गेहूं की सरकारी खरीद के मध्य प्रदेश के दावे को पंजाब ने बताया 'मामूली'

मध्य प्रदेश में इस बार रिकॉर्ड एक 27 लाख 67 हजार 628 मीट्रिक टन गेहूं किसानों से खरीदा गया है। मध्य प्रदेश सरकार की एक विज्ञप्ति में बताया गया था कि इसके विपरीत पंजाब में एक करोड़ 27 लाख 67 हजार 473 मीट्रिक टन गेहूं खरीदा गया।

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wheat procurement, wheat procurement in uttar pradeshउत्तर प्रदेश की मंडियों में एक अप्रैल से 15 जून तक होगी गेहूं की खरीद। (फोटो- इंडियन एक्सप्रेस से साभार)

शिवकुमार विवेक

भोपाल (मध्य प्रदेश)। मध्य प्रदेश सरकार बहुत खुश है। गेहूं के बंपर उत्पादन के बाद इस रबी सीजन में किसानों से सबसे ज्यादा मात्रा में गेहूं खरीदने का रिकॉर्ड बनाने की बधाई सरकारी पक्ष एक दूसरे को दे रहा है। सरकार ने दावा किया है कि गेहूं की सरकारी खरीद में उसने पंजाब को भी पीछे छोड़ दिया है। उत्पादन के मामले में वह पहले ही पंजाब के छह दशक पुराने वर्चस्व को तोड़ चुका है। इधर, पंजाब को पछाड़ने के मध्य प्रदेश सरकार के दावे को पंजाब सरकार ने महत्वहीन बताया है। साथ ही दावा किया है कि मध्य प्रदेश को यह उपलब्धि राज्य में आकर खेती करने वाले पंजाबियों के कारण मिली।

मध्य प्रदेश में इस बार रिकॉर्ड एक 27 लाख 67 हजार 628 मीट्रिक टन गेहूं किसानों से खरीदा गया है। मध्य प्रदेश सरकार की एक विज्ञप्ति में बताया गया था कि इसके विपरीत पंजाब में एक करोड़ 27 लाख 67 हजार 473 मीट्रिक टन गेहूं खरीदा गया। इस तरह मध्य प्रदेश गेहूं उपार्जन में पंजाब से आगे जाकर देश का अव्वल राज्य बन गया। देश में सरकार द्वारा खरीदे गए कुल 386.54 लाख मीट्रिक टन गेहूं में 33% हिस्सेदारी अकेले मध्य प्रदेश की है, जो इतिहास में सबसे ज्यादा है। कृषि के क्षेत्र में मिल रही लगातार बढ़त से शिवराज सिंह सरकार किसान हितैषी होने की अपनी छवि को और पुख्ता कर रही है।

मध्य प्रदेश ने अपने पिछले रिकॉर्ड को भी तोड़ा है। सरकारी स्तर पर पिछले साल 73.69 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदा गया थ। इस बार 74% ज्यादा गेहूं आया है। इस संबंध में पंजाब के कृषि मंत्री कहान सिंह पन्नू की सफाई है कि विपरीत मौसम से गेहूं की फसल खराब हुई और कोविड-19 के दौरान बड़ी तादाद में गेहूं दान किया गया। इसके अलावा लोगों ने बड़ी मात्रा में घरों में भी संग्रह किया है।

उधर, पंजाब के खाद्य और सिविल सप्लाई विभाग की डायरेक्टर आनंदिता मित्रा ने मध्यप्रदेश के दावे को 'मामूली' करार देते हुए कहा कि पंजाब के किसानों ने बड़ी संख्या में मध्यप्रदेश में खेत खरीदे हैं और वे वहां उत्पादन बढ़ाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। उन्हीं की मेहनत का फल है कि मध्य प्रदेश में कृषि की उत्पादकता में बढ़ोतरी हो रही है। मित्रा ने मध्य प्रदेश के आंकड़ों से अलग आंकड़े देते हुए बताया कि मध्यप्रदेश में जहां 127.65 लाख मीट्रिक टन गेहूं उपार्जित किया गया है वहीं पंजाब में 127.67 लाख मीट्रिक टन गेहूं सरकार ने खरीदा है।

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इस तरह उनकी मानें तो पंजाब ही गेहूं उपार्जन में आगे है। उन्होंने कहा कि वैसे पंजाब से मध्य प्रदेश की तुलना नहीं है।

मध्य प्रदेश में 172.52 हेक्टेयर में गेहूं की खेती की जाती है जो पंजाब से 4 गुना ज्यादा है, हालांकि पंजाब में एक हेक्टेयर जमीन में 5 टन (50 कुंतल) गेहूं होता है जबकि मध्य प्रदेश इतने ही क्षेत्रफल में 3 टन (30 कुंतल) गेहूं पैदा होता है। बता दें कि गेहूं उत्पादन में भारत में उत्तर प्रदेश सबसे आगे है, जिसके बाद पंजाब और फिर मध्य प्रदेश का नंबर आता है, हालांकि 2014-15 से मध्य प्रदेश गेहूं उत्पादन के मामले में छह दशक से राज कर रहे पंजाब का वर्चस्व तोड़ चुका है।

