गंगा के औषधीय गुणों पर पेश की गई अध्ययन रिपोर्ट

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गंगा के औषधीय गुणों पर पेश की गई अध्ययन रिपोर्टगंगा

नई दिल्ली (भाषा)। पौराणिक काल से 'ब्रह्म द्रव्य' के रुप में प्रचलित गंगा नदी के औषधीय गुणों एवं प्रवाह मार्ग पर जल के स्वरुप एवं इससे जुड़े विभिन्न कारकों एवं विशेषताओं का पता लगाने के लिए सरकार द्वारा शुरु कराया गया अध्ययन कार्य पूरा हो चुका है और इसकी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी गई है। यह अध्ययन राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग शोध संस्थान (निरी) ने किया है।

जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्री उमा भारती ने कहा, 'गंगा नदी में औषधीय गुण हैं जिसके कारण इसे 'ब्रह्म द्रव्य' कहा जाता है और जो इसे दूसरी नदियों से अलग करता है। यह कोई पौराणिक मान्यता का विषय नहीं है, बल्कि इसका वैज्ञानिक आधार है। इस बारे में निरी ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है।'' उन्होंने कहा, ''अब हम इसके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में अध्ययन कर रहे हैं।''

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केंद्रीय मंत्री ने कहा कि गंगा नदी के औषधीय गुणों एवं प्रवाह मार्ग से जुड़े कारणों के अध्ययन का दायित्व राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग शोध संस्थान (निरी) को दिया गया था। इसके लिए तीन मौसमों के अध्ययन की जरुरत थी और इसके उपरांत संस्थान ने अपनी रिपोर्ट पेश कर दी है। इस अध्ययन को केंद्र को तीन चरणों में पूरा करना था, जिसमें शीतकालीन, पूर्व मानसून और उत्तर मॉनसून मौसम में गंगा नदी के 50 से अधिक स्थलों पर नमूनों का परीक्षण किया गया है। शीतकालीन व पूर्व मॉनसून मौसम की अध्ययन रिपोर्ट दिसंबर 2015 में गंगा सफाई राष्ट्रीय मिशन को पहले ही पेश भी की जा चुकी है।

इस अध्ययन एवं अनुसंधान परियोजना को पंद्रह महीनों में पूरा किया जाना था। इस अध्ययन में गंगा जल के विशेष गुणधर्मों के स्रोतों को पहचानने की प्रक्रिया थी। इसी तरह नदी के पानी में मिलने वाले प्रदूषित जल के अनुपात से होने वाले दुष्परिणामों का पता लगाना भी एक हिस्सा था। उमा भारती ने कहा कि गंगा नदी के औषधीय गुणों के बारे में वरिष्ठ शिक्षाविद प्रो. भार्गव का सिद्धांत भी है। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि इसके पीछे यह कारण बताया गया है कि हिमालयी क्षेत्र औषधिय पादपों से भरा हुआ है जो शीत रितु में बर्फ से दब जाते हैं. बाद में बर्फ पिघलने के बाद ये औषधियां पानी के साथ गंगा नदी में मिल जाती हैं। इस अध्ययन में इस बात का भी पता लगाने का प्रयास किया गया कि गंगा नदी के जल में औषधीय गुण मौजूद हैं या धीरे धीरे खत्म हो रहे हैं।

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इसके अलावा गंदगी एवं जलमल के प्रवाह से जुड़े विषयों का भी अध्ययन किया गया। इसमें गोमुख से गंगा सागर तक जल प्रवाह से जुड़े तत्वों का भी अध्ययन किया जा गया है। इसके तहत टिहरी से पहले और टिहरी के बाद, नरौरा से पहले और नरौरा के बाद, कानपुर से पहले और कानपुर के बाद, पटना से पहले और पटना के बाद पानी के स्वरुप में बदलाव पर विचार किया गया।

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जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय का कहना है कि इस पवित्र नदी में प्रत्येक वर्ष अनेक धार्मिक अवसरों पर करोड़ों लोगों द्वारा डुबकी लगाने के बावजूद इस नदी से कोई बीमारी या महामारी नहीं फैलती है। इसका कारण इस नदी के जल में अपने आप सफाई करने की कोई अद्भुत शक्ति है जो इसके पानी में सडन को रोकती है। इस अध्ययन से गंगा जल का उसके विशिष्ट गुणों के कारण मानव जाति के कल्याण और स्वास्थ्य के लिए उपयोग करने में मदद मिलेगी। इस विषय पर ब्रिटिश जीवाणु विशेषज्ञ अर्नेस्ट हेनबरी हेन्किन के संदर्भों का हवाला दिया जाता है, जिनके अनुसार इस नदी के जल में जीवाणुभोजी गतिविधियों की उपस्थिति का बहुत पहले ही पता चल चुका है। इस दावे के नवीकरण के लिए नए अनुसंधान किए जाने की जरुरत है।

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गंगाजल में 'सड़न न होने के गुणों' पर अखिल भारतीय आयुवर्ज्ञिान संस्थान (एम्स) नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यशाला में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने कहा था कि आज विश्व में अनेक प्रकार के नए और अधिक शक्तिशाली दवा प्रतिरोधी बैक्टीरिया और जीवाणुओं के विरुद्ध लड़ाई बढ़ती ही जा रही है। ऐसा अध्ययन किए जाने की जरुरत है जिसके माध्यम से गंगाजल के ऐसे विशिष्ट गुणों का पता लगाने और उनकी पड़ताल करने में मदद मिले कि किस प्रकार गंगाजल न केवल अपने में मौजूद कीटाणुओं और रोगाणुओं को नष्ट करके स्वयं को स्वच्छ कर लेता है बल्कि दूसरे जल को भी साफ कर देता है।

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विशेषज्ञों का कहना है कि इस अनुसंधान के परिणामस्वरुप सामने आने वाले बहुमूल्य वैज्ञानिक साक्ष्यों और गहरे अध्ययन से गंगाजल के औषधीय गुणों को समझने में मदद मिलेगी।

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