एक जिन्न जो हर चुनाव के बाद बाहर आता है...

Anusha MishraAnusha Mishra   15 Dec 2017 5:40 PM GMT

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एक जिन्न जो हर चुनाव के बाद बाहर आता है...क्या ईवीएम की टेम्परिंग की जा सकती है

लखनऊ। पिछले कुछ समय से ये देखने में आ रहा है कि जैसे कोई चुनाव होता है और उसके परिणाम सामने आते हैं तो हारने वाली पार्टी इसके लिए ईवीएम में गड़बड़ी को ज़िम्मेदार ठहरा देती है। यूपी के नगर निगम के चुनाव में भाजपा की जीत के बाद विपक्षी पार्टियों ने ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) को ज़िम्मेदार को ठहराया है। इससे पहले बसपा सुप्रीमो ने भी उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में अपनी हार का ठीकरा ईवीएम के ऊपर फोड़ा था और कहा था कि भारतीय जनता पार्टी ने ईवीएम टेम्परिंग कराई है जिससे उसे बहुमत हासिल हुआ है। उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव के बाद वहां पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी कहा था कि वह ईवीएम के चमत्कार की वजह से हारे हैं।

अब गुजरात के विधानसभा चुनाव के बीच भी ऐसी ख़बरें आई हैं कि गुजरात चुनाव के दूसरे चरण में 11 बजे तक 63 जगह ईवीएम में खराबी की शिकायत मिली थी। 34 मशीनों को जल्द ही बदल दिया गया था। यह बात गुजरात चुनाव आयोग से अधिकारी बीबी साविन ने बताई थी। इससे पहले ऐसा कहा जाता रहा है कि ईवीएम में गड़बड़ी नहीं हो सकती लेकिन गुजरात चुनाव ने इस विवाद को हवा दे दी है कि क्या ईवीएम की टेम्परिंग की जा सकती है? इस रिपोर्ट मे जानिए ईवीएम से जुड़े कई सवालों के जवाब -

क्या है ईवीएम

भारत में ईवीएम से वोट दिया जाता है और इसमें आसानी से मतगणना भी हो जाती है। यह पांच-मीटर केबल द्वारा जुड़ी दो यूनिटों-एक कंट्रोल यूनिट एवं एक बैलेटिंग यूनिट-से बनी होती है। ईवीएम की कंट्रोल यूनिट मतदान अधिकारी के पास होती है और बैलेटिंग यूनिट वोटिंग कम्पार्टमेंट के अंदर रखी होती है। बैलेट यूनिट ऐसी जगह रखी होती जहाँ कोई वोटर को वोट डालते समय देख ना सके। इसके अलावा संवेदनशील पोलिंग बूथ पर वोटिंग का सीधा प्रसारण होता है जो कि कहीं से भी देखा जा सकता है। एक ईवीएम अधिकतम 2000 वोट को रिकॉर्ड कर सकती है।

यह भी पढ़ें : गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा को 150 से अधिक सीटें मिल जाएं तो इसे ईवीएम का चमत्कार समझें : राज ठाकरे

एक ईवीएम पर अधिकतम 64 उम्मीदवारों को अंकित किया जा सकता है। अगर इससे ज्यादा उम्मीदवार होते हैं तो चुनाव आयोग को बैलेट पेपर का इस्तेमाल करना पड़ेगा, ऐसा नियम है। ईवीएम में अगर किसी प्रत्याशी को एक बार वोट दे दिया तो वह दर्ज हो जाएगा और दोबारा बटन दबाने पर कोई असर नहीं पड़ेगा। यानि एक व्यक्ति एक ही बार वोट दे सकता है क्योंकि मतदाता के एक बार बटन दबाते ही मशीन लॉक हो जाती है इस तरह से ईवीएम 'एक मतदाता एक मत' इस बात को साबित करती है।

बटन दबाने पर एक लाइट ब्लिंक करती, जिसका मतलब होता है कि वोट दर्ज हो गया

किस तरह होती है इस्तेमाल

नियंत्रण इकाई, पीठासीन अधिकारी या एक मतदान अधिकारी के पास होती है और मतदाता ईकाई यानी बैलेटिंग यूनिट मतदान कक्ष के अंदर रखी जाती है। बैलेटिंग यूनिट में प्रत्याशियों के नाम और चुनाव चिन्ह के आगे एक नीला बटन लगा होते है जिसे दबाने पर वोट दर्ज हो जाता है। बटन दबाने पर उसके पास लगी एक लाइट ब्लिंक करती, जिसका मतलब होता है कि वोट दर्ज हो गया। जैसे ही मतदाता बटन दबाता है, कंट्रोल यूनिट का पोलिंग अधिकारी तुरंत बटन को लॉक कर देता है। इसके बाद ईवीएम कोई वोट नहीं लेती। मतदान खत्म होने के बाद बैलेटिंग यूनिट यानि मतदाता ईकाई को कंट्रोल यूनिट से अलग कर दिया जाता है और इसे सुरक्षित रख दिया जाता है।

कहां बनती है ईवीएम

भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, बैंगलुरु और इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इण्डिया लिमिटेड, हैदराबाद द्वारा विनिर्मित 6 वोल्ट की एल्कलाइन साधारण बैटरी पर ईवीएम चलती है। इसका औद्योगिक डिजाइन तैयार करने वाले इंजीनियर आईआईटी बॉम्बे के इंडस्ट्रियल डिजाइन सेंटर विभाग के सदस्य थे। वीएम का ऐसे क्षेत्रों में भी इस्तेमाल किया जा सकता है जहां पर बिजली कनेक्शन नहीं हैं।

