मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना की जमीनी हकीकत, खेत से मिट‍्टी ली नहीं, रिपोर्ट घर पहुंच गई

Mithilesh DharMithilesh Dhar   13 Sep 2019 9:00 AM GMT

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Ministry of Agriculture and Farmers Welfare

खेतों की मिट्टी जांचने के लिए शुरू की गई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना को नीचे के अधिकारी कितना गंभीरता से ले रहे हैं, इसकी बानगी भर है कि बिना खेतों से मिट्टी उठाए मृदा स्वास्थ्य कार्ड घरों में पहुंचा रहे हैं। इतना ही नहीं, एक खेत की कई रिपोर्टस हैं वो भी अलग-अलग।

मृदा स्वास्थ्य कार्ड के नाम पर यह गोलमाल सामने आया है उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के ब्लॉक चरथावर के आखलोरा गाँव में, जहां गाँव वालों का आरोप है कि खेत में मृदा परीक्षण के नाम पर उनके साथ धोखा हुआ है। मिट्टी की जांच हुई ही नहीं और उनके खेतों की रिपोर्ट घर पर आ गई।

"एक दिन दोपहर में देखा तो घर के सामने ढेर सारी रिपोर्ट रखी थी। सब पर प्लास्टिक चढ़ी हुई थी। खोलकर देखा तो मृदा स्वास्थ्य कार्ड था। मुझे तो पता ही नहीं कि अधिकारी मेरे खेत से मिट्टी कब ले गये। पूरे गाँव के खेतों की रिपोर्ट थी। जबकि हमारे गाँव मिट्टी लेने कोई आज तक आया ही नहीं," आखलोरा गाँव के किसान पीयूष कुमार कहते हैं।

पीयूष आगे कहते हैं, "और तो और कई लोगों के खेतों की रिपोर्ट एक से ज्यादा है। मेरे नाम की ही दो कार्ड हैं। सबकी रिपोर्ट अलग-अलग है।" लगभग 200 घरों वाले आखलोरा गाँव की आधी से ज्यादा आबादी खेती पर निर्भर है।

इसी गाँव के अरुण शर्मा बताते हैं, "मेरे नाम के दो कार्ड आये। दोनों की रिपोर्ट अलग-अलग है। कौन आया, खेत से मिट्टी कौन ले गया, हमें इसकी कोई जानकारी ही नहीं है। जांच कैसे हुई ये भी नहीं पता। वर्ष 2016 और 2018 की रिपोर्ट है। दोनों की रिपोर्ट एक ही है। कई बार कृषि मित्र से शिकायत भी की, लेकिन कोई सुने तब तो।"

मृदा परीक्षण की प्रक्रिया के बारे में उत्तर प्रदेश के मृदा परीक्षण के सीनियर प्रोग्रामर नृपेंद्र चौहान बताते हैं, "हम सिंचित क्षेत्र के लिए करीब 06 एकड़ और असिंचित क्षेत्र के लिए करीब 24 एकड़ क्षेत्र पर एक ग्रिड के आधार पर नमूना लेते हैं। जिस खेत/ग्रिड क्षेत्र से मृदा नमूना लिया जाता है, उसमें आठ से 10 जगहों पर 6 X4 इंच के गड्ढे खोदे जाते हैं उसके बाद ही मिट्टी जांच के लिए लैब भेजी जाती है।"

अब विभाग द्वारा मिली जानकारी को ही आधार मानकर देखते हैं। आखलोरा गाँव का ही एक और मामला है। योगेश कुमार और सुधीर कुमार का। मृदा स्वास्थ्य कार्ड में इनके खेत का खसरा नंबर 247 दिखाया जा रहा है।

एक ही खसरा और दो अलग-अलग ग्रिड संख्या से दो अलग-अलग मृदा परीक्षण कार्ड (स्वायल हेल्थ कार्ड) बने हैं और दोनों की रिपोर्ट भी अलग है।

