ये हैं रियल लाइफ के 'बजरंगी भाईजान', 400 बिछड़े लोगों को मिला चुके हैं उनके परिवार से

सड़क पर बेसहारा घूमने वाले मनोरोगियों को उनके परिवार से हैं मिलाते, नेपाल के कई लोगों को पहुंचाया उनके घर

Chandrakant MishraChandrakant Mishra   9 July 2019 9:44 AM GMT

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ये हैं रियल लाइफ के बजरंगी भाईजान, 400 बिछड़े लोगों को मिला चुके हैं उनके परिवार से

लखनऊ। सिर्फ फिल्मों में ही नहीं बल्कि रियल लाइफ में भी 'बजरंगी भाईजान' होते हैं। उत्तर प्रदेश के बरेली निवासी शैलेश कुमार बेसहारा और मनोरोगियों को उनके अपनों से मिलाने में जुटे हैं। अब तक करीब 400 बेसहारा लोगों को पश्विम बंगाल, उत्तराखंड, पंजाब, बिहार और महाराष्ट्र में उनके घर तक पहुंचा कर उन्हें नई जिंदगी दी है।

बरेली के पशुपति बिहार कॉलोनी के रहने वाले शैलेश(30वर्ष) सड़कों पर बेसहारा, असहाय और मनोरोगियों के लिए काम करते हैं। मानसिक रोगियों का इलाज करा कर उन्हें उनके घर पहुंचाते हैं। शैलेश ने बताया, " नैदानिक मनोविज्ञान (क्लिनिकल साइकोलॉजी) में एमए करने के बाद मैंने पीएचडी शुरू की। एमए करने के दौरान बरेली के मानसिक अस्पताल में जाना हुआ। जहां मैं कुछ मनोरोगियों से मिला। इन मरीजों में से कुछ के ठीक हो जाने पर उनके परिजन उन्हें अपने साथ ले जाते, लेकिन कुछ ऐसे थे जो अपनों से मिलने के लिए तड़पते रहते थे। यह सब देख मैंने निश्चिय किया कि लंबी दाढ़ी, बिखरे बाल, तन पर मैले कुचैले कपड़े, बदहवास हालत में सड़क पर भटकते मनोरोगियों को उनके परिजनों से मिलाने को ही अपने जीवन का लक्ष्य बनाऊंगा।"

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बेसहारा लोगों को उनके परिजनों से मिलाना है शैलेश की जिंदगी का मकसद।

शैलेश ने बताया, "वर्ष 2014 में नेपाल की रहने वाली ललिसरा(30वर्ष) लापता हो गई थी। उस वक्त उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी। किसी तरह से वह नेपाल से यूपी के मुजफ्फरनगर पहुंच गई थी। वहां से उसे बरेली के ममता आश्रय स्थल भेज दिया गया था। जानकारी होने पर मैं ममता आश्रय स्थल गया और ललिसरा से बातचीत की। ललिसरा थोड़ी बहुत हिंदी जानती थी। उसी के आधार पर नेपाल में बताए गए पते पर उसके परिवार को को तलाशने निकल पड़ा। करीब एक सप्ताह की कड़ी मशक्त के बाद उसके घर का पता मिल गया। उसके घर वाले बरेली आकर उसे ले गए।"

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नेपाल की रहने वाली ललिसरा को मिलाया उसके परिजनों से।

शैलेश ने आगे बताया, " वर्ष 2014 में बरेली के दोहरा चौराहे पर भटिंडा के रहने वाले हरमेश कुमार(50वर्ष) लावारिस हालत में मिले थे। मैंने उन्हें मानसिक चिकित्सालय, बरेली में भर्ती कराया। भर्ती कराने के बाद मैं अक्सर उससे मिलने जाता, उससे बार करता, उसकी कॉउंसलिंग करता। ठीक होने पर उन्होंने अपना पता बताया। पंजाब के पटियाला शहर में उनके परिवार को खोजते-खोजते उनकी मौसी के घर पहुंचा। जब मौसी को उनके बारे में बताया तो उनको बिल्कुल यकीन नहीं हुआ कि हरमेश अभी जिंदा है। क्योंकि 14 साल पहले पत्नी के छोड़ जाने के बाद हरमेश की दिमागी हालत खराब हो गई थी और वह लापता हो गए थे।"

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बिहार की रहने वाली गुड़िया को 16 साल बाद मिलवाया।

"बिहार के मधुबनी जिले के जयनगर निवासी गुड़िया की शादी वर्ष 1995 में फारूख शेख से हुई थी। शादी के सात साल बाद पति ने गुड़िया को तलाक दे दिया। तलाक का सदमा गुड़िया बर्दाश्त न कर सकी और मानसिक संतुलन खो बैठी और घर से भटक गई। इस दौरान उसके घर वालों ने उसकी काफी तलाश की लेकिन उसका कहीं सुराग नहीं लग सका। भटकते-भटकते वह मेरठ पहुंच गई। वर्ष 2003 में उसे मेरठ से बरेली के नारी निकेतन भेज दिया गया। इसके बाद वर्ष 2014 में उसे बरेली के ममता आश्रय भेज दिया गया। जब मुझे यह बात चली तो मैं अपनी मुहीम में जुट गया। आखिरकार 2018 में उसके परिजनों का पता चल गया। 16 साल बाद बेटी से मिलकर उसके मां-बाप के खुशी का ठिकाना नहीं रहा। " शैलेश ने आगे बताया।

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लोगों की मदद के लिए खरीद लिया एंबुलेंस।

किसी को महंगी कार तो किसी को महंगी बाइक का शौक होता है और लोग इसे खरीदते भी हैं। लेकिन शैलेश अपना शौक पूरा करने के लिए एक एंबुलेंस खरीदी है। शैलेश ने बताया, " मनोरोगियों को अस्पताल तक ले जाने के लिए एंबुलेंस की जरूरत होती थी। अक्सर अस्पताल वाले समय पर एंबुलेंस देने से इनकार कर देते थे। इसीलिए मैंने एम्बुलेंस के लिए पैसा जमा करना शुरू कर दिया और एक एम्बुलेंस खरीद ली।"

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