कमाई का दूसरा नाम बनी मशरूम की खेती, ये है तरीका

Astha SinghAstha Singh   6 Dec 2017 6:15 PM GMT

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कमाई का दूसरा नाम बनी मशरूम की खेती, ये है तरीकामशरूम की हैं कई किस्में।

ऐसा कहा जाता है कि मशरूम उत्पादन एक खेती है क्योंकि यह कृषि आधारित है, यह एक उद्योग भी है क्योंकि इसे उद्योग के रूप में अपनाया जा सकता है, एक विज्ञान भी है क्योंकि इसमें वैज्ञानिक तथ्यों का समावेश है, एक कला भी है क्योंकि इसकी खेती में कलात्मकता है, एक संस्कृति भी है क्योंकि इसका उपयोग प्राचीनकाल से चला आ रहा है।

मशरुम की विशेषताएं

मशरूम एक अच्छे किस्म का खाद्य पदार्थ तो है ही, साथ ही यह एक अच्छी औषधि भी है। इसके सेवन से अनेक बीमारियाँ स्वतः ठीक हो जाती हैं। इसमें एंटीबायोटिक तत्व पाये जाते हैं, जो शरीर की जीवाणुओं से रक्षा करते हैं। इसमें एंटीवायरल तत्व मिलते हैं जो हमारे शरीर को वायरल बुखार से बचाते हैं। इसमें ऐसे तत्व पाये जाते हैं जो खून में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ने नहीं देते। अतः इसके सेवन से हृदय रोग से भी रक्षा होती है।

इसमें फॉलिक एसिड पाया जाता है ,जो रक्ताल्पता के शिकार व्यक्तियों, विशेषकर महिलाओं के लिये बहुत लाभकारी है। इसके सेवन से कब्ज दूर होती है, पेट साफ होता है और खुलकर भूख लगती है। यह प्रोटीन और विटामिन बी-12 का एक अच्छा स्रोत है। मात्र तीन ग्राम मशरूम के सेवन से एक व्यक्ति की विटामिन बी-12 की दैनिक आवश्यकता पूरी होती है। इस प्रकार मशरूम स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत गुणकारी खाद्य पदार्थ है।

दिव्या रावत उत्तराखंड में मशरुम की ब्रांड एंबेसडर भी हैं करोड़ों में हैं इनका कारोबार।

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मशरुम की विश्व में मांग बढ़ी है

इसकी औषधीय गुणवत्ता के कारण ही विकसित देशों में इसकी खपत बढ़ रही है। अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी माँग 10 प्रतिशत वार्षिक की दर से बढ़ रही है। गत तीन दशकों में मशरूम की अन्तरराष्ट्रीय खपत में 10 गुना वृद्धि हुई है। अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर मशरूम की सब्जी इतनी लोकप्रिय हुई है कि आज विश्व में मशरूम का जितना उत्पादन है, उससे कहीं ज्यादा उसकी माँग है।

कब कहां शुरू हुई इसकी खेती

भारत में सबसे पहले 1961 में हिमाचल प्रदेश में मशरूम की खेती शुरू की गई थी। तब से इसका प्रचार-प्रसार बढ़ता ही गया है।1980 के पूर्व मशरूम की खेती मात्र पर्वतीय क्षेत्रों तक सीमित थी परन्तु अब इसकी खेती मैदानी क्षेत्रों में भी व्यापारिक स्तर पर की जाने लगी है।

कितनी प्रजातियां हैं मशरुम की

संसार में खाने योग्य मशरूम की लगभग 10,000 प्रजातियां पाई जाती हैं जिनमें 70 प्रजातियां कृत्रिम खेती के लिये उपयुक्त हैं। भारत में भी मशरूम की कई प्रजातियों की खोज की जा चुकी है ,परन्तु भारतीय वातावरण में तीन प्रकार की प्रजातियां अधिक उपयुक्त मानी गई हैं।

1. बटन मशरूम

2. सीप मशरूम (ओईस्टर मशरुम)

3. धान पुआल मशरूम (पैडी स्ट्रॉ मशरूम)

ओस्टर मशरूम के लिए भूसे की बनीं पिंडिया। फोटो: करन पाल सिंह

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कौन सी प्रजाति कहां के लिए है उपयुक्त

कृषि विज्ञान केंद्र, सहारनपुर के डॉ आई के कुशवाहा बताते हैं कि, " ओईस्टर मशरूम की खेती बड़ी आसान एवं सस्ती है। इसमें दूसरे मशरूम की तुलना में औषधीय गुण भी अधिक हैं। दिल्ली, कलकत्ता, मुम्बई एवं चेन्नई जैसे महानगरों में इसकी बड़ी माँग है। इसीलिये विगत तीन वर्षों में इसके उत्पादन में 10 गुना वृद्धि हुई है। तमिलनाडु और उड़ीसा में तो यह गाँव-गाँव में बिकता है। कर्नाटक राज्य में भी इसकी खपत काफी है। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, केरल, राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों में भी ओईस्टर मशरूम की कृषि लोकप्रिय हो रही है।

