दिल्ली की देहरी : दिल्ली में बिजली आने की कहानी  

Nalin ChauhanNalin Chauhan   8 April 2018 12:31 PM GMT

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दिल्ली की देहरी : दिल्ली में बिजली आने की कहानी  दिल्ली में बिजली आने की कहानी

देश में सबसे पहला बिजली उत्पादन कलकत्ता इलेक्ट्रिक सप्लाई कॉरपोरेशन ने 1899 में शुरु किया था जबकि 20 वीं शताब्दी की शुरूआत में दिल्ली में बिजली पहुंची और राजनीतिक कारणों से शहर का महत्व बढ़ा।

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नारायणी गुप्ता की पुस्तक "दिल्ली बिटवीन टू एंपायर्स" के अनुसार, बिजली भी 1902 में (दिल्ली) दरबार के होने के कारण दिल्ली में आई। जबकि दिल्ली में 1905 में डीजल से पहली बार बिजली का उत्पादन शुरू हुआ। 1911 के तीसरे दिल्ली दरबार के समय जब अंग्रेज राजा ने बुराड़ी के कोरोनेशन पार्क में आयोजित एक समारोह में ब्रिटिश भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित करने की घोषणा की, उसी साल यहां पर भाप उत्पादन स्टेशन बनाया गया।

उल्लेखनीय है कि अंग्रेजों ने बीसवीं सदी के पहले दशक में भारतीय परंपरा की नकल करते हुए दिल्ली में दो दरबार (1903, 1911) किए, जिनमें बिजली से साज सजावट की गई। लियो कोल्मैन ने अपनी पुस्तक "ए मॉरल टेक्नोलाजी, इलेक्ट्रिफिकेशन एज पोलिटिकल रिचुअल इन न्यू डेल्ही" में भारत की राजधानी के बिजलीकरण के बहाने सांस्कृतिक राजनीति, भारत में राजनीतिक सोच को आकार देने में प्रौद्योगिकी अवसंरचना की भूमिका को रेखांकित करते हुए शहरी परस्पर निर्भरता और समन्वय की राज्य सहित स्थानीय शासन की परिकल्पना को रेखांकित किया है।

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"दिल्ली, पॉस्ट एंड प्रेजेन्ट" का लेखक एच सी फांशवा ने पूर्व (यानी भारत) में बिजली की रोशनी के आरंभ के विषय पर चर्चा करते हुए इसे एक फिजूल अपव्यय के रूप में खारिज कर दिया था। उसने तर्क देते हुए कहा कि दिल्ली में कलकत्ता में विपरीत कारोबार गोधूलि के अंत में खत्म हो जाता है और ऐसे में मिट्टी के तेल से होने वाली रोशनी काफी थी।

मैसर्स जॉन फ्लेमिंग नामक एक अंग्रेज कंपनी ने दिल्ली में वर्ष 1905 में पहला डीजल पावर स्टेशन बनाया। इस कंपनी के पास बिजली बनाने और वितरित करने की दोहरी जिम्मेदारी थी। विद्युत अधिनियम, 1903 के तहत लाइसेंस लेने के बाद जॉन फ्लेमिंग कंपनी ने पुरानी दिल्ली में लाहौरी गेट पर दो मेगावाट का एक छोटा डीजल स्टेशन बनाया। बाद में इसका नाम दिल्ली इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई एंड ट्रैक्शन कंपनी हो गया। 1911 में, बिजली उत्पादन के लिए स्टीम जनरेशन स्टेशन यानी भाप से बिजली बनाने वाले स्टेशन की शुरूआत हुई।

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"दिल्ली के गजट, 1912" के अनुसार, बिजली से रोशनी के मामले में दिल्ली किसी भी तरह से पिछड़ी नहीं थी। यह बात सही है कि छोटी गलियों और सिविल लाइंस में ही थोड़े बहुत मिट्टी के तेल से जलने वाले चिरागों से रोशनी की जाती है पर सैद्वांतिक रूप से गलियों में बिजली की रोशनी की व्यवस्था की गई है। कुल मिलाकर 2000 मोमबत्तियों की रोशनी के बराबर 40 लैम्प और 50 मोमबत्तियों की रोशनी के बराबर 80 लैम्प लगाए गए हैं। सार्वजनिक इमारतों, सिविल लाइन्स के घरों और रईसों के घरों को रोशनी के लिए बतौर नियम बिजली दी जा रही है।

लियो कोल्मैन के अनुसार, इन अंग्रेज शाही रस्मों ने आधुनिक प्रौद्योगिकियों पर औपनिवेशिक पकड़ को प्रदर्शित किया और भारतीय राजा रजवाड़ों को भी अपने राजनीतिक और धार्मिक अनुष्ठान कार्यक्रमों के लिए आधुनिक बिजली का इस्तेमाल करने के लिए प्रयासरत होने की दिशा में प्रेरित किया।

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1932 में केन्द्रीय विद्युत गृह का प्रबंधन नई दिल्ली नगर निगम समिति (एनडीएमसी) को दे दिया गया। दिल्ली के बिजली उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में, 1939 का साल एक मील का पत्थर था क्योंकि इसी बरस दिल्ली सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी पॉवर अथॉरिटी (डीसीईपीए) बनाई गई। इस कंपनी की जिम्मेदारी स्थानीय निकायों, विशेष रूप से दिल्ली म्यूनिसिपल कमेटियों के क्षेत्रों, पश्चिम दिल्ली और दक्षिण दिल्ली के अलावा अधिसूचित क्षेत्र समितियों के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों लाल किला, सिविल लाइंस, महरौली, नजफगढ़ तथा दिल्ली डिस्ट्रिक बोर्ड को बिजली मुहैया करवाना था। जबकि दिल्ली-शाहदरा की म्यूनिसिपल कमेटियों के क्षेत्रों और नरेला के अधिसूचित क्षेत्र में बिजली आपूर्ति का काम विभिन्न निजी एजेंसियों के हाथ में था।

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भारत को स्वतंत्रता मिलने पर यानी वर्ष 1947 में डीईएसटीसी को डीसीईपीए लिमिटेड ने अधिग्रहित कर लिया तो 1951 दिल्ली राज्य विद्युत बोर्ड गठित हुआ।

       

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