गाँव बंद के बीच किसानों के दर्द को जानने के लिए पी. साईनाथ का यह इंटरव्यू देखिए।

किसान का दर्द और कृषि संकट को समझने के लिए को समझने के लिए एक विशेष संसद सत्र बुलाया जाए। इस विशेष संसद सत्र में किसान से जुड़े मसलों पर ही चर्चा होनी चाहिए और जानना चाहिए कि कृषि संकट क्या है?

Manish MishraManish Mishra   2 Jun 2018 10:11 AM GMT

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वसंती हरिप्रकाश/मनीष मिश्र

लखनऊ। आठ राज्यों में किसानों की हड़ताल जारी है। यह उनकी सहनशक्ति खत्म होने का नतीजा ही है कि किसानों ने विरोध 'गाँव बंद' करके किया। किसान सरकार से जिन मांगों को पूरा करने की मांग कर रहे हैं उनमें प्रमुख हैं उपज के मूल्य के लिए स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करना और कर्जमाफी। क्या हैं स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें? किसानों की समस्याएं कैसे दूर हो सकती हैं? सरकार कहां खेल कर रही है? इस पर विस्तार से 'गाँव कनेक्शन' ने बात की देश के जाने माने पत्रकार और कृषि के जानकार पी. साईनाथ।

"किसान का दर्द और कृषि संकट को समझने के लिए को समझने के लिए एक विशेष संसद सत्र बुलाया जाए। इस विशेष संसद सत्र में किसान से जुड़े मसलों पर ही चर्चा होनी चाहिए और जानना चाहिए कि कृषि संकट क्या है?," देश के प्रख्यात कृषि और ग्रामीण मामलों के जानकार और पत्रकार पी. साईनाथ ने 'गाँव कनेक्शन' से कहा।

रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता पी. साईनाथ ने कहा, ''तीन दिन स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट, तीन दिन पानी और सिंचाई संकट, तीन दिन कर्जमाफी और कर्ज देने के नियमों पर, तीन दिन खेती कैसी होनी चाहिए उस पर और तीन दिन जो कृषि संकट से पीड़ित विधवा और बच्चे हैं उन पर चर्चा हो। ऐसा एक बार होना ही चाहिए।''

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इस बार के बजट पर किसानों के लिए आवंटन पर पी. साईनाथ ने कहा, ''जब 2014 में केन्द्र सरकार चुन कर आई, और घोषणापत्र में कहा कि हम स्वामीनाथन आयोग की लागत मूल्य का डेढ़ गुना एमएसपी घोषित करेंगे, 2015 में इसी सरकार ने कोर्ट को शपथ पत्र दिया कि ऐसा कर पाना संभव नहीं है। अगर ऐसा करेंगे तो ये बाजार के विपरीत होगा," आगे कहा, "वर्ष 2016 में केन्द्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि हमने कभी भी ऐसा वादा किया ही नहीं। 2018 में वित्त मंत्री जेटली ने कहा कि ये होगा और हम रबी फसल में यह कर चुके भी हैं। इसमें इतना विरोधाभास है।''

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फसलों के समर्थन मूल्य का गणित समझाते हुए पी. साईनाथ ने कहा, "इसमें खेल लागत मूल्य निर्धारण में है, किसान, नौकरशाह और बैंक सभी का अलग-अलग नंबर आता है। फसल लागत मूल्य निर्धारण आयोग (सीएसीपी) एक संस्था है जो तीन तरह से लागत मूल्य का निर्धारण करती है।"

उन्होंने आगे कहा, "सीएसीपी तीन तरह से मूल्य निर्धारण करती है, पहले को ए-2 कहते हैं, इसमें सिर्फ उत्पादन लागत को जोड़ा जाता है, इसमें जो बीज, खाद और कीटनाशक पर किसान फसल पर कीमत अदा करता है। दूसरा है ए-2 प्लस एफएल (फैमिली लेबर), इसमें परिवार के मेहनताने को भी जोड़ा जाता है, तीसरा, सी-2 (कांप्रिहेंसिव कास्ट ऑफ प्रोडक्शन) इसमें जमीन की रेंटल वैल्यू भी जोड़ी जाती है। लीज्ड वैल्यू जोड़ी जाती है।

"दुनिया में हर एक प्राइवेट इन्टरप्राइज (निजी व्यापार करने वाली संस्था) यह सब को जोड़ती है। पूरी दुनिया और व्यापार जगत इसका गुण-भाग करता है, सिर्फ भारत के किसान को हम नहीं ऐसे जोड़ते। इसलिए स्वामीनाथन आयोग ने सी-2 को लागू करने की रेकमेंडेशन दी थीं," पी. साईनाथ ने कहा।

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उन्होंने समझाया, अगर मान ले कि गेहूं की सबसे खराब किस्म का ए-2 प्लस एफएल का कास्ट है, 797 प्रति कुंतल। सी-2 कास्ट 1200 रूपया। अगर 797 का डेढ़ गुना करें तो करीब 1000 एमएसपी आएगा, 1200 का डेढ़ गुना करेंगे तो एमएसपी 1800 आएगा। सरकार अभी जो डेढ़ गुना कर रही है वो ए-2 पर कर रही है, जो वर्ष 2011 में लागू पहले ही हो चुका है। इसमें कुछ नया नहीं है।

"स्वामीनाथन कमीशन की रेकमेंडेशन एमएसपी के लिए सी-2 पर था, सिर्फ गेहूं का ए-2 प्लस एफएल पर फिट हो रहा है। जो बड़े-बड़े सरकार अर्थशास्त्री बैठे हैं वह सरकार की चाटुकारिता करते हैं, कभी खेत पर गए नहीं। यह सिर्फ नंबरों और शब्दों का खेल है," देश के जाने माने कृषि विशेषज्ञ पी. साईनाथ ने कहा।

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किसान के दर्द बताते हुए उन्होने कहा, "मानसून और मार्केट के बीच में फंसा है, गलती किसान की नहीं, समाज और सरकार की है। किसान की गलती है कि वह किसान ही है," आगे कहा, "सरकार की नीतियां कार्पोरेट जगत के लिए बनाई गईं, किसान के लिए नहीं। खेती के लिए दिया जाने वाला कर्ज किसानी के लिए नहीं कृषि-व्यापार के लिए लिया जाता है। बड़ी-बड़ी कंपनियों के लिए कर्ज जा रहा है, अगर नीति किसान के लिए होती तो किसान सड़क पर नहीं होता। भारत एक कार्पोरेट स्टेट बन गया है, सारी नीतिया उनके लिए आती हैं।"

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