2010-11 तक जो पंजाब और हरियाणा केंद्रीय पूल में 73% से ज्यादा योगदान करते थे, वह घटकर 54% हो गया और मध्य प्रदेश का योगदान 15.71 से बढ़कर 33.98% तक पहुंच गया है। इस संबंध में पूछे जाने पर मध्य प्रदेश सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न लेने की शर्त पर कहा कि यह पंजाब का बचकानापन है। प्रदेश में पंजाब व हरियाणा से आए किसानों ने मध्यप्रदेश के कई जिलों में खेती की जमीन खरीदी है लेकिन उनका प्रतिशत एक भी नहीं है। गेहूं की बंपर फसल उत्पादन के पीछे प्रदेश की काली मिट्टी, पिछले साल हुई अच्छी बरसात, राज्य सरकार की किसान प्रोत्साहक नीतियां और यहां के धरती पुत्रों का परिश्रम जिम्मेदार है। जहां तक उपार्जन का प्रश्न है तो मध्य प्रदेश के 4 जिलों में यह काम अभी भी चल रहा है जबकि पंजाब 31 मई को गेहूं उपार्जन का काम बंद कर चुका है।

मध्य प्रदेश के गेहूं की धाक पंजाब तक

राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि पंजाब गेहूं उत्पादन के मामले में भले ही अग्रणी राज्य हो लेकिन मध्य प्रदेश की गेहूं की धाक पंजाब और हरियाणा तक है। वहां की मंडियों में मध्य प्रदेश के गेहूं के नाम से अलग स्टाल लगती हैं। इसकी वजह यह है कि मध्य प्रदेश का गेहूं, खासतौर पर शरबती काली मिट्टी में बिना रासायनिक उर्वरक के अच्छी पैदावार देता है जबकि पंजाब के गेहूं में उर्वरक का उपयोग बहुत होता है। 2015 -16 के आंकड़ों को देखें तो उत्तर प्रदेश के बाद सबसे ज्यादा उर्वरक का इस्तेमाल करने वाला राज्य पंजाब था, जहां प्रति हेक्टेयर 243 किलोग्राम उर्वरक का उपयोग हो रहा था।

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उत्तर प्रदेश का क्षेत्रफल ज्यादा है। इस लिहाज से पंजाब में उर्वरक के उपयोग का अतिरेक हो रहा है। यही वजह है कि वहां की खेती भी खराब हुई है और खाद्यान्न में स्वाद गायब हो गया है। जिसकी तुलना में मध्य प्रदेश 86 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उर्वरक का ही उपयोग कर रहा है। यहां नर्मदा के कछार में उर्वरक के इस्तेमाल के बिना ही अच्छी किस्म का गेहूँ होता है। यह गेहूं स्वादिष्ट है और इससे सफेद रोटियां बनती हैं।

प्रदेश में इस वर्ष मानसून मेहरबान रहा है इसलिए गेहूं के बंपर उत्पादन का अनुमान पूर्व से ही था। प्रदेश में पिछले वर्ष 1348.3 मिलीमीटर बारिश हुई थी जो औसत से 45% अधिक है। गेहूं का रकबा भी 70 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 101 लाख हेक्टेयर हो गया। अधिक उत्पादन के मद्देनजर सरकार ने वेयरहाउस और साइलो की संख्या में इजाफा किया था। इसके अलावा गोदामों पर ही खरीद करने से खुले में गेहूं के खराब होने की समस्या पर काफी हद तक काबू पाया गया है।

कृषि मंत्री ने कहा-18 हजार करोड़ रुपए किसानों के खाते में गए

इस वर्ष अधिक उपार्जन के पीछे लॉकडाउन को भी एक कारण माना जा रहा है जिसके कारण व्यापारी खुली खरीद नहीं कर पाए। सरकार का अधिक समर्थन मूल्य भी किसानों को गेहूं सरकार को सौंपने के लिए प्रेरित करता है। मध्य प्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल का दावा है कि सरकार द्वारा खरीदे गए गेहूं का 90% सुरक्षित गोदामों में रख दिया गया है। उन्होंने इस प्रतिनिधि को बताया कि राज्य सरकार ने 100 मीट्रिक टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा था। इसके लिए सबसे पहले छोटे और गरीब किसानों को एसएमएस करके बुलाया गया जिसके बाद बड़े किसानों से खरीद की गई। उन्होंने स्वीकार किया कि आखिरी दौर में अन्य स्तर की गड़बड़ी के कारण कुछ जगह लंबी लाइनें लगीं। पटेल के अनुसार किसानों के खाते में 18 हजार करोड़ रुपए डाले जा चुके हैं। पटेल का कहना है- पिछले साल कमलनाथ सरकार केवल 63 लाख मीट्रिक टन गेहूं ही खरीद सकी थी।

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