सुधीर कुमार के खेत की रिपोर्ट।

वर्ष 2015-16 और 2016-17 के चक्र में इनकी जांच हुई। दिनांक 4-3-2016 को एक ही खसरा नंबर पर दो रिपोर्ट बनी। ग्रिड नंबर अलग-अलग हैं जबकि रिपोर्ट एक ही है। इस मामले पर जब हमने सीनियर प्रोग्रामर नृपेंद्र चौहान से पूछा तो उन्होंने कहा, "ग्रिड संख्या अलग-अलग है, इसका मतलब रिपोर्ट सही है। हो सकता है उनकी जमीन एक ग्रिड क्षेत्र से बाहर हो।"

योगेश कुमार और सुधीर के पास कुल 11 बीघा जमीन है। अब चूंकि इनकी जमीन सिंचित है तो करीब 06 एकड़ क्षेत्र का ग्रिड लिया गया होगा। छह एकड़ कुल 15.443 बीघा जमीन होती है। मतलब इनके नमूने का ग्रिड नंबर एक ही होना चाहिए, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। और जब रिपोर्ट अलग-अलग है तो खसरा नंबर एक कैसे होगा ?


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 फरवरी 2015 को राजस्थान के सूरतगढ़ से मृदा स्वास्थ्य कार्ड की योजना को शुरुआत करते हुए कहा था कि हमें धरती मां के स्वास्थ्य की चिंता करनी चाहिए और उसकी जो कमियां हैं, उन कमियों की पूर्ति करने के लिए वैज्ञानिक तौर-तरीके अपनाने चाहिए।"

ऐसे में किसानों को उम्मीद जगी कि उनके खेतों की सूरत बदलने वाली है। मृदा परीक्षण योजना से किसानों की स्थिति में बदलाव आयेगा, लेकिन लापरवाही और सरकारी उदासीनता के कारण प्रधानमंत्री के इस महत्वाकांक्षी योजना का लाभ किसानों को मिल ही नहीं पा रहा।


आखलोरा गाँव के पीयूष जिनकी बात हमने शुरू में ही की थी उनका मामला तो कुछ और ही है। पूरे आखलोरा में इस नाम का एक ही आदमी है। रिपोर्ट्स कार्ड की मानें तो उनके खेत से मिट्टी का नमूना 19-02-2018 और 12-03-2018 को लिया गया। 12 बीघे के मालिक पीयूष के नाम से बनी दोनों रिपोर्ट में खसरा नंबर भी अलग-अलग है और ग्रिड नंबर भी। जबकि पीयूष का कहना है कि उनकी जानकारी में आज तक उनके खेत का नमूना किसी ने लिया ही नहीं।

पीयूष कुमार के नाम की दा रिपोर्ट। जबकि गांव में इस नाम का एक ही व्यक्ति है। रिपोर्ट मिली भी एक ही आदमी को है। दोनों रिपोर्ट अलग-अलग हैं।

इस गाँव में ऐसे एक नहीं कई मामले हैं जिससे जमीनी स्तर पर बरती गई लापरवाही का अंदाजा लगाया जा सकता है।

लक्ष्मण शर्मा इस योजना को लेकर खासे नाराज हैं। वे कहते हैं, "हमें तो लगा था कि इस योजना से हमें काफी लाभ होगा लेकिन इसमें इतना फर्जीवाड़ा हुआ कि पूछिए मत। एक तो मुझे पता ही नहीं चला कि कब मेरे खेत से मिट्टी ले गये, ऊपर से मेरा और मेरा भाई का एक ही तारीख दो कार्ड बनकर आ गया और दोनों की रिपोर्ट भी अलग-अलग है।"


इसका जवाब जानने के लिए हमने सहारनपुर के सहायक निदेशक, मृदा परीक्षण और कल्चर राम जतन मिश्रा से बात की। यह जिला मुजफ्फरनगर सहारनपुर मंडल में आता है।

लक्ष्मण और उनके भाई विष्णु दत्त का सॉयल हेल्थ कार्ड देखिए। दोनों का खसरा और ग्रिड नंबर एक है लेकिन रिपोर्ट अलग-अलग है। रिपोर्ट में थोड़ा बहुत बदलाव किया गया है।

