कानून तो कई लेकिन महिला हिंसा जैसे मामलों को दर्ज कराने में होती है हीलाहवाली

देश की महिलाएं और बेटियां सुरक्षित महसूस करें, उनके साथ हो रही हिंसा से उन्हें आजादी मिले इस दिशा में हर साल विश्व स्तर पर संयुक्त राष्ट्र संघ की तरफ 16 दिवसीय (25 नवंबर से 10 दिसंबर) महिला के विरुद्ध होने वाली हिंसा के खिलाफ़ अभियान चलाया जाता है।

Neetu SinghNeetu Singh   27 Nov 2019 2:00 PM GMT

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कानून तो कई लेकिन महिला हिंसा जैसे मामलों को दर्ज कराने में होती है हीलाहवाली

लखनऊ। एक 14 साल की बच्ची के साथ गैंगरेप होता है पीड़िता का पिता बच्ची को लेकर एक सप्ताह तक एफआईआर दर्ज करवाने के लिए थाने और चौकी के चक्कर काटता रहा लेकिन एफआईआर दर्ज नहीं होती। अंततः उसे कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा।

ये घटना उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले की है। पीड़िता के पिता ने बताया, "मेरी बेटी शौच के लिए गयी थी तभी गांव के लोगों ने उसका अपरहण कर लिया। तीसरे दिन शाम को मेरी बेटी को गाँव के बाहर छोड़ दिया। चौकी और थाने के कई चक्कर लगाये पर पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की, पुलिस ने कहा गांव का आपसी मामला है निपट लो।"

वो आगे बताते हैं, "बेटी को लेकर एक हफ्ते थाने और चौकी जाता रहा। उम्मीद छोड़ दी थी कि अब इस केस में कुछ हो पायेगा पर एक वकील ने कोर्ट में जाने की सलाह दी। घटना के लगभग डेढ़ साल बाद आरोपी गिरफ्तार हुए।"

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एक दूसरा मामला सीतापुर जिला का है जहां एक 22 साल की महिला के साथ खुले में शौच के दौरान रेप होता है जबकि एफआईआर में छेड़खानी का मामला दर्ज होता है। पीड़िता का आरोप है, "थाने में मैंने बताया था कि मेरे साथ बलात्कार हुआ है इसके बाद भी उन्होंने छेड़खानी का मामला दर्ज किया। आरोपी कुछ दिन गिरफ्तार आ रहा अब छूटकर आ गया। आरोपी ग्राम प्रधान का चचेरा भाई है जिसकी वजह से प्रधान अब हमारे परिवार को समझौता करने के लिए दबाव डाल रहे हैं।"

ये केवल दो मामले नहीं हैं। ऐसे दर्जनों मामले आपको अपने आसपास देखने और सुनने को मिलते होंगे जिसमें यौनिक हिंसा से पीड़ित परिवार को न्याय की गुहार के लिए थाने, कोर्ट, कचहरी के अनगिनत चक्कर लगाने पड़ते हैं पर इसके बाद भी कई बार न्याय नहीं मिलता। देश की महिलाएं और बेटियां सुरक्षित महसूस करें, उनके साथ हो रही हिंसा से उन्हें आजादी मिले, यौनिक हिंसा जैसे गम्भीर मामले में पीड़ित पक्ष को न्याय मिले इस दिशा में हर साल विश्व स्तर पर संयुक्त राष्ट्र संघ की तरफ 16 दिवसीय (25 नवंबर से 10 दिसंबर) महिला के विरुद्ध होने वाली हिंसा के खिलाफ़ अभियान चलाया जाता है। इस समय कई गैर सरकारी संगठन इस अभियान में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं जिससे महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा पर रोक लगाई जा सा सके।

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आली संस्था की कार्यकारी निदेशक रेनू मिश्रा

इसी क्रम में महिलाओं को नि:शुल्क कानूनी सलाह देने वाली एक गैर सरकारी संस्था एसोसिएशन फॉर एडवोकेसी एंड लीगल इनिशिएटिव्स (आली) ने प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर जमीनी स्तर पर काम करने वाली कई महिलाओं ने यौनिक हिंसा के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की। इस कॉन्फ्रेंस में यूपी, झारखंड और उत्तराखंड की दर्जनों महिला कार्यकर्ता शामिल रहीं जो जमीनी स्तर से महिलाओं के हक और अधिकार के लिए काम करती हैं। ये सभी महिलाएं अपने-अपने राज्यों में जाकर जमीनी स्तर पर इस 16 दिवसीय अभियान में जागरूकता कार्यक्रम कर रही हैं जिससे महिलाओं को उनके हक और अधिकार के लिए जागरूक किया जा सके।

