प्राइवेट स्कूल ही नहीं, इन सरकारी स्कूलों के बच्चे भी कर रहे हैं कमाल
Anusha Mishra 7 Feb 2018 12:29 PM GMT
मैंने पहली कक्षा से लेकर पांचवी कक्षा तक गाँव के प्राइमरी स्कूल में पढ़ाई की। इसके बाद मैंने जवाहर नवोदय विद्यालय (जेएनवी) की प्रवेश परीक्षा दी और उसमें मेरा चयन हो गया। हाईस्कूल तक मैंने वहीं पढ़ाई की। ग्याहरवीं व बारहवीं में दक्षना संस्था की तरफ से मुझे आईआईटी की कोचिंग कराई गई जिसके बाद मेरा आईआईटी दिल्ली में चयन हो गया। ये कहना है अविनाश डोंगरे का। अविनाश डोंगरे औरंगाबाद (महाराष्ट्र) के सोलनापुर गाँव के रहने वाले हैं।
वह बताते हैं कि जब आईआईटी दिल्ली में मेकेनिकल इंजीनियरिंग में मेरा एडमिशन हुआ तब मेरे परिवार को यह भी नहीं पता था कि मैं क्या कर रहा हूं और ये क्या होता है। मैंने उन्हें सरल शब्दों में समझाया कि मैं ‘गाड़ी और बाइक वाली इंजीनियरिंग’ कर रहा हूं। वह बताते हैं कि मेरे परिवार वाले इससे कहीं ज़्यादा खुश तब थे जब मेरा जेएनवी में एडमिशन हुआ था। उनका परिवार साल के छह महीने एक छोटे से खेत में काम करता है और आधे साल उनके घर से 11 किलोमीटर दूर पैठान में ईंटें पहुंचाने का काम करता है।
डोंगरे बताते हैं कि 2007 में जब वह कक्षा 5 में थे तब उनके शिक्षक ने उनसे कहा था कि वे नवोदय विद्यालय की परीक्षा दें। उन्होंने और उनके नौ और दोस्तों ने ये परीक्षा दी लेकिन सिर्फ उनका ही इसमें चयन हुआ। कक्षा छह से हाईस्कूल तक वे औरंगाबाद के नवोदय बोर्डिंग स्कूल में पढ़े। इसके बाद जेएनवी के बच्चों को आईआईटी की तैयारी कराने वाले एनजीओ दक्षना संस्था ने उनका टेस्ट लिया। यह संस्था नवोदय के बच्चों का टेस्ट लेती है और उनमें से 30 बच्चों का चयन करती है जिन्हें आईआईटी की कोचिंग कराई जाती है। इसमें भी अविनाश का चयन हो गया। 2014 में अविनाश ने आईआईटी दिल्ली का एक्जाम क्लीयर कर लिया।
अविनाश की तरह गाँव के कई ऐसे बच्चे हैं जो सरकारी स्कूल से पढ़ते हैं और आईआईटी, मेडिकल व सिविल परीक्षाओं को पास करते हैं। मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावेड़कर ने सितंबर 2017 में बताया था कि नवोदय विद्यालय के 14183 बच्चों ने मेडिकल की नीट (NEET) परीक्षा दी थी जिसमें से 11875 ने इस परीक्षा को पास कर लिया था। इसमें से 7000 बच्चे उस समय मेडिकल कॉलेज में पढ़ने भी लगे थे। इंजीनियरिंग के जेईई (ज्वाइंट एंट्रेंस एग्जाम) में बैठने वाले नवोदय विद्यालय के 95 फीसदी बच्चों ने सफलता पाई। 2017 में नवोदय विद्यालय के 40 बच्चों का सिविल परीक्षाओं में भी सलेक्शन हुआ।
Our prejudices determine our judgements. There are excellent examples both in public (like Kendriya & Navodaya Vidyalayas) & private domains in education but we overlook these & condemn all that is public. We need to replicate best practices, both from public & private pic.twitter.com/FIomonT3Vp
— Anil Swarup (@swarup58) February 3, 2018
