लाचारी: गोल्ड मेडेलिस्ट खिलाड़ी सुबह शाम करते हैं कुश्ती की प्रैक्टिस, दिन में बनाते हैं पंचर

ये कहानी है झारखंड के दो ऐसे युवा खिलाड़ियों की जिन्होंने खेत को अखाड़ा बनाकर कुश्ती का अभ्यास किया और देश के लिए गोल्ड मेडल भी जीता लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक न होने की वजह से वे अब पेट पालने के लिए संघर्ष कर रहे हैं

Neetu SinghNeetu Singh   22 Oct 2018 5:31 AM GMT

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लाचारी: गोल्ड मेडेलिस्ट खिलाड़ी सुबह शाम करते हैं कुश्ती की प्रैक्टिस, दिन में बनाते हैं पंचर

पश्चिमी सिंहभूम (झारखंड)। सारंडा के जंगलों में रहकर झारखंड के इन दो युवा खिलाड़ियों ने अभी हाल ही में श्रीलंका में सेकेंड साउथ एशियन गेम कुश्ती में अलग-अलग वर्ग में चार देशों को हराकर देश को गोल्ड मेडल दिलाया है। ये खिलाड़ी खेत में आखाड़ा बनाकर सुबह-शाम कुश्ती का अभ्यास करते हैं तो घर का खर्च चलाने के लिए दिन में पंचर और बाइक ठीक करते हैं। ये देश के लिए कई और मेडल जीतना चाहते हैं लेकिन खेल के लिए सही दिशा निर्देशन और सीमित संसाधन अभी इनकी समस्या बनी हुई है।


मोहम्मद सैफ़ अपने गोल्ड मेडल को निहारते हुए शांत थे। हमने उनसे पूछा जब गोल्ड मेडल मिला होगा तो आप बहुत खुश हुए होंगे। इस सवाल के जवाब में वो भावुक हो गये और बोले, "जब मुझे गोल्ड मेडल मिला तो सबसे पहले मुझे अपनी माँ की याद आयी क्योंकि माँ ने ही समूह से कर्ज लेकर श्रीलंका भेजने के लिए पैसे का इंतजाम किया था। सब तालियाँ बजाकर हमारा उत्साह बढ़ा रहे थे, खुशी में जश्न मना रहे थे मैं भी खुश था पर मैं जानता था ये सबकुछ कुछ घंटे की खुशी है। वापस जाकर मैं वही गाड़ियों के पंचर बनाऊंगा जिससे माँ कर्ज के पैसे जल्दी से वापस कर सके।"


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प्रकाश पाण्डेय (24 वर्ष) और मोहम्मद सैफ़ अंसारी (21 वर्ष) रांची से लगभग 200 किलोमीटर दूर सारंडा के जंगलों के बीच अगल-बगल गाँव के रहने वाले हैं। दोनों की दुकान भी मनोहरपुर ब्लॉक चौक पर आमने-सामने है। जहाँ सड़क की दाहिनी तरफ प्रकाश सुबह से शाम तक मोटरसाइकिल के नल्ट-बोल्ट कसते हैं तो वहीं बाईं तरफ सैफ़ अंसारी मोटरसाइकिल से लेकर बड़ी गाड़ियों के पंचर जोड़ते नजर आते हैं।

दोनों के घर की आर्थिक स्थिति लगभग एक जैसी है। पर इनमें खेल का जुनून ऐसा है जिसे गरीबी ने कभी बाधा नहीं बनने दिया। संसाधनों के आभाव में ये न तो रोजाना अच्छे कोच के दिशा निर्देशन में अभ्यास कर पाते हैं और न ही पौष्टिक खानपान। मोटरसाकिल के पुर्जों को खोल रहे प्रकाश पाण्डेय (24 वर्ष) ने बताया, "हम एक नहीं देश के लिए कई मेडल जीतना चाहते हैं। लेकिन अभी हमें अच्छे प्रदर्शन के लिए एक अच्छे कोच की जरूरत है, दुकान की वजह से जितना अभ्यास करना चाहिए उतना नहीं कर पाते हैं। कुश्ती खेलना हमारे रग-रग में बसा है तभी खेत में ही अखाड़ा बना डाला।"


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पश्चिमी सिंहभूम जिला मुख्यालय से लगभग 120 किलोमीटर दूर मनोहरपुर ब्लॉक के सैफ़ मीर मोहल्ला में तो प्रकाश पंजाबी साईं टोला में रहते हैं। श्रीलंका की राजधानी कोलम्बों शहर में 25 अगस्त से 27 अगस्त 2018 में आयोजित सेकेण्ड साउथ एशियन गेम में कुश्ती के 86 किलोग्राम वर्ग में प्रकाश पाण्डेय ने पहले पाकिस्तान फिर भूटान के बाद सेमीफाइनल में नेपाल को हराकर फाइनल में श्रीलंका के पहलवान से भिड़कर जीत हासिल की। वहीं सैफ अंसारी कुश्ती के 57 किलोग्राम वर्ग में पहले नेपाल फिर भूटान के बाद सेमीफाइनल में पाकिस्तान को हराकर फाइनल में श्रीलंका के खिलाड़ी से भिड़कर भारत के लिए गोल्ड मेडल जीता। भारतीय खेल बोर्ड द्वारा हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में बीते 16 जुलाई से 19 जुलाई तक आयोजित तीसरी नेशनल इंटर स्टेट चैंपियनशिप 2018-19 में रेसलिंग (कुश्ती) में जहाँ प्रकाश ने गोल्ड जीता वहीं सैफ ने रजत जीतकर श्रीलंका में होने वाले सेकेंड एशियन गेम कुश्ती में खेलने की जगह बनाई थी।

