ओडिशा का अनोखा पर्व राजा परबा, जिसमें मासिक धर्म के दौरान की जाती है धरती माँ की पूजा
चार दिवसीय राजा परबा उत्सव के दौरान, यह माना जाता है कि भू-देवी (धरती माता) को मासिक धर्म आता है, और वह भविष्य की कृषि गतिविधियों के लिए खुद को तैयार करती हैं, जिसकी वजह से सभी कृषि गतिविधियां जैसे मिट्टी की खुदाई और खेत की जुताई बंद हो जाती हैं। इस पर्व में महिलाओं खास कर कुंवारी लड़कियों का अहम स्थान होता है।
Ashis Senapati 15 Jun 2022 9:58 AM GMT

महिलाएं, खास तौर पर कुंवारी लड़कियों का इस पर्व में अहम स्थान है, क्योंकि हर महिला की तुलना भू-देवी से की जाती है। फोटो में, उत्सव के उपलक्ष्य में सुदर्शन पटनायक की रेत कला।
कोविड की वजह से दो साल के रुकावट के बाद, चार दिवसीय राजा परबा उत्सव ओडिशा में एक बार फिर शुरू हो गया है, इस अनोखे त्योहार का हिस्सा बन कर लोग खुशी मना रहे हैं। जो भू-देवी (धरती माता) को उसके मासिक धर्म के दौरान कुछ दिनों के लिए आराम देकर मनाते हैं।
पूरे राज्य में हर्ष व उल्लास के साथ आषाढ़ के महीने में 14 जून को इस त्योहार का आगाज हो गया है।
राजा संस्कृत का शब्द है जो राजसवाला शब्द से बना है, जिसका मतलब होता है मासिक धर्म वाली महिला। कोविड महामारी की वजह से पिछले दोनों साल में इस उत्सव को रद्द कर दिया गया था।
#RajaParba: Celebrate womanhood, enjoy the swings, relish mouth watering pithas & savour the #RajaPaan. We wish you a happy #Raja.#OdishaTourism
— Odisha Tourism (@odisha_tourism) June 14, 2021
NOTE: The video footage is of pre-Covid days. Plz adhere to all the guidelines and #StaySafe. pic.twitter.com/qWuy13jQAJ
राजा परबा के पहले दिन को पहिली राजा, दूसरे दिन को राजा संक्रांति और तीसरे दिन को भूमि दहन या बासी राजा कहा जाता है। चौथे दिन को वसुमती स्नान या भू-देवी का औपचारिक स्नान कहा जाता है।
चार दिवसीय राजा परबा उत्सव के दौरान, यह माना जाता है कि भू-देवी (धरती माता) मासिक धर्म आता है, और वह भविष्य की कृषि गतिविधियों के लिए खुद को तैयार करती हैं, जिसकी वजह से सभी कृषि गतिविधियां जैसे मिट्टी की खुदाई और खेत की जुताई बंद हो जाती है। स्थानीय लोगों का मानना है कि इस पर्व के बाद पृथ्वी और भी उपजाऊ हो जाती है।
बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर अपने परिवार और साथी ग्रामीणों के साथ राजा उत्सव मनाने के लिए अपने गाँव लौटते हैं। फोटो: Photos by- Akshya Rout
राजा परबा दुनिया का एक अनूठा त्योहार है जो मासिक धर्म और नारीत्व का सम्मान करता है।
राज्य के एक सामाजिक कार्यकर्ता डॉली दास ने गाँव कनेक्शन को बताया, "मासिक धर्म को श्रद्धांजलि देने के अलावा, यह त्योहार मानसून की शुरुआत का भी प्रतीक है, जो किसानों के चेहरे पर खुशी लाता है।" उन्होंने कहा, "राजा परबा दर्शाता है कि मासिक धर्म वर्जित नहीं है, बल्कि प्रजनन क्षमता और उत्सव का प्रतीक है।"
राजा परबा में महिलाओं का अहम स्थान
महिलाएं, खास तोर पर कुंवारी लड़कियों का इस पर्व में अहम स्थान है, क्योंकि हर महिला की तुलना भू-देवी से की जाती है।
राजा परबा के चार दिनों के दौरान, महिलाओं और लड़कियों को काम से आराम दिया जाता है वे नई सारी पहनती हैं और अपने हाथों और पैरों पर आलता (लाल रंग) लगाती हैं साथ में गहने भी पहनती हैं। वे इन दिनों को खुशी के साथ रीति रिवाजों का पालन करते हुए बिताते हैं, जैसे केवल कच्चा और पौष्टिक भोजन, खास तौर पर पोड़ा पीठा (चावल, काले चने, नारियल और गुड़ का इस्तेमाल करके धीमी आंच से पकाया जाता है)। वे नंगे पैर नहीं चलती हैं और भविष्य में स्वस्थ बच्चों को जन्म देने का संकल्प लेते हैं।
राजा परबा दुनिया का एक अनूठा त्योहार है जो मासिक धर्म और नारीत्व का सम्मान करता है। फोटो: विकीपीडिया कामंस
गाँवों में राजा उत्सव का जश्न
राजा उत्सव का सबसे जीवंत और दिलकश नजारा बरगद बड़े बड़े पेड़ों पर पड़े होए रस्सी के झूले और बजते हुए लोक गीत हैं। ओडिशा साहित्य अकादमी के एक शोधकर्ता और सदस्य वासुदेव दास ने बताया "सभी तरह के कृषि के कार्य रोक दिए गए हैं, त्योहार के दिनों में कई गावों में ताश, पासा, लूडो, खो-खो और कबड्डी के खेलों का आयोजन होता है।"
केंद्रपाड़ा जिले के श्यामसुंदरपुर गांव के महेंद्र परिदा ने बताया, "हमने राजा उत्सव मनाने के लिए तीन दिवसीय कबड्डी मैच का आयोजन किया।"
बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर अपने परिवार और साथी ग्रामीणों के साथ राजा उत्सव मनाने के लिए अपने गाँव लौटते हैं। राजनगर गांव के जगन्नाथ प्रधान ने गांव कनेक्शन को बताया,"मैं कोरोना की वजह से पिछले दो सालों से राजा उत्सव से चूक गया। मैं परिवार के सदस्यों और अन्य लोगों के साथ त्योहार मनाने के लिए पिछले हफ्ते अपने गांव राजनगर आया हूं।"
अनुवाद: मोहम्मद अब्दुल्ला सिद्दीकी
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