कानून की पढ़ाई करने वाली युवती ने बताया क्यों कर रही कृषि कानूनों का विरोध और किसानों का समर्थन

किसान आंदोलन में युवा: किसी ने छोड़ी नौकरी किसी ने पढ़ाई, कहा- बुजुर्ग ठंड में बैठे हैं हम घर में कैसे रहते?" कोई धुलता है बर्तन, कोई बनाता है लंगर, कोई सोशल मीडिया पर रखता है किसानों की बात

shivangi saxenashivangi saxena   26 Dec 2020 4:04 PM GMT

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टिकरी बॉर्डर/सिंघु बॉर्डर। लुधियाना से एलएलएम की पढाई कर रही हरमान मथारू महिलाओं के साथ मुख्य स्टेज के सामने सबसे आगे बैठी थीं। वो अपने भाई और परिवार के साथ 22 दिसंबर को टिकरी बॉर्डर पहुंची हैं। हरमान लगातार इस आंदोलन को सोशल मीडिया पर फॉलो कर रही थीं, जिसके बाद उन्हें ये लगा कि मौके पर पहुंच कर किसानों का समर्थन करना चाहिए।

"ये किसान आने वाली पीढ़ी के भविष्य के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। 80 साल के बुज़ुर्ग ठण्ड में बैठे हैं। ऐसे में हमारा फ़र्ज़ है हम उनके साथ आकर इस लड़ाई को आगे लेकर जाएं।" हरमान मथारू ने गांव कनेक्शन से कहा। कई छात्र अपनी पढ़ाई की चिंता न करते आए हैं तो कई युवाओं ने किसानों के आंदोलन में शामिल होने के लिए नौकरियां तक छोड़ दी हैं।

प्रीतपाल सिंह (29 ) हरियाणा के सिरसा जिले में सिविल अस्पताल में काम किया करते थे। आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए वो अपनी तीस हज़ार प्रति माह की नौकरी छोड़कर आये हैं। प्रीतपाल कहते हैं कि आंदोलन में भाग लेना ज़्यादा ज़रूरी है, "युवाओं में जोश है, बुज़ुर्गों में होश है। जब दोनों एक हो जाते हैं तब ताकतवर से ताकतवर सियासत को घुटने टेकने पड़ते हैं। सरकार ये काले क़ानून वापस नहीं लेकर युवाओं का भरोसा तोड़ रही है।"

नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का विरोध प्रदर्शन जारी है। सरकार से 5 दौर की वार्ता हो चुकी है, छठा दौर 29 दिसंबर को प्रस्तावित है। इस बीच टिकरी बॉर्डर पर किसान क्रमिक भूख हड़ताल पर बैठे हैं। इसमें हर उम्र के किसानों ने हिस्सा ले रहे हैं।


एमबीए, बीटेक, डॉक्टरी और इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले भी आंदोलन में शामिल

बुज़ुर्गों किसानों का हौसला देख कई ऐसे युवा भी आंदोलन का हिस्सा बन रहे हैं, जिनका सीधा वास्ता खेती-किसानी से नहीं है। ऐसे युवा आंदोलन में पहुंच कर न सिर्फ किसानों को अपना समर्थन दे रहे हैं बल्कि सेवादार के रुप में किसी तरह काम करने में हिचकिचा नहीं रहे हैं। गांव कनेक्शन की जिन युवाओं और छात्रों से बात हुई उनमें कई बीटेक और एमबीबीएस पास हैं। ये शाम के खाने के लिए सब्जियां काटते, सड़क साफ़ करते और बरतन धोते दिख जाएंगे। कानून और मैंनेजमेंट की पढ़ाई करने वाले युवा भी आंदोलन में मिल जाएंगे।

पंजाब के चांदपुर से आये हरप्रीत सिंह (22 वर्ष ) बीए के दूसरे साल में हैं। गाँव कनेक्शन के साथ मुलाकात के दौरान हरप्रीत टिकरी बॉर्डर पर लंगर सेवा के लिए गाजर छील रहे थे। उनका मानना है कि उनके बाप- दादा किसान हैं और किसान के बच्चे होने के नाते ये उनका फ़र्ज़ है कि वो उनकी रीड बनकर खड़े रहें। कड़ाके की सर्दी में बुजुर्ग-बुजुर्ग किसान जब खुले आसमान के नीचे बैठे हैं हम घर में कैसे रहते।

गांव कनेक्शन की अलग-अलग टीमें 25 नवंबर से ही लगातार किसान आंदोलन को कवर कर रही हैं। 11 दिसंबर को गांव कनेक्शन की मुलाकात मानसा से टिकरी बॉर्डर पहुंचे जयपाल सिंह से हुई। जयपाल पेशे से फिसिओथेरपिस्ट डॉक्टर हैं। वो अपने सात साल के बच्चे और घर के छः अन्य सदस्यों के साथ टिकरी बॉर्डर आये हैं। गाँव कनेक्शन से की बातचीत में उन्होंने हमें बताया कि वो ना केवल ज़रूरतमंद किसानों का इलाज कर रहे हैं बल्कि अलग- अलग कामों में अपनी भूमिका निभा रहे हैं। जयपाल सब्जी काटने से लेकर रोटी का आटा गूंथने तक शाम के खाने की तैयारी खुद करते हैं।

