निर्भया फंड : महिलाओं की सुरक्षा के लिए मिले 3000 करोड़ रुपए, सिर्फ 400 करोड़ रुपए हुए खर्च 

Astha SinghAstha Singh   11 Nov 2017 7:08 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
निर्भया फंड : महिलाओं की सुरक्षा के लिए मिले 3000 करोड़ रुपए, सिर्फ 400 करोड़ रुपए हुए खर्च गाँव कनेक्शन रिपोर्ट 

लखनऊ। 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली की एक चलती बस में 23 साल की एक पैरामेडिकल छात्रा से गैंगरेप के बाद देशभर में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर एक आंदोलन शुरू हो गया था। सरकार ने इसके बाद साल 2013 में निर्भया फंड का ऐलान किया था, लेकिन निर्भया फंड खर्च करने में सरकारें और संस्थाएं फिसड्डी साबित हुईं। निर्भया कांड के बाद देश व्यापी महिलाओं की सुरक्षा के लिए अभियान चलाया गया और 3000 करोड़ रुपए का एक निर्भया फंड बनाया गया। लेकिन विंडबना ये कि इन साढ़े चार सालों में केवल 400 करोड़ रुपए ही खर्च किए गए ।

किसलिए बने थे वन स्टॉप सेंटर, और क्या हो रहा है

ओएससी बने थे ताकि रेप पीड़िताओं की मदद होगी पर आज लोग इनमें जाने से कतराते हैं।भारत में बलात्कार से बचे लोगों के लिए वन-स्टॉप सेंटर अब वैवाहिक विवाद को हल कर रहा है। संसाधनों की कमी के चलते अब पीड़ित यहाँ आने से कतराते हैं।

क्या है निर्भया फंड

निर्भया फंड का सबसे अहम हिस्सा सेंट्रल विक्टिम कम्पेनसेशन फंड है, जो बलात्कार पीड़िताओं को वित्तीय सहायता देने के लिए बनाया गया है। इसमें केंद्र सरकार ने 200 करोड़ का फंड बनाया है और घोषित किया है रेप या एसिड अटैक की पीड़िताओं को 3 लाख रुपए का मुआवजा दिया जाएगा। इसमें से 50 पर्सेंट हिस्सा राज्य सरकारें वहन करेंगी, लेकिन वह अपना हिस्सा नहीं दे रही हैं। राज्य सरकारों का कहना है कि उनके पास फंड की कमी है। इसके अलावा मंत्रालय ने वन स्टॉप सेंटर, वीमेन हेल्पलाइन और महिला पुलिस वॉलंटियर की योजनाएं शुरू की गई थीं ।

ये भी पढ़ें-सिर्फ निर्भया फंड बनाना काफी नहीं: सुप्रीम कोर्ट

दिल्ली का हाल

अगर दिल्ली कि बात करें तो,तमाम सिफारिश और बजट प्रावधानों के बावजूद दिल्ली में ना तो सीसीटीवी कैमरे लगे और ना ही अंधेरी जगह पर लाइट्स लग सकी हैं। सिर्फ 200 बसों में सीसीटीवी कैमरे लगाए, बाकी के लिए अभी तक कैबिनेट का फैसला तक नहीं हुआ। सार्वजनिक स्थानों पर सीसीटीवी लगाने का काम तक नहीं शुरू हुआ।

बलात्कार पीड़िता को हर संभव मदद एक ही जगह पर मिल सके इसके लिए वन स्टॉप क्राइसिस सेंटर बनाए जाने थे, उसमें भी प्रगति नहीं हुई है। हालात यह है कि सार्वजनिक स्थल पर सीसीटीवी का बजट 2016-17 में खर्च नहीं हो पाया ,तो बसों में सीसीटीवी सिर्फ पॉयलट प्रोजेक्ट तक सिमटकर रह गया।

वन स्टॉप क्राइसिस सेंटर

बलात्कार पीड़िता की सहायता के लिए वन स्टॉप क्राइसिस सेंटर बनाए जाने थे। शुरुआत में कुछ जगह स्वास्थ्य विभाग ने बनाए थे लेकिन बाद में महिला एवं बाल विकास और उससे दिल्ली महिला आयोग को ये काम शिफ्ट हो गया। दिल्ली महिला आयोग एक भी सेंटर स्थापित नहीं कर पाया। दिल्ली महिला आयोग के प्रवक्ता भूपेन्द्र का कहना है कि केन्द्र सरकार से फंड नहीं मिला। इसके लिए आयोग ने केन्द्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को पत्र भी लिखा है। फंड मिलने के बाद प्रस्ताव तैयार करने का काम भी विभाग का है।

एक असफल योजना

जो वन स्टॉप सेंटर बनाए जाने थे, उनका नाम अपराजिता रखा गया था जहाँ हिंसा से पीड़ित महिलाओं को एकीकृत सेवाएं - पुलिस सहायता, कानूनी सहायता, और चिकित्सा और परामर्श सेवाएं - उपलब्ध कराई जाती हैं। वर्ष 2012 में नई दिल्ली में एक युवती की सामूहिक बलात्कार और हत्या के बाद सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन के बाद,2013 में केंद्र सरकार द्वारा स्थापित निर्भया निधि के तहत इन केंद्रों को प्राथमिकता दी गई थी।

