अपनी बीमारी को ही बनाया ताकत, इनकी कहानी पढ़कर आप में भी जगेगी हिम्मत

Astha SinghAstha Singh   9 Nov 2017 6:41 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
अपनी बीमारी को ही बनाया ताकत, इनकी कहानी पढ़कर आप में भी जगेगी हिम्मतज्योति अरोड़ा।

लखनऊ। वह एक उपन्यासकार हैं, उन्हें किताबों से बेहद प्यार है, इसके अलावा वह एक ब्लॉगर हैं, तकनीक के क्षेत्र की अच्छी जानकार हैं और उन्हें अपने महिला होने पर गर्व है। थैलेसीमिया वह बीमारी है जिसमें व्यक्ति का रक्त ही उसके लिए जीवन भर का नासूर बन जाता है । पर इस खतरनाक बीमारी को चुनौती दी है 37 वर्षीय ज्योति अरोड़ा ने। उन्होंने अपनी इस बीमारी को ही ताकत बना ली है । वह एमए इंग्लिश, इंग्लिश ऑनर्स, एमए ऑनर्स कर चुकी हैं । इतना ही नहीं उसका अंग्रेजी में एक नॉवल भी प्रकाशित हो चुका है, जिस पर एक फिल्म बनाने की बातचीत भी चल रही है।

गाजियाबाद की रहने वाली ज्योति अरोड़ा का जन्म 8 मई 1977 को हुआ था । इसी दिन दुनियाभर में थैलेसीमिया डे मनाया जाता है । उन्होंने अपनी इस जानलेवा बीमारी के सामने घुटने नहीं टेके बल्कि अपने सपनों को सच बनाने के लिये इसे एक हथियार की तरह प्रयोग किया और आज वे एक ऐसे मुकाम पर खड़ी हैं जहां पहुंचना किसी के लिए भी एक सपने सरीखा हो सकता है ।

ये भी पढ़ें-जानें हैदराबाद की सड़कों पर बेसहारा लोगों को कौन और क्यूँ कोई नई जिंदगी दे रहा है

परिवार का प्रोत्साहन हमेशा मिला

ज्योति ने गाँव कनेक्शन से बातचीत के दौरान बताया कि," उनके पिता एनटीपीसी में अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हो चुके हैं और माता एक गृहिणी हैं । माता-पिता को मेरे पैदा होने के तीन महीने बाद ही बीमारी का पता चल गया था। पर उन्होंने हार न मानने का जज्बा दिखाते हुए मुझे सामान्य बच्चों की ही तरह पालने-पोसने का फैसला किया। हालांकि मैं इस बीमारी के चलते अधिक समय तक स्कूल नहीं जा सकी और सातवीं कक्षा के बाद मुझे स्कूल को अलविदा कहना पड़ा।"

हार न मानकर पढ़ाई पूरी की

वह आगे बताती हैं, "इसके बाद भी मैंने हार नहीं मानी और पत्राचार के माध्यम से अपनी पढ़ाई जारी रखी। बीते कई वर्षों से मुझे हर 15 से 20 दिनों के अंतराल में ब्लड ट्रास्फ्यूज़न से गुजरना पड़ता है। लगातार होने वाली इस क्रिया के फलस्वरूप मेरे शरीर में जमा होने वाले अत्याधिक लौहतत्व से छुटकारा पाने के लिए मुझे सप्ताह में चार से पांच बार एक इंजेक्शन को रातभर अपने शरीर में लगाना पड़ता है जो काफी दर्दनाक प्रक्रिया है।"

हालांकि ज्योति सामने आई इन चुनौतियों से विचलित नहीं हुई और उन्होंने अपनी इच्छाशक्ति के बल पर पत्राचार के माध्यम से अंग्रेजी साहित्य और मनोविज्ञान में एमए किया। इसके अलावा इन्होंने यूके से क्रियेटिव राईटिंग का एक कोर्स भी किया।

ये भी पढ़ें-150 से ज़्यादा मनचलों को जेल करा चुका है ये युवक

लिखने के प्रति दिलचस्पी कैसे बढ़ी

इसके बाद ज्योति ने बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाना शुरू किया और इसके अलावा कुछ पत्रिकाओं के लिए लेख भी लिखने लगीं। ज्योति बताती हैं, ‘‘बच्चों को कुछ समय तक पढ़ाने के बाद मैंने कुछ वर्षों तक एक फ्रीलांस लेखक और कंटेंट डेवलपर के रूप में काम किया। उस दौरान मैंने छोटे बच्चों के लिए बिल्कुल प्रारंभिक स्तर की पुस्तकों को लिखने से लेकर बॉलीवुड और अध्यात्म आधारित नॉन -फिक्शन पुस्तकों का पुर्नलेखन किया। इसी दौरान मैं पुराने उत्कृष्ट अंग्रेजी साहित्य के संपेक्षण के काम में भी लगी हुई थी। इस दौरान मैं 30 से भी अधिक किताबों का संक्षिप्तीकरण करने में सफल रही।’’

नौकरी से पहली नॉवेल लिखने तक का सफ़र

ज्योति बताती हैं , "मुझे प्रारंभ से ही किताबों से प्यार था और किताबें पढ़ना बेहद अच्छा लगता था। मेरा सपना था कि मैं भी एक दिन एक किताब लिखूंगी और दूसरे मेरी किताबों का आनंद लेंगे।"

मेनका गाँधी को अपनी नॉवेल भेंट करती हुई ज्योति।

थोड़े समय तक बच्चों को पढ़ाने के बाद उन्होंने अमेरिका स्थित एक रिक्रूटमेंट कंपनी के साथ काम करना प्रारंभ कर दिया, लेकिन उसके पालकों ने न तो कंपनी के अमेरिकी ऑफिस और न बेंगलुरु में ज्वाइन करने दिया । वह गाज़ियाबाद के अपने गृहनगर में ही बनी रहीं और कंपनी ने उसे अपने घर से काम करने की अनुमति दे दी।

