जहरीले सांपों को भी चुटकियों में पकड़ लेते हैं जोधपुर के तौहीद अहमद, पढ़िए 30-40 सांप रोज पकड़ने वाले इंसान की रोचक कहानी

जोधपुर, राजस्थान में रहने वाले दर्जी तौहीद अहमद खां को पूरा शहर सांपों को पकड़ने के लिए जानता है। तौहीद के हुनर का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि उनका नंबर स्थानीय मीडिया ने सार्वजनिक कर रखा है। किसी भी पुलिस चौकी, थाने, बीएसएनएल की पूछताछ सेवा 197, फायर सर्विस स्टेशन या किसी भी दैनिक समाचार पत्र से भी इनका नंबर लिया जा सकता है।

Moinuddin ChishtyMoinuddin Chishty   16 July 2020 6:13 AM GMT

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ज़हरीले से ज़हरीले सांपों को आसानी से पकड़ लेते हैं तौहीद। फोटो साभार- मोईनुद्दीन चिश्तीज़हरीले से ज़हरीले सांपों को आसानी से पकड़ लेते हैं तौहीद। फोटो साभार- मोईनुद्दीन चिश्ती

कहा जाता है कि, 'जिसको काटे सांप पदम, नहीं चले वो दो कदम।' पदम सांप 'किंग कोबरा' को कहा जाता है। "सूर्यनगर जोधपुर में मैंने अजीबो-गरीब तरह के सांप देखे हैं। इनमें से तो कईयों के नाम भी मुझे पता नहीं? शायद कोई और भी न जानता हो। साधारण या जहरीले सांपों का यहां के घरों में घूमते दिखता रोजमर्रा की बात है। परड़ से लेकर हरे वाईपर, काले वाईपर, घोड़ा पछाड़, लाल धामण, काली धामण, कोबरा, किंग कोबरा, दो मुंही बोगी जो आगे-पीछे दोनों तरफ चल लेती है, पीवणां, केरट, गोनस, बम्बई-गुजरात के सांप व अजगर जैसे सांपों से अटे-पड़े हैं जोधपुर के खण्डहर, पुराने मकान, हवेलियां व कच्ची बस्तियों में।"

ये कहना है सनसिटी (जोधपुर) के ख्यातिप्राप्त वन्यजीव विशेषज्ञ तौहीद अहमद खां का, जिन्हें किसी भी प्रकार के जहरीले से जहरीले सांपों को तो पकड़ने में महारथ हासिल है। साथ ही वे छिपकली, बिच्छू, कैंकड़ा, जंगली चूहा, चंदन गौ, पाटा, नेवला, गिरगिट (किरगाटिया) इत्यादि पर भी अपनी अंगुलियों का जादू दिखा चुके हैं।

तौहीद अहमद खां अपना काम छोड़कर भी लोगों की मदद करने के लिए सांप पकड़ने पहुंच जाते हैं। फोटो साभार- मोईनुद्दीन चिश्ती

किसी को भी अपनी पहली ही मुलाकात में अपना बना लेने की सम्मोहन शक्ति रखने वाले तौहीद जोधपुर में किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। अपनी बेटी 'शाहीन' के नाम से लेडीज़ टेलर की दुकान चलाने वाले इस सर्प विशेषज्ञ की ख्याति या दक्षता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शहर में कहीं भी सांप निकल आए तो इस टेलर मास्टर का मोबाइल फोन बज उठता है।

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53 वर्षीय तौहीद का अपनी दुकान पर बैठने-उठने का टाइम-टेबल कम ही सेट हो पाता है। क्यों भला? "दिलो-दिमाग को शांत करके जैसे ही कपड़े काटने बैठूं तो बज उठता है मोबाइल फोन, जिसके नंबर लोकल मीडिया ने सार्वजनिक कर रखे हैं, अगर कोई जरूरतमंद जिसके घर में सांप निकल भी आया है और वह मेरा नंबर नहीं भी जानता तो कोई बड़ी बात नहीं, पुलिस कंट्रोल रूम फोन कर लीजिए आपको 'स्नेक सेवर तोहीद' का मोबाइल नंबर मिल जाएगा।" इसके अलावा इनका नंबर किसी भी पुलिस चौकी, थाने, बीएसएनएल की पूछताछ सेवा 197, फायर सर्विस स्टेशन या किसी भी दैनिक समाचार पत्र से भी लिया जा सकता है।

बकौल तौहीद, "अब आप से क्या कहूं? खुदा का शुक्रगुजार हूं जिसने अरबों-खरबों की आबादी वाली इस दुनिया में मुझे ही इस काम के लिए चुना कि मैं सांपों से लोगों की जान बचाकर समाज सेवा करूं।"