फतेहपुर से आयीं अनीता वर्मा बताती हैं, "आज जब रेप जैसे मामलों में नियम कानून इतना सख्त बन गये हैं इसके बाद भी गांव के लोग इससे वंचित हैं क्योंकि एफआईआर दर्ज कराना ही पीड़ित परिवार के लिए मुश्किल होता है। जब ऐसे मामलों में हम लोगों की मदद करते हैं तो हमें धमकियां मिलती हैं। हम इसकी बहुत परवाह नहीं करते हैं लेकिन अपनी सुरक्षा का ध्यान जरुर रखते हैं।"

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अगर हम आंकड़ों पर नजर डालें तो राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो 2016 के अनुसार भारत में हर 13 मिनट में एक महिला का रेप होता है। देश में 2014 के मुकाबले 2015 में इज्जत के नाम पर 796 प्रतिशत बढ़ गयी है। देश में महिलाओं को डायन कहकर हत्या कर दी जाती है जिसमें झारखंड सबसे आगे है। झारखंड में वर्ष 2001 से 2016 तक 523 महिलाओं को डायन घोषित कर उनकी हत्या कर दी गयी। नेशनल फैमली हेल्थ सर्वे के अनुसार देश में हर तीसरी महिला घरेलू हिंसा की शिकार है।

वहीं झारखंड से आयीं बिलचिंद मिंज कहती हैं, "हमारे यहाँ डायन प्रथा में कई महिलाओं की जान गयी है पर भी ऐसे मामलों की सुनवाई में बहुत वक्त लगता है। बाल-विवाह और घरेलू हिंसा बहुत होती है पर इस पर रोक नहीं लग रही है।"

महिला मुद्दों पर कानूनी सलाह देने वाली संस्था आली ने जनवरी 2018 से अगस्त 2019 के अपने केस से जुड़े आंकड़े भी साझा किए। जिसमें समुदाय आधारित केसवर्करों ने इस दौरान यौनिक हिंसा के 76 मामलों में हस्तक्षेप किया। इनमें 41 फीसदी संघर्षशील महिलाएं अनुसूचित जाति से हैं और 53 फीसदी महिलाएं अन्य पिछड़ा वर्ग से हैं। आंकड़े यह भी बताते हैं कि यौनिक हिंसा के 41 फीसदी मामलों में महिलाओं को पुलिस की कार्रवाई में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। वहीं 54 फीसदी मामलों में महिलाओं पर उनके परिवार व समुदाय से दबाव बनाया जाता है और आरोपी से धमकियां मिलती हैं।

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आली की कार्यकारी निदेशक रेनू मिश्रा इस 16 दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय अभियान पर कहती हैं, "हम यूपी के 25 से ज्यादा जिलों में महिला हिंसा विरुद्ध कुछ-कुछ कार्यक्रम करेंगे जिससे गांव स्तर पर लोग अपने हक और अधिकारों के लिए जागरूक हो सकें। कानून तो बहुत हैं हमारे यहाँ पर वो सिर्फ कागजों पर हैं। हम सरकार को आंकड़ों के आधार पर कुछ लिखित सुझाव भी दे रहे हैं जिसमें सुधार की आवश्यकता है।"

वो एनसीआरबी के ताजा आंकड़ों पर कहती हैं, "स्त्री-पुरुष समानता में इस साल के आंकड़ों के अनुसार भारत 129 देशों में से 95वें पायदान पर है। इस तरह से लैंगिक समानता सूचकांक की हालिया सूची में भारत घाना, रवांडा और भूटान जैसे देशों से भी पीछे है। उत्तर प्रदेश महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा में सबसे ऊपर है। हर घंटे महिलाओं के खिलाफ 6 अपराध हो रहे हैं।"

जमीनी स्तर पर महिलाओं के लिए काम कर रहीं जौनपुर जिले की ज्योति कहती हैं, "हमारे यहां दलित महिलाओं के मामलों में कई बार समाज का इतना दबाव होता है कि मुश्किल से ही उनके केस पुलिस तक पहुंच पाते हैं। अगर कोई महिला या कार्यकर्ता इसके लिए कोशिश भी करती है तो उच्च जाति से जुड़े आरोपी उसे प्रभावित करने की कोशिश करते हैं।"


  

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