स्कूलों का बजट वर्षों से नहीं बढ़ा लेकिन मास्टर जी की तनख्वाह हर साल बढ़ती है

Shrinkhala PandeyShrinkhala Pandey   8 Jan 2018 6:27 PM GMT

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स्कूलों का बजट वर्षों से नहीं बढ़ा लेकिन मास्टर जी की तनख्वाह हर साल बढ़ती हैफोटो: अभिषेक वर्मा

पिछले दस वर्षों से सरकार परिषदीय स्कूलों की देखरेख के लिए हर साल 5000 रुपए ही देती है जबकि जोचाक आज से दस साल पहले 1 रुपए की मिलती थी आज वो 10 रुपए की हो गई है। इसी तरह हर चीज के दाम बढ़े लेकिन स्कूलों की देखरेख के लिए आने वाला ये बजट वहीं का वहीं हैं।

बाराबंकी के देवां ब्लाक के प्राथमिक विद्यालय अटवटमऊ के प्रधानाध्यापक अनुज श्रीवास्तव बताते हैं, “पिछले लगभग 15 वर्षों से मेरी जानकारी में स्कूलों में सिर्फ 5000 रुपए प्रतिवर्ष विद्यालय विकास अनुदान के लिए आता है और 5000 रुपए रंगाई, पुताई के लिए। ये राशि प्राइमरी की है जूनियर में 7000 रुपए आते हैं।”

वो आगे बताते हैं, “भले महंगाई बढ़ी हो लेकिन इस बजट में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई, वर्षों से इतना ही पैसा आता रहा है, इसी में साल भर विद्यालय के खर्च चलाने होते हैं।”

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बजट 2015-16 में लगभग देश भर में 69 हजार करोड़ रुपये शिक्षा के लिए दिया गया, जिसमें लगभग 42 हजार करोड़ प्राइमरी स्कूलों और 26,500 करोड़ रुपये उच्च शिक्षा को दिया गया। पाइसा (योजनाओं के पैसों कार्यान्वयन पर नजर रखने वाली संस्था) 2015 द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार शिक्षा व्यय का 80प्रतिशत अध्यापकों के वेतन और ट्रेनिंग में खर्च होता है।

ज्यादातर सरकारी स्कूलों में आज भी बच्चों को बैठने के लिए डेस्क बेंच नहीं है। कड़कड़ाती ठंड में भी ये बच्चे टाट पट्टी पर बैठने को मजबूर हैं क्योंकि स्कूल के बजट में इतना पैसा नहीं आता कि बच्चों के लिए भी मेज कुर्सी आ सके। लखनऊ से लगभग 35 किमी दूर मलीहाबाद के प्राथमिक विद्यालय रसूलाबाद की अध्यापिका सीमा रानी रस्तोगी बताती हैं, “स्कूलों के विकास के लिए इतना पैसा नहीं आता कि उससे मेज कुर्सियां भी आ सकें। विद्यायल विकास अनुदान के नाम पर साल भर में 5000 रुपए आते हैं वो भी नियमित समय पर नहीं आता।”

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देशभर में शैक्षिक गणना करने वाली संस्था राष्ट्रीय शैक्षिक प्रबंधन सूचना प्रणाली डीआईएसई की रिपोर्ट 2013-14 के अनुसार उत्तर प्रदेश में प्राइमरी स्कूलों की संख्या 1,53,220 है और माध्यमिक स्कूलों की संख्या 31,624 है।

उत्तर प्रदेश हर बच्चे की शिक्षा पर सालाना 7613 रुपये खर्च करता है जबकि महाराष्ट्र 28,630 रुपये और छत्तीसगढ़ 19,190 रुपये। इन आंकड़ों से साफ है कि उप्र सरकारी व स्कूलों में नामांकित बच्चों की शिक्षा को कम प्राथमिकता देता है। कुल मिलाकर यूपी अपने बजट का मात्र 17.2 फीसद हिस्सा ही स्कूली शिक्षा पर खर्च करता है। योगी सरकार ने 2017-18 के बजट में माध्यमिक शिक्षा के लिए 576 करोड़ रुपये और उच्च शिक्षा के लिए 272 करोड़ रुपये निर्धारित किए हैं जबकि प्राथमिक शिक्षा के लिए क़रीब 22 हज़ार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।

इन स्कूलों के लिए आने वाले बजट में भले कोई वृद्धि न हुई हो लेकिन अगर बात करें अध्यापकों के वेतन में तो वो हर साल ही बढ़ती है। वर्तमान समय में अगर कोई अध्यापक ज्वांइन करता है तो उसकी सैलरी 33,500 रुपए होगी और पूरे वेतन का 3 प्रतिशत हर साल बढ़ेगा। इसके अलावा वेतन आयोग लागू होने पर वेतन में बढ़ोत्तरी होती है।

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अध्यापकों का वेतन लगातार बढ़ा।

इस बारे में लखनऊ की शिक्षाविद् डॉ शशिबाला बताती हैं, “एक तरफ हम सरकारी स्कूलों में अच्छी शिक्षा की बात करते हैं लेकिन सुविधाएं न के बराबर है। बच्चों को पढ़ाई के लिए अच्छे माहौल की जरूरत होती है यहां तो उनके लिए बैठने तक की जगह नहीं है। एक कक्षा में 2 से 3 क्लासों को मिलाकर बैठाना पड़ता है, इससे बच्चा क्या सीख पाएगा।” वो आगे बताती हैं, “स्कूल की बुनियादी सुविधाओं पर ध्यान देने की जरूरत है जब तक बच्चों को अपना स्कूल नहीं अच्छा लगेगा वो पढ़ने में रुचि नहीं लेगें।”

वहीं लखनऊ के बेसिक शिक्षा अधिकारी प्रवीण मणि त्रिपाठी बताते हैं, “साल 2008 से स्कूलों की देखभाल के लिए 5000 रुपए प्रतिवर्ष व जूनियर में 7000 रुपए ही आता है। इसमें कोई वृद्धि नहीं हुई है लेकिन ये हमारे स्तर का मामला नहीं है, ये पॉलिसी लेवल का मामला है। ”

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