कब हुआ था ईवीएम का सबसे पहले इस्तेमाल

1980 में एमबी हनीफा ने भारत की इलेक्ट्रॉनिक रूप से संचालित होने वाली पहली वोटिंग मशीन का आविष्कार किया था। उनकी बनाई गई वोटिंग मशीन को तमिलनाडु के छह शहरों में अयोजित हुई सरकारी प्रदर्शनियों में पदर्शित किया गया था। ईवीएम का पहली बार इस्तेमाल मई, 1982 में केरल के परूर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के 50 मतदान केन्द्रों पर हुआ। 1983 के बाद इन मशीनों का इस्तेमाल इसलिए नहीं किया गया कि चुनाव में वोटिंग मशीनों के इस्तेमाल को वैधानिक रुप दिये जाने के लिए उच्चतम न्यायालय का आदेश जारी हुआ था।

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दिसम्बर, 1988 में संसद ने इस कानून में संशोधन किया और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में नई धारा-61ए जोड़ी गई जो आयोग को वोटिंग मशीनों के इस्तेमाल का अधिकार देती है। संशोधित प्रावधान 15 मार्च 1989 से प्रभावी हुआ। इसके बाद प्रयोगात्मक आधार पर पहली बार नवम्बर, 1998 में आयोजित 16 विधान सभाओं के साधारण निर्वाचनों में इस्तेमाल किया गया। इन 16 विधान सभा निर्वाचन-क्षेत्रों में से मध्य प्रदेश में 5, राजस्थान में 5, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली में 6 विधान सभा निर्वाचन-क्षेत्र थे।

2009 में आडवाणी ने किया था ईवीएम का विरोध

2009 में हुए लोकसभा चुनाव में जब बीजेपी की हार हुई थी तब पार्टी के नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने सबसे पहले ईवीएम पर सवाल उठाए थे। इसके बाद पार्टी ने भारतीय और विदेशी विशेषज्ञों, कई गैर सरकारी संगठनों और अपने थिंक टैंक की मदद से ईवीएम मशीन के साथ होने वाली छेड़छाड़ और धोखाधड़ी को लेकर पूरे देश में अभियान चलाया।

2013 में भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने भी ईवीएम की सुरक्षा पर सवाल उठाए थे और सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी जिसमें उन्हें वीपीपैट (वोटर वैरिफायएबल पेपर ऑडिट ट्रेल) वाली ईवीएम मशीन का इस्तेमाल करने चुनावों में किए जाने की अपील की थी।

वीवीपैट ईवीएम की तरह ही होती है लेकिन इसमें वोटिंग के समय एक परची निकलती है जिसमें उस पार्टी और उम्मीदवार की जानकारी होती है जिसे मतदाता ने वोट डाला जिससे मतदाता को यह पता चल जाता है कि उसके द्वारा दिया गया वोट सही उम्मीदवार को गया या नहीं।

क्या ईवीएम सुरक्षित है

बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार मई 2010 में अमिरका के मिशिगन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि उनके पास भारत की ईवीएम को हैक करने की तकनीक है। शोधकर्ताओं का दावा था कि ऐसी एक मशीन से होम मेड उपकरण को जोड़ने के बाद पाया गया कि मोबाइल से टेक्स्ट मैसेज के जरिए परिणामों में बदलाव किया जा सकता है।

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शारदा यूनिवर्सिटी में शोध और तकनीकी विकास विभाग में प्रोफेसर अरुण मेहता ने बीबीसी को दिए एक साक्षात्कार में कहा था कि ईवीएम में कंप्यूटर की ही प्रोग्रामिंग है और उसे बदला भी जा सकता है। आप इसे बेहतर बनाने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन ये भी देखें कि हैकर्स भी बेहतर होते जा रहे हैं। हालांकि प्रोफेसर अरुण मेहता ने यह भी कहा कि अदालत में ये कहना काफी नहीं है कि ईवीएम हैक हो सकती है। इसके लिए सबूत पेश करने होते हैं और ऐसा करना काफी मुश्किल है। ईवीएम की सिक्योरिटी पर नज़र रखने वाले तकनीकी विशेषज्ञ भी मानते हैं कि मशीनों को हैक करना कोई बड़ी बात नहीं है और ऐसा साबित भी किया जा चुका है। ईवीएम के द्वारा मतदान में पारदर्शिता न होने के कारण इसे कई देशों में बैन भी किया जा चुका है।

ये हैं वो देश जिनमें ईवीएम बैन है -

  • नीदरलैंड ने पारदर्शिता ना होने के कारण ईवीएम बैन कर दी थी।
  • आयरलैंड ने 51 मिलियन पाउंड खर्च करने के बाद 3 साल की रिसर्च कर भी सुरक्षा और पारदर्शिता का कारण देकर ईवीएम को बैन कर दिया था।
  • जर्मनी ने ईवोटिंग को असंवैधानिक कहा था क्योंकि इसमें पारदर्शिता नहीं है।
  • इटली ने इसलिए ईवोटिंग को खारिज कर दिया था क्योंकि इनके नतीजों को आसानी से बदला जा सकता है।
  • यूएस- कैलिफोर्निया और अन्य राज्यों ने ईवीएम को बिना पेपर ट्रेल के बैन कर दिया था।
  • सीआईए के सिक्योरिटी एक्सपर्ट मिस्टर स्टीगल के अनुसार वेनेज्यूएला, मैसिडोनिया और यूक्रेन में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीने कई तरह की गड़बड़ियों के कारण इस्तेमाल होनी बंद हो गई थीं।
  • इंग्लैंड और फ्रांस ने तो इनका उपयोग ही नहीं किया।

           

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