जन्मदिन विशेष : जानिए अन्ना की ज़िंदगी के कुछ अनछुए पहलू

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जन्मदिन विशेष : जानिए अन्ना की ज़िंदगी के कुछ अनछुए पहलूअन्ना हज़ारे

मंगलम् भारत

लखनऊ । महाराष्ट्र के किसन बाबूराव हज़ारे जिनको पूरा देश अन्ना के नाम से जानता है, आज 80 साल के हो गए हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ़ देश में नई अलख जगाने वाले अन्ना को दूसरा गाँधी भी कहा जाता है। महाराष्ट्र के गाँव राळेगण सिद्धि के सरपंच अन्ना हज़ारे का नाम 5 अप्रैल 2011 को हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ़ आन्दोलन के कारण देश भर में फैला लेकिन इसके पहले भी अन्ना महाराष्ट्र के 40 अफ़सरों को लकड़ी व्यापारियों के साथ हुए विवाद में सस्पेंड करा चुके हैं।

अन्ना के अनछुए पहलू

अन्ना का जन्म 15 जून 1937 को महाराष्ट्र के अहमदनगर ज़िले के भिनगरी नामक कस्बे में हुआ था। एक गरीब परिवार में जन्मे अन्ना ने 1960 में भारतीय सेना में ट्रक ड्राइवर के पद के रूप में दाखिला लिया और कुछ समय बाद सैनिक हो गए। भारत पाक की 1965 की जंग में सीमावर्ती क्षेत्र खेमकरण में अन्ना भी जंग का हिस्सा बने। युद्ध में होता हुआ जनसंहार और अपने जीवन में अन्ना ने आत्महत्या का निश्चय भी किया, लेकिन जीवन और मृत्यु के बारे में चिन्तन करते हुए उन्होंने आत्महत्या का विचार त्याग दिया। फिर अन्ना ने स्वामी विवेकानन्द, विनोबा भावे और गाँधी को पढ़ा, जिसका प्रभाव उनके जीवन पर पड़ा।

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शराबबन्दी में अन्ना का योगदान

अन्ना और उनके युवा साथियों ने राळेगण सिद्धि में शराब की 30 दुकानों को बन्द कराया। अन्ना ने अपनी बेल्ट से 3 शराबियों पर कोड़े भी बरसा चुके हैं। अन्ना ने महाराष्ट्र सरकार से अपील की, जिसमें कहा गया कि अगर 25 फ़ीसदी महिलाएँ गाँव में शराबबन्दी को लेकर दरख्वास्त करती हैं, तो गाँव में शराबबन्दी होनी चाहिये। इसे महाराष्ट्र सरकार ने 2009 में स्वीकार किया।

भ्रष्टाचार के खिलाफ़ अन्ना की अलख

अन्ना हज़ारे ने 2003 में कांग्रेस-एनसीपी सरकार के चार मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। उन मंत्रियों के इस्तीफ़े के लिये अन्ना ने 9 अगस्त 2003 को आमरण अनशन शुरू किया और 17 अगस्त 2003 को मुख्यमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने रिटायर्ड जस्टिस पी बी सावंत के अन्तर्गत एक सदस्यी कमेटी बनाकर आन्दोलन समाप्त कराया।

अन्ना ने अपने भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन की शुरूआत 1991 में भ्रष्टाचार विरोधी जन आन्दोलन से की, जो कि राळेगण सिद्धि का प्रसिद्ध जन आन्दोलन बना। 1991 में अन्ना ने लकड़ी व्यापारियों और अफ़सरों के हुए विवाद में 40 अफ़सरों को सस्पेण्ड और ट्रांसफर कराया।

सूचना का अधिकार के लिये अन्ना का प्रदर्शन

2000 की शुरुआत में अन्ना ने महाराष्ट्र सूचना का अधिकार क़ानून के लिये अन्ना ने आवाज़ उठाई। इससे बना क़ानून 2005 में केन्द्र सरकार द्वारा लागू सूचना के अधिकार का आधार ढाँचा बना।

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लोकपाल बिल

भारत में सर्वाधिक प्रसिद्ध अन्ना का यह आन्दोलन पूरे देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ़ सबसे बड़ा आन्दोलन रहा है। इस सुनियोजित आन्दोलन में अन्ना के सहयोगी मेधा पाटकर, अरविन्द केजरीवाल, प्रशान्त भूषण, किरण बेदी, जनरल वीके सिंह, संतोष हेगड़े और अन्य साथियों ने इस आन्दोलन को पूरे देश में एक आग की तरह फैला दिया। घरों-घरों से भ्रष्टाचार के खिलाफ़ एक जनलहर बन गई। पूरे प्रदेश में इस आन्दोलन को भरपूर समर्थन मिलने लगा। नाम तो केवल अन्ना का था, लेकिन पूरे भारत से कई लोगों ने अन्ना के साथ अनशन किया। अन्ना ने इस आन्दोलन को आज़ादी की दूसरी लड़ाई बताया। केन्द्र सरकार से कई बार माथापच्ची के बाद मोदी सरकार ने जनलोकपाल बिल को पास किया।

अन्ना को मिले सर्वोच्च सम्मान

1989 में अन्ना को महाराष्ट्र सरकार से कृषि भूषण पुरस्कार, 1990 में राष्ट्रपति से पद्म श्री, 1992 में राष्ट्रपति से पद्म भूषण तथा 1999 में भारत सरकार से अग्रणी सामाजिक योगदानकर्ता पुरस्कार मिल चुका है।

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