टीकरी बॉर्डर पर किसानों के कपड़े साफ करते युवा। फोटो- शिवांगी सक्सेना

सुबह 8 से 10 पढ़ाई फिर किसानों की सेवा

यहीं पर गांव कनेक्शन की मुलाकात 16 साल के गुरमीत से हुई जो लंगर बाँटते दिखाई पड़े। वो दसवीं कक्षा में पढ़ते हैं। वो अपने भाइयों के साथ हरियाणा के फतेहबाद से टिकरी बॉर्डर आये थे। गुरमीत बताते हैं, "सुबह आठ से दस बजे तक ऑनलाइन पढाई करता हूं, जिसके बाद ही जो काम दिया जाता है करता हूं।" गुरमीत जर्मनी से तकनीकी खेती की पढाई करना चाहते हैं।

किसानों का आंदोलन दिल्ली के चार नाकों पर चल रहा है। इनमें सबसे ज्यादा किसान सिंघु बॉर्डर है। यूपी के गाजीपुर में कई किसान संगठन डेरा डाले हुए हैं, इसी तरह टिकरी और शाहजहांपुर बॉर्डर पर भी काफी किसान बैठे हैं। प्रदर्शन में सबसे ज्यादा महिलाएं टिकरी बॉर्डर पर नजर आती हैं।

पिछले कई दिनों से टिकरी बॉर्डर पर प्रदर्शन में बैठ रही हैं मंजीत कौर (23 ) हरियाणा के फतेहाबाद जिले के बेलता गाँव ( जाखल) से आयी हैं। एमए पास मंजीत कौर सुबह के बरतन और महिलाओं के कपडे धोती हैं।

'मैं किसान आंदोलन का हिस्सा बनी हूं क्यों खेती मेरे खून में है'

मंजीत कहती हैं, मैं इस आंदोलन का हिस्सा बनी हूं क्योंकि खेती मेरे खून में है। खेती उनका धर्म है और इसमें प्रॉफिट- लॉस नहीं देखा जा सकता। हम पढ़ते हैं ताकि खेती में नई तकनीकों का समावेश समझकर किसानी में उनका बेहतर उपयोग कर सकें।"

पंजाब के संगरुर जिले से आए जसबीर विंह बीबीए की पढ़ाई कर रहे हैं, वो किसानी को अपनी माँ की तरह देखते हैं। जसवीर कहते हैं, "हम नौकरी करते हैं बिना इस चिंता के कि खाना कहाँ से मिलेगा। किसान हैं तो प्लेट में रोटी मिलती है। ये हमारा धर्म है इस आपदा के समय किसानों के कंधे से कंधा मिलाकर साथ खड़े रहें और सरकार से इन काले कानूनों को वापस लेने को कहें।"

टिकरी व सिंघु बॉर्डर पहुंचे छात्रों ने बॉर्डर पर अस्थाई पुस्तकालय का निर्माण किया है। इसे किताबों का लंगर भी नाम दिया गया है। सिंघु बॉर्डर पर लाइब्रेरी चला रहे मनधीर सिंह (40 वर्ष ) शहीद भगत सिंह नगर, नवाशहर से आये हैं। वो बताते हैं कि यह लाइब्रेरी पढ़ने वाले युवाओं और बुज़ुर्गों के लिए एक पहल है। आंदोलनकारी सुबह 11 से सात यहाँ आकर किताबें पढ़ सकते हैं। यहाँ पंजाबी, हिंदी और अंग्रेजी में किताबें मौजूद हैं। इन किताबों में पंजाब का इतिहास लिखा है व कई किताबों में किसान संघर्ष की कहानियां हैं। रोज़ाना हज़ार किताबें यहाँ डोनेशन में आती हैं। जो लोग किताबें ले जाना चाहते हैं वो अपना नाम और फोन नंबर लिखवा जाते हैं।

यहीं नहीं सिंघु बॉर्डर पर बने इस पुस्तकालय में वालंटियर्स बॉर्डर के आस-पास बनी बस्तियों के बच्चों को मुफ्त पढ़ाते भी हैं। हर किसी को मुख्य स्टेज पर बोलने का मौका नहीं मिलता। ऐसे में अँधेरा होते ही यहाँ चौपाल का कार्यक्रम शुरू हो जाता है जिसमे लोग कविताएं सुनाते व अपनी बात रखते हैं।



किसानों की आवाज बन रही है कला

सिंघु व टिकरी बॉर्डर पर कला और पोस्टर के ज़रिए किसानों की बातों को आगे बढ़ाया जा रहा है। टिकरी बॉर्डर पर पंजाब विश्वविद्यालय से कई छात्र गुट में पहुंचे हैं। रोबिन बरार भागसर गाँव, पंजाब से आये हैं। 27 नवंबर से वो अपने सात अन्य साथियों के साथ टेंट लगाकर टिकरी बॉर्डर पर मौजूद हैं। वो और उनके साथी दोस्त सुबह से पोस्टर बनाने की शुरुआत कर देते हैं। मुख्य स्टेज की तरफ जाने वाले लोग उनसे पोस्टर ले जाते हैं।

