नई दिल्ली। कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलनकारी किसानों की दिल्ली में ‘किसान संसद’ जारी है। शुक्रवार को किसान संसद में लंबी बहस के बहस के बाद किसान संसद के कृषि मंत्री ने इस्तीफा दिया। दो दिन की कार्यवाही में किसान संसद ने किसानों पर अब तक लगाए गए आरोपों को झूठा बताया है।
किसान की किसान संसद की शुरुआत 22 जुलाई से हुई है जो 13 अगस्त को संसद के मानसून सत्र तक चलेगी। इस दौरान संसद की तरह ही बिल पास होंगे और प्रस्ताव पेश किए जाएंगे।
शुक्रवार को संयुक्त किसान मोर्चा ने भाजपा नेता और कैबिनेट मंत्री मीनाक्षी लेखी के द्वारा विरोध कर रहे किसानों के लिए अत्यधिक आपत्तिजनक, अपमानजनक, अवैध और जातिवादी विवरण की कड़ी निंदा की की गई। एसकेएम ने किसानों पर झूठे आरोपों के लिए भाजपा प्रवक्ता गौरव भाटिया से भी माफी की भी मांग की।
संयुक्त किसान मोर्चा ने शुक्रवार की किसान संसद की कार्यवाही के बाद जारी बयान में कहा, “हिसार और टोहाना के बाद सिरसा सत्याग्रह में भी किसान सफल हुए हैं।”
जंतर-मंतर पर आयोजित किसान संसद में संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़े 200 किसानों ने भाग लिया। शुक्रवार की कार्यवाही में एक प्रश्नकाल भी शामिल था, और कल की बहस की निरंतरता में, आज की बहस एपीएमसी बाईपास अधिनियम पर केंद्रित थी। शुक्रवार को किसान संसद में कृषि मंत्री के इस्तीफे की भी घोषणा हुई।
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एपीएमसी APMC बाईपास अधिनियम पर दो दिवसीय बहस के अंत में किसान संसद ने सर्वसम्मति से संकल्प प्रस्ताव पारित किया। संकल्प प्रस्ताव उच्चतम न्यायालय द्वारा कार्यान्वयन को निलंबित करने से पहले जून 2020 से जनवरी 2021 तक एपीएमसी बाईपास अधिनियम के संचालन के प्रतिकूल अनुभव को संज्ञान में लेता है। इसमें शोषण और धोखाधड़ी के वजह से किसानों का करोड़ों रुपये का नुकसान, एपीएमसी लेनदेन में आई कमी, और बड़ी संख्या में मंडियों को हुए भारी नुकसान जो उन्हें बंद होने के कगार पर धकेल रही है, शामिल हैं।
प्रस्ताव में कहा गया है कि “किसानों को कम मंडियों की नहीं, बल्कि अधिक संख्या में मंडियों के परिचालन की आवश्यकता है।” प्रस्ताव ने संविधान और लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली को कमजोर करने का उल्लेख कर, जिस पर कानून आधारित था, केंद्रीय कानून को तत्काल निरस्त करने का आह्वान किया। प्रस्ताव में राज्य सरकारों से अपनी मंडी प्रणाली में किसानों के हितों की रक्षा करने वाले सुधार लाने को भी कहा गया है।
दो दिनों की कार्यवाही के दौरान, प्रदर्शनकारी किसानों ने किसान संसद की बहस में भाग लेने और अपने कार्यों से उन पर महीनों से लगाए जा रहे कई झूठे आरोपों – कि उन्हें कानूनों के बारे में शिक्षित होने की आवश्यकता है, कि वे हिंसा के लिए इसमें शामिल हैं, इत्यादि – का खंडन किया है।
संसद के अंदर भी गर्माया मुद्दा
भारत की संसद के अंदर, कृषि कानूनों और किसानों के अनिश्चितकालीन विरोध के मुद्दे को कई सांसदों ने पार्टी लाइनों से अलग आकर उठाया। शुक्रवार की सुबह एक बार फिर गांधी प्रतिमा पर कई सांसदों ने विरोध प्रदर्शन किया। केंद्रीय कृषि मंत्री का फिर से उन तख्तियों से अभिनंदन किया गया जो किसान आंदोलन के संदेश सीधे संसद और सरकार तक ले गए थे।
किसान आंदोलन के समर्थन में कई सांसद संसद में पहले ही कई स्थगन-प्रस्ताव पेश कर चुके हैं और कई प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया है। हर तरफ से अपने आप को घिरा हुआ महसूस करते हुए, केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है कि सरकार ‘किसानों के साथ बातचीत करने को तैयार है, अगर वे प्रस्ताव लेकर आते हैं’। यह प्रस्ताव महीनों पहले ही सरकार को किसानों द्वारा सौंपा जा चुका है। अब समय आ गया है कि मोदी सरकार इस सरल वास्तविकता के साथ पूरी तरह से सामंजस्य बिठा ले – किसान पीछे नहीं हटेंगे और तीन काले कानूनों को पूरी तरह से निरस्त किए बिना और सभी किसानों के लिए कानूनी के रूप में एमएसपी हासिल किए बिना घर वापस नहीं जाएंगे।
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