आश्रय गृह के बंद कमरों का सच : किराए का मकान, सात कोठरियां, 94 लड़कियों के सपने

बिहार का मुजफ्फरपुर केस हो या देवरिया कांड या फिर इंदौर में दिव्यांग लड़की का सरकारी हास्टल में यौन शोषण, ये सभी मामले इसीलिए होते हैं क्योंकि एक बार अगर कोई लड़की इन शेल्टर होम में दाखिल हो गई तो वह चाहकर भी अपने साथ होने वाले अत्याचारों की जानकारी किसी को नहीं दे सकती।

Neetu SinghNeetu Singh   12 Aug 2018 4:53 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
आश्रय गृह के बंद कमरों का सच : किराए का मकान, सात कोठरियां, 94 लड़कियों के सपने

वाराणसी/लखनऊ। "दीदी हमारा यहां से बाहर जाने का बहुत मन करता है पर क्या करें हमें बाहर की दुनिया देखने को नहीं मिलती, हमें यहां कोई तकलीफ नहीं है, लेकिन बंद होकर रहना अच्छा नहीं लगता है। सोचती हूँ ये लोग मेरी कहीं शादी कर दें तो मैं यहां से निकल जाऊं," पिंजड़े में बंद एक पंक्षी की तरह ज़िंदगी जी रही आश्रय गृह में कैद एक लड़की ने बताया।

अपनों से बिछड़ी और कड़े कानूनों की बेड़ियों में कैद वाराणसी के आश्रय गृह में रह रही एक लड़की अपनी दास्तां 'गाँव कनेक्शन' को इस उम्मीद के साथ बता रही थी कि शायद उसे यहाँ से बाहर निकलने में कोई मदद मिल जाए।

सफेद रंग का सूट पहने एक खंभे की ओट में खड़ी यह लड़की जब अपनी कहानी बता रही थी तो उसके चेहरे पर मायूसी साफ दिख रही थी। "हमारी जिन्दगी 15 साल से इन्हीं कैदखानों में कट रही है। घर तो अपना है नहीं और यहाँ भी मुक्ति नहीं है, हम मुक्त होना चाहते हैं यहां से बाहर निकलना चाहते हैं।" यह लड़की तीन साल की उम्र में अपने पिता से रेलवे स्टेशन पर बिछड़ने के बाद फिर कभी उसे अपनों का साथ नहीं मिला।

बनारस की तंग गलियों में स्थित आश्रय गृह में रह रही किरन (बदला हुआ नाम) प्रतापगढ़ रेलवे स्टेशन पर अपने पिता से तीन साल की उम्र में बिछड़ गई थी। उसने बालिका गृह में रहकर कई साल अपने पिता के आने का इन्तजार किया, उसे उम्मीद थी कि एक दिन उसके पिता ट्रेन से उतर कर उसे लेने आएंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। 15 साल से रह रही किरन को अब इन कैदखानों में रहने की आदत सी हो गई है, लेकिन उसे उम्मीद जरुर है कि एक दिन उसे यहां से कोई न कोई बाहर निकालकर जरुर ले जाएगा।


ये भी पढ़ें : देवरिया कांड की इनसाइड स्टोरी: सिसकियों में दब कर रह जाता है पीड़िताओं का दर्द

देश में जितने भी निजी आश्रय गृह या शेल्टर होम चलते हैं यहाँ रहने वाली हजारों लड़कियों की जिंदगी इस शेल्टर होम की चाहरदिवारी में कैद होकर रह जाती है। यहाँ इन्हें न तो किसी से मिलने की इजाजत है और न ही अपनी बात कहने का अधिकार। कड़े नियम-कानूनों की आड़ में ये शेल्टर होम्स अपनी मनमानी करते हैं, जिसकी वजह से यहां आने वाली लड़कियां बाहरी दुनिया से कट जाती हैं और फिर शुरू होता है इनका शोषण।

बिहार का मुजफ्फरनगर केस हो, देवरिया कांड या इंदौर में दिव्यांग लड़की का सरकारी हास्टल में यौन शोषण, ये सभी मामले इसीलिए होते हैं क्योंकि एक बार अगर कोई लड़की इन शेल्टर होम में दाखिल हो गई तो वह चाहकर भी अपने साथ होने वाले अत्याचारों की जानकारी किसी को नहीं दे सकती। क्योंकि उन्हें किसी से मिलने या यहाँ से बाहर निकलने की इजाज़त नहीं है, बेबसी की हालत में इनकी हिम्मत जवाब दे जाती है। ये राज उन कालकोठरियों से तभी बाहर आते हैं जब कोई पीड़िता बची-खुची हिम्मत जुटाकर अपनी बात बाहर तक पहुंचा पाने में सफल हो पाती है।

अपनों से ठुकराई और कड़े नियमों की बेड़ियों में जकड़ी ये लड़कियां नहीं बता पातीं अपनी बेबसी

