आदिवासी संस्कृति और विरासत को बढ़ावा देने के लिए नीलेश मिसरा के स्लो और बस्तर जिले के बीच हुआ एमओयू

गाँव के हुनर को सीधे शहर तक जोड़ने के प्रयासों के तहत, 'स्लो' ने छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के साथ दो समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं। आदिवासियों के हस्तशिल्प जैसे उत्पादों की बिक्री को सुविधाजनक बनाने के साथ ही, समझौते में क्षेत्र में आदिवासी विरासत को बढ़ावा देने के लिए पर्यटकों के आकर्षण का प्रदर्शन भी शामिल है।

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आदिवासी संस्कृति और विरासत को बढ़ावा देने के लिए नीलेश मिसरा के स्लो और बस्तर जिले के बीच हुआ एमओयू

एमओयू कार्यक्रम बस्तर आर्ट गैलरी में आयोजित किया गया। फोटो: यश सचदेव

आदिवासी विरासत को बढ़ावा देने और क्षेत्र में आजीविका का एक जरिया बनाने के लिए, प्रसिद्ध स्टोरीटेलर और पत्रकार नीलेश मिश्रा के 'स्लो' ने कल 21 नवंबर को जगदलपुर में छत्तीसगढ़ के बस्तर जिला प्रशासन के साथ दो समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए।

स्लो कंटेंट प्राइवेट लिमिटेड और जिला प्रशासन के बीच हस्ताक्षरित पहला समझौता ज्ञापन, बस्तर और उसकी संस्कृति की पहचान कराएगा है, जिसे 'स्लो ऐप' और भारत के सबसे बड़े ग्रामीण मीडिया प्लेटफॉर्म गांव कनेक्शन के माध्यम से प्रदर्शित किया जाएगा। नीलेश मिसरा गांव कनेक्शन के संस्थापक हैं।

इस समझौते में पर्यटकों के आकर्षण के स्थानों, होमस्टे, त्योहारों और ग्रामीण पर्यटन के अन्य पहलुओं तक सीमित नहीं होगा, जो बस्तर में अनुभवों के लिए ब्रांडिंग पैदा करेगा, जिले में पर्यटकों की आमद को बढ़ाने और आजीविका को बढ़ावा देने में मदद करेगा। इस साझेदारी के तहत, स्लो कंटेंट प्राइवेट लिमिटेड बस्तर जिले में पर्यटन और होमस्टे को बढ़ावा देने के लिए वीडियो बनाएगा और टेक्स्ट स्टोरी प्रकाशित करेगा।

दूसरे एमओयू पर स्लो प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड और जगदलपुर स्थित भुमगड़ी महिला कृषक प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड (बीएमकेपीसीएल) के बीच हस्ताक्षर किए गए।


"यह समझौता ज्ञापन बस्तर में रहने वाले लोगों की आजीविका में सुधार के साथ-साथ उनके कौशल का सम्मान / विकास करने का एक प्रयास है। दोनों पक्ष बस्तर जिले के भागीदारों/कारीगरों/शिल्पकारों से सीधे प्राप्त उत्पादों की बिक्री और खरीद के लिए एक साथ काम करेंगे और सहयोग करेंगे। इन उत्पादों को स्लो ऐप और स्लो बाजार वेबसाइट के जरिए बेचा जाएगा।'

इस अवसर पर बोलते हुए, द स्लो मूवमेंट के संस्थापक नीलेश मिश्रा ने गांव कनेक्शन को बताया, "इस उद्यम के बारे में सबसे अच्छी बात यह है कि अब तक हैंडीक्राफ्ट प्रोडक्ट खरीदने वाले लोगों को इसे बनाने वालों की जिंदगी के बारे में कभी पता ही चलता है। स्लो वेबसाइट में इन रचनाकारों के जीवन का लेखा-जोखा होगा और यह खरीदारों को आदिवासी विरासत के पीछे के लोगों के बारे में जानने में मदद करेगा। "

कार्यक्रम के दौरान दर्शकों को संबोधित करते हुए स्लो मूवमेंट के संस्थापक नीलेश मिश्रा। फोटो: यश सचदेव

बस्तर के उत्पाद जो www.slowbazaar.com पर बेचे जाने वाले हैं, उनमें लाल चावल, ब्राउन राइस, इमली, हल्दी, ढोकरा आर्ट, बांस उत्पाद और कॉफी शामिल हैं।

"बस्तर बायोडायवर्सिटी और ट्राईबल आर्ट का घर है। स्लो बाजार में बस्तर को इस तरह लाने को लेकर हम उत्साहित हैं कि किसान और निर्माता, अपने फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन के जरिए न केवल उन्हें आर्थिक फायदा हो, बल्कि ब्रांडिंग और पहचान भी मिले, "स्लो प्रोडक्ट प्राईवेट लिमिटेड की डायरेक्टर और को-फाउंडर यामिनी त्रिपाठी ने कहा।

साथ ही इस मौके पर मौजूद बस्तर के जिला मजिस्ट्रेट रजत बंसल ने कहा, "हमें स्लो के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने की खुशी है। जनजातीय क्षेत्रों में कई उत्पाद हैं जिन्हें अगर मांग करने वाले लोगों के पास ले जाया जाता है, तो यहां के लोगों को बेहतर मौका मिल सकता है।"

उदाहरण के लिए, यहां कुछ किसान उर्वरकों का उपयोग किए बिना फसलों की खेती करते हैं क्योंकि वो इतना खर्च नहीं कर सकते हैं और शहरों में बिना उर्वरक के उगाए गए उत्पादों की अच्छी मांग रहती है, रजत बंसल ने आगे कहा।

अंग्रेजी में पढ़ें

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