हालांकि थैलेसीमिया के साथ उनका संघर्ष चलता रहा लेकिन उन्होंने अपने भीतर के लेखक को जिंदा रखा और आखिरकार वर्ष 2011 आते-आते वे अपना पहला अंग्रेजी उपन्यास "ड्रीम्स सेक" पाठकों के सामने लाने में सफल रहीं। उनका यह उपन्यास विभिन्न शारीरिक निशक्तताओं से जूझ रहे लोगों के जीवन में आने वाली असुरक्षा की भावनाओं और उनके कटु अनुभवों पर आधारित है ।

ये भी पढ़ें-मिलिए भारत के पहले दिव्यांग डीजे वरुण खुल्लर से...इनकी कहानी सुनकर आप भी कहेंगे वाह !

निर्भया कांड देख मिली दूसरी नॉवेल लिखने की प्रेरणा

इसके कुछ वर्षों के बाद दिल्ली में हुए निर्भया बलात्कार कांड ने उन्हें भीतर तक झकझोर दिया और उन्हें दूसरा उपन्यास लिखने की प्रेरणा मिली। ज्योति बताती हैं, ‘‘मैं दिल्ली गैंगरेप के बारे में सुनकर भीतर तक हिल गई थी और मैं दिल्ली में हो रहे विरोध प्रदर्शनों का हिस्सा बनना चाहती थी, लेकिन अपने स्वास्थ्य को देखते हुए मेरे लिए ऐसा करना संभव नहीं था। ऐसे में मैंने एक बलात्कार पीडि़ता की दुर्दशा और उसके जीवन में आने वाले उतार-चढ़ाव पर केंद्रित अपने दूसरे उपन्यास लेमन गर्ल को लिखा और स्वयं ही प्रकाशित किया।’’

खुद का एक ब्लॉग भी चलाती हैं

हालांकि किताबें पढ़ना और लेखन करना उनके जीवन का पहला प्यार है लेकिन वह तकनीक और प्रौद्योगिकी के प्रति भी उतनी ही मुग्ध होती हैं। उनका अपना "टेक्नोट्रीटस" के नाम से ब्लॉग है , जिसमें वे विभिन्न मोबाइल फोन और अन्य तकनीकी उपकरणों के बारे में अपनी समीक्षा लिखने के अलावा कई वेबसाइटों की भी समीक्षा करती हैं। इन बीते वर्षों के दौरान वे स्वयं को मानसिक रूप से इतना मजबूत बना चुकी हैं कि अब उन्हें अपने सामने आने वाली चुनौतियां और जटिलताएं काफी मामूली लगती हैं।

सैमसंग मोबाइलर ऑफ द ईयर भी बनी ज्योति।

वर्ष 2011 में ज्योति को अपने इस ब्लॉग पर लिखी गई समीक्षा के चलते सैमसंग मोबाइलर ऑफ द ईयर चुना गया। इस पुरस्कार के लिए उन्हें देशभर से चुने गए 20 ब्लागरों में से चुना गया। वे इस ब्लॉगिंग प्रतियोगिता में भाग लेने वाली इकलौती महिला प्रतियोगी थीं। इसके अलावा सिर्फ वही एक ऐसी प्रतियोगी थीं जिसने विज्ञान की पढ़ाई न करते हुए साहित्य में डिग्री हासिल की थी। ज्योति बताती हैं, ‘‘इसके अलावा मुझे अपनी रिक्रूटमेंट कंपनी की ओर से वर्ष 2014 के सर्वश्रेष्ठ कर्मचारी के पुरस्कार से भी नवाजा गया है। साथ ही मुझे कुछ समय पूर्व दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने भी मेरे काम को काफी सराहा और उन्होंने मुझे पुरस्कृत भी किया।’’

ये भी पढ़ें-इंजीनियर ने 12 हजार रुपए में शुरू किया था शू लॉन्ड्री का बिजनेस, टर्नओवर सुन रह जाएंगे हैरान

थैलेसीमिया के बारे में लोगों को कर रहीं हैं जागरूक

हाल ही में उन्हें विश्व थैलेसीमिया दिवस पर एक वक्ता के रूप में अपने विचार रखने के लिए भी आमंत्रित किया गया था। संयोग से इसी दिन उनका जन्मदिन भी होता है। ज्योति ने इस मंच का प्रयोग इस बीमारी के बारे में जागरुकता फैलाने और इसे लेकर फैली भ्रांतियों को दूर करने के लिए किया। वर्तमान में वे अपनी लेखनी के अलावा विभिन्न माध्यमों से थैलेसीमिया के बारे में जागरुकता फैला रही हैं। ज्योति वर्ष 2012 में थैलेसेमिक्स इंडिया एचीवर्स ट्राफी भी अपने नाम कर चुकी हैं ।

आज ज्योति बहुत आत्मविश्वास से भरी शख्सियत हैं और उन्हें उपन्यासकार, ब्लॉगर, टेक्नोलॉजी एक्सपर्ट और वक्ता के रूप में अपनी पहचान पर फख्र है । और जल्द ही उनकी तीसरी नॉवेल भी बाज़ार में आने वाली है, जो अपने भाग्य नहीं कर्म पर विश्वास करने पर केन्द्रित है।

ये भी पढ़ें-बास्केटबॉल की एक ऐसी खिलाड़ी, जिसने व्हीलचेयर पर बैठे-बैठे जीते कई गोल्ड मेडल

ताजा अपडेट के लिए हमारे फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए यहां, ट्विटर हैंडल को फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें।

      

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.