वाराणसी के इस आश्रय गृह के सात कमरों में 94 लड़कियों को रखा गया है। जो 18 से 60 वर्ष उम्र तक की हैं। इनमें से कुछ वो लड़कियां हैं जिन्होंने अपनी मर्जी से शादी कर ली तो कुछ वो हैं जो बचपन में अपनों से बिछड़ गईं और कुछ मानसिक रूप से विक्षिप्त हैं। जैतपुरा के इस आश्रय गृह के आसपास सन्नाटा पसरा रहता है। पूरी बिल्डिंग में ऐसी कोई जगह नहीं जहां से ये लड़कियां बाहर झांक भी सकें। मकान के बीच में एक खुली जगह पर ही वो एक-दूसरे से आपस में ही बात कर सकती हैं।

इस शेल्टर होम में नौ महीने की गर्भवती एक पीड़िता के आँखों में आंसू यहां कैद होने की गवाही दे रहे थे। उसने सिसकियाँ लेते हुए बताया, "मेरा कसूर सिर्फ इतना था कि मैंने अपनी मर्जी से शादी की, उसी की सजा हम भुगत रहे हैं।" लड़की के घरवालों ने लड़के पर केस दर्ज करा दिया जो जेल में है और लड़की इस कैद खाने में।

ये भी पढ़ें : ग्राउंड जीरो रिपोर्ट: देवरिया के लक्ष्मीबाई, मंदाकिनी और नीलगिरी कक्ष का काला सच

अपनों से बिछड़ी और परिवार वालों से ठुकराई पीड़िताएं अगर एक बार इन बालिका गृह या नारी निकेतन में आ गईं तो यहां से बाहर की दुनिया देखना इनके लिए किसी सपने जैसा होता है। अगर इनके माता-पिता भी इनसे मिलने आते हैं तो उन्हें भी चाइल्ड वेलफेयर कमेटी से लिखित आदेश लेना पड़ता है। माता-पिता और उच्चधिकारियों के अलावा यहां किसी भी व्यक्ति का प्रवेश वर्जित है। इतना ही नहीं, इनके माता-पिता को बात भी अधीक्षिका के सामने ही करनी होती है।

उत्तर प्रदेश राज्य सरकार के माध्यम से प्रदेशभर में 58 राजकीय संरक्षण गृह संचालित होते हैं, जबकि निजी संस्थाओं के जरिए 175 संरक्षण गृह चल रहे हैं। इनमें से कुछ संरक्षण गृह बंद भी हो चुके हैं। देवरिया काण्ड की पीड़िताओं को वाराणसी के जैतपुरा में स्थित जिस नारी निकेतन में रखने की चर्चा हो रही है उसका निरीक्षण जिलाधिकारी भले ही कर चुके हों पर वहाँ प्रशासन की तरफ से उनके रहने का कोई इंतजाम नहीं किया गया।


कड़े नियम कानूनों की आड़ में इन लड़कियों की बाहर नहीं आ पातीं सिसकियां

राजकीय पश्चात्यवर्ती देख-रेख संगठन जैतपुरा, वाराणसी की प्रभारी इंचार्ज मूर्ती देवी ने बताया, "हमारे यहां ज्यादा लड़कियों को रखने की जगह नहीं है। हमें अभी तक देवरिया और इलाहाबाद की लड़कियों को रखने के लिए विभाग से कोई लिखित लेटर नहीं आया है, देवरिया की लड़कियां आने वाली हैं ये सूचना हमें फोन से मिली है।"

वहीं, एक स्टाफ ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "जिलाधिकारी छह अगस्त को निरीक्षण करने आए थे, तब हमें जानकारी नहीं थी कि देवरिया की लड़कियां यहां आने वाली हैं। विभाग में सभी अधिकारियों को पता है कि ये किराए की बिल्डिंग हैं जहां सात कमरे हैं जिसमें 94 लड़कियां रहती हैं। इससे ज्यादा यहां पर एक भी लड़की को रखने का कोई इंतजाम नहीं है।" उन्होंने कहा, "मेरी बात उच्चाधिकारियों तक पहुंचाई जाए जिससे यहां देवरिया और इलाहाबाद की लड़कियां न आएं। अगर लड़कियां यहां आती हैं तो उनके रहने का इंतजाम किया जाए, जो सम्भव नहीं है, क्योंकि ये किराए की बिल्डिंग है यहां पर जगह की कमी है।"

विभाग से जुड़े एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "देवरिया जैसे कांड इसलिए होते हैं क्योंकि ये आश्रय गृह खोल तो दिए जाते हैं पर इसकी मॉनीटरिंग कभी नहीं होती। कानून भी बहुत सख्त बने हैं जिसके तहत अधिकारी भी कुछ नहीं कर सकते। अगर यहां की पीड़िताओं से महिला उच्च अधिकारी समय-समय पर अकेले में मिलें और उनकी समस्या सुनें तो ऐसी घटनाएं कभी नहीं होंगी।"

     

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.