जब कोलम्बों में ये दोनों खिलाड़ी एक के बाद दूसरे देशों के खिलाड़ियों को पटखनी दे रहे होंगे तब शायद ही किसी को इस बात का अंदाजा होगा कि ये झारखंड के सुदूर गाँव के वो खिलाड़ी हैं जो पंचर बनाकर अपने घर का खर्च चलाते हैं और खेत के अखाड़े में अभ्यास करके देश के लिए गोल्ड मेडल जीता है।

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सैफ और प्रकाश दोनों के पिता का मुख्य व्यवसाय पंचर बनाना और गाड़ी ठीक करना है। वर्ष 2016 में प्रकाश के पिता का देहांत हो गया तबसे ये अपने बड़े भाई के साथ मिलकर दुकान पर गाड़ी ठीक करते हैं।

सैफ़ के पिता मोहम्मद रिजवान (60 वर्ष) ने कहा, "अगर ये मेडल जीता है तो सब ऊपर वाले का करिश्मा है। हम तो पढ़े-लिखे नहीं है पर ये लोग पढ़े इसके लिए मैं बीसों साल से पंचर बना रहा हूँ। तीन बेटे एक बेटी है जिसमें सैफ सबसे बड़ा है। जब परिवार बड़ा तो घर के खर्चे बढ़े मजबूरी में सैफ को भी एक पंचर की दुकान खुलवा दी। आठवीं कक्षा से ये पंचर बना रहा है।" उन्होंने आगे कहा, "जब श्रीलंका जाने का इसे मौका मिला तो मैंने जाने से मना कर दिया था। क्योंकि मेरे पास इतने पैसे नहीं थे कि मैं इसे भेज सकूं। पर इसकी माँ नहीं मानी समूह से कर्ज लेकर कुछ इधर-उधर से लेकर भेज दिया। अगर आगे कहीं इसे जाना पड़ा तो हमें आज भी सोचना पड़ेगा।"

दो घंटे की नीद लेकर ये खिलाड़ी ऐसे करते हैं अभ्यास

प्रकाश को बचपन से ही कुश्ती खेलना पसंद था। जब इन्हें टाटा के कदमा में मंगल सिंह अखाड़ा के बारे में पता चला तो ये बाहरवीं कक्षा के बाद सीखने जाने लगे। प्रकाश बताते हैं, "दिनभर दुकान चलाते शाम को आठ बजे की पैसेंजर ट्रेन पकड़कर रात एक बजे टाटा पहुंच जाते। स्टेशन पर ही दो-तीन घंटे सो पाते फिर चार बजे तक पांच किलोमीटर दौड़कर मानसिंह अखाड़ा पहुंचकर अभ्यास करने लगते। सात बजे फिर से वहां से स्टेशन आते। स्टेशन पर ही नहाधोकर साढ़े सात बजे दूसरी ट्रेन पकड़ते और 10:30 बजे मनोहर स्टेशन आ जाते। खाना खा पीकर 11 बजे से दुकान शुरू कर देते।" प्रकाश की लगभग चार महीने रोजाना की यही दिनचर्या थी। पिता के देहांत के बाद जिम्मेदारियां बढ़ी तो अब सप्ताह में दो से तीन बार ये और सैफ़ जाते हैं।


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सैफ ने बताया, "रोजाना जाना हमारे लिए सम्भव नहीं है। इसलिए दो तीन दिन में वहां से जो सीखकर आते हैं उसका अभ्यास रोजाना सुबह चार से सात बजे तक और शाम को दुकान बंद करने के बाद दो तीन घंटे करते हैं। अगर कुछ स्टेप भूल जाते तो टाटा चले जाते।"

जबसे ये दोनों खिलाड़ी देश के लिए मेडल जीतकर आये हैं तबसे आठ दस और युवा खिलाड़ी कभी-कभी अभ्यास करने आते हैं। दोनों खिलाड़ियों के साथ तीन चार घंटे वक़्त गुजारने के बाद मैंने ये महसूस किया कि इन्हें एक अच्छे कोच की जरूरत है जिससे इनको बेहतर खेलने में मदद मिले। सैफ की माँ ने कहा, "हम चाहते हैं हमारे बेटा देश के लिए खूब मेडल। जब ये हिमाचल प्रदेश गया तब सखी मंडल से 20 हजार रुपए लिए और जब श्रीलंका गया तो 30 हजार रुपए लिए। धीरे-धीरे किस्त भर रहे हैं। हमसे जितना होता है हम करते हैं पर अगर सरकार भी ध्यान दे दे तो ये बहुत आगे जाएंगे।"

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