तो इन्वेस्टिगेशन का दबाव और फंड न मिलने की वजह से दर्ज नहीं होती FIR

''पुलिस पर विवेचना (Investigation) का भार दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है। इस भार से बचने के लिए भी पुलिस त्‍वरित एफआईआर लिखने में आनाकानी कर रही है।''

Ranvijay SinghRanvijay Singh   28 Jan 2019 11:00 AM GMT

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तो इन्वेस्टिगेशन का दबाव और फंड न मिलने की वजह से दर्ज नहीं होती FIR

लखनऊ। पुलिस की कार्यप्रणाली को लेकर हमेशा सवाल खड़े होते रहे हैं। हाल ही में लखनऊ के गुडंबा थाने का एक वीडियो भी वायरल हुआ था, जिसमें एक बुजुर्ग महिला पुलिसवाले से एफआईआर लिखने के लिए गुहार लगाती नजर आ रही है। बुजुर्ग महिला पुलिसवाले के सामने हाथ जोड़ती है, साथ ही उसके पैर पकड़ कर फरियाद भी करती है। इस वीडियो के वायरल होने के बाद पुलिस वाले को लाइन हाजिर कर दिया गया, साथ ही जांच का आदेश भी दे दिया गया है।

पुलिस की कार्यप्रणाली पर बात करें तो यह एकलौता मामला नहीं है। ऐसे कई मामले अक्‍सर सुनने में आते रहे हैं। इसके पीछे की वजहों पर बात करते हुए वरिष्‍ठ पत्रकार परवेज अहमद कहते हैं, ''सबसे पहले समझना होगा कि पुलिस आखिर एफआईआर दर्ज करना क्‍यों नहीं चाहती। आप देखिए कि आज के वक्‍त थानों में कितने मामले लंबित पड़े हैं। पुलिस पर विवेचना (Investigation) का भार दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है। इस भार से बचने के लिए भी पुलिस त्‍वरित एफआईआर लिखने में आनाकानी कर रही है।''

''दूसरा कारण यह भी है कि पुलिस को विवेचना के लिए अलग से कोई फंड नहीं मिलता है। ऐसे में अगर विवेचना अधिकारी को किसी ऐसे व्‍यक्‍ति का बयान लेना है जो उसके थाना क्षेत्र से 500 किमी दूर रहता हो तो इसका खर्च उसे ही वहन करना होगा। फंड की यह कमी भी एफआईआर दर्ज न करने की वजह हो सकती है।'' विवेचना के लिए फंड न मिलने की बात पुलिस वाले भी स्‍वीकार करते हैं, हालांकि इस वजह से एफआईआर दर्ज न करने की बात को नकारते हैं।

एफआईआर न दर्ज करने की बात पर एसपी ट्रांसगोमती हरेंद्र कुमार कहते हैं, ''एफआईआर न लिखे जाने का सवाल ही नहीं है। शिकायत की जाती है तो पुलिस उसे दर्ज करेगी। यह लोगों का अधिकार है। हां, कई बार ऐसे भी मामले आते हैं जहां लोगों द्वारा मामला बढ़ा चढ़ा कर लिखवाने की कोशिश की जाती है। यहीं पर दिक्‍कत आती है। पुलिस चाहती है कि मामला जैसा हो वैसा ही लिखा जाए।''

एफआईआर न दर्ज होने के पीछे की एक वजह यह भी है कि लोगों को अपने अधिकार के बारे में जानकारी ही नहीं है। एफआईआर और एनसीआर में क्‍या फर्क है यह भी लोगों को नहीं पता। इस वजह से भी एफआईआर और एनसीआर की प्रकिया में लोग फंस जाते हैं।

कानून के तहत पुलिस एफआईआर दर्ज करने से इनकार नहीं कर सकती। सीआरपीसी की धारा 154 में इसका उल्लेख भी है। भारत में अपराधों को दो श्रेणियां में बांटा गया है। पहला संज्ञेय अपराध (Cognizable offence) और दूसरा असंज्ञेय अपराध (Non cognizable offence).

आपके अधिकार

संज्ञेय अपराध

संज्ञेय अपराध अपराध में गिरफ्तारी के लिए पुलिस को किसी वारंट की जरूरत नहीं होती। यह गंभीर अपराध होते हैं जिनमें पुलिस को तुरंत कार्रवाई करनी होती है। इनमें पुलिस को जांच शुरू करने के लिए मजिस्ट्रेट से आदेश की अनिवार्यता नहीं होती। इनमें दुष्कर्म, हत्या, विधि विरुद्ध जमाव, सरकारी संपत्ति को नुकसान और लोकसेवक द्वारा रिश्वत लेना जैसे मामले शामिल है। संज्ञेय अपराध में सीधे एफआईआर दर्ज की जाती है।

असंज्ञेय अपराध

किसी को बिना कोई चोट पहुंचाए किए गए अपराध असंज्ञेय की श्रेणी में आते हैं। इन मामलों में पुलिस बिना तहकीकात के मुकदमा दर्ज नहीं करती। साथ ही शिकायतकर्ता भी इसके लिए पुलिस को बाध्य नहीं कर सकता। अगर पुलिस मुकदमा दर्ज नहीं करती तो ऐसी स्थिति में उसे कार्रवाई न करने की वजह को लॉग बुक में दर्ज करना होता है, जिसकी जानकारी भी सामनेवाले व्यक्ति को देनी होती है। ऐसे मामलों में जांच के लिए मजिस्ट्रेट का आदेश प्राप्त करना होता है। ऐसे मामलों में एफआईआर के बजाए एनसीआर (Non cognizable report) फाइल होती है, जिसके बाद पुलिस तहकीकात करती है।

दर्ज न हो FIR तो क्‍या करें

अगर पुलिस एफआईआर दर्ज करने से मना करे या टालमटोल करे तो क्‍या करें? सबसे पहले आप वरिष्ठ अधिकारियों के पास लिखित में शिकायत दर्ज करा सकते हैं। वरिष्ठ अधिकारी के कहने के बाद भी अगर एफआईआर दर्ज नहीं की गई तो आप अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 156(3) के तहत मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत में अर्जी दे सकते हैं। मजिस्ट्रेट को यह अधिकार है कि वो पुलिस को एफआईआर दर्ज करने को कह सकता है।

   

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