"मेरा कहना तो इतना ही है कि जब उस खुदा ने मुझपे भरोसा किया है, कुछ लायक समझा है तो मैं उसके सौंपे काम को अपना फर्ज समझ के अंजाम दूं और वो मैं बखूबी कर रहा हूं, बिल्कुल ईमानदारी के साथ। दिनभर में मेरे पास 30 से 40 के करीब फोन आते हैं, तौहीद भाई जल्दी आइए, मेरे घर में सांप निकला है, मेरे ऑफिस में सांप निकला है, हमारे बेडरूम में सांप घुस आया है। हमारे आटे की चक्की में सांप देखा है हमने। ऐसे अनगिनत कारण होते हैं फोन करने वालों के पास। अब आप इसे मेरी दिली ख्वाहिश मान लीजिए कि मुझे सांपों में उठना-बैठना सुहाता है, इसलिए चल पड़ता हूं उनसे मुलाकात करने या फिर इसे मेरी समाजसेवा कह लीजिए," - वो आगे कहते हैं।

तौहीद बताते हैं, "मैंने पहले ही कहा ईमानदारी के साथ, इसका मतलब है कि खाने का निवाला तोड़ा ही होता है और फोन बजे तो उस निवाले को भी नहीं खाता। कभी भी फोन करके देखिए मुझे, चाहे कड़ाके की सर्दी में, भारी बरसात में या आधी रात को या चिलचिलाते सूरज की दम निकालती गर्मी में, तौहीद को तो आना ही है अपने शहरी-ग्रामीण बन्धुओं को जहरीले सांपों को बचाने के लिए।"

फोटो साभार- मोईनुद्दीन चिश्ती

बचपन में अपने पिता खुर्शीद अहमद से सांपों को पकड़ने की कला सीख चुके तौहीद अब तक लाखों सांप पकड़कर जोधपुरी जनता को उनके खौफ से मुक्ति दिला चुके हैं। वे बताते हैं, "रोजाना जितने सांप पकड़ता हूं उनमें 80 प्रतिशत नाग यानी किंग कोबरा होते हैं, यानी वही पदम जिसके काटे को पानी भी नसीब नहीं होता। अब आप अंदाजा लगाइए कि किसी की जान पे बन आई होती है तो इस 'तौहीद' का मौका-ए-वारदात पर पहुंचना कितना जरूरी होता होगा और वो भी कितनी स्पीड के साथ।"

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बिना किसी हाइटेक तरीके से जहरीले से जहरीले सांप को चुटकी बजाते ही पकड़कर खाली डिब्बे में बंद करके उसे कायलाना झील की पहाड़ियों या माचिया सफारी पार्क में छोड़ आने वाले तौहीद ने एक भी सांप नहीं मारा। उनका कहना है कि मेरा मकसद सांप को मारना नहीं, उसे जीवन देना है। मैं सांप को पकड़ने जाता हूं तो उसकी जान भी बचती है, नहीं तो अपने आप को बचाने की कोशिश में पब्लिक उसे मार देती है।

सांपों पर विजय कैसे पाते हैं? पूछने पर वे बताते हैं, "हाथ में एक डंडी लेकर उसे सांप की गर्दन पर हल्के से रखकर उसका मुंह पकड़ लेता हूं और इतना करते ही खतरनाक से खतरनाक और जहर से लबरेज सांप मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ पाता, मुझे इसी तरह सांप पकड़ता देख कई जनों ने जोश-जोश में सांप पकड़ने की कोशिशें की पर अंजाम उन्हें भारी पीड़ा भुगतकर चुकाना पड़ा। मैं कैसे पकड़ लेता हूं, क्या मुझे डर नहीं लगता? ये सब बातें अजीब लगती हैं, कहूं तो भी क्या? मैंने कैसे पकड़ लिया, मेरा दिल जानता है या मेरा खुदा।"

तौहीद कहते हैं, "मैं कभी नहीं चाहता कि किसी को भी सांप काट जाए या किसी के घर में या कहीं भी सांप निकल आए? मेरी इस अनूठी समाज सेवा के चलते रोज नित-नई कहानियां मेरे जेहन में घर करती जा रही हैं, आइए आप को एक किस्सा सुनाता हूं, जब मैं सांप पकड़ने गया था।"