राम जतन मिश्रा बताते हैं, " कई बार किसानों को इसलिए पता नहीं होता क्योंकि हम हर खेत से मिट्टी नहीं लेते। ढाई हेक्टयेर के ग्रिड क्षेत्र से मिट्टी लेते। मान लीजिए इस क्षेत्र में 10 किसान हैं तो जिस किसान के खेत से नमूना लिया जाता है उस किसान को पता होता है। अन्य किसानों को तब पता चलता है कि जब रिपोर्ट उनके पास पहुंचती है।"

ऐसे में जब ही क्षेत्र का नमूना लिया जायेगा तो उनकी रिपोर्ट क्या होगी, इस पर राम जतन मिश्रा बताते हैं, "उनकी रिपोर्ट भी एक ही होगी। अगर कहीं गड़बड़ी हुई है तो हम उस गाँव में किसी को भेजेंगे और पता करेंगे कि ऐसा क्यों हुआ है।"

उत्तर प्रदेश के सरकारी आंकड़ों के अनुसार प्रदेश के 75 जिलों और 182 तहसीलों में मिट्टी जांच की व्यवस्था है। प्रदेश में पहले चरण 2015-16 और 2016-17 में लगभग एक करोड़ 70 लाख और दूसरे चक्र 2017-18, 2018-19 में एक करोड़ 90 लाख मिट्टी के नमूनों की जांच हुई। (प्रदेश सरकार से मिले आंकड़ों के अनुसार)।

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इस मामले में उत्तर प्रदेश के संयुक्त कृषि निदेशक शोध एवं मृदा क्षेत्र, डॉ. सत्येंद्र सिंह कहते हैं, "सरकार अब हर जोत के हिसाब से मिट्टी परीक्षण करा रही है। इसमें ऐसी कोई शिकायत आयेगी ही नहीं। हर किसान के खेत की रिपोर्ट अलग-अलग होगी। हर रिपोर्ट की टैगिंग की जा रही है। ऐसे में किसी गलत रिपोर्ट की गुंजाइश रहेगी ही नहीं। आप जो बता रहे हैं ऐसा कैसे हुआ और इसकी सत्यता क्या है, इसका हम पता करेंगे।"

प्रदेश में मृदा कार्ड वितरण के मामले में गड़बड़ी की बात तब सामने आई थी जब नवंबर 2018 प्रदेश सरकार ने मुरादाबाद के उप कृषि निदेशक डॉ. अशोक कुमार तेवतिया को निलंबित कर दिया था। कई किसान संगठनों ने उन पर आरोप लगाया था कि उन्होंने मृदा परीक्षण एवं मृदा कार्ड वितरित करने में गलत आंकड़े प्रस्तुत किये थे।

किसान हितों के लिए पिछले चार दशकों से काम करने वाले मऊ जिले के देव प्रकाश राय ने तो पिछले वर्ष मृदा परीक्षण में हुई गड़बड़ी को लेकर धरना प्रदर्शन भी किया था।

देव प्रकाश राय ने 'गाँव कनेक्शन' को फोन पर बताया, "मैं अपने जिले में किसानों का नेतृत्व करता हूं। हजारों किसान मेरे संपर्क हैं। आज तक मुझे किसी किसान ने यह नहीं बताया कि कोई अधिकारी मिट्टी का नमूना लेने उनके खेत तक आया हो। सारी लिस्ट जिले में तैयार हो जाती है। मेरे घर मृदा परीक्षण की प्लास्टिक चढ़ी हुई रिपोर्ट आ गई। मेरी जमीन पांच अलग-अलग जगह है। कहीं का भी नमूना नहीं लिया गया। इस पूरी योजना में घोटाला हो रहा और ऊपर तक बात पहुंच ही नहीं रही है। "


कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग, सॉइल हेल्थ कार्ड की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2015-16 और 2016-17 के बीच हुए पहले मृदा परीक्षण चक्र में देश भर से कुल 2,53,49,546 नमूने लिए गए। इन सभी नमूनों का टेस्ट किया गया। इसमें 10,73,89,421 सॉयल हेल्थ कार्ड का प्रिंट हुआ जबकि 10,73,89,421 कार्ड किसानों तक भेजे गये।

