रेनू और किशन: मरने के लिए छोड़ दी गई बाघिन को मिली नई ज़िंदगी और एक नया दोस्त

जानवरों की दुनिया से आपको रू-ब-रू कराने के लिए गाँव कनेक्शन ने एक विशेष शो शुरू किया है इस शो का नाम है 'टेल्स'। इस शो में जानवरों से जुड़ी रोचक कहानियां आपको देखने को मिलेगी।

Diti BajpaiDiti Bajpai   22 May 2019 9:34 AM GMT

दिति बाजपेई/ सुयश शादीज़ा

लखनऊ। बात पिछले साल की है जब रास्ता भटकर रेनू (बाघिन) दोपहर के समय एक गाँव में आ गई थी। गाँव में आते ही उसे एक व्यक्ति मिला जिसको कुछ ही पल में उसने मार दिया था।

जब गाँव वालों को पता चला कि रेनू ने एक व्यक्ति को मार दिया है तो वह गुस्साएं ग्रामीणों को शिकार हो गई। गाँव वालों में उसे घेरकर बेरहमी से इतना मारा था, जिसकी वजह से वह कोमा में चली गई थी।


रेनू जिस गाँव में भटक कर पहुंच गई थी वह भारत -नेपाल की सीमा पर बसे उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में आता है। जिले के वन अधिकारियों को बाघिन रेनू के घायल होने की सूचना मिली तो उन्होंने उसे गुस्साएं ग्रामीणों से जैसे-तैसे बचा लिया। जब उसे रेस्क्यू किया जा रहा था तभी ही उसकी सांसे धीरे-धीरे थमने लगी थी। रेनू को बचाने के लिए अधिकारियों ने उसे उसी रात लखनऊ प्राणि उद्यान के वन्यजीव अस्पताल में पहुंचाया जहां डॉक्टरों ने उसका इलाज शुरू हो चुका था।

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रेनू को जब वन्यजीव अस्पताल में लाया गया था उस दिन को याद करते हुए लखनऊ प्राणि उद्यान में पशुचिकित्सक डॉ अशोक कश्यप ने गाँव कनेक्शन को बताया, ''14 अप्रैल 2018 को रात में जब रेनू आई तो बहुत ही घायल अवस्था में थी और अचेत थी। हमारी डॉक्टरों की टीम ने मिलकर उसका इलाज शुरू किया। वह 15 दिन तक कोमा में रही उसके बाद धीरे-धीरे उसके स्वास्थ्य में सुधार आने लगा।''

डॉ कश्यप रेनू के स्वभाव के बारे में बताते हैं, ''गाँव वालों ने उसे बुरी तरह मारा था तो वह काफी लोगों को देखकर काफी आक्रामक हो जाती थी लेकिन अब उसके स्वभाव में भी परिवर्तन आया। वह धीरे-धीरे शांत होने लगी थी और धीरे-धीरे कीपरों को भी समझने लगी कि वो हमारी सुरक्षा कर रहे है हमको मार नहीं रहे खाना देते है हमारा पूरा ट्रीटमेंट कर रहे हैं।''


अधिकारियों और डॉक्टरों के प्रयासों से रेनू को तो बचा लिया गया लेकिन वर्ष 2018 में ही विभिन्न कारणों से देश में 85 बाघों की मौत हुई है। वहीं वर्ष 2017 में 116 बाघों की मौत हुई। नेशनल टाइगर कंजरवेशन अथॉरिटी की रिपोर्ट के मुताबिक, इसमें 99 बाघों के शव और 17 बाघों के अवशेष बरामद किए गए। इन में से 32 मादा और 28 नर बाघों की पहचान हो सकी, बाकी मृत बाघों की पहचान नहीं हो सकी। इसमें 55 फीसदी मौतें प्राकृतिक रूप से हुई हैं।

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रेनू अब बिल्कुल स्वस्थ हैं। रेनू को ठीक होने के बाद लखनऊ प्राणि उद्यान के बाघ के बड़े बाड़े में रखा गया जहां उसकी मुलाकात किशन (बाघ) से हुई। किशन की कहानी भी रेनू से मिलती जुलती है। किशन को वर्ष 2009 में लखीमपुर के किशनपुर सेंचुरी में ट्रैंक्युलाइज करके पकड़ा गया था। किशन ने चार व्यक्तियों को मारा था और उसके बाद गाँव वालों ने उसको। लखनऊ जू अस्पताल में पांच वर्ष तक किशन का इलाज चला। किशन अब बिल्कुल ठीक है और रेनू के साथ खुश भी है।


जब रेनू को लखनऊ प्राणि उद्यान के बाड़े में शिफ्ट किया गया तब से लेकर उसका ख्याल रख रहे मतिम अहमद बताते हैं, ''रेनू को जब बाड़े में लाया गया और उसने बगल में देखा दूसरा टाइगर है, जो किशन है तो उसको आत्मबल और मिला। जैसे वो जंगलों में देखती थी कि टाइगर हैं, वहां भी उसने देखा की अरे यह तो मेरा फ्रेंड ही है। तो पहले दिन से उसने एडजस्ट कर लिया था।"


बढ़ते मानव वन्यजीव संघर्ष के बारे में मातिम बताते हैं, इंसान जंगलों में अपने घर बनाये दे रहा है। पूरे बाग-बगीचे सब काटे दे रहा है तो क्या होगा? इसमें तो यही है की जानवर बाहर आ गया है। सब कहते हैं जानवर जंगल से बाहर आ गया कोई यह क्यों नहीं कहता की इंसान जंगल में चला गया। अगर ऐसा होता रहा तो आने वाले समय में न जंगल बचेगा और न ही कोई जानवर। जानवर से ही जंगल है, जंगल से ही जानवर है। ''

मातिम आगे बताते हैं, ''जानवर जब एक बहुत बड़े जंगले से, बड़े एरिया से छोटी जगह आता है तो उसको बुरा लगता है लेकिन जब वह जगह उसे जंगल से ज्यादा सुरक्षित लगती है खाने की भी परेशानी नहीं है। तो वो धीरे-धीरे अपने को उस में अडॉप्ट कर लेता है।''


रेनू को जहां एक नई ज़िदगी मिली वहीं उसे किशन का प्यार भी मिला है। आज दोनों घंटों साथ में बैठते हैं दौड़ते हैं और खुश हैं। लखनऊ प्राणि उद्यान में इनेकी अठखेलियों को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।

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