वह आगे बताते हैं कि, "बटन मशरूम निम्न तापमान वाले क्षेत्रों में अधिक उगाया जाता है। परन्तु अब ग्रीन हाउस तकनीक द्वारा यह हर जगह उगाया जा सकता है। सरकार द्वारा बटन मशरूम की खेती के प्रचार-प्रसार को भरपूर प्रोत्साहन दिया जा रहा है। फलस्वरूप अब इसका उत्पादन 20 कि.ग्रा. प्रति वर्गमीटर से अधिक है जबकि तीन दशक पूर्व प्रति वर्ग मीटर मात्र 3 कि.ग्रा. था। उत्तर प्रदेश में इसका अच्छा उत्पादन हो रहा है ।"

बटन मशरुम

इसके अलावा पैडी-स्ट्रॉ मशरूम की खेती भारत के पूर्वी राज्यों में अधिक लोकप्रिय है। इसकी कृषि गर्मी के तीन महीने में की जाती है। पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में यह बहुतायत से उगाया जाता है। तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश में भी इसकी खेती लोकप्रिय हो रही है।

पैडी स्ट्रॉ मशरुम

कृषि विज्ञान केन्द्र, अंबेडकरनगर के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. रविप्रकाश मौर्य बताते हैं, “पूर्वांचल के जिलों के लोग दिल्ली-मुंबई जैसे शहरों में नौकरी की तलाश में जाते हैं, जबकि लोग यहीं पर सीमित संसाधन में मशरुम की खेती करके बढ़िया मुनाफा कमा सकते हैं।ज्यादा से ज्यादा किसान मशरूम अपने घर में ही उगा रहे हैं।”

उत्तर प्रदेश के लिए उपयुक्त है बटन मशरुम

डॉ मौर्य आगे बताते हैं, "भारत में बटन मशरूम उगाने का उपयुक्‍त समय अक्टूबर से मार्च के महीने हैं। इन छ: महीनो में दो फसलें उगाई जाती हैं। बटन खुम्‍बी की फसल के लिए आरम्‍भ में 22 से 26 डिग्री सेंटीग्रेड ताप की आवश्‍यकता होती है ।इस ताप पर कवक जाल बहुत तेजी से बढ़ता है। बाद मे इसके लिए 14 से 18 डिग्री ताप ही उपयुक्‍त रहता है। इससें कम तापमान पर फलनकाय की बढ़वार बहुत धीमी हो जाती है। 18 डिग्री से अधिक तापमान भी खुम्‍बी के लिए हानिकारक होता है।"

कैसे करें बटन मशरूम की खेती

केवीके अंबेडकरनगर के डॉ. आई के कुशवाहा बताते हैं,"बटन मशरूम की खेती के लिए विशेष विधि से तैयार की गई कम्‍पोस्‍ट खाद की आवश्‍यकता होती है। कम्‍पोस्‍ट साधारण विधि अथवा निर्जीविकरण विधि से बनाया जाता है। कम्‍पोस्‍ट तैयार होने के बाद लकड़ी की पेटी या रैक में इसकी 6 से 8 इंच मोटी परत या तह बिछा देते हैं। यदि बटन खुम्‍बी की खेती पोलिथिन की थैलियों में करनी हो तो कम्‍पौस्‍ट खाद को बीजाई या स्‍पानिंग के बाद ही थैलियों मे भरें। थैलियों में 2 मिलीमीटर व्‍यास के छेद थोड़ी-थोड़ी दूरी पर कर दें।"

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बटन मशरूम बीजाई या स्‍पानिंग

वह बताते हैं,"मशरूम के बीज को स्‍पान कहतें हैं। बीज की गुणवत्‍ता का उत्‍पादन पर बहुत असर होता है, अत: खुम्‍बी का बीज या स्‍पान अच्‍छी भरोसेमंद दुकान से ही लेना चाहिए। बीज एक माह से अधिक पुराना भी नही होना चाहिए। बीज की मात्रा कम्‍पोस्‍ट खाद के वजन के 2-2.5 प्रतिशत के बराबर लें।

बीज को पेटी में भरी कम्‍पोस्‍ट पर बिखेर दें तथा उस पर 2 से 3 सेमी मोटी कम्‍पोस्‍ट की एक परत और चढ़ा दें । अथवा पहले पेटी में कम्‍पोस्‍ट की 3 इंच मोटी परत लगाऐं और उसपर बीज की आधी मात्रा बिखेर दे। तत्‍पश्‍चात उस पर फिर से 3 इंच मोटी कम्‍पोस्‍ट की परत बिछा दें और बाकी बचे बीज उस पर बिखेर दें । इस पर कम्‍पोस्‍ट की एक पतली परत और बिछा दें। "