लेकिन बलात्कार और यौन उत्पीड़न के 21 मामलों में मानवाधिकार संगठन की जांच में पाया गया कि चिकित्सा सहायता, कानूनी सहायता और मनोवैज्ञानिक परामर्श से लेकर आपराधिक शिकायत दर्ज करने तक दोनों ही महिलाओं और लड़कियां को वर्तमान में बहुत संघर्ष करना पड़ता है ।

यह अवधारणा थी कि पुलिस की जांच, चिकित्सा और कानूनी मदद, सभी को एक स्थान पर उपलब्ध कराया जाएगा, लेकिन अगर पीड़ित को पुलिस स्टेशन पर वापस जाना पड़ता है जो उसका क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र है, तो एक स्टॉप क्राइसिस सेंटर का क्या मतलब है?

ये भी पढ़ें-निर्भया गैंगरेप के चारों दोषियों की फांसी की सजा बरकरार, देखिए दर्द बयां करती तस्वीरें

बिना काउंसलर के चल रहे हैं वन स्टॉप सेंटर

रेप विक्टिम की काउंसलिंग के लिए शुरू किए गए वन स्टॉप सेंटर बिना काउंसलर के ही चलाए जा रहे हैं। कैग की रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक, चार प्रमुख अस्पतालों में जहां पर सेंटर चलाए जा रहे हैं, वहां काउंसलर की तैनाती नहीं की गई, जिसकी वजह से रेप पीड़ितों को मानसिक रूप से सहायता दिए जाने के लिए वन स्टॉप सेंटर का उद्देश्य कामयाब नहीं रहा।

सरकार ने 2015 से निर्भया कोष के तहत कितना खर्च किया है

डब्ल्यूसीडी मंत्रालय द्वारा 27 जुलाई को जारी एक बयान में कहा गया है कि उसने 2,20 9 करोड़ रुपये के इन प्रस्तावों की सिफारिश की है। यह हलफनामे केवल इन 22 प्रस्तावों में से दो के कार्यान्वयन के लिए स्वीकृत राशि का उल्लेख करता है।एनजीओ और अन्य एजेंसियों को स्वीकृत राशि जारी की गई है या नहीं, यह अस्पष्ट है। दिल्ली आयोग के महिला अध्यक्ष, स्वाती मालीवाल का कहना है कि डब्ल्यूसीडी की मंत्री मेंनका गांधी और दिल्ली के मुख्यमंत्री ने एक साल पहले डब्ल्यूसीडी से फंड की रकम जारी करने पर सहमति व्यक्त की थी पर आयोग को अभी तक पैसा नहीं मिला है।

मुआवजे प्रदान करने में देरी

फंड के एक हिस्से के रूप में, सरकार ने 2015 में एक केंद्रीय पीड़ित मुआवजा फंड स्थापित किया था जिसके तहत एक बलात्कार पीड़ित को कम से कम 3 लाख रुपये प्राप्त करना चाहिए। हालांकि, हर राज्य की अपनी मुआवजा योजना है, प्रत्येक यौन हिंसा से बचे लोगों को मुआवजे में एक अलग राशि प्रदान करती है। यह प्रणाली अक्षम है और बचे लोगों को लंबे समय तक इंतजार करना है या इस योजना का उपयोग करने में असमर्थ हैं।

ये भी पढ़ें-आशा ज्योति केंद्र पर महिलाओं की मदद के साथ अब उन्हें बनाया जा रहा आत्मनिर्भर

कितने फंड का प्रयोग किया गया है अबतक

हालांकि, हलफनामा 2,500 करोड़ रुपये से अधिक की शेष राशि के उपयोग का कोई उल्लेख नहीं करता है। एकमात्र विवरण सरकार के साथ आता है कि महिलाओं और बाल विकास मंत्रालय ने विभिन्न मंत्रालयों और राज्य सरकारों द्वारा प्रस्तुत 22 प्रस्तावों का मूल्यांकन किया है।

केंद्र अपने पैसों को अपने खर्चों पर बैलेंस शीट भेजने के लिए खींच रहा है। इस महीने की शुरुआत में, अदालत ने समय पर शपथ पत्र दाखिल न करने के लिए मंत्रालय पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया था।दरअसल, डब्ल्यूसीडी मिनिस्ट्री ने कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद निर्भया कोष के लिए नोडल एजेंसी के रूप में गृह मंत्रालय की जगह ली थी। मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि अब तक खर्च की गई राशि अधिक है। हालांकि, शपथ पत्र केवल उपर्युक्त दो प्रस्तावों के लिए स्वीकृत राशि का उल्लेख करता है।

उत्तर प्रदेश के लखनऊ में चलने वाले वन स्टॉप सेंटर में कार्यरत एक अधिकारी ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि, " पहले की अपेक्षा अब सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय इस फंड को मॉनिटर करेगा, जिससे पारदर्शिता बनी रहेगी, और काम में तेज़ी आएगी।"

ताजा अपडेट के लिए हमारे फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए यहां, ट्विटर हैंडल को फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें।

       

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.