मनरेगा मजदूरों से भी बुरी हालत में चौकीदार

Virendra SinghVirendra Singh   20 March 2019 7:26 AM GMT

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मोहम्मदपुर खाला (बाराबंकी)। अचानक से एक शब्द 'चौकीदार' की चर्चा हर जगह हो रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने खुद को देश का चौकीदार बताया तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि चौकीदार चोर है।

इस तमाम चिल्लाहट के बीच असल में इन चौकीदारों की सुध लेने वाला कोई नहीं। गाँवों में रात-रात जागकर लोगों की सुरक्षा करने वाले ये चौकीदार, असल में मनरेगा मजदूरों से बुरी ज़िदगी गुजर-बसर कर रहे हैं।

टिवटर और फेसबुक पर छोटे-बड़े नेताओं द्वारा अपने नाम के आगे 'चौकीदार' शब्द जोड़ने के बीच गाँव कनेक्शन ने यह जानने की कोशिश की कि चौकीदारों की क्या समस्याएं हैं और वो कैसी ज़िंदगी बसर कर रहे हैं

"हमारे पिताजी पहले चौकीदारी करते थे, मात्र 19 रूपये महीने से चालू किया था और अब हम चौकीदारी कर रहे हैं और इस वक्त हमें 1500 रुपए प्रतिमाह मिलते हैं, वह भी समय से नहीं आते। इस तरह से पचास रूपये प्रतिदिन के हिसाब से मिलते हैं, इसमें हमारा खर्चा नहीं निकल पा रहा, जिससे दूसरे के खेतों में मजदूरी करने जाना पड़ता है," उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के थाना मोहम्मदपुर खाला क्षेत्र के अक्मबा निवासी चौकीदार सरोज ने बताया।


उत्तर प्रदेश की 58,000 ग्राम पंचायतों में करीब 68,337 चौकीदार नियुक्त हैं, और जिन सभी की हालत दयनीय है। किसी के घर का छप्पर नहीं मजबूत है तो किसी के बच्चे स्कूल नहीं जा पाते। चौकीदारों के इस काम से उनके परिवार के लोग भी नाखुश रहते हैं।

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"काहे की नौकरी, हम तो कहते हैं कि यह चौकीदारी-वारी छोड़कर कुछ काम धंधा कर ले, जिससे परिवार का खर्चा तो चलेगा," चौकीदार सरोज की माँ सुशीला देवी (65 वर्षीय) कहती हैं।

होली के त्योहार पर इन चौकीदारों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। होली पर कानून-व्यवस्था बनी रहे इस लिए बाराबंकी के थाना मोहम्मदपुर खाला के थानाध्यक्ष द्वारा बुलाई गई मीटिंग में पहुंचे चौकीदारों का दर्द छलक आया। करीब चार घंटे के इंतेजार के बाद मीटिंग में थानाध्यक्ष ने बताया कि जहां भी होलिका दहन होगा इन चौकीदारों को मौजूद रहना होगा और दंगा-फसाद की स्थिति में तत्काल सूचना देनी होगी।

चौकीदार हंसराज रावत कहते हैं, "जब प्रधानमंत्री अपने नाम के आगे चौकीदार लगाते हैं तो यकीनन फक्र से सीना चौड़ा हो जाता है, लेकिन दुख की बात तो यह है कि पांच साल बीतने के बाद भी प्रधानमंत्री को हम चौकीदारों के ऊपर ध्यान नहीं आया। हमें अब तक 1500 रुपए मिल रहे हैं, पिछले छह मार्च को यूपी सरकार द्वारा 1000 रूपये की बढ़ोतरी के बाद 83.33 रूपये प्रतिदिन मिलने लगेंगे, इतने पैसों में हम अपने तीज त्यौहार कैसे करें। अपने बच्चों को पढ़ाएं या घर का खर्च चलाएं।"

लोकसभा चुनाव कैंपेन में भाजपा और कांग्रेस की चौकीदार की लड़ाई से दूर ये चौकीदार अपने रुटीन काम में व्यस्त हैं। वहीं, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी बुधवार को करीब 25 लाख चौकीदारों से वीडियो कांफ्रेसिंग से सीधे संवाद करेंगे।

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गले में लाल कपड़े का पट्टा डाले, जो कि चौकीदारों की निशानी होती है, बाबा रामदीन बताते हैं, "कहने को तो हमारी महीने में दो-तीन दिन ही ड्यूटी है, पर जब भी कोई त्योहार आता है या क्षेत्र में वारदात हो जाती है तो पुलिस पूरी जिम्मेदारी हम पर डाल देती है, और हम ही पड़ताल करते हैं। चुनाव हो या कोई त्योहार, हमारी ड्यूटी लगाई जाती है, जब भी कोई एक्सीडेंट या मर्डर हो जाता है तो हमें पोस्टमार्टम हाउस में रात भर जागना पड़ता है।"


ग्रामीण कानून-व्यवस्था की पहली सीढ़ी के तौर पहचान रखने वाले इन चौकीदारों को गाँव और थाने के बीच एक धुरी की तरह काम करना होता है, हर घटना की जानकारी रात हो या दिन थाने पहुंच के पुलिस को देनी होती है।

"चौकीदारी करते-करते पूरी उम्र बीत गई, घर में एक छत नहीं बनवा पाए, पिछले 20 साल से चौकीदारों का संगठन चतुर्थ श्रेणी दर्जा प्राप्त करने के लिए संघर्ष कर रहा है, पर किसी सरकार का ध्यान नहीं गया, अगर हमें चतुर्थ श्रेणी का दर्जा प्राप्त हो जाता तो हमारी माली हालत शायद कुछ सही हो जाती," श्याम बिहारी (60 वर्ष) कहते हैं।

   

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