पंजाब में मानसा जिले के दलेलवाला के गुरुपाल सिंह (29 वर्ष) अपने दोस्तों के साथ टिकरी बॉर्डर पर डेरा डाले हैं। उन्होंने टिकरी बॉर्डर पर फोटो प्रदर्शनी लगाई है। गुरपाल ने गांव कनेक्शन को एक तस्वीर भी दिखाई जिसे उन्हें अमरीकी डिज़ाइनर निशा सेठी ने मेल पर भेजी थी।

पोस्टर बनाने वालों में युवाओं का साथ कई बुजुर्ग भी देते हैं। टिकरी बॉर्डर पर बैठे निछत्तर सिंह (66 वर्ष) बरनाला के रहने वाले हैं। वो सुबह से शाम तक में बीस से तीस पोस्टर बना लेते हैं। जिन्हें पंजाबी (गुरुमुखी) समझ नहीं आती वो उन्हें फर्राटेदार अंग्रेजी में अपनी और किसानों की बातें बताते हैं।


व्हीलचेयर पर राणा जो स्पीकर किसानों से संबंधित गीत बजाकर लोगों को प्रेरित करते हैं। फोटो- शिवांगी सक्सेना

दिव्यांग भी पहुंचे हैं दिल्ली बॉर्डर

किसानों के आंदोलन और मोर्चों में शामिल होने वाले हर उम्र के लोग तो हैं कि तमाम वो लोग भी पहुंचे हैं तो शारीरिक रुप से सक्षम नहीं हैं। 28 साल के राणा व्हीलचेयर पर हैं। राणा खुद तो अपने साथियों के सहारे से चलते हैं लेकिन उनके हाथ में एक स्पीकर होता है, जिसमें वो किसान आंदोलन और खेती किसानी से जुड़े गीत बजाकर लोगों का हौसला बढ़ाते हैं। बचपन में ट्रैक्टर के नीचे आने से उनके दोनों पैर चले गए। इतनी भीड़ में वो अपने साथियों के साथ बॉर्डर पर मौजूद किसानों का मनोबल बढ़ाने का प्रयास करते हैं। उनके अनुसार उन्हें बॉर्डर पर कोई परेशानी नहीं हो रही। वो आराम से ट्रॉली में सोते और खाते हैं।

पानीपत में कराड़ गांव के रविंदर (40 वर्ष) अपने दो छोटे बच्चों के साथ ट्राइसाइकिल से लंबा सफर तय करके सिंघु बॉर्डर पहुंचे हैं। रविंदर जब ढाई साल के थे, उन्हें पोलियो हो गया। तब से वो ट्राईसाइकिल का इस्तेमाल करते हैं। वो कहते हैं, "जब तक सरकार बिल वापस नहीं लेती यहाँ से कही नहीं जाएंगे। ज़िन्दगी की कई मुश्किलों से जीतकर बाहर निकले हैं। संघर्ष करना बचपन में सीख लिया था। इस बार भी पीछे नहीं हटेंगे।"

आंदोलन में युवाओं के शामिल होने से किसानों को सबसे ज्यादा फायदा तकनीकी के जरिए अपनी बात पहुंचाने में हुआ है। पढ़े लिखे गैजेट पसंद करने वाले युवा न सिर्फ सोशल मीडिया पर उनकी बात रखते हैं, बल्कि किसानों की कई मुश्किलों को भी हल किया है। युवा गाँव से देसी गीज़र, चार्जिंग के लिए इलेक्ट्रिक बोर्ड और वॉशिंग मशीन लेकर आये हैं। इन्हे चलाने के लिए बिजली ट्रैक्टर पैदा की जाती है। सिंघु व टिकरी बॉर्डर पर कुछ युवाओं ने सोलर पैनल का जुगाड़ किया है।

टिकरी बॉर्डर पर टॉयलेट की कमी है। अभी भी लोग ठंडी ज़मीन पर सिंगल गद्दा बिछाकर सोने को मजबूर हैं। मुफ्त चिकित्सा और लंगर के कम टेंट दिखाई पड़ते हैं। बावजूद इसके कई हज़ारों किसान खुले आसमान और ठंडी हवाओं के बीच पिछले एक महीने से दिन- रात गुज़ार रहे हैं। युवाओं के जोश ने बॉर्डर पर बैठे किसानों का मनोबल बढ़ाया है। पंजाब के फतेहगढ़ साहिब से सिंघु बॉर्डर पहुंचे हजिंदर सिंह (68 वर्ष ) का कहना है कि युवाओं को उनके बीच शामिल होता देख उन्हें भविष्य की चिंता नहीं होती। उनके आने से आंदोलन को नई ऊर्जा मिली है। आगे आने वाली पीढ़ी समझदार है और उन्हें ये देखकर ख़ुशी मिलती है।

     

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