12 साल की रेप पीड़ित बच्ची बनी मां, ख़बर लिखते हुए मेरे हाथ कांप रहे थे 

Neetu SinghNeetu Singh   3 Jan 2018 2:53 PM GMT

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12 साल की रेप पीड़ित बच्ची बनी मां, ख़बर लिखते हुए मेरे हाथ कांप रहे थे रिपोर्टर डायरी 

लखनऊ के लोहिया अस्पताल के मैटरनिटी वॉर्ड के बाहर...37 साल की एक महिला गुमसुम बैठी हुई थी। लेबर रूम से रह-रह कर चीखने की आवाज़ आ रही थी, और हर चीख के साथ उस महिला के चेहरे पर दर्द के सौ-सौ रंग आ-जा रहे थे। लेबर रूम में जो लड़की थी, वो इस महिला की बेटी थी...उसकी 12 साल की बेटी, जो इस छोटी सी उम्र में ख़ुद मां बनने जा रही थी!

एक रिपोर्टर के तौर पर मैंने कई तरह के हालात देखे हैं, बहुत निराश, हताश और उदास कर देने वाले मामलों की रिपोर्टिंग की है। लेकिन लोहिया अस्पताल के लेबर रूम में इस बच्ची की चीख़ें मैं बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। सिर्फ 12 साल की बच्ची...जिसके हाथ में खिलौने होने चाहिए थे, किताबें होनी चाहिए थी...वो 12 साल की बच्ची ख़ुद किसी के हाथ का खिलौना बनकर रह गई थी। मुझे जानकारी मिली थी कि इंदिरानगर थाने की रहने वाली इस बच्ची के साथ कुछ महीने पहले उसके पड़ोसी ने रेप किया था। महीनों तक बच्ची डर के मारे किसी से कुछ कह नहीं पाई, जब तबीयत बिगड़ी तो मां को उसके साथ हुई ज़बरदस्ती और उसके गर्भवती होने का पता लगा। बहुत दुखद ख़बर थी, लेकिन अस्पताल आने से पहले मुझे पता नहीं था कि ये ख़बर मुझे इस तरह हिला देगी, झकझोर देगी।

लेबर रूम में दर्द से तड़पती हुई वो बच्ची उस वक्त भी खाकी रंग की स्कूल ड्रेस पहने हुए थी। जिस लेबर पेन, जिस दर्द को वो जी रही थी, मैं उसे कुछ पल से ज़्यादा देख तक नहीं पाई। उसकी चीखें सुनकर मेरे पैर डगमगाने लगे, कुछ देर में मैं लेबर रूम से बाहर आ गयी और उसकी बेंच पर उसकी माँ के बगल में बैठ गई। मेरी हालत देखकर वहां खड़े लोगों ने मुझे पीने को पानी दिया। पानी के घूंट लेते हुए मैं उसके बारे में सोच रही थी, जो खुद बच्ची है, चौथी कक्षा में पढ़ती हैं, वो कैसे अपने होने वाले बच्चे की परवरिश देगी? ‘मेरी बिटिया ठीक तो है’ उसकी माँ के इस सवाल से मेरा ध्यान टूटा, मैंने बिना कुछ बोले हाँ में सर हिला दिया।

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उसकी मां परेशान थी...पिछले कुछ महीनों में उन्होंने समाज का घिनौना चेहरा देख लिया था। मुझसे बोलीं कि- “जहाँ से भी निकलते, हर कोई हमे ही घूरता है, मेरी बेटी रात के अँधेरे में या सुबह जल्दी शौंच के लिए जाती थी, क्योंकि दिन में मोहल्ले के लोग भीड़ लगाकर उसे देखने के लिए खड़े रहते थे” मैं क्या कह कर उस मां को दिलासा देती, जिसके लिए एक तरफ़ उसकी बेटी की तकलीफ़ है, दूसरी तरफ़ समाज का डर है, तीसरी तरफ़ परिवार का भविष्य है, जो इस वक्त अंधेरे में है। बच्ची की मां मुझे बताती हैं कि उस घटना के बाद से ना उनकी बच्ची हंसी है, ना भरपेट खाती है,ना ढंग से सोती है, ना ही घर के बाहर निकलती है। उन्हें उम्मीद है कि शायद मैं उस बच्ची की, उनकी कुछ मदद कर पाऊं। ये ऐसे पल होते हैं जब आप ख़ुद को बिल्कुल बेबस महसूस करते हैं...मैं भी बेबस थी।

दो-तीन घंटे की असहनीय पीड़ा के बाद बच्ची ने करीब शाम के सात बजे एक बेटे को जन्म दिया। वो नन्हीं मां और उसका नवजात बच्चा दोनों ठीक हैं, ये सुनकर वहां खड़े लोगों के साथ मैंने भी चैन की सांस ली, लेकिन इन दोनों मासूमों के भविष्य का सवाल अब भी वहीं है। उसकी माँ नवजात बच्चे को रखना नहीं चाहती। उन्हें चिंता है कि उनकी बेटी से शादी कौन करेगा? नई-नई मां बनी वो बच्ची ख़ुद एक अपराधबोध में घिरी हुई है। मैं अस्पताल में करीब डेढ़ घंटे रही। इस दौरान मैं यही सोचती रही थी इस पूरी घटना में उस बच्ची का क्या कसूर, खेलने कूदने की उम्र में इस समाज ने उसे तमाम नाम दे दिए थे, भीड़ लगाकर देखने वालों ने उसे तमाशा बनाकर रख दिया था।

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हम कैसे बेटियों को आगे बढ़ने की बात करें? कैसे उनके तरक्की की बात करें? ये भी हमारे ही समाज की एक बच्ची है, जिसका कोई कसूर नहीं है। वो नाराज है अपनों से, कि वक़्त रहते उसे इस कलंक से बचाया क्यों नहीं गया। बलात्कार का आरोपी कहने को जेल में है, लेकिन असली जेल में तो मुझे ये मां-बेटी नज़र आ रहे थे। बच्ची का बचपन छिना है, समाज के ताने सुने हैं उसने, उसका भविष्य का क्या होगा ये उसे खुद भी नहीं पता।

इस घटना के दिन गुजरते जा रहे हैं, पर 12 साल की उस बच्ची की चीखें अब भी मेरे दिमाग में गूंज रही हैं। मैं रिपोर्टर बनना चाहती थी, ताकि समाज की गदंगी को उधेड़कर सामने ला सकूं। पर अब मैं दुआ कर रही हूं कि ऐसी रिपोर्ट्स मुझे फिर ना करनी पड़ें, फिर मुझे किसी 12 साल की बच्ची को प्रसव पीड़ा से गुज़रते ना देखना पड़े।

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