मशरुम की खेती में बरतने वाली सावधानियां

बीजाई के बाद मशरूम की देखभाल

कवक जाल का बनना-

उन्होंने बताया कि बीजाई के पश्चात पेटी अथवा थैलियों को खुम्‍बी कक्ष में रख दें तथा इन पर पुराने अखबार बिछाकर पानी से भिगो दें। कमरे में पर्याप्‍त नमी बनाने के लिए कमरे के फर्श व दीवारों पर भी पानी छिडकें। इस समय कमरे का तापमान 22 से 26 डिग्री सेंन्‍टीग्रेड तथा नमी 80 से 85 प्रतिशत के बीच होनी चाहिए। अगले 15 से 20 दिनों में खुम्‍बी का कवक जाल पूरी तरह से कम्‍पोस्‍ट में फैल जाएगा। इन दिनों खुम्‍बी को ताजा हवा नही चाहिए ,अत: कमरे को बंद ही रखें।

परत चढ़ाना या केसिंग करना-

आगे उन्होंने बताया, गोबर की सड़ी हुई खाद एवं बाग की मिट्टी की बराबर मात्रा को छानकर अच्‍छी तरह से मिला लें। इस मिश्रण का 5 प्रतिशत फार्मलीन या भाप से निर्जीवीकरण कर लें। इस मिट्टी को परत चढ़ाने के लिए प्रयोग करें।

कम्‍पोस्‍ट में जब कवक जाल पूरी तरह फैल जाए तो इसके उपर उपरोक्‍त विधि से तैयार की गई मिट्टी की 4-5 सेमी मोटी परत बिछा दें। परत चढ़ाने के 3 दिन बाद से कमरे का तापमान 14-18 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच व आद्रता 80-85 प्रतिशत के बीच स्थिर रखें। यह समय फलनकाय बनने का होता है । इस समय बढ़वार के लिए ताजी हवा और प्रकाश की जरूरत होती है। इसलिए अब कमरे की खिड़कियाँ व रोशनदान खोलकर रखें।

खुम्‍बी फलनकाय का बनना तथा उनकी तुड़वाई-

उन्होंने बताया कि खुम्‍बी की बीजाई के 35-40 दिन बाद या मिट्टी चढ़ाने के 15-20 दिन बाद कम्‍पोस्‍ट के ऊपर मशरूम के सफेद फलनकाय दिखाई देने लगते हैं जो अगले चार पांच दिनों में बटन के आकार में बढ़ जाते हैं।

जब खुम्‍बी की टोपी कसी हुई अवस्‍था में हो तथा उसके नीचे की झिल्‍ली साबुत हो ,तब खुम्‍बी को हाथ की उंगलियों से हल्‍का दबाकर और घुमाकर तोड़ लेते हैं। कम्‍पोस्‍ट की सतह से खुम्‍बी को चाकू से काटकर भी निकाला जा सकता है। सामान्‍यत: एक फसलचक्र (6 से 8 सप्‍ताह) में खुम्‍बी के 5-6 फल आते हैं।

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मशरूम की पैदावार तथा भंडारण-

सामान्‍यत: 8 से 9 किलोग्राम खुम्‍बी प्रतिवर्ग मीटर में पैदा होती है। 100 किलोग्राम कम्‍पोस्‍ट से लगभग 12 किलोग्राम खुम्‍बी आसानी से प्राप्‍त होती है।

खुम्‍बी तोड़ने के बाद साफ पानी में अच्‍छी तरह से धोयें तथा बाद मे 25 से 30 मिनट के लिए उनको ठंडे पानी में भीगो दें। खुम्‍बी को ताजा ही प्रयोग करना श्रेष्‍ठ होता है पर फ्रिज में 5 डिग्री ताप पर 4-5 दिनों के लिए इनका भंडारण भी किया जा सकता है।

डॉ रविप्रकाश मौर्य बताते हैं, "स्‍थानीय बिक्री के लिए पॉलिथीन की थैलियों का प्रयोग किया जाता है। ज्‍यादा सफेद मशरूम की मांग अधिक होने के कारण ताजा बिकने वाली अधिकांश खुम्‍बीयों को पोटेशियम मेटाबाइसल्‍फेट के घोल में उपचारित किया जाता है। बटन खुम्‍बी का खुदरा मुल्‍य 100-125 रूपये प्रति किलोग्राम रहता है। शादी-ब्‍याह के मौसम में कुछ समय के लिए तो यह 150 रूपये किलो तक भी आसानी से बिक जाती है।"

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