जैव विविधता क्षेत्रों में छेड़छाड़ से नए संक्रमण का खतरा

जैव विविधता क्षेत्रों में छेड़छाड़ के कारण नए संक्रमण का खतरा हो सकता है। पश्चिमी घाट के अन्नामलाई पहाड़ियों के जैव विविधता क्षेत्र में किए गए एक नए अध्ययन के आधार पर भारतीय वैज्ञानिकों ने यह बात कही है।

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जैव विविधता क्षेत्रों में छेड़छाड़ से नए संक्रमण का खतरा

उमाशंकर मिश्र (इंडिया साइंस वायर)

नई दिल्ली। जैव विविधता क्षेत्रों में छेड़छाड़ के कारण नए संक्रमण का खतरा हो सकता है। पश्चिमी घाट के अन्नामलाई पहाड़ियों के जैव विविधता क्षेत्र में किए गए एक नए अध्ययन के आधार पर भारतीय वैज्ञानिकों ने यह बात कही है।

वैज्ञानिकों को अन्नामलाई के जैव विविधता क्षेत्र की वन्यजीव प्रजातियों में ऐसे परजीवी सूक्ष्मजीव मिले हैं, जो मूल रूप से पालतू पशुओं और मनुष्यों में पाए जाते हैं। इन सूक्ष्मजीवों के पाए जाने के पीछे वन क्षेत्रों में मानवीय दखल और भूमि उपयोग में बदलाव को मुख्य रूप से जिम्मेदार माना जा रहा है।

वन क्षेत्र में स्थित मानव बस्तियों के पास वन्यजीवों के नमूनों में अधिक परजीवी प्रजातियां पायी गई हैं। इसके साथ ही, मानवीय छेड़छाड़ से प्रभावित वन क्षेत्रों में शांत वनों की तुलना में अधिक परजीवी मिले हैं। जैव विविधता क्षेत्रों में मानवीय गतिविधियां बढ़ने के कारण मनुष्यों एवं पालतू पशुओं का संपर्क वन्यजीव विविधता से बढ़ रहा है। शोधकर्ताओं का कहना है कि वन क्षेत्रों में रोपणऔर पालतू पशुओं की मौजूदगी वन्यजीवों में नए परजीवियों के फैलने का कारण हो सकती है।

दक्षिण भारत में पश्चिमी घाट पर स्थित अन्नामलाई पहाड़ियों के 19 अलग-अलग वन क्षेत्रों से 23 वन्यजीवों से प्राप्त करीब चार हजार नमूनों का दो वर्षों तक विश्लेषण करने के बाद शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। इस अध्ययन के दौरान के परजीवी सूक्ष्मजीवी के नमूने वन्यजीवों के मल से प्राप्त किए गए हैं और उनका वैज्ञानिक विश्लेषण किया गया है।



हैदराबाद स्थित कोशिकीय एवं आणविक जीव विज्ञान केंद्र (सीसीएमबी) के शोधकर्ताओं ने यह अध्ययन किया है। सीसीएमबी की संकटग्रस्त प्रजाति संरक्षण प्रयोगशाला के प्रमुख शोधकर्ता डॉ. जी. उमापति ने इंडिया साइंस वायर को बताया, "पश्चिमी घाट को उसकी संपन्न जैव विविधता के लिए जाना जाता है। इस क्षेत्र के पारिस्थितिक तंत्र में हो रहे बदलावों के कारण जीवों पर पड़ने वाले प्रभावों का बहुत कम अध्ययन किया गया है। प्राकृतिक क्षेत्रों में बाहरी परजीवी सूक्ष्मजीवों का मिलना एक चेतावनी है, क्योंकि वन्यजीव आबादी से ही एचआईवी और ईबोला जैसी घातक बीमारियां उभरी हैं। इसीलिए, सूक्ष्मजीवों के प्राकृतिक मेजबान वन्यजीवों को हो रहे नुकसान के कारण जंगली आबादी से उभरने वाली बीमारियों का पता लगाना महत्वपूर्ण हो सकता है।"

जीव प्रजातियां और उनकी आंतों में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीव परस्पर एक-दूसरे पर आश्रित होते हैं। उनके प्राकृतिक आवास में होने वाले बदलावों से वन्यजीव और उन पर आश्रित परजीवी सूक्ष्मजीवों की विविधता भी प्रभावित होती है। ऐसी स्थिति में, वन्यजीवों की आंतों में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीवों का रूपांतरण हो सकता है, जो पालतू पशुओं एवं मनुष्यों में भी फैल सकते हैं। इसी तरह, मवेशियों एवं मनुष्य की आंतों में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीव भी वन्यजीवों को प्रभावित कर सकते हैं।

शोधकर्ताओं के अनुसार, मेजबान जीवों की आबादी को गतिशील बनाए रखने, जीव प्रजातियों में होने वाले रूपांतरणों और पारिस्थितिक तंत्र के बायोमास निर्धारण में परजीवी सूक्ष्मजीवों की अहम भूमिका होती है। मेजबान जीवों और उन पर आश्रित परजीवी सूक्ष्मजीव, दोनों का जीवन चक्र उनके मूल पारिस्थितिक तंत्र परनिर्भर होता है। यही कारण है कि उनके प्राकृतिक आवास में छेड़छाड़ का असर भी दोनों पर समान रूप से पड़ता है। मानवीय कारक किस तरह वन्य क्षेत्रों की सूक्ष्मजीव विविधता को प्रभावित करते हैं, यह जानना किसी पारिस्थितिक तंत्र के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है।

डॉ. जी. उमापति ने बताया कि "जैव विविधता क्षेत्रों को इस तरह के परिवर्तनों से बचाने के साथ-साथ वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास में पालतू पशुओं का प्रवेश भी प्रतिबंधित होना चाहिए। पालतू पशु बाहरी परजीवी सूक्ष्मजीवों का संक्रमण मनुष्यों तक पहुंचा सकते हैं। इसीलिए, समय-समय पर मवेशियों और अन्य पालतू जानवरों को कृमि-रहित करना भी जरूरी है।" (इंडिया साइंस वायर)

    

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