सरकारी स्कूल की रसोइया बोलीं- एक हज़ार रुपए महीने में क्या होता है!

एक तरफ़ आंगनबाड़ी और आशा कार्यकत्रियों के मासिक आय में हज़ार से दो हज़ार तक की बढ़ोत्तरी की गयी है वहीँ विद्यालयों में काम करने वाली रसोइया अभी भी 1200 रुपये प्रति माह पर काम कर रही हैं।

Jigyasa MishraJigyasa Mishra   26 Sep 2018 2:26 PM GMT

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गुलालपुर (मिर्ज़ापुर)। विद्यालय की दूसरी घंटी बज चुकी है और इधर संजू चूल्हे पर तवा चढाने की तैयारी में है। "सब्ज़ी बन गयी होगी अब तवा चढ़ाओ, बच्चे खाने की राह देख रहे होंगे। पैसा मिले न मिले, बच्चों का पेट तो भरना ही है," मंजू अपनी साथियों से कहती है।


संजू के पति की तीन वर्ष पहले एक सड़क हादसे में मौत हो गयी थी, तब से तीनों बच्चों की ज़िम्मेदारी निभाने के लिए संजू ने एक प्राथमिक विद्यालय में रसोइया का काम शुरू किया। "हमारे दो बेटे और दो बेटियां हैं और सब छोटे-छोटे हैं अभी। पति दिल्ली में काम करते थे पर कुछ साल पहले उनकी वहीँ एक्सीडेंट में मौत हो गयी इसलिए हम काम करते हैं अब काम नहीं करेंगे तो बच्चों को क्या खिलाएंगे," मंजू मिड-डे-मील के लिए रोटी बेलते हुए बताती है। "छः बजे सुबह आ जाते हैं। इतना बड़ा परिवार है, एक हज़ार में कहाँ सब-कुछ होता है, कैसे पेट पलेगा सबका, बताइये!"

मिर्ज़ापुर में स्थित प्राथमिक विद्यालय हर्दी गुलालपुर में कुल 247 विद्यार्थी पढ़ते हैं जिनका खाना बनाने के लिए चार रसोईया सुबह छः बजे से दोपहर एक बजे तक काम करती हैं। यह कोई अकेला विद्यालय नहीं है जहाँ हज़ार रुपये की मामूली वेतनमाह में महिलाएं मेहनत करती हैं, सभी विद्यालयों में यही हाल है। प्राथमिक विद्यालय हर्दी गुलालपुर मिर्ज़ापुर के मड़िहान ब्लॉक में स्थित है।

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जहाँ एक तरफ़ आंगनबाड़ी और आशा कार्यकत्रीयों के मासिक आय में हज़ार से दो हज़ार तक की बढ़ोत्तरी की गयी है वहीँ विद्यालयों में काम करने वाली रसोइया अभी भी 1200 रुपये प्रति माह पर काम कर रही हैं।

मुन्नी देवी के भी पति का देहांत हो चुका है और दोनों बच्चों की ज़िम्मेदारी अब मुन्नी निभाती है। मुन्नी बताती है, "जब से स्कूल लगता है, उसके पहले ही, सुबह छः बजे से आ जाते हैं और जब छुट्टी होती है तभी जाते हैं। पति नहीं हैं हमारे, एक बेटा है, वो भी बीमार है और बेटी तो बस 14 साल की है तो वो क्या कमाएगी। एक हज़ार रुपये मिलते हैं महीने के वो कभी भी समय पर नहीं मिलते। जब चार-छः महीने बीत जाते है तब मिलते हैं हमें पैसे।"

"100 रुपये दिन का तो कमा ही लेंगे लेकिन सारा दिन यहीं (स्कूल में) निकल जाता है, 2 बजे तो घर ही पहुंचते हैं," वो आगे बताती है।


"ये लोग तो हमसे पहले ही विद्यालय पहुंच जाती हैं सुबह और छुट्टी होने तक काम करती हैं। बच्चों के लिए खाना बनाने से लेकर उनकी साफ़-सफाई तक का ख्याल यही लोग रखती हैं। उस हिसाब से हज़ार रुपये क्या होते हैं महीने भर के? वो भी कभी वक़्त से नहीं मिलते," विद्यालय के प्रधानध्यापक कुलदीप मिश्रा बताते हैं।

चित्रकूट जिले के मानिकपुर क्षेत्र में स्थित प्राथमिक विद्यालय, ब्यूर वाली 50 वर्षीय रसोइया, गुड्डन देवी कहती हैं, "आंगनबाड़ी वालों का तो मानदेय बढ़ा दिए हैं, किस से पता लगा लगाएं कि हमारे पैसे कब बढ़ेंगे?"

लखनऊ के महमूदपुर में बतौर रसोइया काम करने वाली सुनीता भी इस बात से नाराज़ है कि सरकार ने अभी तक रसोइयों के मानदेय में कोई बढ़ोत्तरी नहीं की है। "इससे ज़्यादा तो खेत में काम करके मिल जाता है पर यहाँ हमारी मेहनत नहीं दिखती सरकार को। अगर आशा और आंगनबाड़ी का बढ़ा है तो हमारा भी कुछ तो बढ़ा ही देते," वो कहती है।

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शिवकुमारी के बेटे-बहु शादी कर के अलग रहने लगे हैं और शिवकुमारी अपने पति के साथ रहती हैं। शिवकुमारी के पति पेट की तकलीफ़ के वजह से कोई काम करने नहीं जा पाते हैं बस घर में पले पशुओं को चरवाही के लिए ले जाते हैं। "बेटे की शादी हो गयी है वो दोनों अलग हो गए। अब हम बस बूढ़ा-बूढ़ी हैं हज़ार रुपये में काम चला रहे है, कैसे भी जीवन चला रहे हैं," वो बताती हैं।


विगत वर्षों में हुए प्रदर्शन और मांगों के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में देशभर की आशा कर्मियों और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से बात कर उनके मानदेय में वृद्धि की है। आशा कर्मियों की प्रोत्साहन राशि बढ़ाकर लगभग दोगुना करने तथा आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय 3000 रूपये से बढ़ा कर 4500 रूपये कर दी गयी है।

              

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