वो बताते हैं, "ये किस्सा रोचक इसलिए है कि आज तक मैंने जहां से भी सांप पकड़ा, उन लोगों ने यही चाहा जितनी जल्दी हो सके, मैं वहां से सांप लेकर चला जाऊं, ताकि उनकी सांसे नार्मल हो जाएं पर ये मामला तो सबसे ही अलग है। यहां मैंने जिस महिला के घर से सांप पकड़ा उसे पुनः उसके घर के पास खाली पड़े एक प्लॉट में छोड़ना पड़ा।"

फोटो साभार- मोईनुद्दीन चिश्ती

"लोग कहते हैं सांप पलंग पर नहीं चढ़ते, ये बात बिल्कुल मिथ्या है क्योंकि आज तक मैंने कई सांपों को लोगों के बिस्तरों से पकड़ा है। एयरफोर्स इलाके में एक औरत पूरी रात काले नाग के साथ सोती रही पर सुबह जब उसकी आंख खुली तो उसके होश उड़ गए। जब उसने मुझे सांप पकड़ने को बुलाया तब बताया कि मै रात को करीब 11 बजे लाईट बंद करके सोई थी और मैं घर में अकेली थी क्योंकि मेरे पति ट्रेनिंग पर गए हुए हैं, मुझे सोते वक्त ऐसा लगा कि मेरे बिस्तर में कुछ है मगर मैंने ध्यान नहीं दिया। पूरी रात मुझे ऐसा लगता रहा कि कोई मेरे ऊपर है, मगर मैंने ध्यान नहीं दिया और हम दोनों रात भर सोते रहे," - तौहीद आगे बताते हैं।

वो कहते हैं, "जब मैंने उस सांप को पकड़ा तो वह औरत उसे अपने घर के पिछवाड़े में छोड़ने की जिद करने लगी, जहां एक बड़ा सा खाली प्लॉट था, इस पर मैं तैयार नहीं हुआ क्योंकि जहरीले नाग को यूं खुले में छोड़ना पुनः किसी खतरे को दस्तक दे सकता था? अब मुझे उस महिला ने जो बताया, वो वाकई सोचने पर मजबूर कर देने वाला था।"

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उन्होंने कहा, 'मेरे पहले पति की मृत्यु सांप के काटने से हुई थी और आज ये सांप रात भर अगर मेरे साथ रहा है और मुझे काटा नहीं है तो मैं ये ही सोचती हूं कि ये शायद मेरे पूर्व पति ही होंगे जो इस वेश में आए हैं। प्लीज! इनको यहीं छोड़ दो और ऐसा कहते हुए उसने मेरे आगे हाथ भी जोड़ दिए। मैंने देखा कि उस वक्त उसकी आंखों में आंसू थे। मैंने उसका दिल रखते हुए वो सांप वहीं पिछवाड़े में छोड़ दिया।'"

फोटो साभार- मोईनुद्दीन चिश्ती

तौहीद अपनी टीम के बारे में कहते हैं, "ये तो लोगों की मेहरबानी है कि उन्हें ऐसे मामलों में सबसे पहले तौहीद ही याद आता है पर ऐसे कई मौके होते हैं जब मुझे फोन आता है तो मैं पहले से ही किसी सांप को पकड़ने के मिशन पर होता हूं, तब अगले को क्या कहूं? पर सांप भी पकड़ना जरूरी होता है। तब या तो मैं अपने बेटे शाहबाज को घर पर फोन करके अगले व्यक्ति के नम्बर दे देता हूं या छोटे भाई इफ्तेखार के नम्बर उन लोगों को दे देता हूं। निष्कर्ष के तौर इतना ही कि हम तीनों का एक कॉम्बिनेशन है जो शहर को खौफ से मुक्ति दिलाता है।"

"बरसात के दिनों में जब इन जहरीलों की भरमार होती है तो कई-कई दिनों तक हम एक दूसरे की शक्ल तक नहीं देख पाते, केवल मोबाइल पर ही सम्पर्क होता है। मेरी इस प्रसिद्धि के पीछे भाई इप्पू की मेहनत है तो बेटे का प्यार भी," - तौहीद आगे कहते हैं।

अपनी जिन्दगी की अंतिम सांसों तक सांपों से लोगों को नहीं मरने देने और लोगों द्वारा सांपों का जीवन बचाने की कसम खा चुके तौहीद द्वारा यह जानलेवा खेल यूं ही खेला जाता रहे, खुदा से फरियाद है तो बस इतनी कि जहरीले सांपों द्वारा इस सरताज को कुछ नुकसान नहीं पहुंचे क्योंकि वे हैं - सांपों के सरताज!

(लेखक देश के अग्रणी कृषि एवं पर्यावरण पत्रकार हैं, राजस्थान के जोधपुर में निवास)

    

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