वहीं दूसरे चक्र (2017-18, 2018-19) में 2,70,75,939 नमूने लिए गये और 2,66,43,033 नमूनों की जांच हुई। 11,24,01,205 सॉयल हेल्थ कार्ड प्रिंट हुए और 10,94,88,418 भेजे गये।


ऐसा नहीं है कि मृदा परीक्षण योजना का यह हाल बस उत्तर प्रदेश में है। प्रदेश से सटे बिहार और मध्य प्रदेश में भी हालात बहुत अच्छे नहीं हैं। बिहार के सीतामढ़ी जिले के गाँव गोविंद सितौंझा को प्रधानमंत्री जैविक कृषि योजना के तहत चयनित किया गया है।

जिला मुख्यालय से लगभग 35 किमी दूर रूनीसैदपुर थाना के तहत आने वाले इस गाँव में कुल 60 घर हैं और 71.91 हेक्टेयर जमीन कृषि योग्य है। इसके तहत इस गाँव में जैविक खेती को बढ़ावा देने की योजना है, लेकिन यहां के किसान तो प्राइवेट लैब में अपनी मिट्टी की जांच कराते हैं।

इसी गाँव के रहने वाले राधे श्याम सिंह 'गाँव कनेक्शन' को फोन पर बताते हैं, "आठ महीने पहले कृषि अधिकारी आए थे। खेत से मिट्टी भी ले गये। लेकिन कोई रिपोर्ट आई ही नहीं। मेरा बेटा पटना रहता है। उसने वहां के प्राइवेट लैब में मिट्टी की जांच कराई। अब उसके अनुसार खेती कर रहा हूं। मुझे लाभ मिल रहा है।"

राधे श्याम सिंह को इस जांच के लिए पैसे खर्च करने पड़े हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि कितना पैसा खर्च हुआ। लेकिन सरकारी योजना में यह बिल्कुल मुफ्त है।

बिहार, सीतामढ़ी के कृषि पदाधिकारी मोहन चौधरी 'गाँव कनेक्शन' को फोन पर बताते हैं, "मेरे जिले में कुल 17 ब्लॉक हैं। हर ब्लॉक हजारों की संख्या में किसान हैं। हम कितने खेतों का नमूना लेंगे। एक ही लैब है। तहसील स्तर पर लैब बनाने की बात हुई थी लेकिन उसक कुछ हुआ ही नहीं। ऐसे में हमारी कोई गलती नहीं है।"

जून 2019 से जांच विधि में बदलाव

केंद्र सरकार ने वर्ष तीसरे चक्र 2019-20 के लिए मृदा परीक्षण की विधि में बदलाव किये हैं। अब प्रत्येक ब्लॉक में एक-एक माडल गाँवों का चयन करके खसरा-खतौनी के आधार पर हर किसान के खेत की मिट्टी की जांच होगी और उसे मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित किया जाएगा। माडल गाँवों में ग्रिड के आधार पर नहीं बल्कि जोत के आधार पर नमूना लिया जाएगा।

इसके तहत इस अब तक देश भर से 16,71,222 नमूने लिए जा चुके हैं 8,15,497 नमूनों की जांच भी हो चुकी है। 6,15,521 कार्ड छपे हैं और 5,49,844 कार्ड किसानों तक भेजे जा चुके हैं।


मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ के पुराने संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा में मृदा परीक्षण की स्थिति ठीक नहीं है। मोहखेड़ ब्लॉक के चरगांव कर्बल के रहने वाले किसान संतोष राकेशिया ने फोन पर बाताया, "पिछले साल अक्टूबर में मेरे ब्लॉक के हर गाँव से 15 से 20 लोगों के खेत की मिट्टी ली गई। सबकी रिपोर्ट भी आई। सबकी रिपोर्ट एक जैसी है। हमने दोबारा जांच की मांग की, डीएम और कृषि अधिकारी से गुहार भी लगाई लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। हमें तो इस योजना से कोई फायदा ही नहीं हुआ।"


  

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