंबर लगाया लिया था। कुछ लोग तो ऐसे थे कि पिछली तीन रातों से ऐसे ही नंबर लगाने के बाजवूद राशन नहीं मिल पाया था।

लाइन में चद्दर ओढ़ कर बैठे बेनी प्रसाद ने कहा, "रात भर यहीं सोएंगे। सुबह साढ़े नौ-दस बजे दुकान खुलेगी। सुबह राशन मिलेगा भी कि नहीं कुछ नहीं पता, नहीं मिला तो घर वापस खाली हाथ चले जाएंगे। पिछली बार बहुत ही मुश्किल से राशन मिला था। उससे पहले तीन महीने तक कुछ नहीं मिला था। हम सुबह तीन बजे तक बैठेंगे, फिर चले जाएंगे और घर से कोई दूसरा आएगा।"

जानकारी करने पर पता चला कि इस दुकान का लाइसेंस एक महिला ठकुराइन के नाम पर है। जो नियम कायदों को ताक पर रखकर अपनी मर्जी से दुकान चलाती हैं। जबकि दुकान के बाहर बोर्ड भी लगा रखा है कि अपना कीमती टाइम बचाएं और रात में लाइन न लगाएं।

"कई बार शिकायतों के बावजूद कोई सुनवाई नहीं होती। राशन की दुकान केवल एक टाइम खुलती है। दुकान खुलने का टाइम आठ बजे का है लेकिन कभी 10 बजे के पहले नहीं खुलती। उसके बाद छीनाझपटी होती है सो अलग," स्थानीय निवासी पंकज कहते हैं।

उधर इस बारे में जब सतना के जिलाधिकारी सतेन्द्र सिंह से बात की गई तो उन्होंने कहा, "हमने मामले को संज्ञान में लिया है। कोटेदार के खिलाफ पहले भी एक बार शिकायत आ चुकी है। हम एक टीम बनाकर कर राशन की दुकान पर भेजेंगे और स्थिति की जांच करेंगे।"

साल 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र सरकार यह सुनिश्चित करने को कहा था कि अनाज गोदामों में पड़ा-पड़ा सड़ने की बजाय गरीबों और भूखे लोगों तक मुफ्त में पहुंचे। सरकार से ऐसे पुख्ता इंतजाम करने के लिए भी कहा कि गरीबों में अनाज फ्री सप्लाई हो सके।

जानेमाने कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा ने भी ट्वीट पर कहा कोई अचंभित करने वाली बात नहीं है कि राशन की दुकान के बाहर 12 घंटे की लाइन लगाते हैं, ग्लोबल हंगर इंडेक्स (भुखमरी खत्म करने वाले देशों की सूची) में भारत दुनिया के 119 देशों में 103 नंबर पर है।

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की 'द स्टेट ऑफ फूड सिक्युरिटी एंड न्यूट्रीशन इन द वर्ल्ड 2018' के रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक भूख सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) में भी भारत का हाल बहुत खराब है। 2018 के रिपोर्ट के अनुसार भारत इस मामले में एक सौ उन्नीस देशों में एक सौ तीन वें नंबर पर है। यह हाल तब है जब भारत में खाद्य उत्पादन सर्वाधिक होता है।

एक हालिया शोध के अनुसार पीडीएस प्रणालियों में खामियों से सरकारों को नुकसान होता है। पुणे में एक मीडिया संस्थान में प्रोफेसर संजय विस्वाल ने अपने शोध में बताया है कि पीडीएस प्रणाली की खामियों की वजह से ही मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीजेपी की हार हुई है। उन्होंने अपने शोध में यह स्थापित करने की कोशिश है पीडीएस प्रणाली में अभी काफी खामियां हैं और आधार से इसे जोड़ने का भी कोई फायदा नहीं हुआ है। वह इस पूरी प्रणाली का पुनर्मुल्यांकन कर इसे फिर से उचित ढंग से लागू करने की बात करते हैं।

आधार भी साबित हो रहा निराधार

केंद्र सरकार ने राशन प्रणाली में पारदर्शिता लाने के लिए इसको आधार से जोड़ने का निर्णय लिया था लेकिन यह निर्णय भी गरीबों के हक में नहीं जा रहा। अक्टूबर, 2017 में झारखंड के सिमडेगा जिले की एक 11 साल की बच्ची संतोषी की मौत हो गई थी, क्योंकि आधार कार्ड न होने की वजह से उसके घर में राशन नहीं था। नवंबर, 2018 में झारखंड के आसनसोल में भी कालेश्वर सोरेन नाम के एक व्यक्ति की मृत्यु भूखमरी के कारण हो गई थी।

नरेगा सहायता केंद्र के नवंबर, 2018 के एक रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड के आदिवासियों में से करीब 43 प्रतिशत परिवार राशन कार्ड-आधार लिंकिंग की प्रक्रिया से प्रभावित हुए हैं। इन परिवारों को इस वजह से कई बार भूखे सोना पड़ता है। इनमें से 12 प्रतिशत परिवार ऐसे हैं, जिनके पास राशन कार्ड नहीं है या नया राशन कार्ड नहीं जारी हुआ है। इन परिवारों के मुताबिक उनका नया राशन कार्ड इसलिए नहीं जारी हो पाया क्योंकि आधार लिंकिंग में समस्या आ रही थी।

पीडीएस के आधार से जोड़ने की प्रणाली की काफी आलोचना हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि आधार कार्ड का अथेंटिकेशन (प्रमाणीकरण) किसी को राशन पाने के अधिकार से नहीं रोक सकता।

दरअसल छोटे-छोटे गांवों में इंटरनेट की समस्या आती है, जिससे राशन कार्ड आधार से लिंक नहीं हो पाता है। इस वजह से कई बार ग्रामीणों को अपने गांवों से दूर शहरों में आधार लिंक कराने के लिए जाना पड़ता है। जागरूकता में कमी और सूचनाओं के अभाव की वजह से भी कई ग्रामीण राशन कार्ड को आधार से लिंक नहीं करा पाते हैं। इसके अलावा कई बार फिंगरप्रिंट के ऑथेंटिकेशन की समस्या भी आती है।

  

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