चालू वि‍त्त वर्ष में वृद्धि दर 6.8 प्रतिशत रहेगी: रिपोर्ट

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चालू वि‍त्त वर्ष में वृद्धि दर 6.8 प्रतिशत रहेगी: रिपोर्टतस्‍वीर- सांकेतिक

लखनऊ। भारतीय अर्थव्यवस्था चालू वि‍त्त वर्ष 2019-20 में सात प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल नहीं कर पाएगी। आधिकारिक रूप से अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर सात प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है। वहीं प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएमईएसी) ने यह राय व्यक्त करते हुए कहा कि देश में अनुसंधान एवं विकास मद में व्यय आर्थिक वृद्धि के अनुरूप करने और 2022 तक इसको सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के कम-से-कम 2 प्रतिशत पर पहुंचने का लक्ष्य रखा जाना चाहिए।

आर्थिक समीक्षा में वृद्धि दर 7 प्रतिशत रहने का लगाया था अनुमान...

सिंगापुर के बैंक डीबीएस की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि चालू वि‍त्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर सात प्रतिशत से कम यानी 6.8 प्रतिशत रहेगी। इससे पहले इसी महीने पेश आर्थिक समीक्षा में चालू वि‍त्त वर्ष में वृद्धि दर सात प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है। राधिका राव की अगुवाई में डीबीएस के अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि लगातार दूसरे वि‍त्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि की रफ्तार सात प्रतिशत से कम रहेगी।

रिपोर्ट में कहा गया है कि चालू वि‍त्त वर्ष की पहली छमाही में वृद्धि दर नरम पड़ेगी और और दूसरी छमाही में आधार प्रभाव की वजह से बढ़ेगी। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा नीतिगत दरों में लगातार तीन बार की गई कटौती के संदर्भ में रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे दूसरी छमाही में वृद्धि की रफ्तार तेज करने में मदद मिलेगी।

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उल्लेखनीय है कि रिजर्व बैंक 2019 में नीतिगत दरों में तीन बार में 0.75 प्रतिशत की कटौती कर चुका है। रिपोर्ट में कहा गया है कि राजकोषीय मजबूती पर ध्यान देने और मुद्रास्फीति निचले स्तर पर रहने की वजह से मौद्रिक नीति अधिक वृद्धि पर केंद्रित हो सकेगी।

पीएमईएसी ने दी सलाह...

वहीं आरएंडडी व्यय परिवेश शीर्षक से जारी रिपोर्ट के अनुसार पीएमईएसी ने कहा है कि केंद्र में संबंधित मंत्रालयों के लिए अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार प्रौद्योगिकी के विकास तथा उसके उपयोग को प्रोत्साहित करने लेकर अपने बजट का एक निश्‍चित हिस्‍सा अनुसंधान एवं नवोन्मेष की योजनाओं के लिए रखना अनिवार्य किया जाना चाहिए।

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में अनुसंधान एवं विकास पर पर खर्च सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 0.6 से 0.7 प्रतिशत के बीच टिका हुआ है। इसके विपरीत यह अमेरिका (2.8 प्रतिशत), चीन (2.1 प्रतिशत), इस्राइल (4.3 प्रतिशत) और दक्षिण कोरिया (4.2 प्रतिशत) है। पीएमईएसी के मुताबिक, भारत को नवप्रवर्तन एवं औद्योगिक अनुसंधान और विकास में अगुवा बनने के लिये इस मद में निजी क्षेत्र का व्यय भी बढ़ाना होगा। यह इस समय जीडीपी के मात्र 0.35 प्रतिशत के स्तर पर है। इसके लिये यह भी जरूरी है कि देश में पंजीकृत मझोले और बड़े उद्यम भी अपनी आय का कुछ हि‍स्सा शोध एवं विकास पर खर्च करें।

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समिति का सुझाव है कि विनिर्माण उद्योग को अनुसंधान एवं विकास क्षेत्र में निवेश के लिये प्रोत्साहित करने के लिए इस मद में किए गए व्यय पर भारांकित कटौती को एक अप्रैल 2020 के बाद भी जारी रखी जाएगा। आयकर कानून के मौजूदा प्रावधानों के तहत आंतरिक स्तर पर आर एंड डी सुविधाओं पर किए गए निवेश के 150 प्रतिशत के बराबर कटौती का लाभ मिलता है।

अप्रैल 2020 से भारांकित कटौती की जगह केवल निवेश के बराबर यानी निवेश के 100% के बराबर ही आय-कटौती का लाभ मिलेगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य सरकारें केंद्र के साथ मिलकर अनुसंधान एवं नवप्रवर्तन कार्यक्रमों को संयुक्त रूप से वि‍त्त पोषण करें तो अच्छा होगा। यह कार्य केंद्र प्रोयोजित योजनाओं के माध्यम से हो सकता है।

मौजूदा कर कानून सीएसआर (कंपनी सामाजिक जम्मिेदारी) के तहत आर एंड डी (अनुसंधान एवं विकास) में निवेश का समर्थन करता है। लेकिन इसमें आर एंड डी गतिविधियों के प्रकार का दायरा बढ़ाया जा सकता है। रिपोर्ट में 30 अनुसंधान एवं विकास नर्यिात केंद्र सृजित करने और बड़ी परियोजनाओं के वि‍त्त पोषण के लिये 5,000 करोड़ रुपये के कोष की वकालत की गयी है। (इनपुट भाषा)

   

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