पंजाब के साथ देश के चार राज्यों में ग्लायफोसेट की बिक्री पर रोक
इससे पहले आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र के यवतमाल और तेलंगाना में भी ग्लायफोसेट की बिक्री पर रोक लग चुकी है।
Ranvijay Singh 25 Oct 2018 12:42 PM GMT
लखनऊ। पंजाब सरकार ने कैंसर जैसे घातक रोग के लिए जिम्मेदार माने जाने वाले रसायन 'ग्लायफोसेट' की बिक्री पर रोक लगा दी है। इससे पहले आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र के यवतमाल और तेलंगाना में भी ग्लायफोसेट की बिक्री पर रोक लग चुकी है। खरपतवारनाशी इस रसायन से होने वाले नुकसान के बारे में लगातार ख़बरें आती रही हैं।
पंजाब के कृषि विभाग में डिप्टी डायरेक्टर सुखदेव सिंह बताते हैं, ''भारत सरकार के केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड और पंजीकरण समिति (सीआईबी एडं आरसी) ने इस रसायन का इस्तेमाल केवल चाय बगानों और गैर फसलीय क्षेत्रों में करने की बात की है। पंजाब में चाय के बगान नहीं हैं और यहां गैर फसलीय क्षेत्र भी ना के बराबर है। ऐसे में पंजाब में इस रसायन की बिक्री की कोई आवश्यकता नहीं है।''
सुखदेव सिंह कहते हैं, ''कृषि विभाग की पिछली दो मीटिंग्स में ग्लायफोसेट से कैंसर होने की बात सामने आई थी। चंडीगढ़ के पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च के डॉक्टर्स ने भी इससे कैंसर होने की बात कही है। ऐसे में इसकी बिक्री पर रोक का फैसला लिया गया।''
पंजाब में ग्लायफोसेट की ब्रिकी पर रोक के पीछे राज्य में बढ़ते कैंसर के मामलों को भी बताया जा रहा है। पंजाब में कैंसर के बढ़ते मामले बड़ी चिंता का विषय हैं। 2015 में पंजाब सरकार के सर्वे के अनुसार, प्रदेश की एक लाख की आबादी में से लगभग 90 लोगों को कैंसर है। पंजाब के मालवा बेल्ट में ये स्थिति और खतरनाक हो जाती है। मालवा के मुक्तसर जिले में एक लाख की आबादी में से 136 लोगों को कैंसर होता है। फरीदकोट, भटिंडा और फिरोजपुर जिले भी इस आंकड़े के आसा पास ही हैं। पंजाब में बढ़ते कैंसर के मामलों को लेकर अलग-अलग रिसर्च हुए हैं, जिनमें रासायनिक खेती, अत्यधिक शराब का सेवन, पीने के पानी में फ्लोराइड, वायु प्रदूषण जैसे कारकों को जिम्मेदार माना जाता है, लेकिन लोगों के बीच में रासायनिक खेती से कैंसर की बात ज्यादा व्याप्त है।
ग्लायफोसेट की ब्रिकी पर रोक के फैसले पर पंजाब के गांव चक अमृतसरिया के किसान दलजीत सिंह कहते हैं, ''हमने सुना है कि ग्लायफोसेट से कैंसर होता है। अच्छा है सरकार इसके खिलाफ कड़े कदम उठा रही है। किसान सबकी सेहत का ख्याल रखता है, लेकिन उसकी सेहत का कोई ख्याल नहीं रखता। पंजाब सरकार का ये फैसला स्वागत योग्य है।'' वहीं, ममदोट गांव के मेजर सिंह कहते हैं, ''सरकार ने ग्लायफोसेट की बिक्री पर रोक लगाकर अच्छा किया। हालांकि, खरपतवार को लेकर हमें थोड़ी परेशानी होगी, लेकिन स्वास्थ से बढ़कर कुछ नहीं है।''
बता दें, ग्लायफोसेट का इस्तेमाल खेतों से खरपतवार और जंगली घास को नष्ट करने के लिए किया जाता है। इसे मॉनसेंटो नाम की कंपनी बनाती है। यह कंपनी अपने कई प्रोडक्ट को लेकर पहले भी विवादों में घिर चुकी है। ग्लायफोसेट को भारत में राउंडअप, एक्सेल, ग्लाइसेल, ग्लाइफोजेन आदि नामों से बेच जाता है। पहले इस रसायन का इस्तेमाल चाय के बगानों को साफ करने में किया जाता था। वहां से निकलकर ये दूसरे किसानों तक पहुंच गया। अब हाल ये है कि किसान इसका इस्तेमाल बहुत ज्यादा कर रहे हैं। महाराष्ट्र के यवतमाल में कपास के किसान इसका खूब इस्तेमाल करते हैं। पिछले साल यवतमाल में ग्लायफोसेट और अन्या पेस्टीसाइड के छिड़काव से 22 किसानों के मारे जाने की खबर भी आई थी। इसके बाद यवतमाल में इसकी बिक्री पर रोक लगा दी गई।