जब भी अच्छी पढ़ाई और बच्चों को भविष्य बेहतर बनाने की बात होती है लोगों को प्राइवेट स्कूल ही याद आते हैं। आजकल बच्चों से लेकर बड़ों तक का यही मानना है कि अच्छे भविष्य के लिए प्राइवेट स्कूल में ही पढ़ाई कराना चाहिए। लेकिन सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले वो बच्चे जो देश की प्रमुख प्रतियोगी परीक्षाओं को पास कर लेते हैं, ऐसे लोगों के लिए उदाहरण हैं। अगर बाकी सरकारी स्कूलों में भी पढ़ाई का वैसा ही स्तर बना दिया जाए जैसा नवोदय और केंद्रीय विद्यालयों में है तो शायद प्राइवेट स्कूलों की दुकानें बंद हो जाएं और लोगों का भरोसा एक बार फिर इन सरकारी विद्यालयों पर कायम हो जाए।
नवोदय व केंद्रीय विद्यालयों का ये है बजट
नवोदय विद्यालयों के बेहतरीन परिणाम और प्रतियोगी परीक्षाओं में इसके बच्चों का उम्दा प्रदर्शन इस बात का सबूत है कि सरकार अगर सही नीति से योजनाएं को लागू करे तो सरकारी संस्थाएं भी कमाल का प्रदर्शन कर सकती हैं। सरकार ने नवोदय विद्यालय समिति के लिए 2015 - 16 में 1905 करोड़ का बजट दिया था। ये बजट देश के कुल 589 नवोदय विद्यालयों के लिए था जहां 2 लाख बच्चे पढ़ते हैं। इस हिसाब से अगर देखें तो एक बच्चे पर सरकार एक साल में 85,000 रुपये खर्च करती है। इसी तरह केंद्रीय विद्यालय संगठन जिसमें 1099 स्कूल हैं और इन स्कूलों में 11.7 लाख बच्चे पढ़ते हैं, के लिए सरकार ने 3190 करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया था। यानि एक बच्चे के लिए 27150 रुपये।
सरकार एक बच्चे पर कितना करती है खर्च
सीबीजीए की रिपोर्ट से पता चलता है कि वर्ष 2004-05 में भारत में स्कूली शिक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद का 2.1 प्रतिशत व्यय हो रहा था। जिस साल (2009-10) शिक्षा का अधिकार क़ानून आया, उस साल यह व्यय 2.5 प्रतिशत था। पिछले 14 सालों में वर्ष 2013-14 में सबसे ज्यादा आवंटन (3.3 प्रतिशत) हुआ लेकिन इसके बाद फिर सरकारों ने शिक्षा पर व्यय कम करना शुरू कर दिया। जीडीपी के संदर्भ में वर्ष 2015-16 में कुल 2.68 प्रतिशत के बराबर का आवंटन किया गया। वर्ष 2015-16 में. अखिल भारतीय स्तर पर स्कूली शिक्षा के लिए 12717 रुपये प्रति बच्चा प्रति वर्ष का आवंटन हुआ था लेकिन यह औसतन खर्च और आवंटन है और कई बच्चे अब भी स्कूल से बाहर हैं। अलग - अलग राज्यों में बजट का ये आवंटन अलग - अलग है। इसमें से कुछ राज्यों के सरकारी स्कूलों का बजट ये है...
- सिक्किम 59791 रुपये /बच्चा/वर्ष
- मिजोरम 35698 रुपये /बच्चा/वर्ष
- गोवा 38751 रुपये /बच्चा/वर्ष
- बिहार में 8526 रुपये /बच्चा/वर्ष
- केरल – 23566 रुपये /बच्चा/वर्ष
- महाराष्ट्र – 18035 रुपये /बच्चा/वर्ष
- दिल्ली – 17691 रुपये /बच्चा/वर्ष
- छत्तीसगढ़ – 17223 रुपये /बच्चा/वर्ष
- तमिलनाडु- 16939 रुपये /बच्चा/वर्ष
- गुजरात– 15411 रुपये /बच्चा/वर्ष
- मध्य प्रदेश- 11330 रुपये /बच्चा/वर्ष
- उत्तर प्रदेश– 9167 रुपये /बच्चा/वर्ष
- झारखंड – 9169 रुपये /बच्चा/वर्ष
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