हालांकि इन तमाम खबरों के बावजूद देश के कई राज्यों में ग्लायफोसेट का इस्तेमाल हो रहा है। इसपर किसान स्वराज (आशा) की सदस्य कविथा कुरुगंति ने गांव कनेक्शन ने कहा था, ''ग्लायफोसेट पर कई राज्यों में रोक है, लेकिन भारत में पेस्टीसाइड के लिए बना कानून राज्यों को इस बात का अधिकार नहीं देता कि वो इसपर पूरी तरह से बैन लगा सकें। राज्य सरकार पेस्टीसाइड के नुकसाना देख पा रही है, लेकिन कानून उन्हें कदम उठाने से रोक देता है।'' कविथा कहती हैं, ''केंद्र सरकार पर भी पेस्टीसाइड लॉबी का बहुत दबाव है। इस कारण वो इनके रोक के प्रति कदम नहीं उठा पा रहे। उनका अभी भी मानना है कि पेस्टीसाइड के बगैर भुखमरी के हालात हो जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं है। कीटनाशक से कितना नुकसान हो रहा है इसे आप नकार नहीं सकते हैं। साथ ही ऑर्गेनिक खेती से भी कितनी अच्छी फसल हो रही है इसे भी नकारा नहीं जा सकता। केंद्र सरकार को अपनी धारणा को बदलने की जरूरत है।''
सिर्फ देश ही नहीं ग्लायफोसेट को लेकर विदेशों में भी कई मामले सामने आए हैं। पिछले दिनों ही अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में राउंडअप बनाने वाली कंपनी मोनसेंटो पर 29 करोड़ का जुर्माना लगाया गया था। एक स्कूल के माली ने अपने कैंसर के लिए राउंडअप को जिम्मेदार ठहराते हुए कोर्ट में याचिका डाली थी। इसके अलावा श्रीलंका में इसे 2014 से लेकर 2018 तक बैन किया गया। वहां के धान के किसान इसकी चपेट में आए थे। इसके अलावा विश्व के कई देशों में इसे बैन करने की मांग उठती रही है। फ्रांस के मोलिक्यूलर बायोलॉजिस्ट Gilles-Eric Seralini ने अपने अध्ययन में इस रसायन को तुरंत बैन करने की मांग भी की है। उनके मुताबिक, ये रसायन मानव स्वास्थ्य के लिए सही नहीं है, लेकिन मोनसेंटे लगातार ऐसे आरोपों से इनकार करती रही है।
12 कीटनाशकों पर केंद्र सरकार ने लगाया था बैन
इससे पहले अगस्त 2018 में केंद्र सरकार ने बेनोमिल, फेनारिमोल, कार्बाराइल, मिथॉक्सी एथाइल मरकरी क्लोराइड, थियोमेटॉन समेत 12 कीटनाशकों पर तुरंत प्रतिबंध लगा दिया था। भारत में अब इनकी बिक्री, निर्माण और आयात-निर्यात नहीं होगा। इसके अलावा छह दूसरे कीटनाशकों ट्रायाजोफस, ट्राइक्लोरोफोन, एलाचलोर, डिचलोरवस, फोरेट, फोस्फामिडॉन को 31 दिसंबर 2020 के बाद प्रतिबंधित कर दिया गया। ये कीटनाशक खाने और जमीन के साथ सतही और भूगर्भ जल को दूषित कर रहे थे। पशु-पक्षियों पर इसके घातक परिणाम दिख रहे थे।
गौरतलब है कि भारत में 100 से ज्यादा ऐसे कीटनाशक बिक रहे हैं, जो दूसरे एक या एक से ज्यादा देशों में प्रतिबंधित हैं। भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा कीटनाशक उत्पादक देश है। विश्व भर में प्रति वर्ष लगभग 20 लाख टन कीटनाशक का उपयोग किया जाता है। टॉक्सिक लिंक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 108 टन सब्जियों को बचाने के लिए 6000 टन कीटनाशक का प्रयोग किया जाता है। जबकि कुल कीटनाशकों में से करीब 60 फीसदी का उपयोग कपास में होता।
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